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TEMPLES, STEPWELLS, FORTS ETC built by KING KUMARPAL

TEMPLES, STEPWELLS, FORTS ETC built by KING KUMARPAL Raja Kumarapal was responsible for building a large number of temples in his capital Anahilapataka (Patan). After accepting Jainism, he spent 14 crores gold coins in 14 years for Sadharmik Bhakti. He constructed 21 Jain libraries, 1444 new Jinalaya/vihars, renovated 1600 temples and organised 'Cha-Ri-Palit Sangh' to various tirths 7 times. In V.S.1226 he arranged Cha-Ri-Palit sangh yatra to Shatrunjay Tirth. According to Jain prabandhas, he built 32 Jain temples as the repentance of his non-vegetarianism in early life. He built temples at several sites, many of which are already Jain sites of pilgrimage: Shatrunjaya, Arbudagiri (Abu), Stambhatirtha (Khambhat), Prabhas etc. Somnath temple of Shashibhushana (1169 AD) at Prabhas patan (Somnath patan, old name Dev Patan) which is mentioned as one of the 5 sacred temples of the town according to Prabhas-kanda was renovated by him. Kumarapal's Somnath inscription mentions it
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दिल्ली के जैन मंदिर सूची

दिल्ली के जैन मंदिर    • 1. श्री दिगम्बर जैन मंदिर गली नं. 8, उल्घनपुर, नवीन शाहदरा, दिल्ली- 110032 • 2. श्री दिगम्बर जैन मंदिर कबूलनगर, निकट पेट्रोल पंप, शाहदरा, दिल्ली- 110032 • 3. श्री दिगम्बर जैन मंदिर 60 फुट रोड, बलवीरनगर, शाहदरा, दिल्ली 110032 • 4. श्री दिगम्बर जैन मंदिर सी-6 ब्लाक, यमुना विहार, राधिका मार्ग, दिल्ली- 11005 • 5. श्री जैन मंदिर शांति बिल्डिंग, मन्डोली रोड, रामनगर, शाहदरा, दिल्ली- 110032 • 6. श्री महावीर दिगम्बर जैन मंदिर 30/8, गली नं.-10 विश्वासनगर, दिल्ली- 110032 • 7. श्री दिगम्बर जैन मंदिर गली नं.-10, ब्रह्मपुरी, न्यू सीलमपुर, दिल्ली- 110053 • 8. श्री दिगम्बर जैन मंदिर गली नं.-7 भजनपुरा, दिल्ली- 110053 • 9. श्री आदिनाथ दिगम्बर जैन मंदिर गौतमपुरी, सीलमपुर के पास शाहदरा, दिल्ली- 110053 • 10. श्री दिगम्बर जैन मंदिर जैन नगर, न्यू उस्मानपुरा, शाहदरा, दिल्ली- 110053 • 11. श्री दिगम्बर जैन मंदिर कैथवाला, निकट पुस्ता, शाहदरा, दिल्ली- 110053 • 12. श्री दिगम्बर जैन मंदिर शास्त्री पार्क, यमुना पुस्ता, शाहदरा, दिल्ली- 110053 • 13. श्री दिगम्बर जैन मंदिर 100 फुटा रोड, गली नं.

