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Showing posts from June, 2020

जैनदर्शन नास्तिक नहीं, आस्तिक दर्शन है

*जैनदर्शन नास्तिक नहीं, आस्तिक दर्शन है* डॉ. शुद्धात्मप्रकाश जैन  निदेशक, क. जे. सोमैया जैन अध्ययन केन्द्र, सोमैया विद्याविहार विश्वविद्यालय, मुम्बई                   समस्त भारतीय दर्शनों को दो विभागों में विभाजित किया गया है- आस्तिक और नास्तिक। इस विभाजन का आधार पाप-पुण्य, स्वर्ग-नरक, लोक-परलोक, आत्मा-परमात्मा आदि के आधार पर न होकर मात्र यह परिभाषा है- ‘‘वेदनिन्दको नास्तिकः’’ अर्थात् जो वेदों को अस्वीकार करे, वह नास्तिक है, इस आधार पर जैन, बौद्ध और चार्वाक- ये तीन दर्शन नास्तिक कहे जाते हैं।                 इस सन्दर्भ में दो बातें विचारणीय हैं, जिनमें से प्रथम यह है कि- जिन वेदों और पुराणों में ऋषभदेव, अरिष्टनेमि और पाश्र्वनाथ आदि जैन तीर्थंकरों का नामस्मरण किया गया है, उन वेदों की जैनदर्शन निन्दा कैसे कर सकता है? वहां कई स्थानों पर ऋषभदेव,  उनके पुत्र भरत, अरिष्टनेमि आदि का बहुत आदर से उल्लेख किया गया है। दूसरी बात यह है कि- वेदों पर जैन अहिंसा का गहरा प्रभाव देखा जा सकता है। जहां जैन तीर्थं...

भारतवर्ष नामकरण - परम्परा एवं प्रमाण

भारतवर्ष नामकरण - परम्परा एवं प्रमाण (एक प्रामाणिक आलेख) डॉ शुद्धात्मप्रकाश जैन निदेशक, के जे सोमैया जैन अध्ययन केंद्र, सोमैया विद्याविहार विश्वविद्यालय, मुम्बई भारत हमारा देश है और हम सब भारतवासी हैं. इस भारत के निवासियों को भारतीय कहा जाता है. यद्यपि हमारी भारतभूमि को प्राचीन काल से ही विविध नामों से अभिहित किया जाता रहा है, यथा-इंडिया, हिंदुस्तान हिन्दुस्तां आदि. लेकिन यह नाम हमारे देश को या तो दूसरों के द्वारा दिए गए हैं या एकांगी है, जैसे कि इस देश में प्रवाहित सिंधु नदी को इण्डस कहने के कारण इंडिया नाम दिया गया. इसी प्रकार पुराकाल में - 'स' वर्ण को 'ह'  के रूप में उच्चारित करने के कारण इसे हिन्दु कहा गया और मुस्लिम शासकों ने इसे हिन्दुस्तां कहकर पुकारा.  यह सभी नाम सर्वांगीण ना होने के कारण हमारे देश के गौरव को कम करते रहे. यही कारण है कि हमारे देश का नाम भारत ही अधिक श्रेष्ठ और गौरवपूर्ण होगा, क्योंकि इसका हमारे प्राचीन सांस्कृतिक इतिहास से सीधा संबंध है. इसका सविस्तार उत्तर इस आलेख में स्पष्ट किया ही जा रहा है. आज हमारे देश को पूरे विश्व में इंडिया के नाम से जान...