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Showing posts from July, 2020

द्रष्टाष्टक स्तोत्र

*द्रष्टाष्टक स्तोत्र* द्दष्टं जिनेन्द्रभवनं भवतापहारि भव्यात्मनां विभव-संभव-भूरिहेतु| दुग्धाब्धि-फेन-धवलोज्जल-कूटकोटी- नद्ध-ध्वज-प्रकर-राजि-विराजमानम्|1|   द्दष्टं जिनेन्द्रभवनं भुवनैकलक्ष्मी- धामर्द्धिवर्द्धित-महामुनि-सेव्यमानम्| विद्याधरामर-वधूजन-मुक्तदिव्य- पुष्पाज्जलि-प्रकर-शोभित-भूमिभागम्|2|   द्दष्टं जिनेन्द्रभवनं भवनादिवास- विख्यात-नाक-गणिका-गण-गीयमानम्| नानामणि-प्रचय-भासुर-रश्मिजाल- व्यालीढ-निर्मल-विशाल-गवाक्षजालम्|3|   द्दष्टं जिनेन्द्रभवनं सुर-सिद्ध-यज्ञ- गन्धर्व-किन्नर-करार्पित-वेणु-वीणा| संगीत-मिश्रित-नमस्कृत-धारनादै- रापूरिताम्बर-तलोरु-दिगन्तरालम्|4|   द्दष्टं जिनेन्द्रभवनं विलसद्विलोल- मालाकुलालि-ललितालक-विभ्रमाणम्| माधुर्यवाद्य-लय-नृत्य-विलासिनीनां लीला-चलद्वलय-नूपुर-नाद-रम्यम्|5|   द्दष्टं जिनेन्द्रभवनं मणि-रत्न-हेम- सारोज्ज्वलैः कलश-चामर-दर्पणाद्यैः| सन्मंगलैः सततमष्टशत-प्रभेदै- र्विभ्राजितं विमल-मौक्तिक-दामशोभम्|6|   द्दष्टं जिनेन्द्रभवनं वरदेवदारु- कर्पूर-चन्दन-तरुष्क-सुगन्धिधूपैः| मेघायमानगगने पवनाभिवात- चञ्चच्चलद्विमल-केतन-तुंग-शालम्|7|   द्दष्टं जिनेन्द्रभवनं धवला

हमारी क्रियाएं और अध्यात्म

हमारी क्रियाएं और अध्यात्म  डॉ अनेकांत कुमार जैन २/०७/२०२० मुंडन वाले प्रसंग में मैंने जानबूझ कर मिथ्यात्व वाली टिप्पणी की थी ,उसका यह सुखद परिणाम रहा कि इतनी अच्छी चर्चा सामने आयी ,जैसा मैं चाहता था । जैन परम्परा में कई क्रियाएं मौलिक हैं किन्तु बाद में अन्य परम्परा ने उसे अपने नाम से अपना लिया ,बहुमत के फल स्वरूप वे उनके नाम से प्रसिद्ध हो गईं ।उन्होंने उस क्रिया में अपने मिथ्या परिणाम और अभिप्राय संयोजित कर दिए इसलिए जैनों ने उस रूप क्रिया को ही इस भय से छोड़ दिया कि कहीं ये हमारे सम्यक्तव में ही दोष उत्पन्न न कर दे । कालांतर में ये उन्हीं की क्रियाएं बन गईं ।  जैसे मूर्ति पूजा वैदिकों की मूल नहीं हैं , श्रमण परम्परा की है ,हमसे उनमें गई है ,लेकिन आज हमसे ज्यादा उनकी ही हो गई है ।  स्वामी दयानंद सरस्वती ने अपने ग्रंथ सत्यार्थ प्रकाश में यह स्पष्ट लिखा है कि ' मूर्ति पूजा जैसी विकृति जैनों से सनातन धर्म में अाई है । अब जब वहां मूर्ति पूजा थी ही नहीं ,तब सिंधु सभ्यता में योगी मुद्रा में बैठी मूर्ति जो कि कुछ विद्वानों ने ऋषभदेव की बतलाई है , वे शिव की बतला कर योग विद्या का जनक शिव