Skip to main content

तत्त्वार्थसूत्र उच्चारण विधान

*श्रुत उच्चारण पाठ:* 
💠💠💠💠💠💠💠💠
डॉ राकेश जैन शास्त्री ,नागपुर 

 _तत्त्वार्थ सूत्र के उच्चारण के लिए उच्चारण करते समय कौन सा अक्षर सामने आने पर किस अक्षर का उच्चारण होगा, इसे समझने के लिए यह पाठ दिया गया है।_ 
 *(1)* _अ , ह और कवर्ग( क,ख,ग,घ,ङ् )यह_ _7 अक्षर सामने आने पर~_ 
       _"ङ्" का उच्चारण_ _होगा।_ 
 *(2)*  _व , इ , श , य और चवर्ग( च,छ,ज,झ,ञ )यह 9_ _अक्षर सामने आने पर~_ 
      _"ञ्" का उच्चारण होगा।_ 
 *(3)* _ऋ,र,और टवर्ग (ट,ठ,ड,ढ,ण)यह 7 अक्षर_ _सामने आने पर~_ 
      _"ण्" का उच्चारण होगा।_ 
 *(4)* _स,ल और तवर्ग (त,थ,द,ध,न,)यह 7 अक्षर_ _सामने आने पर~_ 
       _"न्" का उच्चारण होगा।_ 
 *(5)* _उ और पवर्ग (प,फ,ब,भ,म)यह 6 अक्षर_ _सामने आने पर~_ 
         _"म्" का उच्चारण_ _होगा।_ 
 *जैसे~* _"सत्संख्या" यह सूत्र का एक हिस्सा समझने_ _के लिए है। इसमें  "स" के_ _ऊपर जो अनुस्वार है ,उसका_ _उच्चारण इस प्रकार से_ _होगा।"सत्-सङ्-ख्या"_ _इसका कारण कवर्ग का_ _दूसरा अक्षर "ख" सामने_ _आया है । अतः (सं) के अनुस्वार  का उच्चारण_ _( ङ् ) के रूप में होगा।_ 
 _इसी प्रकार संयुक्त (मिले हुए)अक्षर सामने आने पर द्वित्व (दो बार) रूप_ _उच्चारण होगा।_ 
 *जैसे~* _"तत्त्वार्थ श्रद्धानं"_ _यह सूत्र का एक हिस्सा समझने के लिए है। इसमें श्रद्धानं में " श्र " में श्_ _और र् मिला हुआ है।_ 
 _अतः "श्र" के पहले" तत्त्वार्थ" को 'तत्त्वार्थश्' इस प्रकार से पढ़ा जायेगा। इसमें संयुक्त_ _के पहले वाला अक्षर स्वराघात होने से दो_ _बार उच्चारण में आता है, और वह दीर्घ उच्चारण हो जाता है। सभी जगह_ _(क्ष,त्र,ज्ञ,प्र,) आदि के साथ_ _भी इसी प्रकार से पढ़ा जायेगा।_ 

 *उच्चारणपाठ-तत्त्वार्थसूत्र* *(प्रथम अध्याय)* 

📚📚📚📚📚📚📚📚
           *〰️मङ्गलाचरण〰️* 
🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏

     *मोक्षमार्गस्य  नेत्तारम् ,* 
    *भेत्तारम् कर्म भूभृताम् ।* 
    *ज्ञातारम् विश्व तत्त्वानाम् ,* 
     *वन्दे तद् गुण लब्धये ।।* 

 _मोक्ष -मार्-गस्य-ने-तारम् ,_ 
 _भेत्-तारम्-कर्म-भू-भृ-ताम् ।_ 
 _ज्_ _ञा-तारम्-विश्व-तत्-त्वानाम् ,_ 
 _वन्दे - तद्  - गुण - लब्धये ।।_ 

 *(1)सम्यग्दर्शनज्ञानचारित्राणि* *मोक्षमार्ग:।* 
 _सम्यग्-दर्शनज्-ज्_ _ञा-न-चारित्-त्राणि-मोक्ष-मार्ग:।_ 

 *(2)तत्त्वार्थश्रद्धानं सम्यग्दर्शनम् ।* 
  _तत्-त्वार्थश्-श्रद्धानन्-सम्यग्-दर्शनम्।_ 

 *(3)तन्निसर्गादधिगमाद्वा।* 
 _तन्-निसर्गा-दधि-गमाद्-वा।_ 

 *(4)जीवाजीवास्रवबन्धसंवरनिर्जरा* 
 *मोक्षास्तत्त्वम्।* 
 _जीवा-जीवा-स्रव-बन्ध-सञ्वर-निर्-जरा-मोक्षास्-_ _तत्-त्वम् ।_ 

 *(5)नामस्थापनाद्रव्यभावतस्तन्न्यास:।* 
 _नामस्-थापना-द्रव्य-भाव-तस्-तन्-न्यास:।_ 

 *(6)प्रमाणनयैरधिगम:।* 
 _प्रमाण-नयै-रधिगम: ।_ 

 *(7)निर्देशस्वामित्वसाधनाधिकरणस्थितिविधानत: ।* 
 _निर्देशस्-स्वामित्व-साधनाधि-करणस्-थिति-_ 
 _विधानत: ।_ 

 *(8)सत्संख्याक्षेत्रस्पर्शनकालान्तरभावाल्प* 
 *बहुत्वैश्च।* 
 _सत्-सङ्ख्या-क्षेत्रस्-पर्शन-कालान्तर-भावाल्प-बहुत्-त्वैश् च।_ 

 *(9) मतिश्रुतावधिमन:पर्ययकेवलानिज्ञानम्।* 
 _मतिश्-श्रुतावधि-मन:-पर्-यय-केवलानिज्-_ 
 _ज् ञा-नम्।_ 

 *(10) तत्प्रमाणे।* 
 _तत्-प्रमाणे।_ 

 *(11) आद्ये परोक्षम्।* 
 _आद्ये-परोक्षम्।_ 

 *(12) प्रत्यक्ष मन्यत्।* 
 _प्र-त्यक्ष-मन्-न्यत्।_ 

 *(13) मति:स्मृति:संज्ञाचिन्ताभिनिबोध इत्यनर्थान्तरम्।* 
 _मति:-स्मृति:-सञ्- ज्
ञा-चिन्ता-भिनिबोध-इत्-त्य-नर्-थान्-तरम्।_ 

 *(14) तदिन्द्रियानिन्द्रिय निमित्तम् ।* 
 _तदिन्-द्रिया-निन्-द्रिय-निमित्-तम् ।_ 

 *(15) अवग्रहेहावाय धारणा:।* 
 _अवग्-ग्रहे-हावाय-धारणा:।_ 

 *(16)बहुबहुबिधक्षिप्रानि:सृतानुक्तध्रुवाणां सेतराणाम्।* 
 _बहु-बहुबिधक्-क्षिप्-प्रा-नि:सृता-नुक्-तध्-_ 
 _ध्रुवाणान्-से-तरा-णाम्।_ 

 *(17) अर्थस्य।* 
 _अर्-थस्य।_ 

 *(18) व्यञ्जनस्यावग्रह:।* 
 _व्यञ्-जनस्-स्या-वग्-ग्रह:।_ 

 *(19) न चक्षुरनिन्द्रियाभ्याम्।* 
 _न-चक्क्षु-रनिन्-द्रिया-भ्याम्।_ 

 *(20) श्रुतं मतिपूर्वं द्वयनेकद्वादश भेदम् ।* 
 _श्रुतम्-मति-पूर्वन्-द्वयनेकद्-द्वादश-भेदम् ।_ 

 *(21) भवप्रत्ययोवधिर्देव-नारकाणाम्।* 
 _भवप्-प्र-त्ययो-वधिर्-देव-नारका-णाम्।_ 

 *(22) क्षयोपशमनिमित्त: षड्विकल्प: शेषाणाम्।* 
 _क्षयोपशम-निमित्-त:-षड्-विकल्-प:-शेषाणाम्_ 

 *(23) ऋजुविपुलमती* *मन:पर्यय:।* 
 _ऋजु-विपुलमती-मन:-पर्-यय:।_ 

 *(24) विशुद्ध्यप्रतिपाताभ्यां* *तद्विशेष:।* 
 _विशुद्-ध्यप्-प्रति-पाता-भ्यान्-तद्-विशेष:।_ 

 *(25) विशुद्धिक्षेत्रस्वामिविषयेभ्यो* 
 *ऽवधिमन:पर्यययो:।* 
 _विशुद्-द्धिक्-क्षेत्रस्-स्वामि-विषये-भ्यो-ऽवधि-_ 
 _मन:-पर्-यय-यो:।_ 

 *(26) मतिश्रुतयोर्निबन्धो* *द्रव्येष्वसर्वपर्यायेषु।* 
 _मतिश्-श्रुतयोर्-निबन्-धो-द्रव्येष्ष्-वसर्व-पर्-_ 
 _या-येषु।_ 

 *(27) रुपिष्ववधे:।* 
 _रुपिष्ष्-ववधे:।_ 

 *(28) तदनन्तभागे मन:पर्ययस्य।* 
 _त-दनन्त-भागे-मन:-पर्-ययस्य।_ 

 *(29)सर्वद्रव्य पर्यायेषु केवलस्य।* 
 _सर्-वद्-द्रव्य-पर्-या-येषु-केवलस्य।_ 

 *(30)एकादीनिभाज्यानि युगपदे कस्मिन्नाचतुर्भ्य:।* 
 _एकादीनि-भाज्-ज्यानि-युगपदे-कस्-मिन्-ना-
चतुर्-भ्य:।_ 

 *(31)मतिश्रुतावधयो विपर्ययश्च।* 
 _मतिश्-श्रुतावधयो-विपर्-ययश्- च।_ 

 *(32)सदसतोरविशेषाद्यदृच्छोपलब्धे रुन्मत्तवत् ।* 
 _स-दसतो-रविशेषा-द्य-दृच्-छो-पलब्धे-रुन्-_ 
 _मत्-त-वत् ।_ 

