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Showing posts from April, 2025

जैन विदूषी श्रीमती डॉ० मुन्नी जैन

श्रीमती डॉ० मुन्नी जैन जन्म- 22 जून 1957, दमोह (म.प्र.)  शिक्षा– प्राकृताचार्य, जैनदर्शनाचार्य, एम. ए. (हिन्दी) पी-एच.डी.(बी.एच.यू.से) ,शिक्षाशास्त्री, पुस्तकालय- विज्ञानशास्त्री माता-पिता- श्रीमती संतोष रानी जैन एवं श्री हुकमचन्द जैन, दमोह (म.प्र.) धर्मपत्नी- प्रो० फूलचन्द जैन प्रेमी,  पूर्व जैनदर्शन विभागाध्यक्ष,सम्पूर्णानंद संस्कृत विश्वविद्यालय,वाराणसी परिवार - 1. ज्येष्ठ पुत्र- प्रो. अनेकान्त कुमार जैन, जैनदर्शन विभाग श्री लालबहादुर शास्त्री राष्ट्रीय संस्कृत विश्वविद्यालय, दिल्ली  2. पुत्री -: डॉ० इन्दु जैन राष्ट्र गौरव, नई दिल्ली,  (राष्ट्रीय-अंतर्राष्ट्रीय जैन प्रतिनिधि) 3. कनिष्ठ पुत्र - डॉ. अरिहन्त कुमार जैन,असिस्टेंट प्रोफेसर, के. जे. सौमय्या विद्याविहार  युनिवर्सिटी,मुम्बई. कार्यक्षेत्र -1) सत्र 2011 से 2022 तक सम्पूर्णानन्द संस्कृत वि. वि. वाराणसी के जैनदर्शन विभाग में अतिथि प्राध्यापिका। 2) देश के अनेक नगरों में एवं विश्वविद्यालयों आदि में आयोजित ब्राह्मी लिपि कार्यशालाओं में प्रशिक्षण दिया। 3) बीस से अधिक अखिल भारतीय संगोष्ठि‌यों में श...

ब्रह्मी लिपि उद्भव और विकास Brahmi Lipi origin and Devolopment

ब्राह्मी लिपि : उद्भव और विकास - श्रीमती डा. मुन्नी पुष्पा जैन, वाराणसी          भाषा के बाद अभिव्यक्ति का सबसे अधिक सशक्त माध्यम ‘लिपि' है। ‘लिपि' किसी भाषा को चिन्हों तथा विभिन्न आकारों में बांधकर दृश्य और पाल्य बना देती है। इसके माध्यम से भाषा का वह रूप हजारों वर्षों तक सुरक्षित रहता है। विश्व में सैकड़ों गाषाए तथा सैकड़ों लिपियों हैं। भाषा का जन्म लिपि से पहले होता है, लिपि का जन्म बाद मे। प्राचीन शिलालेखों से यह स्पष्ट होता है कि प्राचीन भारत में ब्राह्मीलिपि ही प्रमुखतया प्रचलित रही है और यही बाह्मी लिपि अपने देश के समृद्ध प्राचीन ज्ञान-विज्ञान ,संस्कृति,इतिहास आदि को सही रूप में सामने लाने में एक सशक्त माध्यम बनी। सपाट गो मापवं ने/ इस ब्राह्मी लिपि में शताधिक शिलालेख लिखवाकर ज्ञान लिाप और भाषा को सदियों तक जीवित रखने का एक क्रांतिकारी कदम उठाया था।   सत्रहवीं-अठारहवीं शताब्दी में ब्राह्मी लिपि के रहस्य को समझने के लिए पश्चिमी तथा पूर्वी विद्वानों ने जो श्रम किया उसी का प्रतिफल है कि आज हम उन प्राचीन लिपियो को पढ़-समझ पा रहे है...

आचार्य वादीभसिंह कृत क्षत्रचूड़ामणि ग्रन्थ से संकलित सूक्ति संग्रह

आचार्य वादीभसिंह कृत क्षत्रचूड़ामणि ग्रन्थ से संकलित सूक्ति संग्रह अ सूक्ति अर्थ १. अकुतोभीतिता भूमेर्भूपानामाज्ञयान्यथा।३/४२ ॥ राजाओं की आज्ञा से भूमण्डल पर कहीं से भी भय नहीं रहता। २. अङ्गजायां हि सूत्यायामयोग्यं कालयापनम् ।।३/३८ ।। कन्या के जवान हो जाने पर विवाह के बिना काल बिताना अनुचित है। ३. अङ्गार सदृशी नारी नवनीत समा नराः ।।७/४१ ।। स्त्री अंगारे के समान तथा पुरुष मक्खन के समान हैं। ४. अजलाशयसम्भूतममृतं हि सतां वचः ।।२/५१ ।। सज्जनों के वचन जलाशय के बिना ही उत्पन्न हुए अमृत के समान हैं। ५. अञ्जसा कृत पुण्यानां न हि वाञ्छामि वञ्चिता ।।८/६७।। सच्चे पुण्यवान पुरुषों की इच्छा भी विफल नहीं होती। ६.अतर्क्यं खलु जीवानामर्थसञ्चय कारणम् ।।३/१२।। मनुष्यों के धन संचय का कारण कल्पनातीत है। ७. अतर्क्यसम्पदापद्भ्यां विस्मयो हि विशेषतः ।।१०/४६।। अकस्मात् सम्पत्ति और विपत्ति के आने से विशेषरूप से आश्चर्य होता है। ८.अत्यक्तं मरणं प्राणैः प्राणिनां हि दरिद्रता ।।३/६ । दरिद्रता मनुष्य के लिए प्राणों के निकले बिना ही जीवित मरण है। ९. अत्युत्कटो हि रत्नांशुस्तज्ज्ञवेकटकर्मणा ।।११/८४ ।। चमकदार रत्न को...

