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कश्मीरी पंडित मूलरूप से जैन धर्मावलंबी थे


कश्मीरी पंडित मूलरूप से जैन धर्मावलंबी थे - डॉ. लता बोथरा

डॉ. आम्बेडकर सामाजिक विज्ञान विश्वविद्यालय में कश्मीर जैन धर्म पर विशेष व्याख्यान

                                          कश्मीरी पंडित मूलरूप से जैन धर्मावलंबी थे - डॉ. बोथरा

वर्तमान में जैन संस्कृति और कश्मीर दो अलग-अलग धाराएं प्रतीत होती हैं जबकि विगत में जैन संस्कृति के लिए कश्मीर का एक विशिष्ट स्थान है। जिस के साहित्यिक और ऐतिहासिक साक्ष्य अनेक ग्रंथों में उपलब्ध है। कश्मीर की ऐतिहासिकता पर जानकारी देने वाला प्रमुख प्रमाणिक ग्रंथ कवि कल्हन द्वारा रचित राजतरंगनी है। जिसमें जैन धर्म के कश्मीर में प्रभाव का वर्णन मिलता है। 1445 ईस्वी से पूर्व के अनेक राजाओं का उल्लेख इसमें मिलता है। गोविंद वंश के राजा सत्य प्रतिज्ञ अशोक और उनके पुत्र मेघवाहन, ललितादित्य के समय में जैन धर्म कश्मीर में अपनी पराकाष्ठा पर था।

उक्त बात जैनोलॉजी की विशेषक डॉ. लता बोथरा ने 'जैन दर्शन शोध पीठ' डॉ. बी.आर.आंबेडकर सामाजिक विज्ञान विश्वविद्यालय महू में कश्मीर जैन धर्म विषय पर आयोजित व्याख्यान में कही। उन्होंने कहा कि जैन आचार्य वप्पटट सूरी और हेमचंद्राचार्य का संबंध कश्मीर से रहा है। कश्मीर के मूल निवासी कश्मीरी पंडित मूल रूप से जैन धर्मावलंबी ही थे जो मुसलमान कश्मीर में अपने नाम के आगे भट्ट लगाते हैं वे कश्मीरी पंडित थे जो धर्मांतरण के बाद मुस्लिम हो गए। आज कश्मीर में एक भी जैन परिवार नहीं है। नालंदा और तक्षशिला से पूर्व कश्मीर विद्या अध्ययन और साधना का बहुत बड़ा केंद्र था। एशिया का यह केंद्र स्थल जैन, बौद्ध और वेदांत परंपरा का सबसे बड़ा केंद्र माना जा सकता है।

अमीर की भाषा का सूत्र प्राकृत है और यहां प्रचलित शारदा लिपि का स्त्रोत भी ब्राह्मी लिपि ही है। ईसामसीह, हेनमांग, नागार्जुन, शंकराचार्य कुमारिल भट्ट जैसे ऐतिहासिक आचार्य भी कश्मीर गए थे। कश्मीर का नाम कश्यप ऋषि के नाम से है। इसके साहित्यिक प्रमाण उपलब्ध है। अमरनाथ की हरी यात्रा परंपरा से चली आ रही जैन छहरी यात्रा का ही रूप है। 

सिकंदर लोधी, तैमूर वंश और औरंगजेब आदि शासकों ने यहाँ की ऐतिहासिकता को नष्ट किया, वहां की 4 प्राचीन पांडुलिपियों को जला दिया और महान जैन संत परंपरा के अवशेषों को नष्ट कर दिया। आज स्थिति इतिहास को पुनर प्रतिष्ठित करने शोध कार्य को प्रोत्साहित करना चाहती है, जिससे ऐतिहासिक वास्तविकताएं सामने आ सके- प्रो. शुक्ला; यह है कि कश्मीर में कोई जैन अवशेष नहीं बचा जबकि पुरातात्विक अवशेष में हजारों की संख्या में जैन मूर्तियों के अवशेष मिलते हैं। 

कुलपति प्रो. आशा शुक्ला ने कहा कि विवि के शोध पीठ ऐसे विलुप्त हो गए। इतिहास को पुनः प्रतिष्ठित करने के लिए शोध कार्य को प्रोत्साहित करना चाहती है, जिससे ऐतिहासिक वास्तविकताएं सामने आ सकें। जैन दर्शन शोध पीठ के मानद आचार्य डॉ. जितेंद्र बाबूलाल शाह ने मुख वक्ता लता बोथरा का परिचय देते हुए विषय परिवर्तन किया। संचालन शोध पीठ को सहसमन्वयक डॉ. विदिया तातेड ने किया। आभार डॉ. सुरेन्द्र पाठक ने माना।

दबंग दुनिया 2021 

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