 *(33) नैगमसंग्रहव्यवहारर्जुसूत्रशब्दसमभिरूढ़ैवंभूता नया: ।* 
 _नैगम-सङ्-ग्रहव्-व्यवहा-रर्-जु-सूत्र-शब्द-_ 
 _समभि-रूढ़ै-वम्-भूता-नया: ।_ 

 *"इति तत्त्वार्थसूत्रे मोक्षशास्त्रे प्रथमोध्याय:"* 
📚📚📚📚📚📚📚📚
[24/08, 4:43 pm] Dr Rakesh Shastri, Nagpur: *श्रुत उच्चारण पाठ:* 

 *उच्चारण* *पाठ~तत्त्वार्थसूत्र(तृतीय अध्याय)* 
🏳️‍🌈🏳️‍🌈🏳️‍🌈🏳️‍🌈🏳️‍🌈🏳️‍🌈🏳️‍🌈
 *(1)रत्नशर्कराबालुकापङ्कधूमतमोमहातम:* *प्रभाभभूमयो* *घनाम्बुवाताकाशप्रतिष्ठा:* *सप्ताधोऽध:।* 
 _रत्न-शर्-करा-बालुका-पङ्क-धूम-तमो-_ 
 _महातम:-प्रभा-भूमयो-घनाम्बु-वाताकाशप्-_ 
 _प्रतिष्-ठा:- सप्ता-धोऽध:।_ 

 *(2)तासुत्त्रिंशत्पञ्चविंशतिपञ्चदशदशत्रिपञ्चोनैकनरकशतसहस्राणि पञ्च चैव* *यथाक्रमम्।* 
 _तासुत्-त्रिञ्शत्-पञ्च-विञ्शति-पञ्चदश-दशत्-त्रि-पञ्चोनैक-नरक-शतसहस्-स्राणि-पञ्च-चैव-यथा-क्रमम।_ 

 *(3)नारकानित्याशुभतरलेश्यापरिणामदेहवेदनाविक्रिया:।* 
 _नारका-नित्-त्या-शुभतर-लेश्-श्या-परिणाम-_
 _देह-वेदना-विक्-क्रिया:।_ 

 _(4)परस्परोदीरितदु:खा।_ 
 _परस्-परो-दीरित-दु:खा।_ 

 *(5)संक्लिष्टासुरोदीरितदु:खाश्च प्राक् चतुर्थ्या:।* 
 _सङ्-क्लिष्-टा-सुरो-दीरित-दु:खाश्-च-_ 
 _प्राक्-चतुर्-थ्या:।_ 

 *(6)तेष्वेकत्रिसप्तदशसप्तदशद्वाविंशतित्रयस्त्रिंशत्सागरोपमा सत्त्वानां परास्थिति:।* 
 _ते-ष्वेकत्-त्रि-सप्त-दश-सप्तदशद्-_ 
 _द्वा-विञ्शतित्-त्रयस्-त्रिञ्शत्-सागरोपमा_ 
 _सत-त्वानाम्-परास्-थिति:_ 

 *(7)जम्बूद्वीपलवणोदादय: शुभनामानो द्वीपसमुद्रा:।* 
 _जम्बू-द्वीप-लवणो-दादय:शुभ-नामानो-_ 
 _द्वीप-समुद्-द्रा:।_ 

 *(8)द्विर्द्विर्विष्कम्भा:* *पूर्वपूर्वपरिक्षेपिणो* *वलयाकृतय:।* 
 _द्विर्-द्विर्-विष्कम्भा:- पूर्व-पूर्व-परिक्-क्षेपिणो-वलया-कृतय:।_ 

 *(9)तन्मध्ये मेरुनाभिर्वृत्तो योजनशतसहस्रविष्कम्भो* *जम्बूद्वीप:।* 
 _तन्-मध्ये-मेरु-नाभिर्-वृत्-तो-योजन-_ 
 _शतसहस्-स्र-विष्कम्-भो-जम्बू-द्वीप:।_ 

 *(10)भरतहैमवतहरिविदेहरम्यकहैरण्यवतैरावतवर्षा:* *क्षेत्राणि।* 
 _भरत-हैमवत-हरि-विदेह-रम्यक-हैरण्-ण्य-वतै-रावत-वर्-षा:-क्षेत्राणि।_ 

 *(11)तद्विभाजिन:* *पूर्वापरायता* *हिमवन्महाहिमवन्निषधनीलरुक्मिशिखरिणो* *वर्षधरपर्वता:।* 
 _तद्-विभाजिन:-पूर्-वा-परायता-हिमवन्-_ 
 _महाहिमवन्-निषध-नील-रुक्मि-शिखरिणो-_ 
 _वर् ष-धर-पर्-वता:।_ 

 *(12)हेमार्जुनतपनीयवैडूर्यरजतहेममया:।* 
 _हेमार्-जुन-तपनीय-वैडूर्-य-रजत-हेम-मया:_ 

 *(13)मणिविचित्रपार्श्वा उपरि मूले च तुल्यविस्तारा:।* 
 _मणि-विचित्-त्र-पार्-श्-वा-उपरि-मूले-च-_ 
 _तुल्-ल्य-विस्तारा:।_ 

 *(14)पद्ममहापद्मतिगिञ्छकेशरिमहापुण्डरीकपुण्डरीका* *ह्रदास्तेषामुपरि।* 
 _पद्-म-महापद्-म-तिगिञ्छ-केशरि-_ 
 _महापुण्डरीक-पुण्डरीका-ह्रदास्-तेषा-मुपरि।_ 

 *(15)प्रथमोयोजनसहस्रायामस्तदर्धविष्कम्भो ह्रद:।* 
 _प्रथमो-योजन-सहस्-स्राया-मस्-तदर्-ध-_ 
 _विष्कम्भो-ह्रद:।_ 

 *(16)दशयोजनावगाह: ।* 
 _दश-योजना-वगाह: ।_ 

 *(17)तन्मध्ये योजनं पुष्करम्।* 
 _तन्-मध्ये-योजनम्-पुष्करम्।_ 

 *(18)तद्विगुणद्विगुणा हृदा: पुष्कराणि च।* 
 _तद्-द्विगुणद्-द्विगुणा-हृदा:-पुष्कराणि-च।_ 

 *(19)तन्निवासिन्योदेव्य:श्रीह्रीधृतिकीर्तिबुद्धिलक्ष्म्य:पल्योपमस्थितय:ससामानिकपरिषत्का:।* 
 _तन्-निवासिन्-न्यो-देव्-व्य:-_ _श्री-ह्री-धृति-_ 
 _कीर्-ति-बुद्-द्धि-लक्क्ष्म्य:-पल्योपमस्-थितय:-स-सामानिक-परिषत्का:।_ 

 *(20)गङ्गासिन्धुरोहिद्रोहितास्याहरिद्धरिकान्तासीतासीतोदानारीनरकान्तासुवर्णरूप्यकूला* 
 *रक्तारक्तोदा:* *सरितस्तन्मध्यगा:।* 
  _गङ्-गा-सिन्-धु-रोहिद्-द्रोहि-तास्या-_ 
 _हरिध्-धरि-कान्ता-सीता-सीतोदा-नारी-_ 
 _नरकान्ता-सुवर्ण-रूप्यकूला-रक् ता-_ 
 _रक्_ _तोदा:-सरितस्-तन्-मध्-ध्यगा:।_ 

 *(21)द्वयोर्द्वयो: पूर्वा: पूर्वगा:।* 
 _द्वयोर्-द्वयो:-पूर्-वा:-पूर्-वगा:।_ 

 *(22)शेषास्त्वपरगा:।* 
 _शेषास्-त्व-परगा:।_ 

 *(23)चतुर्दशनदीसहस्रपरिवृतागड्•गा* 
 *सिन्ध्वादयो नद्य:।* 
 _चतुर्-दश-नदी-सहस्-स्र-परिवृता-_ 
गङ् _गा-सिन्-ध्वादयो-नद्-द्य:।_ 

 *(24)भरत:षड्विंशतिपञ्चयोजनशतविस्तार:* *षट्चैकोनविंशतिभागायोजनस्य।* 
 _भरत:-षड्-विञ्शति-पञ्च-योजन-शत-विस्तार:-षट्-चैकोन-विञ्शति-भागा-योजनस्य।_ 

 *(25)तद् द्विगुणद्विगुणविस्तारा* *वर्षधरवर्षा विदेहान्ता:।* 
 _तद्-द्विगुणद्-द्विगुण-विस्तारा-वर्-ष-धर-_ 
 _वर्-षा-विदेहान्ता:।_ 

 *(26)उत्तरा दक्षिणतुल्या:।* 
 _उत्-तरा-दक्क्षिण-तुल्-ल्या:।_ 

 *(27)भरतैरावतयोर्वृद्धिह्रासौ षट्समयाभ्यामुत्सर्पिण्यवसर्पिणीभ्याम्।* 
 _भरतै-रावतयोर्-वृद्-द्धि-ह्रासौ-षट्-समया-_ 
 _भ्या-मुत्-सर्-पिण्य-वसर्-पिणी-भ्याम्।_ 

 *(28)ताभ्यामपरा भूमयोऽवस्थिता:।* 
 _ता-भ्या-मपरा-भूमयो-ऽवस्-थिता:।_ 

 *(29)एकद्वित्रिपल्योपमस्थितयो हैमवतकहारिवर्षक दैवकुरवका:।* 
 _एकद्-द्वित्-त्रि-पल्योपमस्-थितयो-हैमवतक-हारि-वर्-षक-दैव-कुरव-का:।_ 

 *(30)तथोत्तरा:।* 
 _तथोत्-तरा:।_ 

 *(31)विदेहेषु संख्येयकाला:।* 
 _विदे-हेषु-सङ्ख्येय-काला:।_ 

 *(32)भरतस्य विष्कम्भो जम्बूद्वीपस्य* *नवतिशतभाग:।* 
 _भरतस्य-विष्-कम्भो-जम्बू-द्वीपस्य-नवति-_ 
 _शत-भाग:।_ 