क्या पुरी का जगन्नाथ मंदिर जैन तीर्थंकर का मंदिर है ?

जगन्नाथ मंदिर का इतिहास बहुत प्राचीन है और यह मूल रूप से जैन मंदिर है । वर्तमान में हिंदू धर्म के चार धाम से एक धाम माना जाता है । और 51शक्ति पीठों में से एक विमला देवी शक्ति पीठ के नाम से भी विख्यात है । लेकिन एक जैन मंदिर को कब और कैसे परिवर्तित कर दिया गया ?   जब हमारे राष्ट्र की विरासतों को कोई लूट ले या क्षत विक्षत कर दे तो मन विक्षोभ से भर जाता है । अभी कुछ महीने पहले माननीय प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी जी के सफल प्रयासों से लूटी गई भारतीय विरासतों को पुनः विदेशों से वापिस ला गया है । जिनमें एक माता अन्नपूर्णा जी की प्रतिमा का उत्सव पूरे भारत वर्ष में मनाया गया । नगरों का भ्रमण कराते हुए उन्हें पुनः विश्वनाथ जी के मंदिर में विराजमान किया गया । हम  सभी भारतवासियों के मन में मानो एक नया विश्वास जाग  गया हो । सभी के मन में माता अन्नपूर्णा जी के प्रति जो भाव उमड़ा वह बहुत ही उत्साहित था । क्या आप जानते हैं उड़ीसा प्रदेश (कलिंग देश) में भव्य जगन्नाथ मंदिर में भी इसी तरह का इतिहास दोहराया गया था ?  - आज से ठीक 8-9BCE (3000 वर्ष पूर्व ) जैन ...

Contribution of Jain Society in India

*Jains have India's highest literacy rate at 94.1%* . 70% of Jains live in the top wealth quintile (Source: NFHS-4, 2018) Jains, less than 0.5 % of India’s population, contribute ~20% of income tax, the highest per capita income tax. Let's discover what makes this community home to the most Indian billionaires.  1. Did you know that Seth P Roychand, who started India's first stock exchange *(Bombay Stock Exchange* ), was a Jain? 2. India's largest space organisation, *ISRO* (Indian Space Research Organisation), was founded by Jain, Dr. Vikram Sarabhai. 3. India's first ship manufacturing company, the *Hindustan Shipyard and HAL* , was founded by Jain-Seth Walchand Hirachand Doshi. 4. The largest airline company in India, *Indigo Airlines,* was founded by Rakesh Gangwal. 5. The largest bullion company in India, *RSBL* , was founded by Jain Prithviraj Kothari (Riddhi Siddhi Bullions) 6. The largest diamond company in India, *Rosy blue* founded by Jain-Russell Mehta 7....

णमोकार महामंत्र के 9 रोचक तथ्य

9 अप्रैल 2025 विश्व नवकार सामूहिक मंत्रोच्चार पर विशेष – *णमोकार महामंत्र के 9 रोचक तथ्य* डॉ.रूचि अनेकांत जैन प्राकृत विद्या भवन ,नई दिल्ली १.   यह अनादि और अनिधन शाश्वत महामन्त्र है  ।यह सनातन है तथा श्रुति परंपरा में यह हमेशा से रहा है । २.    यह महामंत्र प्राकृत भाषा में रचित है। इसमें कुल पांच पद,पैतीस अक्षर,अन्ठावन मात्राएँ,तीस व्यंजन और चौतीस स्वर हैं । ३.   लिखित रूप में इसका सर्वप्रथम उल्लेख सम्राट खारवेल के भुवनेश्वर (उड़ीसा)स्थित सबसे बड़े शिलालेख में मिलता है ।   ४.   लिखित आगम रूप से सर्वप्रथम इसका उल्लेख  षटखंडागम,भगवती,कल्पसूत्र एवं प्रतिक्रमण पाठ में मिलता है ५.   यह निष्काम मन्त्र है  ।  इसमें किसी चीज की कामना या याचना नहीं है  । अन्य सभी मन्त्रों का यह जनक मन्त्र है  । इसका जाप  9 बार ,108 बार या बिना गिने अनगिनत बार किया जा सकता है । ६.   इस मन्त्र में व्यक्ति पूजा नहीं है  । इसमें गुणों और उसके आधार पर उस पद पर आसीन शुद्धात्माओं को नमन किया गया है...