Skip to main content

Endowed Chairs and Professorships in Jain Studies

Endowed Chairs and Professorships in Jain Studies 

CHAIRS  
Shri Parshvanath Presidential Chair at University of California, Irvine, California.
Mohini Jain Presidential Chair at UC Davis, at University of California, Davis, California.         
Shrimad Rajchandra Chair at University of California Riverside, California.            
Bhagwan Vimalnath Chair at University of California Santa Barbara, California
Bhagwan Suvidhinath Chair at California State University Long Beach, California.
Shri Shantinath Endowed Chair in Jainism and Ahimsa Center at Cal Poly Pomona. Pomona, California 
Shri Anantnath Endowed Chair in Jain Studies at University of Wisconsin, Madison, Wisconsin
Endowed Joint Chair in Jain and Hindu Dharma at California State University, Fresno California. 
Gurudev Shri Kanjiswami Endowed chair at University of Connecticut at Storrs, Connecticut.

PROFESSORSHIPS 
Bhagwan Mahavir Professorship at Florida International University, Miami, Florida 
Bhagwan Rishabhdev Professorship at University of North Texas, Dallas, Texas. 
Bhagwan Mallinath Professorship at Loyola Marymount University, Los Angeles, California. 
Bhagwan Ajitnath Professorship at California State University, Northridge, Northridge, California 
Bhagwan Kunthunath Jain Scholar program at Cerritos Community College, Los Angeles 
Bhagwan Muni Suvrat Swami Endowed Professorship University of Illinois, Champaign, Urbana, Illinois 
Gurudev Shri Kanjiswami Endowment in Jain studies at University of Florida., Gainesville, Florida   
Bhagwan Suparshvanatha Professorship at University of Colorado, Denver, Colorado
Bhagvan Padmaprabha Swami Professorship at University of South Florida at Tampa, Florida  

Post-Doctoral Fellowships  
Bhagwan Arahnath Endowed at Emory University, Atlanta, Georgia 
Alka Dalal Endowed at Rutgers University, New Jersey
Bhagwan Vasu Pujya Swami Endowed at University of Pittsburgh, Pittsburgh, Pennsylvania  
Bhagwan Chandra Prabhu at Claremont School of Theology at Claremont, California. 
Bhagwan Abhinandan Lectureship in Jain Studies, University of California Los Angeles (UCLA)
Shri Kanji Swami at Arizona State U, Tempe, Arizona

Other Jain Programs 
Bhagwan Shantinath Lectureship at California State University Fullerton, California 
Bhagwan Vimalnath Lectureship at University of California at Santa Barbara, California     
Graduate Study Program, Claremont School of Theology, Claremont CA 
Emory University, Jain Study Program, Atlanta, Georgia
Bhagwan Neminath Program in Jain Studies at University Connecticut, Storrs, Connecticut

Annual Jain Lectures
Dr. Shailendra Palvia Jain Scholar
Lecture series at University of Long Island, New York
Lecture twice a year by an eminent Jain scholar 
$50K annual Support to Jain Study program at School of Divinity, University of Chicago. Chicago, Illinois 
Bhagwan Mahavir Annual Guest Lecture, Rice University, Houston, Texas.    

Other Significant Programs
Shrimad Rajchandra Fellowship to PhD Program at UC Riverside-
4 fellowships @$40K each  
International School for Jain Studies ( ISJS)  since 2004 ( www.isjs.in). More than 800 participants so far from many countries and universities

Jain Studies in Canada
Bhagwan Shitalnath Post-Doctoral fellowship in Jain Studies at University of Toronto, Canada.  
 Rooplal Jain Annual Lecture at University of Toronto, Canada.
Chander Mohan Jain Annual Lecture at University of Western Ontario at London, Ontario. Canada 

Jain Studies in Europe
Belgium; Ghent university in Ghent
PhD, Agamic languages and other programs for more than 70 years
Acharya Maha Pragya Professorship in Jain Studies. 
MA program in Prakrit 
Germany; Tubingen University, Germany.
Jain Studies Program at School of Oriental and African Studies   (SOAS), London, U.K.

G. JAIN STUDIES IN ISRAEL
 
The Kalpana, Haresh, Dhwani and Jeet Jogani Endowed Chair in Jain Studies" at the Hebrew University of Jerusalem. 


 JAIN STUDIES PROGRAM IN INDIA 
Bhagwan Shreyansnath Jain Study Program at Banaras Hindu University (BHU), Varanasi, U.P

I . JAIN STUDUIES IN OTHER COUNTRIES 

BRAZIL
  Jain Study Program at  Pontifical Catholic University in Sao Paulo, Brazil

PAKISTAN  

Jain Studies programs at Islamia University at Bahawalpur and the University of Punjab at Lahore. 