 *(33)द्विर्धातकीखण्डे।* 
 _द्विर्-धात-की-खण्डे।_ 
〰️〰️
 *(34)पुष्करार्धे च।* 
 _पुष्-करार्-धे-च।_ 
〰️〰️
 *(35)प्राङ् मानुषोत्तरान्मनुष्या:।* 
 _प्राङ्-मानुषोत्-तरान्-मनुष्या:।_ 
〰️〰️
 *(36)आर्या म्लेच्छाश्च।* 
 _आर्-या- म्लेच्-छाश्-च।_ 
〰️〰️
 *(37)भरतैरावतविदेहा: कर्मभूमयोऽन्यत्र* *देवकुरूत्तरकुरुभ्य:।* 
 _भरतै-रावत-विदेहा:-कर्म-भूमयो-ऽन्यत्-त्र-देव-कुरूत्-तर-कुरुभ्-भ्य:।_ 
〰️〰️
 *(38)नृस्थिती परावरे त्रिपल्योपमान्तर्मुहूर्ते।* 
 _नृस्-थिती-परा-वरेत्-त्रि-पल्यो-पमान्तर्-मुहूर्-ते_ 
〰️〰️
 *(39)तिर्यग्योनिजानाञ्च।* 
 _तिर्-यग्-ग्योनि-जानाञ्-च।_ 

 *"इति तत्त्वार्थसूत्रे मोक्षशास्त्रे  तृतीयोध्याय:"*
[24/08, 4:43 pm] Dr Rakesh Shastri, Nagpur: *श्रुत उच्चारण पाठ:* 

 
 *उच्चारण* *पाठ~तत्वार्थसूत्र(द्वितीय अध्याय)* 

 *(1)औपशमिकक्षायिकौभावौ मिश्रश्च जीवस्य* *स्वतत्त्वमौदयिकपारिणामिकौ च।* 
 _औपशमिकक्-क्षायिकौ-भावौ-मिश्-श्रश्-च-_ 
 _जीवस्-स्य-स्व-तत्-त्व-मौदयिक-पारिणामिकौ-च।_ 
〰️〰️
 *(2)द्वि नवाष्टादशैकविंशतित्रि* *भेदा* 
 *यथाक्रमम्।* 
 _द्वि-नवाष्-टा-दशैक-विञ्शतित्-त्रि-भेदा-यथा-क्रमम्।_ 
〰️〰️
 *(3)सम्यक्त्व चारित्रे।* 
 _सम्-म्यक्-त्व-चारित्-त्रे।_ 
〰️〰️
 *(4)ज्ञानदर्शनदानलाभ भोगोपभोग वीर्याणि च।*
 _ज्-ञान-दर्-शन-दान-लाभ-भोगो-पभोग-वीर्-याणि-च।_ 
〰️〰️
 *(5)ज्ञानाज्ञान दर्शन लब्धयश्चतुस्त्रित्रि पञ्चभेदा:* *सम्यक्त्व चारित्र संयमासंयमाश्च।* 
 _ज् ञाना-ज्_ 
 _ञान-दर्-शन-लब्-धयश्-चतुस्-त्रित्-त्रि-पञ्च-भेदा:-सम्-म्यक्-त्व-चारित्-त्र-सञ्यमा-सञ्यमाश्-च।_ 
〰️〰️
 *(6)गतिकषायलिंगमिथ्यादर्शनाज्ञानासंयतासिद्धलेश्याश्चतुश्चतुस्त्र्ये कैकैकैक षड्भेदा:।* 
 _गति-कषाय-लिङ्_ _ग-मिथ्या-दर्-शना-ज्-_ _ञाना-सञ्यता-सिद्-द्ध-लेश्याश्-चतुश्-चतुस्_ _त्र्ये-कै-कै-कैक-षड्-भेदा:।_ 
〰️〰️
 *(7)जीवभव्याभव्यत्वानि च।* 
 _जीव-भव्-व्या-भव्-व्यत्-त्वानि-च।_ 
〰️〰️
 *(8)उपयोगो लक्षणम्।* 
 _उपयोगो लक्क्षणम्।_ 
〰️〰️
 *(9)स द्विविधोष्टचतुर्भेद:।* 
 _सद्-द्वि-विधोष्-ट-चतुर्-भेद:।_ 
〰️〰️
 *(10)संसारिणो मुक्ताश्च।* 
 _सन्-सारिणो-मुक्-ताश्-च।_ 
〰️〰️
 *(11)समनस्कामनस्का:।* 
 _स-मनस्का-मनस्का:।_ 
〰️〰️
 *(12)संसारिणस्त्रसस्थावरा:।* 
 _सन्-सारिणस्-त्रसस्-थावरा:।_ 
〰️〰️
 *(13)पृथिव्यप्तेजोवायुवनस्पतय:स्थावरा:।* 
 _पृथिव्-व्यप्-तेजो-वायु-वनस्-पतय:-_ 
 _स्थावरा:।_ 
〰️〰️
 *(14)द्वीन्द्रियादयस्त्रसा:।* 
 _द्वीन्-द्रिया-दयस्-त्रसा:।_ 
〰️〰️
 *(15)पञ्चेन्द्रियाणि।* 
 _पञ्-चेन्-द्रि-याणि।_ 
〰️〰️
 *(16)द्विविधानि।* 
 _द्वि-विधानि।_ 
〰️〰️
 *(17)निर्वृत्युपकरणे* *द्रव्येन्द्रियम्।* 
 _निर्-वृत्-त्युप-करणे-द्रव्-व्येन्-द्रियम्।_ 
〰️〰️
 *(18)लब्ध्युपयोगौ* *भावेन्द्रियम्।* 
 _लब्-ध्युप-योगौ-भावेन्-द्रियम्।_ 
〰️〰️
 *(19)स्पर्शनरसनघ्राणचक्षु:श्रोत्राणि।* 
 _स्पर्-शन-रसनघ्-घ्राण-चक्क्षु:-श्रो-त्राणि।_ 
〰️〰️
 *(20)स्पर्शरसगन्धवर्णशब्दास्तदर्था:।* 
 _स्पर्-श-रस-गन्ध-वर्-ण-शब्-दास्-तदर्-था:।_ 
〰️〰️
 *(21)श्रुतमनिन्द्रियस्य।* 
 _श्रुत-मनिन्-द्रि-यस्-स्य।_ 
〰️〰️
 *(22)वनस्पत्यन्तानामेकम्।* 
 _वनस्-पत्-त्यन्-ता-ना-मेकम्।_ 
〰️〰️
 *(23)कृमिपिपीलिकाभ्रमरमनुष्यादीनामेकैक वृद्धानि।* 
 _कृमि-पिपीलिका-भ्रमर-मनुष्या-दीना-मेकैक-वृद्-धानि।_ 
〰️〰️
 *(24)संज्ञिन:समनस्का:।* 
 _सञ्-ज्-ञिन:-स-मनस्का:।_ 
〰️〰️
 *(25)विग्रहगतौ कर्मयोग:।* 
 _विग्-ग्रह-गतौ-कर्-म-योग:।_ 
〰️〰️
 *(26)अनुश्रेणि गति:।* 
 _अनुश्-श्रेणि-गति:।_ 
〰️〰️
 *(27)अविग्रहा जीवस्य।* 
 _अविग्-ग्रहा-जीवस्-स्य।_ 
〰️〰️
 *(28)विग्रहवती च संसारिण:प्राक् चतुर्भ्य:।* 
 _विग्-ग्रह-वती-च-सन्-सारिण:-प्राक्-चतुर्-_ 
 _भ्य:।_ 
〰️〰️
 *(29)एकसमयाऽविग्रहा।* 
 _एक-समया-ऽविग्-ग्रहा।_ 
〰️〰️
 *(30)एकं द्वौ त्रीन्वानाहारक:।* 
 _एकन्-द्वौ-त्रीन्-वा-नाहारक:।_ 
〰️〰️
 *(31)सम्मूर्च्छनगर्भोपपादा* *जन्म।* 
 _सम्-मूर्-च्छन-गर्-भोप-पादा-जन्म।_ 
〰️〰️
 *(32)सचित्तशीतसंवृता:सेतरा मिश्राश्चैकशस्तद्योनय:।* 
 _सचित्-त-शीत-सञ्-वृता:-सेतरा-मिश्राश्-_ 
 _चै-कशस्-तद्-योनय:।_ 
〰️〰️
🛑 *(33)जरायुजाण्डजपोतानां* *गर्भ:।* 
 _जरायु-जाण्डज-पोतानाङ्-गर्-भ:।_ 
〰️〰️
 *(34)देवनारकाणामुपपाद:।* 
 _देव-नारकाणा-मुप-पाद:।_ 
〰️〰️
 *(35)शेषाणां सम्मूर्च्छनम्।* 
 _शेषाणान्-सम्-मूर्-च्छनम्।_ 
〰️〰️
 *(36)औदारिकवैक्रियिकाहारकतैजसकार्मणानि* *शरीराणि।* 
 _औदारिक-वैक्रियि-काहारक-तैजस-कार्-_ 
 _मणानि-शरीराणि।_ 
〰️〰️
 *(37)परं परं सूक्ष्मम्।* 
 _परम्-परन्-सूक्ष्मम्।_ 
〰️〰️
🛑 *(38)प्रदेशतोऽसंख्येयगुणं* *प्राक् तैजसात्।* 
 _प्र-देशतो-ऽसङ्-ख्येय-गुणम्-प्राक्-तैजसात्।_ 
〰️〰️
 *(39)अनन्तगुणे परे।* 
 _अनन्त-गुणे परे।_ 
〰️〰️
 *(40)अप्रतीघाते।* 
 _अप्-प्रती-घाते।_ 
〰️〰️
 *(41)अनादिसम्बन्धे च।* 
 _अनादि-सम्-बन्-धे-च।_ 
〰️〰️
 *(42)सर्वस्य।* 
 _सर्-वस्य।_ 
〰️〰️
 *(43)तदादीनि भाज्यानि युगपदेकस्मिन्नाचतुर्भ्य:।* 
 _तदा-दीनि-भा-ज्यानि-युगपदे-कस्मिन्-ना-चतुर्-भ्य:।_ 
〰️〰️
 *(44)निरुपभोगमन्त्यम्।* 
 _निरुप-भोग-मन्-त्यम्।_ 
〰️〰️
 *(45)गर्भसम्मूर्च्छनजमाद्यम्।* 
 _गर्-भ-सम्मूर्-च्छनज-माद्यम्।_ 
〰️〰️
 *(46)औपपादिकं वैक्रियिकम्।* 
 _औप-पादिकम्- वैक्रियि-कम्।_ 
〰️〰️
 *(47)लब्धिप्रत्ययं च।* 
 _लब्धिप्-प्र-त्ययञ्-च।_ 
〰️〰️
 *(48)तैजसमपि।* 
 _तैजस-मपि।_ 
〰️〰️
 *(49)शुभं विशुद्ध मव्याघाति चाहारकं प्रमत्तसंयतस्यैव।* 
 _शुभञ्-विशुद्-द्ध-मव्-व्याघाति-चाहारकम्-_ 
 _प्रमत्-त्त-सञ्य-तस्-स्यैव।_ 
〰️〰️
 *(50)नारकसम्मूर्च्छिनो नपुंसकानि।* 
 _नारक-सम्-मूर्-च्छिनो-नपुन्-स-कानि।_ 
〰️〰️
 *(51)न देवा:।* 
 _न देवा:।_ 
〰️〰️
 *(52)शेषास्त्रिवेदा:।* 
 _शेषास्-त्रि-वेदा: ।_ 

