*"मेरा दिल इन (स्वामी श्री कुन्दकुन्दाचार्य) को विक्रम की पहली शताब्दि से भी बहुत पहले का कबूल करता है"* - स्व. पण्डित श्री रामप्रसाद जैन (अष्टपाहुड वचनिका की भूमिका से साभार) *जास के मुखारविन्द तें, प्रकाश भासवृन्द;* *स्याद्वाद जैन-वैन, इन्दु कुन्दकुन्द से ।* *तास के अभ्यास तें, विकास भेदज्ञान होत,* *मूढ़ सो लखे नहीं, कुबुद्धि कुन्दकुन्द से ।* *देत हैं अशीस, शीस नाय इंदु चंद जाहि,* *मोह-मार-खंड मारतंड कुन्दकुन्द से ।* *विशुद्धि-बुद्धि-वृद्धि-दा प्रसिद्धि-ऋद्धि-सिद्धि-दा;* *हुए न हैं, न होंहिंगे, मुनिन्द कुन्दकुन्द से ॥* - कविवर वृन्दावनदासजी स्वामी कुन्दकुन्दाचार्य का आसन (स्थान) इस दिगम्बर जैन समाज में कितना ऊँचा है कि *ये आचार्य, मूलसंघ के बड़े ही प्राभाविक (प्रभावशाली) आचार्य माने गये हैं ।* अतएव हमारे प्रधान लोग, मूलसंघ के साथ-साथ कुन्दकुन्दाम्नाय में आज भी अपने को प्रगट कर धन्य मानते हैं, वास्तव में देखा जाय तो जो कुन्दकुन्दाम्ना...