Ten scholars enrolled in Ph.D Programs in USA and Canada   

Comments

Popular posts from this blog

जैन ग्रंथों का अनुयोग विभाग

जैन धर्म में शास्त्रो की कथन पद्धति को अनुयोग कहते हैं।  जैनागम चार भागों में विभक्त है, जिन्हें चार अनुयोग कहते हैं - प्रथमानुयोग, करणानुयोग, चरणानुयोग और द्रव्यानुयोग।  इन चारों में क्रम से कथाएँ व पुराण, कर्म सिद्धान्त व लोक विभाग, जीव का आचार-विचार और चेतनाचेतन द्रव्यों का स्वरूप व तत्त्वों का निर्देश है।  इसके अतिरिक्त वस्तु का कथन करने में जिन अधिकारों की आवश्यकता होती है उन्हें अनुयोगद्वार कहते हैं। प्रथमानुयोग : इसमें संयोगाधीन कथन की मुख्यता होती है। इसमें ६३ शलाका पुरूषों का चरित्र, उनकी जीवनी तथा महापुरुषों की कथाएं होती हैं इसको पढ़ने से समता आती है |  इस अनुयोग के अंतर्गत पद्म पुराण,आदिपुराण आदि कथा ग्रंथ आते हैं ।पद्मपुराण में वीतरागी भगवान राम की कथा के माध्यम से धर्म की प्रेरणा दी गयी है । आदि पुराण में तीर्थंकर आदिनाथ के चरित्र के माध्यम से धर्म सिखलाया गया है । करणानुयोग: इसमें गणितीय तथा सूक्ष्म कथन की मुख्यता होती है। इसकी विषय वस्तु ३ लोक तथा कर्म व्यवस्था है। इसको पढ़ने से संवेग और वैराग्य  प्रकट होता है। आचार्य यति वृषभ द्वारा रचित तिलोयपन...

सम्यक ज्ञान का स्वरूप

*सम्यक ज्ञान का स्वरूप*  मोक्ष मार्ग में सम्यक ज्ञान का बहुत महत्व है । अज्ञान एक बहुत बड़ा दोष है तथा कर्म बंधन का कारण है । अतः अज्ञान को दूर करके सम्यक ज्ञान प्राप्त करने का पूर्ण प्रयास करना चाहिए । परिभाषा -  जो पदार्थ जैसा है, उसे वैसे को वैसा ही जानना, न कम जानना,न अधिक जानना और न विपरीत जानना - जो ऍसा बोध कराता है,वह सम्यक ज्ञान है । ज्ञान जीव का एक विशेष गुण है जो स्‍व व पर दोनों को जानने में समर्थ है। वह पा̐च प्रकार का है–मति, श्रुत, अवधि, मन:पर्यय व केवलज्ञान। अनादि काल से मोहमिश्रित होने के कारण यह स्‍व व पर में भेद नहीं देख पाता। शरीर आदि पर पदार्थों को ही निजस्‍वरूप मानता है, इसी से मिथ्‍याज्ञान या अज्ञान नाम पाता है। जब सम्‍यक्‍त्व के प्रभाव से परपदार्थों से भिन्न निज स्‍वरूप को जानने लगता है तब भेदज्ञान नाम पाता है। वही सम्‍यग्‍ज्ञान है। ज्ञान वास्‍तव में सम्‍यक् मिथ्‍या नहीं होता, परन्‍तु सम्‍यक्‍त्‍व या मिथ्‍यात्‍व के सहकारीपने से सम्‍यक् मिथ्‍या नाम पाता है। सम्‍यग्‍ज्ञान ही श्रेयोमार्ग की सिद्धि करने में समर्थ होने के कारण जीव को इष्ट है। जीव का अपना प्रतिभ...

जैन चित्रकला

जैन चित्र कला की विशेषता  कला जीवन का अभिन्न अंग है। कला मानव में अथाह और अनन्त मन की सौन्दर्यात्मक अभिव्यक्ति है। कला का उद्भव एवं विकास मानव जीवन के उद्भव व विकास के साथ ही हुआ है। जिसके प्रमाण हमें चित्रकला की प्राचीन परम्परा में प्रागैतिहासिक काल से ही प्राप्त होते हैं। जिनका विकास निरन्तर जारी रहा है। चित्र, अभिव्यक्ति की ऐसी भाषा है जिसे आसानी से समझा जा सकता है। प्राचीन काल से अब तक चित्रकला की अनेक शैलियां विकसित हुईं जिनमें से जैन शैली चित्र इतिहास में अपना विशिष्ट स्थान रखती है। जैन चित्रकला के सबसे प्राचीन चित्रित प्रत्यक्ष उदाहरण मध्यप्रदेश के सरगुजा राज्य में जोगीमारा गुफा में मिलते है। जिसका समय दूसरी शताब्दी ईसापूर्व है।१ ग्यारहवीं शताब्दी तक जैन भित्ति चित्र कला का पर्याप्त विकास हुआ जिनके उदाहरण सित्तनवासल एलोरा आदि गुफाओं में मिलते है। इसके बाद जैन चित्रों की परम्परा पोथी चित्रों में प्रारंभ होती है और ताड़पत्रों, कागजों, एवं वस्त्रों पर इस कला शैली का क्रमिक विकास होता चला गया। जिसका समय ११वीं से १५वी शताब्दी के मध्य माना गया। २ जैन धर्म अति प्राचीन एवं अहिंसा प्र...