〰️〰️
 *(53)औपपादिकचरमोत्तमदेहाऽसंख्येयवर्षायुषोऽनपवर्त्यायुष:।* 
 _औप-पादिक-चरमोत्-तम-देहा-ऽसङ्-ख्येय-वर्-षायुषो-ऽनप-वर्-त्यायुष:।_ 

 *"इति तत्त्वार्थसूत्रे मोक्षशास्त्रे द्वितीयोध्याय:"* 
📚📚📚📚📚📚📚📚
[24/08, 4:43 pm] Dr Rakesh Shastri, Nagpur: *उच्चारणपाठ-तत्त्वार्थसूत्र* 
   *(पञ्चम् अध्याय* )

 *(1)अजीवकाया धर्माधर्माकाशपुद्गला:।* 
 _अजीव-काया-धर्मा-धर्माकाश-पुद्-गला:।_ 
〰️〰️
 *(2)द्रव्याणि।* 
 _द्र-व्याणि।_ 
〰️〰️
 *(3)जीवाश्च।* 
 _जीवाश्-च।_ 
〰️〰️
 *(4)नित्यावस्थितान्यरूपाणि।* 
 _नित्या-वस्थितान्-यरूपाणि।_ 
〰️〰️
 *(5)रूपिण: पुद्गला:।* 
 _रूपिण:-पुद्-गला:।_ 
〰️〰️
 *(6)आ आकाशादेकद्रव्याणि।* 
 _आ-आकाशादेकद्-द्र-व्याणि।_ 
〰️〰️
 *(7)निष्क्रियाणि च।* 
 _निष्-क्रियाणि-च।_ 
〰️〰️
 *(8)असंख्येया: प्रदेशा धर्माधर्मैकजीवानाम्।* 
 _असङ्-ख्येया:-प्रदेशा-धर्मा-धर्मैक-जीवानाम्।_ 
〰️〰️
 *(9)आकाशस्यानन्ता:।* 
 _आकाशस्-स्या-नन्ता:।_ 
〰️〰️
 *(10)संख्येयासंख्येयाश्च पुद्गलानाम्।* 
 _सङ्ख्येया-सङ्ख्ये-याश्-च-पुद्-गलानाम्।_ 
〰️〰️
 *(11)नाणो:।* 
 _नाणो:।_ 
〰️〰️
 *(12)लोकाकाशेऽवगाह:।* 
 _लोकाकाशे-ऽवगाह:।_ 
〰️〰️
 *(13)धर्माधर्मयो: कृत्स्ने।* 
 _धर्मा-धर्मयो:-कृत्स्-ने।_ 
〰️〰️
 *(14)एकप्रदेशादिषु भाज्या: पुद्गलानाम्।* 
  _एकप्-प्रदेशादिषु-भाज्-ज्या:-पुद्-गलानाम्।_ 
〰️〰️
 *(15)असंख्येयभागादिषु जीवानाम्।* 
 _असङ्ख्येय-भागादिषु-जीवानाम्।_ 
〰️〰️
 *(16)प्रदेशसंहारविसर्पाभ्यां प्रदीपवत्।* 
 _प्रदेश-सङ्हार-विसर्-पाभ्याम्-प्रदीपवत्।_ 
〰️〰️
 *(17)गतिस्थित्युपग्रहौ धर्माधर्मयोरुपकार:।* 
 _गतिस्-थित्-त्यु-पग्-ग्रहौ-धर्मा-धर्मयो-रुपकार:।_ 
〰️〰️
 *(18)आकाशस्यावगाह:।* 
 _आकाशस्-स्यावगाह:।_ 
〰️〰️
 *(19)शरीरवाङ् मन:प्राणापाना:पुद्गलानाम्।* 
 _शरीर-वाङ्-मन:-प्राणापाना:-पुद्-गलानाम्।_ 
〰️〰️
 *(20) सुखदु:खजीवितमरणोपग्रहाश्च* ।
 _सुख-दु:ख-जीवित-मरणो-पग्-ग्रहाश्-च।_ 
〰️〰️
 *(21)परस्परोपग्रहो जीवानाम्।* 
 _परस्परो-पग्-ग्रहो-जीवानाम्।_ 
〰️〰️
 *(22)वर्तनापरिणामक्रिया: परत्वापरत्वे च कालस्य।* 
 _वर्तना-परिणामक्-क्रिया:-परत्-त्वा-परत्-त्वे-च-कालस्य।_ 
〰️〰️
 *(23)स्पर्शरसगन्धवर्णवन्त: पुद्गला:।* 
 _स्पर्श-रस-गन्ध-वर्ण-वन्त:-पुद्-गला:।_ 
〰️〰️
 *(24)शब्दबन्धसौक्ष्म्यस्थौल्यसंस्थानभेदतमश्छायातपोद्योतवन्तश्च।* 
 _शब्द-बन्ध-सौक्ष्म्यस्-थौल्य-_ _सन्स्थान-भेद-_ 
 _तमश्-छाया-तपोद्-द्योत-वन्तश्-च।_ 
〰️〰️
 *(25)अणव: स्कन्धाश्च।* 
 _अणव:-स्कन्धाश्-च।_ 
〰️〰️
 *(26)भेदसंघातेभ्य उत्पद्यन्ते।* 
 _भेद-सङ्घा-तेभ्य-उत्पद्-द्यन्ते।_ 
〰️〰️
 *(27)भेदादणु:।* 
 _भेदा-दणु:।_ 
〰️〰️
 *(28)भेदसंघाताभ्यां चाक्षुष:।* 
 _भेद-सङ्घाता-भ्याञ्-चाक्षुष:।_ 
〰️〰️
 *(29)सद् द्रव्यलक्षणम्।* 
 _सद्-द्र-व्य-लक्क्षणम्।_ 
〰️〰️
 *(30)उत्पादव्ययध्रौव्ययुक्तं सत्।* 
 _उत्पादव्-व्ययध्-ध्रौव्-व्य-युक्-तन्-सत्।_ 
〰️〰️
 *(31)तद् भावाव्ययं नित्यम्।* 
 _तद्-भावा-व्ययन्-नित्यम्।_ 
〰️〰️
 *(32)अर्पितानर्पितसिद्धे:।* 
 _अर्पिता-नर्पित-सिद्-द्धे:।_ 
〰️〰️
 *(33)स्निग्धरूक्षत्वाद् बन्ध:।* 
 _स्निग्ध-रूक्क्षत्-त्वाद्-बन्ध:।_ 
〰️〰️
 *(34)न जघन्यगुणानाम्।* 
 _न-जघन्य-गुणानाम्।_ 
〰️〰️
 *(35)गुणसाम्ये सदृशानाम्।* 
 _गुण-साम्ये-सदृशानाम्।_ 
〰️〰️
 *(36)द्वयधिकादिगुणानां तु।* 
 _द्वयधि-कादि-गुणानान्-तु।_ 
〰️〰️
 *(37)बन्धेऽधिकौ पारिणामिकौ च।* 
 _बन्धे-ऽधिकौ पारि-णामिकौ-च।_ 
〰️〰️
 *(38)गुणपर्ययवद्द्रव्यम्।* 
 _गुण-पर्यय-वद्-द्र-व्यम्।_ 
〰️〰️
 *(39)कालश्च।* 
 _कालश्-च।_ 
〰️〰️
 *(40)सोऽनन्तसमय:।* 
 _सो-ऽनन्त-समय:।_ 
〰️〰️
 *(41)द्रव्याश्रया निर्गुणा गुणा:।* 
 _द्रव्या-श्रया-निर्गुणा-गुणा:।_ 
〰️〰️
 *(42)तद्भाव: परिणाम:।* 
 _तद्-भाव:-परिणाम:।_ 

 *इति तत्त्वार्थसूत्रे मोक्षशास्त्रे पञ्चमोध्याय:*
[24/08, 4:43 pm] Dr Rakesh Shastri, Nagpur: *श्रुत उच्चारण पाठ:*