प्रायश्चित्त के दश या नौ भेद

*प्रायश्चित्त के दश या नौ भेद* – डॉ. स्वर्णलता जैन, नागपुर        मूलाचार में प्रायश्चित्त के भेदों को बताने वाली गाथा निम्न प्रकार है - *आलोयणपडिकमणं, उभयविवेगो तहा विउस्सग्गो।*  *तव छेदो मूलं वि य, परिहारो चेव सद्दहणा।।*  मूलाचार, 5/165 एवं 11/16       अर्थात् 1- आलोचना, 2- प्रतिक्रमण, 3- तदुभय, 4- विवेक, 5- व्युत्सर्ग, 6- तप, 7- छेद, 8- मूल, 9- परिहार और 10- श्रद्धान - ये प्रायश्चित्त के दश भेद हैं।  और देखें, अनगार धर्मामृत, संस्कृत पंजिका, पृष्ठ 513 एवं मूलाचार प्रदीप 1835-37  आचारसार में भी दश भेदों का कथन किया गया है। मात्र वहाँ श्रद्धान के स्थान पर दर्शन शब्द का प्रयोग किया गया है।   आचारसार, 6/23-24  मूलाचार की आचारवृत्ति टीका में कहा है कि उक्त दश प्रकार के प्रायश्चित्तों को दोषों के अनुसार देना चाहिए। कुछ दोष आलोचना मात्र से निराकृत हो जाते हैं, कुछ दोष प्रतिक्रमण से दूर किये जाते हैं तो कुछ दोष आलोचना और प्रतिक्रमण - इन दोनों अर्थात् तदुभय प्रायश्चित्त के द्वारा नष्ट किये जाते हैं; कोई दोष विवेक प्रायश्चित्त से, कोई दोष व्युत्सर्ग प्रायश्चित्त से, कोई दोष तप प्रायश्चित्त से

सच्ची क्षमा उनसे

*सच्ची क्षमा उनसे:* पहली- क्षमा उन भगवंतों से, जिनकी साक्षी में हमने नरको में कसमें खाई थीं, की नरभव मिलने पे स्व: कल्याण करने की।🙏🏻 दूसरी- क्षमा उन अरिहंत भगवान से, जिनको पूजा में आवाहन करके हृदय में बसाया पर पंच पाप नहीं छोड़ पाए।🙏🏻 तीसरी- क्षमा उन संयमी गुरुओं से, जिनके उपदेश को हमने सुना-अनसुना किया, असंयम में ही जीवन व्यतीत किया, उनकी विनय में कोई कमी रही हो।🙏🏻 चौथी- क्षमा उन जिनवाणी माँ से, जिनकी वाणी सुनकर भी मोहान्ध रहा।🙏🏻 पांचवी- क्षमा उन माँ-बाप से, जिन्होंने अपने कर्तव्य का पालन किया, लेकिन हमने उन्हें वह सम्मान न दिया हो जिसके वह हक़दार थे।🙏🏻 छठी- क्षमा उन दीन-हीन गरीबों से, जिनकी सहायता के लिए हमे धन व बल मिला, लेकिन उनसे मुख मोड़ लिया, अपने नाम व ऐशोआराम के लिए ख़र्च किया।🙏🏻 सातवी- क्षमा उन साधर्मी भाइयों- सब मित्रों से, जिनके साथ स्वार्थवश-अभिमानवश अपराध किया हो।🙏🏻 आठवी- क्षमा उन सभी परिवारजन-कुटुम्बजन-रिश्तेदारों-अधीनस्थ काम करने वाले कर्मचारियों से जिनसे अपने अहंकार के कारण दुर्व्यवहार किया हो।🙏🏻 नौंवी- क्षमा उन एक से पांच इन्द्रिय प्राणियों से,आंखें होते ह

मैं नालंदा विश्वविद्यालय बोल रहा हूँ

मैं नालंदा विश्वविद्यालय बोल रहा हूँ। आज मैं आपको अपने गौरवशाली इतिहास के बारे में बताने जा रहा हूँ, जिसके बारे में आज की पीढ़ी कम ही जानती है। हाँ, मैं वही विश्वविद्यालय हूँ जो एशिया की सबसे बड़ी यूनिवर्सिटी हुआ करता था। लेकिन एक नरभक्षी, पागल राक्षस, क्रूर और सनकी तुर्की शासक बख्तियार खिलजी ने मुझे और मेरे जैन तथा हिन्दू पुस्तक भंडार को जलाकर राख कर दिया था। 6 महीनों तक मैं जलता रहा, किसी ने मेरी सुध नहीं ली। आज मैं आपको मेरी कहानी सुनाऊंगा, जिससे आपकी आँखें भी भीग जाएंगी। मेरी स्थापना 5वीं शताब्दी में महान राजा कुमारगुप्त ने की थी। यह वह समय था जब भारत में शिक्षा और ज्ञान का प्रमुख केंद्र था। इसके बाद राजा हर्षवर्धन और राजा देवपाल ने भी मेरे निर्माण और विस्तार में महत्वपूर्ण योगदान दिया। मेरा परिसर लगभग 10 किलोमीटर लंबा और 5 किलोमीटर चौड़ा था, जिसमें 100 से अधिक भवन और इमारतें थीं। मेरे प्रांगण में 10,000 से अधिक विद्यार्थी शिक्षा प्राप्त करते थे और उन्हें पढ़ाने के लिए 1,600 आचार्य और जैन पंडित मौजूद रहते थे। यहाँ पर विभिन्न विषयों की पढ़ाई होती थी

