नेमिनाथ/ अरिष्टनेमी २२ वे तीर्थंकर (इसवी सन पूर्व १०००-१५००) मयूर मल्लिनाथ वग्यानी, सांगली महाराष्ट्र + 91 9422707721 आज भगवान नेमिनाथ का मोक्ष कल्याणक दिवस है. उनका जन्म गिरनार-काठियावाड़ (आधुनिक गुजरात का सौराष्ट्र प्रांत) में हुआ था। 22वें तीर्थंकर नेमिनाथजी का इतिहास हिंदू धर्मग्रंथों और अन्य धार्मिक साहित्य में येदु राजवंश के संस्थापक महाराजा वासु के वंश से जुड़ा है. ऋग्वेद में अनेक स्थानों पर उनका उल्लेख मिलता है। भगवान नेमिनाथ का उल्लेख यजुर्वेद और सामवेद में मिलता है. विद्वानों का मत है कि छांदोग्य-उपनिषद (ChhandogyaUpanishada III, 17,6) में वर्णित घोर अंगिरसा नेमिनाथ ही थे जिन्होंने कृष्ण को तप, दान, अहिंसा और सत्य बोलने का मार्ग सिखाया था। Verse 3.17.6 तद्धैतद्घोर् आङ्गिरसः कृष्णाय देवकीपुत्रायोक्त्वोवाचापिपास एव स बभूव सोऽन्तवेलायामेतत्त्रयं प्रतिपद्येताक्षितमस्यच्युतमसि प्राणसंशितमसीति तत्रैते द्वे ऋचौ भवतः ॥ ३.१७.६ ॥ भाषांतर अंगिरस के वंश के ऋषि घोरा ने देवकी के पुत्र कृष्ण को यह सत्य सिखाया, जिसके परिणामस्वरूप कृष्ण सभी इच्छाओं से मुक्त हो गए। तब घोरा ने कहा: 'मृत्य
णमो जिणाणं भगवान् महावीर की मूल वाणी : षट्खण्डागम प्रो.डॉ. अनेकान्त कुमार जैन जैनदर्शन विभाग , दर्शन संकाय , श्री लाल बहादुर शास्त्रीराष्ट्रीय संस्कृत विद्यापीठ , क़ुतुब सांस्थानिक क्षेत्र , नई दिल्ली – ११००१६ anekant76@gmail.com सामान्य रूप से आप्त के वचन को आगम कहा जाता है | आप्त के वचनादि से होने वाले अर्थ ज्ञान को आगम कहते हैं। [1] वास्तव में आगम ज्ञान रूप हैं जो शब्दों के माध्यम से हमें प्राप्त होते हैं | कारण में कार्य का उपचार कर देने से संक्षेप में आप्त के वचन को आगम कह दिया जाता है | आगम और आगमज्ञान की विशेष महिमा है । इसीलिए आचार्य कुन्दकुन्द ने ‘‘ आगम चक्खू साहू ’’ अर्थात् साधु को आगम चक्षु कहा है क्योंकि हम अपने चर्मचक्षुओं से तो मात्र सीमित बाह्य स्थूल पदार्थों को ही देख सकते हैं किन्तु आगम रूपी चक्षुओं के द्वारा परोक्षरूप में सूक्ष्म , देश-कालांतरित उन सभी असीमित पदार्थों आदि का ज्ञान संभव है , जिन्हें केवलज्ञानी प्रत्यक्षरूप में जानते देखते हैं। इसीलिए आचार्य कुन्दकुन्द ने स्पष्ट कह दिया कि आगम ज्ञान के बिना तत्त्व-श्रद्धापूर्वक ज्ञान , इसके बिना सं