 *उच्चारणपाठ-तत्त्वार्थसूत्र(चतुर्थ अध्याय)* 

 *(1)देवाश्चतुर्णिकाया:।* 
 _देवाश्-चतुर्-णिकाया:।_ 
〰️〰️
 *(2)आदितस्त्रिषु पीतान्तलेश्या:।* 
 _आदि-तस्-त्रिषु-पीतान्त-लेश्या:।_ 
〰️〰️
🕉️ *(3)दशाष्टपञ्चद्वादशविकल्पा: कल्पोपपन्नपर्यन्ता:।* 
 _दशाष्-ट-पञ्चद्-द्वादश-विकल्-पा:-कल्पो-पपन्-न्न-पर्-यन्ता:।_ 
〰️〰️
 *(4)इन्द्र सामानिकत्रायस्त्रिंशपारिषदात्मरक्ष* 
 *लोकपालानीक* 
 *प्रकीर्णकाभियोग्यकिल्विषिकाश्चैकश:।* 
 _इन्द्र-सामानिकत्-त्रायस्-त्रिञ्श-पारि-षदात्-म-रक्क्ष-लोक-_ 
 _पालानीकप्-प्रकीर्-ण-काभियोग्य-किल्-विषिकाश्-चैकश:।_ 
〰️〰️
🕉️ *(5)त्रायस्त्रिंशलोकपालवर्ज्या* *व्यन्तरज्योतिष्का:।* 
 _त्रायस्-त्रिञ्श-लोकपाल-वर्-ज्या-व्यन्तरज्-ज्योतिष्-का:।_ 
〰️〰️
 *(6)पूर्वयोर्द्वीन्द्रा:।* 
 _पूर्-व-योर्-द्वीन्-द्रा:।_ 
〰️〰️
 *(7)कायप्रवीचारा आ ऐशानात्।* 
 _कायप्-प्रवीचारा-आ-ऐशानात्।_ 
〰️〰️
 *(8)शेषा: स्पर्शरूपशब्दमन: प्रवीचारा:।* 
 _शेषा:-स्पर्-श-रूप-शब्द-मन:-प्रवीचारा:।_ 
〰️〰️
 *(9)परेऽप्रवीचारा:।* 
 _परे-ऽप्रवी-चारा:।_ 
〰️〰️
 *(10)भवनवासिनोऽसुरनागविद्युत्सुपर्णाग्नि* 
 *वातस्तनितोदधिद्वीपदिक्कुमारा:।* 
✳️ _भवन-वासिनो-ऽसुर-नाग-विद्-द्युत्-सुपर्-णाग्नि-_ 
 _वातस्-तनितो-दधिद्-द्वीप-दिक्-कुमारा:।_ 
〰️〰️
 *(11)व्यन्तरा: किन्नरकिम्पुरुषमहोरगगंधर्वयक्षराक्षसभूतपिशाचा:।* 
 _व्यन्तरा:-किन्-नर-किम्-पुरुष-महोरग-गन्-धर्-व-यक्क्ष-राक्षस-भूत-पिशाचा:।_ 
〰️〰️
 *(12)ज्योतिष्का: सूर्याचन्द्रमसौग्रहनक्षत्रप्रकीर्णकतारकाश्च।* 
 _ज्योतिष्-का:-सूर्-या-चन्द्र-मसौ-ग्रह-नक्क्षत्र-प्रकीर्-णक-तारकाश्-च।_ 
〰️〰️
 *(13)मेरुप्रदक्षिणा नित्यगतयो नृलोके।* 
 _मेरुप्-प्रदक्क्षिणा-नित्य-गतयो-नृ-लोके।_ 
〰️〰️
 *(14)तत्कृत: कालविभाग:।* 
 _तत्-कृत:-काल-विभाग:।_ 
〰️〰️
 *(15)बहिरवस्थिता:।* 
 _बहि-रवस्-थिता:।_ 
〰️〰️
 *(16)वैमानिका:।* 
 _वै-मानिका:।_ 
〰️〰️
 *(17)कल्पोपपन्ना: कल्पातीताश्च।* 
 _कल्पो-पपन्-ना:-कल्पा-ती-ताश्-च।_ 
〰️〰️
 *(18)उपर्युपरि।* 
 _उपर्-यु-परि।_ 
〰️〰️
 *(19)सौधर्मैशानसानत्कुमारमाहेन्द्रब्रह्मब्रह्मोत्तरलान्तवकापिष्ठ* 
 *शुक्रमहाशुक्रशतारसहस्रारेष्वानतप्राणतयोरारणाच्युतयोर्नवसुग्रैवेयकेषु* 
 *विजयवैजयन्तजयन्तापराजितेषु सर्वार्थसिद्धौ च।* 
✳️ _सौधर्-मैशान-सानत्कुमार-माहेन्द्रब्-ब्रह्मब्-ब्रह्मोत्तर-लान्तव-कापिष्-ठ-शुक्-क्र-_ 
 _महाशुक्-क्र-शतार-सहस्-स्रा-रे-ष्वानतप्_ _प्राणतयो-रारणा-च्युतयोर्-नवसुग्-ग्रैवेय-केषु-_ 
 _विजय-वैजयन्त-जयन्ता-परा-जितेषु-_ 
 _सर्-वार्-थ-सिद्-द्धौ-च।_ 
〰️〰️
 *(20)स्थितिप्रभावसुखद्युतिलेश्याविशुद्धीन्द्रियावधिविषयतोऽधिका:।* 
 _स्थितिप्-प्रभाव-सुखद्-द्युति-लेश्या-विशुद्-द्धीन्द्रिया-वधि-विषय-तो-ऽधिका:।_ 
〰️〰️
 *(21)गतिशरीरपरिग्रहाभिमानतो हीना:।* 
 _गति-शरीर-परिग्-ग्रहाभि-मानतो-हीना:।_ 
〰️〰️
 *(22)पीतपद्मशुक्ललेश्या द्वित्रिशेषेषु।* 
 _पीत-पद्-म-शुक्ल-लेश्या-द्वित्-त्रि-शेषेषु।_ 
〰️〰️
 *(23)प्राग्ग्रैवेयकेभ्य: कल्पा:।* 
 _प्राग्-ग्रैवेय-के-भ्य:-कल्-पा:।_ 
〰️〰️
 *(24)ब्रह्मलोकालया लौकान्तिका:।* 
 _ब्रह्-म-लोकालया-लौ-कान्तिका:।_ 
〰️〰️
 *(25)सारस्वतादित्यवह्न्यरुणगर्दतोयतुषिताव्याबाधारिष्टाश्च।* 
 _सारस्-स्वता-दित्-त्य-वह्न्-यरुण-गर्-द-तोय-तुषिताव्या-बाधा-रिष्-टाश्-च।_ 
〰️〰️
 *(26)विजयादिषु द्विचरमा:।* 
 _विजया-दिषुद्-द्विचरमा:।_ 
〰️〰️
 *(27)औपपादिकमनुष्येभ्य: शेषास्तिर्यग्योनय:।* 
 _औप-पादिक-मनुष्-ष्येभ्य:-शेषास्-तिर्-यग्-ग्योनय:।_ 
〰️〰️
🕉️ *(28)स्थितिरसुरनागसुपर्णद्वीपशेषाणां* *सागरोपमत्रिपल्योपमार्द्धहीनमिता:।* 
 _स्थिति-रसुर-नाग-सुपर्-णद्-द्वीप-शेषाणान्-सागरोपमत्-त्रिपल्यो-पमार्-द्ध-हीन-मिता:।_ 
〰️〰️
 *(29)सौधर्मैशानयो: सागरोपमेऽधिके।* 
 _सौधर्-मै-शानयो:-सागरोपमे-ऽधिके।_ 
〰️〰️
 *(30)सानत्कुमारमाहेन्द्रयो: सप्त।* 
 _सानत्-कुमार-माहेन्-द्रयो:-सप्त।_ 
〰️〰️
 *(31)त्रिसप्तनवैकादशत्रयोदशपञ्चदशभिरधिकानि तु।* 
 _त्रि-सप्त-नवै-कादशत्-त्रयोदश-पञ्चदशभि-रधिकानि तु।_ 
〰️〰️
 *(32)आरणच्युतादूर्ध्वमेकैकेन नवसु गैवेयकेषु विजयादिषु सर्वार्थसिद्धौ च।* 
 _आरणा-च्युता-दूर्-ध्व-मेकैकेन-नवसुग्-ग्रैवेयकेषु-विजयादिषु-सर्-वार्थ-सिद्-द्धौ च।_ 
〰️〰️
 *(33)अपरा पल्योपममधिकम्।* 
 _अपरा-पल्यो-पम-मधिकम्।_ 
〰️〰️
 *(34)परत: परत: पूर्वापूर्वाऽनन्तरा।* 
 _परत:-परत:-पूर्-वा-पूर्-वा-ऽनन्-तरा।_ 
〰️〰️
 *(35)नारकाणां च द्वितीयादिषु।* 
 _नारकाणाञ्-चद्-द्वितीयादिषु।_ 
〰️〰️
 *(36)दशवर्षसहस्स्राणि प्रथमायाम्।* 
 _दश-वर्-ष-सहस्-स्राणिप्-प्रथमायाम्।_ 
〰️〰️
 *(37)भवनेषु च।* 
 _भव-नेषु-च।_ 
〰️〰️
 *(38)व्यन्तराणां च।* 
 _व्यन्-तराणाञ्- च।_ 
〰️〰️
 *(39)परा पल्योपममधिकम्।* 
 _परा-पल्योपम-मधिकम्।_ 
〰️〰️
 *(40)ज्योतिष्काणां च।* 
 _ज्योतिष्-काणाञ्-च।_ 
〰️〰️

 *(41)तदष्टभागोऽपरा।* 
 _तदष्-ट-भागो-ऽपरा।_ 
〰️〰️
 *(42)लौकान्तिकानामष्टौ* *सागरोपमाणि सर्वेषाम्।* 
 _लौ-कान्तिका-ना-मष्-टौ-सागरो-पमाणि सर्-वेषाम्।_ 

 *इति तत्त्वार्थसूत्रे मोक्षशास्त्रे चतुर्थोध्याय:*
[24/08, 4:43 pm] Dr Rakesh Shastri, Nagpur: *श्रुत उच्चारण पाठ:* 
 *उच्चारणपाठ-तत्त्वार्थसूत्र(सप्तम अध्याय)* 

