मैं नालंदा विश्वविद्यालय बोल रहा हूँ। आज मैं आपको अपने गौरवशाली इतिहास के बारे में बताने जा रहा हूँ, जिसके बारे में आज की पीढ़ी कम ही जानती है। हाँ, मैं वही विश्वविद्यालय हूँ जो एशिया की सबसे बड़ी यूनिवर्सिटी हुआ करता था। लेकिन एक नरभक्षी, पागल राक्षस, क्रूर और सनकी तुर्की शासक बख्तियार खिलजी ने मुझे और मेरे जैन तथा हिन्दू पुस्तक भंडार को जलाकर राख कर दिया था। 6 महीनों तक मैं जलता रहा, किसी ने मेरी सुध नहीं ली। आज मैं आपको मेरी कहानी सुनाऊंगा, जिससे आपकी आँखें भी भीग जाएंगी। मेरी स्थापना 5वीं शताब्दी में महान राजा कुमारगुप्त ने की थी। यह वह समय था जब भारत में शिक्षा और ज्ञान का प्रमुख केंद्र था। इसके बाद राजा हर्षवर्धन और राजा देवपाल ने भी मेरे निर्माण और विस्तार में महत्वपूर्ण योगदान दिया। मेरा परिसर लगभग 10 किलोमीटर लंबा और 5 किलोमीटर चौड़ा था, जिसमें 100 से अधिक भवन और इमारतें थीं। मेरे प्रांगण में 10,000 से अधिक विद्यार्थी शिक्षा प्राप्त करते थे और उन्हें पढ़ाने के लिए 1,600 आचार्य और जैन पंडित मौजूद रहते थे। यहाँ पर विभिन्न विषयों की पढ़ाई होती थी...