दिल्ली के चाँदनी चौक स्थित धर्मपुरा नया मंदिर , जो की आज से २२३ वर्ष प्राचीन है, जिसे सेठ हरसुख राय ने बनवाया था, वही पर १२००० प्राचीन ग्रंथों के साथ स्थित है ये स्वर्णमय अंकित ५२ काव्य का भक्तामर महा स्तोत्र ! जहाँ ये कहा जाता है कि अभी जो प्रचलित भक्तामर स्तोत्र है जिसमे ४८ काव्य है, जो की मूल भक्तामर स्तोत्र के ५२ काव्य में से ४८, ४९, ५०, ५१ काव्य को अलग करके किया है, क्युकी इन ४ काव्य में अति दिव्य शक्तियां है, देवों का साक्षात आह्रन है, जिसका कई लोग असामान्य उपयोग करने लगे थे, जिस वजह से इन्हें पृथक किया गया है ! . .
जैन धर्म में शास्त्रो की कथन पद्धति को अनुयोग कहते हैं। जैनागम चार भागों में विभक्त है, जिन्हें चार अनुयोग कहते हैं - प्रथमानुयोग, करणानुयोग, चरणानुयोग और द्रव्यानुयोग। इन चारों में क्रम से कथाएँ व पुराण, कर्म सिद्धान्त व लोक विभाग, जीव का आचार-विचार और चेतनाचेतन द्रव्यों का स्वरूप व तत्त्वों का निर्देश है। इसके अतिरिक्त वस्तु का कथन करने में जिन अधिकारों की आवश्यकता होती है उन्हें अनुयोगद्वार कहते हैं। प्रथमानुयोग : इसमें संयोगाधीन कथन की मुख्यता होती है। इसमें ६३ शलाका पुरूषों का चरित्र, उनकी जीवनी तथा महापुरुषों की कथाएं होती हैं इसको पढ़ने से समता आती है | इस अनुयोग के अंतर्गत पद्म पुराण,आदिपुराण आदि कथा ग्रंथ आते हैं ।पद्मपुराण में वीतरागी भगवान राम की कथा के माध्यम से धर्म की प्रेरणा दी गयी है । आदि पुराण में तीर्थंकर आदिनाथ के चरित्र के माध्यम से धर्म सिखलाया गया है । करणानुयोग: इसमें गणितीय तथा सूक्ष्म कथन की मुख्यता होती है। इसकी विषय वस्तु ३ लोक तथा कर्म व्यवस्था है। इसको पढ़ने से संवेग और वैराग्य प्रकट होता है। आचार्य यति वृषभ द्वारा रचित तिलोयपन...
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