 *(1)हिंसाऽनृतस्तेयाब्रह्मपरिग्रहेभ्यो विरतिर्व्रतम्।* 
 _हिन्-सा-ऽनृतस्-तेया-ब्रह्-म-परिग्-ग्रहे-भ्यो_ _विरतिर्-व्रतम्।_ 
〰️〰️〰️
 *(2)देशसर्वतोऽणुमहती।* 
 _देश-सर्-वतो-ऽणु-महती।_ 
〰️〰️〰️
 *(3)तत्स्थैर्यार्थं भावना: पञ्च पञ्च।* 
 _तत्-स्-थैर्-यार्-थम्-भावना:-पञ्च-पञ्च।_ 
〰️〰️〰️
 *(4)वाङ्मनोगुप्तीर्यादाननिक्षेपणसमित्यालोकितपानभोजनानिपञ्च।* 
 _वाङ्-मनो-गुप्तीर्-या-दान-निक्क्षेपण-_ 
 _समित्-त्या-लोकित-पान-भोजनानि-पञ्च।_ 
〰️〰️〰️
 *(5)क्रोधलोभभीरुत्वहास्यप्रत्याख्यानान्यनु* 
 *वीचिभाषणं च पञ्च।* 
 _क्रोध-लोभ-भीरुत्-त्व-हास्यप्-प्रत्या-ख्याना-न्यनु-वीचि-_ _भाषणञ्-च-पञ्च।_ 
〰️〰️〰️
 *(6)शून्यागारविमोचितावासपरोपरोधाकरणभैक्ष्यशुद्धिसधर्माविसंवादा: पञ्च।* 
 _शून्यागार-विमोचिता-वास-परो-परोधा-करण-भैक्ष्य-शुद्-द्धि-सधर्-मा-विसञ्वादा:-पञ्च।_ 
〰️〰️〰️
 *(7)स्त्रीरागकथाश्रवणतन्मनोहराङ्गनिरीक्षणपूर्वरतानुस्मरणवृष्येष्टरसस्वशरीरसंस्कारत्* *यागा: पञ्च।* 
 _स्त्री-राग-कथा-श्रवण-तन्-मनोहरा-ङ्ग-_ 
 _निरीक्षण-पूर्-व-रता-नुस्-मरण-वृष्-ष्येष्-ट-_ _रसस्-स्व-शरीर-सन्-स्-कारत्-त्यागा:-पञ्च।_ 
〰️〰️〰️
 *(8)मनोज्ञामनोज्ञेन्द्रियविषयरागद्वेषवर्जनानि पञ्च।* 
 _मनो-ज् ञा-मनो-ज् ञेन्-द्रिय-विषय-रागद्-द्वेष-_ _वर्-जनानि-पञ्च।_ 
〰️〰️〰️
 *(9)हिंसादिष्विहामुत्रापायावद्यदर्शनम्।* 
 _हिन्-सा-दिष्-विहा-मुत्-त्रा-पाया-वद्-द्य-_ 
 _दर्-शनम्।_ 
〰️〰️〰️
 *(10)दु:खमेव वा।* 
 _दु:ख-मेव-वा।_ 
〰️〰️〰️
 *(11)मैत्रीप्रमोदकारुण्यमाध्यस्थानि च सत्त्व* *गुणाधिकक्लिश्यमानाविनयेषु।* 
 _मैत्री-प्रमोद-कारुण्-ण्य-माध्यस्-थानि-च-_ 
 _सत्-त्व-गुणाधिकक्-क्लिश्-श्य-माना-विनयेषु।_ 
〰️〰️〰️
 *(12)जगत्कायस्वभावौ वा संवेगवैराग्यार्थम्।* 
 _जगत्-कायस्-स्वभावौ-वा-सञ्वेग-वैरा-_ 
 _ग्यार्-थम्।_ 
〰️〰️〰️
 *(13)प्रमत्तयोगात्प्राणव्यपरोपणं हिंसा।* 
 _प्रमत्-त-योगात्-प्राणव्-व्यपरोपणङ्-_ 
 _हिन्-सा।_ 
〰️〰️〰️
 *(14)असदभिधानमनृतम्।* 
 _अस-दभिधान-मनृतम्।_ 
〰️〰️〰️
 *(15)अदत्तादानं स्तेयम्।* 
 _अदत्-ता-दानन्-स्तेयम्।_ 
〰️〰️〰️
 *(16)मैथुनमब्रह्म।* 
 _मैथुन-मब्-ब्रह्-म।_ 
〰️〰️
 *(17)मूर्छा परिग्रह:।* 
 _मूर्-छा-परिग्-ग्रह:।_ 
〰️〰️〰️
 *(18)नि:शल्यो व्रती।* 
 _निश्-शल्-ल्यो-व्रती।_ 
〰️〰️〰️
 *(19)अगार्यनगारश्च।* 
 _अगार्-य-नगारश्-च।_ 
〰️〰️〰️
 *(20)अणुव्रतोऽगारी।* 
 _अणुव्-व्रतो-ऽगारी।_ 
〰️〰️〰️
 *(21)दिग्देशानर्थदण्डविरतिसामायिकप्रोषधोपवासोपभोगपरिभोगपरिमाणातिथिसंवि* *भागव्रतसंपन्नश्च।* 
 _दिग्-देशानर्-थ-दण्ड-विरति-सामायिकप्-_ 
 _प्रोषधोप-वासोप-भोग-परिभोग-परिमाणा-तिथि_ 
 _सञ्-विभागव्-व्रत-सम्-पन्-नश्-च।_ 
〰️〰️〰️
 *(22)मारणान्तिकीं सल्लेखनां जोषिता।* 
 _मारणान्-तिकीन्-सल्-लेखनाञ्-जोषिता।_ 
〰️〰️〰️
 *(23)शङ्काकांक्षाविचिकित्सान्यदृष्टिप्रशंसासंस्तवा:स* *म्यग्दृष्टेरतिचारा:।* 
 _शङ्-का-काङ्-क्षा-विचिकित्-सा-ऽन्य-दृष्टिप्-प्रशन्-सा-सन्-स्-तवा:-सम्यग्-दृष्-टे-_ 
 _रतिचारा:।_ 
〰️〰️〰️
 *(24) व्रतशीलेषु पञ्च पञ्च यथाक्रमम्।* 
 _व्रत-शीलेषु-पञ्च-पञ्च-यथा-क्रमम्।_ 
〰️〰️〰️
 *(25)बन्धबधच्छेदातिभारारोपणान्नपाननिरोधा:।* 
 _बन्ध-बधच्-छेदाति-भारा-रोप-णान्-न-पान-निरोधा:।_ 
〰️〰️〰️
 *(26)मिथ्योपदेशरहोभ्याख्यानकूटलेखक्रियान्यासापहारसाकारमंत्र भेदा:।* 
 _मिथ्यो-पदेश-रहो-भ्या-ख्यान-कूट-लेखक्-क्रिया-न्यासापहार-साकार-मन्-त्र-भेदा:।_ 
〰️〰️〰️
 *(27)* *स्तेनप्रयोगतदाह्रतादानविरुद्धराज्यातिक्रमहीनाधिकमानोन्मानप्रतिरूपकव्यवहा* *रा:।* 
 _स्तेनप्-प्रयोग-तदा-ह्रता-दान-विरुद्-द्ध-_ 
 _राज्या-तिक्-क्रम-हीनाधिक-मानोन्-मानप्-प्रति-रूपकव्-_ _व्यव-हारा:।_ 
〰️〰️〰️
 *(28)परविवाहकरणेत्वरिकापरिगृहीतापरिगृहीतागमनानङ्गक्रीड़ाकामतीव्राभिनिवेशा:।* 
 _पर-विवाह-करणे-त्वरिका-परि-गृहीता-परि-गृहीता-गमना-नङ्-गक्-क्रीड़ा-काम-तीव्रा-_ 
 _भिनि-वेशा:।_ 
〰️〰️〰️
 *(29)क्षेत्रवास्तुहिरण्यसुवर्णधनधान्यदासीदासकुप्यभाण्डप्रमाणातिक्रमा:।* 
 _क्षेत्र-वास्तु-हिरण्-ण्य-सुवर्-ण-धन-_ 
 _धान्य-दासी-दास-कुप्-प्य-भाण्डप्-_ 
 _प्रमा-णातिक्-क्रमा:।_ 
〰️〰️〰️
 *(30)ऊर्ध्वाधस्तिर्यग्व्यतिक्रमक्षेत्रवृद्धिस्मृत्यंतराधानानि।* 
 _ऊर्-ध्वा-धस्-तिर्-यग्-व्यतिक्-क्रमक्-क्षेत्र-वृद्-द्धिस्-मृत्-त्यन्-तरा-धानानि।_ 
〰️〰️〰️
 *(31)आनयनप्रेष्यप्रयोगशब्दरूपानुपातपुद्गलक्षेपा:।* 
 _आ-नयनप्-प्रेष्यप्-प्रयोग-शब्द-रूपानु-_ 
 _पात-पुद्-गलक्-क्षेपा:।_ 
〰️〰️〰️
 *(32)कन्दर्पकौत्कुच्यमौखर्यासमीक्ष्याधिकरणोपभोगपरिभोगानर्थक्यानि।* 
 _कन्दर्-प-कौत्-कुच्-च्य-मौखर्-या-_ 
 _समीक्ष्याधि-करणोप-भोग-परिभोगा-_ 
 _नर्-थक्-क्यानि।_ 
〰️〰️〰️
 *(33)योगदुष्प्रणिधानानादरस्मृत्यनुपस्थानानि* 
 _योग-दुष्-प्रणि-धाना-नादरस्-मृत्-त्यनु-_ 
 _पस्-थानानि ।_ 
〰️〰️〰️ *(34)अप्रत्यवेक्षिताप्रमार्जितोत्सर्गादानसंस्तरोपक्रमणानादरस्मृत्यनुपस्थानानि।* 
 _अप्-प्रत्-त्य-वेक्षिता-प्रमार्-जितोत्-सर्-गा-दान-सन्-स्-तरोपक्-क्रमणा-नादरस्-मृत्-त्यनु-पस्-थानानि।_ 
〰️〰️〰️
 *(35)सचित्तसम्बन्धसम्मिश्राभिषवदुष्पक्वाहारा:* 
 _सचित्-त-सम्-बन्-ध-सम्-मिश्-श्रा-भिषव-_ 
 _दुष्-पक्-क्वा-हारा:।_ 
〰️〰️〰️
 *(36)सचित्तनिक्षेपापिधानपरव्यपदेशमात्सर्यकालातिक्रमा:।* 
 _सचित्-त-निक्क्षेपा-पिधान-परव्-व्यपदेश-मात्सर्-य-कालातिक्-क्रमा:।_ 
〰️〰️〰️
 *(37)जीवितमरणाशंसामित्रानुरागसुखानुबंधनिदानानि।* 
 _जीवित-मरणा-शन्-सा-मित्-त्रा-नुराग-सुखानु-बन्-ध-निदानानि।_ 
〰️〰️〰️
 *(38)अनुग्रहार्थं स्वस्यातिसर्गो दानम्।* 
 _अनुग्-ग्रहार्-थम्-स्वस्-स्याति-सर्-गो-दानम्।_ 
〰️〰️〰️
 *(39)विधिद्रव्यदातृपात्रविशेषात्तद्विशेष:।* 
 _विधिद्-द्रव्य-दातृ-पात्र-विशेषात्-तद्-विशेष:।_ 