तत्त्वार्थसूत्र उच्चारण विधान

*श्रुत उच्चारण पाठ:*  💠💠💠💠💠💠💠💠 डॉ राकेश जैन शास्त्री ,नागपुर   _तत्त्वार्थ सूत्र के उच्चारण के लिए उच्चारण करते समय कौन सा अक्षर सामने आने पर किस अक्षर का उच्चारण होगा, इसे समझने के लिए यह पाठ दिया गया है।_   *(1)* _अ , ह और कवर्ग( क,ख,ग,घ,ङ् )यह_ _7 अक्षर सामने आने पर~_         _"ङ्" का उच्चारण_ _होगा।_   *(2)*  _व , इ , श , य और चवर्ग( च,छ,ज,झ,ञ )यह 9_ _अक्षर सामने आने पर~_        _"ञ्" का उच्चारण होगा।_   *(3)* _ऋ,र,और टवर्ग (ट,ठ,ड,ढ,ण)यह 7 अक्षर_ _सामने आने पर~_        _"ण्" का उच्चारण होगा।_   *(4)* _स,ल और तवर्ग (त,थ,द,ध,न,)यह 7 अक्षर_ _सामने आने पर~_         _"न्" का उच्चारण होगा।_   *(5)* _उ और पवर्ग (प,फ,ब,भ,म)यह 6 अक्षर_ _सामने आने पर~_           _"म्" का उच्चारण_ _होगा।_   *जैसे~* _"सत्संख्या" यह सूत्र का एक हिस्सा समझने_ _के लिए है। इसमें  "स" के_ _ऊपर जो अनुस्वार है ,उसका_ _उच्चारण इस प्रकार से_ _होगा।"सत्-सङ्-ख्या"_ _इसका कारण कवर्ग का_ _दूसरा अक्षर "ख" सामने_ _आया है । अतः (

वस्तुपाल जैन तेजपाल जैन की गौरव गाथा

वस्तुपाल तेजपाल की गौरव गाथा । जैन धर्म की गौरव गाथाओं की बात करे और वस्तुपाल तेजपाल की बात न हो तो वह अधूरी मानी जाती है इसे धर्मकर्ता जिनआज्ञां पलक वस्तुपाल तेजपाल दोनों भाइयो ने जैन धर्म के प्रति बहुत ही अद्भुत कार्य किये जिन्हें बताते हुए हमें बहुत ही हर्ष महसूस होता है । 1300 शिखरबद्ध जिनालय बनाए । 3 लाख द्रव्य खर्च करके शत्रुंजय पर तोरण बांधा । 3202 जिनमन्दिर के जीर्णोद्धार करवाए । वर्ष में तीन बार संघ पूजा तथा साधर्मिक वात्सल्य करते थे । 105000 जिन प्रतिमा भरवाई । 984 पौशाधशालाएं बनवाई । 1000 सिंहासन महात्माओं के लिए करवाए । 702 धर्मशालाएं बनवाई । 1000 दानशालाएं बनवाई । 35 लाख द्रव्य खर्च करके खंभात में ज्ञान भंडार बनवाए । 400 पानी की परब बनवाई । 500 सिंहासन हाथी दांत के बनवाए । 700 पाठशालाएं पढ़ने के लिए बनवाई । 12 बार शत्रुंजय जी तीर्थ पर संघ ले गए । 1000 बार संघ पूजा की । 🙏 जय जिनेन्द्र 🙏