दिल्ली के चाँदनी चौक स्थित धर्मपुरा नया मंदिर , जो की आज से २२३ वर्ष प्राचीन है, जिसे सेठ हरसुख राय ने बनवाया था, वही पर १२००० प्राचीन ग्रंथों के साथ स्थित है ये स्वर्णमय अंकित ५२ काव्य का भक्तामर महा स्तोत्र ! जहाँ ये कहा जाता है कि अभी जो प्रचलित भक्तामर स्तोत्र है जिसमे ४८ काव्य है, जो की मूल भक्तामर स्तोत्र के ५२ काव्य में से ४८, ४९, ५०, ५१ काव्य को अलग करके किया है, क्युकी इन ४ काव्य में अति दिव्य शक्तियां है, देवों का साक्षात आह्रन है, जिसका कई लोग असामान्य उपयोग करने लगे थे, जिस वजह से इन्हें पृथक किया गया है ! . .
*श्रुतपंचमी मनाने का कारण* 🌴🌴🌴🌴🌴🌴🌴🌴 प्रतिवर्ष ज्येष्ठ शुक्ला पंचमी को जैन समाज में, श्रुतपंचमी पर्व मनाया जाता है। इस पर्व को मनाने के पीछे एक इतिहास है, जो निम्नलिखित है- श्री वर्द्धमान जिनेन्द्र के मुख से श्री इन्द्रभूति (गौतम) गणधर ने श्रुत को धारण किया। उनसे सुधर्माचार्य ने और उनसे जम्बूस्वामी नामक अंतिम केवली ने ग्रहण किया। भगवान महावीर के निर्वाण के बाद इनका काम ६२ वर्ष है। *पश्चात १०० वर्ष में* *०१)* विष्णु, *०२)* नन्दिमित्र, *०३)* अपराजित, *०४)* गोवर्धन, *०५)* भद्रबाहु, ये पांच आर्चाय पूर्ण द्वादशांग के ज्ञाता श्रुतकेवली हुए। *तदनंतर १८३ वर्ष मे* ग्यारह अंग और दश पूर्वों के वेत्ता से ग्यारह आचार्य हुए- *०१)* विशाखाचार्य, *०२)* प्रोष्ठिन, *०३)* क्षत्रिय, *०४)* जयसेन, *०५)* नागसेन, *०६)* सिद्धार्थ, *०७)* धृतिसेन, *०८)* विजय, *०९)* बुद्धिल, *१०)* गंगदेव जी और *११)* धर्म सेन। *तत्पश्चात २२० वर्ष में* ग्यारह अंग के पाँच पारगामी मुनि हुये *(कही कही १२३ वर्ष भी बताया जाता हैं)* *०१)* नक्षत्र, *०२)* जयपाल, *०३)* पाण्डुनाम, *०४)* ध्रुवसेन और *०५)* कंसाचार्...