 *"इति तत्त्वार्थसूत्रे मोक्षशास्त्रे सप्तमोध्याय:"*
[24/08, 4:43 pm] Dr Rakesh Shastri, Nagpur: *उच्चारणपाठ-तत्त्वार्थसूत्र* *(अष्टम अध्याय)* 
 *(1)मिथ्यादर्शनाविरतिप्रमादकषाययोगा बन्धहेतव:।* 
 _मिथ्-थ्या-दर्-शना-विरतिप्-प्रमाद-कषाय-योगा-बन्ध-हेतव:।_ 

 *(2)सकषायत्वाज्जीव:* *कर्मणो योग्यान्पुद्गलानादत्ते* *स बन्ध:।* 
 _स-कषायत्-त्वाज्-जीव:-कर्-मणो-यो-ग्यान्-पुद्-गला-नादत्-ते-स-बन्ध:।_ 

 *(3) प्रकृतिस्थित्यनुभवप्रदेशास्तद्विधय:।* 
 _प्र-कृतिस्-थित्-त्यनु-भवप्-प्रदेशास्-तद्-विधय:।_ 

 *(4)आद्यो* *ज्ञानदर्शनावरणवेदनीयमोहनीयायुर्नामगोत्रान्तराया:।* 

 _आ-द्यो-ज्_ _ञान-दर्-शनावरण-वेदनीय-
मोहनी-यायुर्-नाम-गोत्-त्रान्-तराया:।_ 
 *(5)पञ्चनवद्वयष्टाविंशतिचतुर्द्विचत्वारिंशद्* *द्विपञ्चभेदायथाक्रमम्।* 
 _पञ्च-नवद्-द्वयष्-टा-विञ्शति-चतुर्-द्वि-चत्-त्वा-रिञ्शद्-द्वि-पञ्च-भेदा-यथा-क्रमम्।_ 
 *(6)मतिश्रुतावधिमन:पर्ययकेवलानाम्।* 
 _मतिश्-श्रुता-वधि-मन:-पर्-यय-केवलानाम्।_ 
 *(7)चक्षुरचक्षुरवधिकेवलानां* *निद्रानिद्रानिद्राप्रचलाप्रचलाप्रचलास्त्यानगृद्धयश्च* 
 _चक्क्षु-रचक्क्षु-रवधि-केवला-नान्-निद्-द्रा-_  _निद्-द्रा-निद्-द्रा-प्रचला-प्रचला-प्रचलास्-त्यान-गृद्-द्धयश्-च।_ 

 *(8)सदसद्वेद्ये।* 
 _स-दसद्-वेद्-द्ये।_ 
 *(9)दर्शनचारित्रमोहनीयाकषायकषायवेदनीयाख्यास्त्रिद्विनवषोडसभेदा:* *सम्यक्त्वमिथ्यात्वतदुभयान्यकषायकषायौ* *हास्यरत्यरतिशोकभयजुगुप्सास्त्रीपुन्नपुंसकवेदा* *अनन्तानुबन्ध्यप्रत्याख्यानप्रत्याख्यानसंज्वलनविकल्पाश्चैकश: क्रोधमानमायालोभा:।* 
 _दर्-शन-चारित्-त्र-मोहनी-याकषाय-कषाय-वेदनीया-ख्यास्-त्रिद्-द्वि-नव-षोडस-भेदा:-_ 
 _सम्-म्यक्-त्व-मिथ्-थ्या-त्व-तदुभया-न्य-_ 
 _कषाय-कषायौ-हास्य-रत्-त्य-रति-शोक-भय-_ 
 _जुगुप्-सास्-त्री-पुन्-नपुन्-सक-वेदा-_ _अनन्-ता-नुबन्-ध्यप्-प्रत्या-ख्यानप्-प्रत्या-_ 
 _ख्यान-सञ्ज्वलन-विकल्-पाश्-चैकश:-क्रोध-_ 
 _मान-माया-लोभा:।_ 
 *(10)नारकतैर्यग्योनमानुषदैवानि।* 
 _नारक-तैर्-यग्-ग्योन-मानुष-दैवानि।_ 

 *(11)* *गतिजातिशरीराङ्गोपाङ्गनिर्माणबंधनसंघातसंस्थानसंहननस्पर्शरसगंधवर्णानुपूर्व्यागुरुलघूपघातपरघातातपोद्योतोच्छ्वासविहायोगतय:*  *प्रत्येकशरीरत्रससुभगसुस्वरशुभसूक्ष्मपर्याप्ति* 
 *स्थिरादेययश:कीर्ति सेतराणि* *तीर्थकरत्वं च।* 
 _गति-जाति-शरीराङ्-गो-पाङ्-ग-निर्-माण-_ _बन्-धन-सङ्-घात-सन्-स-थान-सङ्-हननस्-_ _पर्-श-रस-गन्-ध-वर्-णानु-पूर्-व्या-गुरु-लघू-_  _पघात-परघाता-तपो-द्यो-तोच्छ्वास-विहायो-_ _गतय:-प्रत्येक-शरीरत्-त्रस-_ _सुभग-सुस्-स्वर-शुभ-सूक्ष्म-_ _पर्-याप्-तिस्-थिरा-देय-यश:कीर्-ति_ _सेतराणि-तीर्थ-करत्-त्वञ्-च।_ 

 *(12)उच्चैर्नीचैश्च।* 
 _उच्-चैर्-नीचैश्-च।_ 
 *(13)दानलाभभोगोपभोगवीर्याणाम्।* _दान-लाभ-भोगो-पभोग-वीर्-या-णाम्।_ 
 *(14)आदितस्तिसृणामन्तरायस्य च* त्रिंशत्सागरोपमकोटीकोट्य: परा स्थिति:।
 _आदितस्-तिसृणा-मन्-तरा-यस्-स्य-चत्-_  _त्रिञ्शत्-सागरोपम-कोटी-कोट्-ट्य:-परास्-_ 
 _थिति:।_ 

 *(15)सप्ततिर्मोहनीयस्य।* 
 _सप्-ततिर्-मोहनी-यस्-स्य।_ 
 *(16)विंशतिर्नामगोत्रयो:।* 
 _विञ्शतिर्-नाम-गो-त्रयो:।_ 
 *(17)त्रयस्त्रिंशत्सागरोपमाण्यायुष:।* 
 _त्रयस्-त्रिञ्शत्-सागरो-पमा-ण्या-युष:।_ 

 *(18)अपरा द्वादशमुहूर्ता वेदनीयस्य।* 
 _अपरा-द्वादश-मुहूर्-ता-वेदनी-यस्-स्य।_ 

 *(19)नामगोत्रयोरष्टौ।* 
 _नाम-गो-त्रयो-रष्-टौ।_ 

 *(20)शेषाणामन्तर्मुहूर्ता।* 
 _शे-षाणा-मन्तर्-मुहूर्-ता।_ 

 *(21)विपाकोऽनुभव:।* 
 _विपाको-ऽनुभव:।_ 

 *(22)स यथानाम्।* 
 _स-यथानाम्।_ 

 *(23)ततश्च निर्जरा।* 
 _ततश्-च-निर्-जरा।_ 
 *(24)नामप्रत्यया:सर्वतोयोगविशेषात्* *सूक्ष्मैकक्षेत्रावगाहस्थिता:सर्वात्मप्रदेशेष्वनन्तानन्तप्रदेशा:।* 
 _नामप्-प्र-त्यया:-सर्-वतो-योग-विशेषात्-_ 
 _सूक्ष्मै-कक्-क्षेत्रा-वगाहस्-थिता:-_ 
 _सर्-वात्मप्-प्रदेशेष्-ष्व-नन्ता-नन्तप्-प्रदेशा:।_ 

 *(25)सद्वेद्यशुभायुर्नामगोत्राणि पुण्यम्।* 
 _सद्-वेद्य-शुभायुर्-नाम-गो-त्राणि-पुण्-ण्यम्।_ 

 *(26)अतोऽन्यत्पापम्।* 
 _अतो-ऽन्यत्-पापम्।_ 

 *इति तत्त्वार्थसूत्रे मोक्षशास्त्रे अष्टमोध्याय*
[24/08, 4:43 pm] Dr Rakesh Shastri, Nagpur: *उच्चारणपाठ-तत्त्वार्थसूत्र(नवम अध्याय)* 

 *(1)आस्रवनिरोध: संवर:।* 
〰️〰️〰️
 _आ-स्रव-निरोध:-सञ्वर:।_ 

 *(2)स* *गुप्तिसमितिधर्मानुप्रेक्षापरीषहजय चारित्रै:।* 
〰️〰️〰️ _स-गुप्-ति-समिति-धर्-मानुप्-प्रेक्षा-परीषहजय-चारित्-त्रै:।_ 

