*जैनदर्शन नास्तिक नहीं, आस्तिक दर्शन है* डॉ. शुद्धात्मप्रकाश जैन निदेशक, क. जे. सोमैया जैन अध्ययन केन्द्र, सोमैया विद्याविहार विश्वविद्यालय, मुम्बई समस्त भारतीय दर्शनों को दो विभागों में विभाजित किया गया है- आस्तिक और नास्तिक। इस विभाजन का आधार पाप-पुण्य, स्वर्ग-नरक, लोक-परलोक, आत्मा-परमात्मा आदि के आधार पर न होकर मात्र यह परिभाषा है- ‘‘वेदनिन्दको नास्तिकः’’ अर्थात् जो वेदों को अस्वीकार करे, वह नास्तिक है, इस आधार पर जैन, बौद्ध और चार्वाक- ये तीन दर्शन नास्तिक कहे जाते हैं। इस सन्दर्भ में दो बातें विचारणीय हैं, जिनमें से प्रथम यह है कि- जिन वेदों और पुराणों में ऋषभदेव, अरिष्टनेमि और पाश्र्वनाथ आदि जैन तीर्थंकरों का नामस्मरण किया गया है, उन वेदों की जैनदर्शन निन्दा कैसे कर सकता है? वहां कई स्थानों पर ऋषभदेव, उनके पुत्र भरत, अरिष्टनेमि आदि का बहुत आदर से उल्लेख किया गया है। दूसरी बात यह है कि- वेदों पर जैन अहिंसा का गहरा प्रभाव देखा जा सकता है। जहां जैन तीर्थं...