*आज भारत में जो रेलवे है, उसको भारत में कौन लाया.?* *आपका उत्तर होगा ब्रिटिश.!* *जी नहीं..ब्रिटिश सिर्फ विक्रेता थे। वास्तव में भारत में रेलवे लाने का स्वपन एक भारतीय जैन का था.!* ¤¤¤¤¤¤¤¤¤¤¤¤¤¤¤¤¤ *भारतीय गौरव को छिपाने के लिए हमारे देश की पूर्व सरकारों के समय इतिहास से बड़ी एवं गम्भीर छेड़छाड़ की गई।* *भारत में रेलवे आरम्भ करने का श्रेय हर कोई अंग्रेजों को देता है, लेकिन श्रीनाना जगन्नाथ शंकर सेठ मुर्कुटे जैन के योगदान और मेहनत के बारे में कदाचित कम ही लोग जानते हैं।* *15 सितंबर 1830 को दुनिया की पहली इंटरसिटी ट्रेन इंग्लैंड में लिवरपूल और मैनचेस्टर के बीच चली।* *यह समाचार हर जगह फैल गया। बम्बई में एक व्यक्ती ने सोचा कि उनके शहर में भी ट्रेन चलनी चाहिए।* *अमेरिका में अभी रेल चल रही थी और भारत जैसे गरीब और ब्रिटिश शासित देश में रहने वाला यह व्यक्ति रेलवे का स्वप्न देख रहा था। कोई और होता तो जनता उसे ठोकर मारकर बाहर कर देती।* *लेकिन यह व्यक्ति कोई साधारण व्यक्ति नहीं था। यह थे बंबई के साहूकार श्रीनाना शंकरशेठ जैन। जिन्होंने स्वयं ईस्ट इंडिया कंपनी को ऋण दिया था। है न...आश्च...
Living Will प्रो. डॉ. लोपा मेहता, मुंबई के जी.एस. मेडिकल कॉलेज में प्रोफेसर थीं, और उन्होंने वहाँ एनाटॉमी विभाग की प्रमुख के रूप में कार्य किया। ७८ वर्ष की उम्र में उन्होंने लिविंग विल (Living Will) बनाई। उसमें उन्होंने स्पष्ट लिखा — जब शरीर साथ देना बंद कर देगा, और सुधार की कोई संभावना नहीं रहेगी, तब मुझ पर इलाज न किया जाए। ना वेंटिलेटर, ना ट्यूब, ना अस्पताल की व्यर्थ भागदौड़। मेरे अंतिम समय में शांति हो — जहाँ इलाज के ज़ोर से ज़्यादा समझदारी को प्राथमिकता दी जाए। डॉ. लोपा ने सिर्फ यह दस्तावेज़ ही नहीं लिखा, बल्कि मृत्यु पर एक शोध-पत्र भी प्रकाशित किया। उसमें उन्होंने मृत्यु को एक प्राकृतिक, निश्चित और जैविक प्रक्रिया के रूप में स्पष्ट किया। उनका तर्क था कि आधुनिक चिकित्सा विज्ञान ने मृत्यु को कभी एक स्वतंत्र अवधारणा के रूप में देखा ही नहीं। चिकित्सा का आग्रह यह रहा कि मृत्यु हमेशा किसी रोग के कारण ही होती है, और यदि रोग का इलाज हो जाए, तो मृत्यु को टाला जा सकता है। लेकिन शरीर का विज्ञान इससे कहीं गहरा है। उनका तर्क है — शरीर कोई हमेशा चलने वाली मशीन नहीं है। यह एक सीमित प्रणाली है, ज...