 *(3)तपसा निर्जरा च।* 
〰️〰️〰️
 _तपसा-निर्-जरा-च।_ 

*(4)सम्यग्योगनिग्रहो गुप्ति:।* 
〰️〰️〰️ _सम्-म्यग्-योग-निग्-ग्रहो-गुप्-ति:।_ 
 *(5)ईर्याभाषैषणादाननिक्षेपोत्सर्गा:समितय:।* 
〰️〰️〰️ _ईर्-या-भा-षैषणा-दान-निक्क्षे-पोत्-सर्-गा:-समितय:।_ 
 *(6)उत्तमक्षमामार्दवार्जवशौचसत्यसंयमतपस्त्यागाकिञ्चन्यब्रह्मचर्याणि धर्म:।* 
〰️〰️〰️ _उत्तमक्-क्षमा-मार्-द-वार्-जव-शौच-सत्-त्य-सञ्यम-तपस्-त्यागा-किञ्चन्यब्-_ 
 _ब्रह्-म-चर्-याणि-धर्-म:।_ 
 *(7)अनित्याशरणसंसारैकत्वान्यत्वाशुच्यास्रवसंवरनिर्जरालोकबोधिदुर्लभधर्मस्वाख्या* *तत्त्वानुचिन्तनमनुप्रेक्षा:।* 
〰️〰️〰️ _अनित्-त्या-शरण-सन्-सारै-कत्-त्वा-न्यत्-त्वा-शुच्-च्या-_ _स्रव-सञ्वर-निर्-जरा-लोक-_ 
 _बोधि-दुर्-लभ-धर्-मस्-स्वा-ख्या-_ _तत्-त्वानु-चिन्-तन-मनुप्-प्रेक्षा:।_ 

 *(8)मार्गाच्यवननिर्जरार्थं* *परिषोढव्या: परीषहा:।* 
〰️〰️〰️ _मार्-गा-च्यवन-निर्-जरार्-थम्-परि-षोढव्-व्या:-परीषहा:।_ 
 *(9)क्षुत्पिपासाशीतोष्णदंशमशकनाग्न्यारतिस्त्रीचर्यानिषद्याशय्याक्रोशवधयाचनालाभरोगतृणस्पर्शमलसत्कारपुरस्कारप्रज्ञाज्ञानादर्शनानि।* 
〰️〰️〰️ _क्षुत्-पिपासा-शीतोष्ण-दञ्श-मशक-नाग्-न्या-रतिस्-त्री-चर्-या-निषद्-द्या-शय्या-क्रोश-_  _वध-याचना-लाभ-रोग-तृणस्-पर्-श-मल-_ 
 _सत्कार-पुरस्कारप्-_ 
 _प्रज्_ _ञा-ज्-ञाना-दर्-शनानि।_ 

 *(10)सूक्ष्मसाम्परायच्छद् मस्थवीतरागयोश् चतुर्दश।* 
〰️〰️〰️ _सूक्ष्म-साम्-परायच्-छद्-मस्थ-वीतराग-योश्-चतुर्-दश।_ 

 *(11)एकादश जिने।* 
〰️〰️〰️
 _एकादश-जिने।_ 

 *(12)बादरसाम्पराये सर्वे।* 
〰️〰️〰️
 _बादर-साम्-पराये-सर्-वे।_ 

 *(13)ज्ञानावरणे प्रज्ञाज्ञाने।* 
〰️〰️〰️
 _ज् ञाना-वरणे- प्रज् ञाज्-ज् ञाने।_ 
 *(14)दर्शनमोहान्तराययोरदर्शनालाभौ।* 
〰️〰️〰️ _दर्-शन-मोहान्-तराय-यो-रदर्-शना-लाभौ।_ 
 *(15)चारित्रमोहेनाग्न्यारतिस्त्रीनिषद्याक्रोशयाचनासत्कारपुरस्कारा:।* 
〰️〰️〰️ _चारित्-त्र-मोहे-नाग्-न्या-रतिस्-त्री-निषद्-द्या-क्रोश-याचना-सत्कार-पुरस्-कारा:।_ 

 *(16)वेदनीये शेषा:।* 
〰️〰️〰️
 _वेदनीये शेषा:।_ 
 *(17)एकादयोभाज्यायुगपदेकस्मिन्नैकोन* 
 *विंशते:।* 
〰️〰️〰️ _एकादयो-भा-ज्या-युगपदे-कस्-मिन्-नैकोन-विञ्-शते:।_ 
 *(18)सामायिकच्छेदोपस्थापनापरिहारविशुद्धिसूक्ष्मसांपराययथाख्यातमिति चारित्रम्।* 
〰️〰️〰️ _सामायिकच्-छेदो-पस्-थापना-परिहार-_ 
 _विशुद् - द्वि- सूक्ष्म - साम् - पराय - यथा - ख्यात-_ 
 _मिति-चारित्-त्रम्।_ 
 *(19)अनशनावमौदर्यवृत्तिपरिसंख्यानरसपरित्यागविविक्तशय्यासनकायक्लेशा बाह्यं* *तप:।* 
〰️〰️〰️ _अनशना-वमौ-दर्-य-वृत्-त्ति-परि-सङ्-ख्यान-रसपरित्-त्याग-विविक्-त-शय्या-सन-कायक्-क्लेशा-बाह्-यन्-तप:।_ 
 *(20)प्रायश्चित्तविनयवैयावृत्त्यस्वाध्यायव्युत्सर्गध्यानान्युत्तरम्।* 
〰️〰️〰️ _प्रायश्-चित्-त्त-विनय-वैया-वृत्-त्यस्-स्वा-_  _ध्या-यव्-व्युत्सर्-गध्-ध्याना-न्युत्-तरम्।_ 
 *(21)नवचतुर्दशपञ्चद्विभेदा* *यथाक्रमं प्राग्ध्यानात्।* 
〰️〰️〰️ _नव-चतुर्-दश-पञ्चद्-द्वि-भेदा-यथा-क्रमम्-प्राग्-ध्यानात्।_ 
 *(22)आलोचनाप्रतिक्रमणतदुभयविवेकव्युत्सर्गतपश्छेदपरिहारोपस्थापना:।* 
〰️〰️〰️ _आलोचना-प्रतिक्-क्रमण-तदुभय-विवेकव्-व्युत्सर्-ग-तपश्-छेद-परिहारो-पस्-थापना:।_ 
 *(23)ज्ञानदर्शनचारित्रोपचारा:।* 
〰️〰️〰️
 _ज् ञान-दर्-शन-चारित्-त्रो-पचारा:।_ 
 *(24)आचार्योपाध्यायतपस्विशैक्ष्यग्लानगणकुलसङ्घसाधुमनोज्ञानाम्।* 
〰️〰️〰️ _आचार्-यो-पा-ध्याय-तपस्-स्वि-शैक्ष्यग्-_ 
 _ग्लान-गण-कुल-सङ्-घ-साधु-मनो-ज् ञा-नाम्।_ 
 *(25)वाचनापृच्छनानुप्रेक्षाम्नायधर्मोपदेशा:।* 
〰️〰️〰️ _वाचना-पृच्-छनानुप्-प्रेक्षाम्-नाय-_ 
 _धर्-मो-पदेशा:।_ 
 *(26)बाह्याभ्यन्तरोपध्यो:।* 
〰️〰️〰️ _बाह्-या-भ्यन्-तरो-पध्-ध्यो:।_ 
 *(27)उत्तमसंहननस्यैकाग्रचिन्तानिरोधो* *ध्यानमान्तर्मुहूर्तात्।* 
〰️〰️〰️ _उत्-त्तम-सङ्-हन-नस्-स्यै-का-ग्र-चिन्-ता-_ 
 _निरोधो-ध्यान-मान्-तर्-मुहूर्-तात्।_ __ 
 *(28)आर्त्तरौद्रधर्म्यशुक्लानि।* 
〰️〰️〰️ _आर्-त्त-रौ-द्र-धर्-म्य-शुक्-लानि।_ 

 *(29)परे मोक्षहेतू।* 
〰️〰️〰️
 _परे-मोक्ष-हेतू।_ 

 *(30)आर्त्तममनोज्ञस्य संप्रयोगे तद्विप्रयोगाय स्मृतिसमन्वाहार:।* 
〰️〰️〰️ _आर्-त्त-म-मनो-ज्-ञस्-स्य-सम्-प्रयोगे-तद्-विप्-प्रयोगायस्-मृति-समन्-वाहार:।_ 

 *(31)विपरीतं मनोज्ञस्य।* 
〰️〰️〰️
 _विपरीतम्-मनो-ज् ञस्-स्य।_ 

 *(32)वेदनायाश्च।* 
〰️〰️〰️
 _वेदना-याश्-च।_ 

 *(33)निदानं च।* 
〰️〰️〰️
 _निदानञ्-च।_ 
 *(34)तदविरतदेशविरतप्रमत्तसंयतानाम्।* 
〰️〰️〰️ _त-दविरत-देशविरतप्-प्रमत्-त्त-सञ्यता-नाम्।_ 
 *(35)हिंसानृतस्तेयविषयसंरक्षणेभ्योरौद्रमविरतदेशविरतयो:।* 
〰️〰️〰️ _हिन्-सा-नृतस्-तेय-विषय-सण्-रक्क्षणे-भ्यो-_ 
 _रौद्-मविरत-देश-विरतयो:।_ 
 *(36)आज्ञापायविपाकसंस्थानविचयायधर्म्यम्।* 
〰️〰️〰️ _आ-ज्-ञा-पाय-विपाक-सन्-स्-थान-विचयाय-धर्-म्यम्।_ 

 *(37)शुक्लेचाद्ये पूर्वविद:।* 
〰️〰️〰️
 _शुक्-ले-चा-द्ये पूर्-व-विद:।_ 

 *(38)परे केवलिन:।* 
〰️〰️〰️
 _परे-के-वलिन:।_ 
 *(39)पृथक्त्वैकत्ववितर्कसूक्ष्मक्रियाप्रतिपातिव्युपरतक्रियानिवर्तीनि।* 
〰️〰️〰️ _पृथक्-त्वै-कत्-त्व-वितर्-क-_ _सूक्ष्मक्-क्रिया-प्रतिपातिव्-व्यु-परतक्-क्रिया-निवर्-तीनि।_ 
 *(40)त्र्येकयोगकाययोगायोगानाम्।* 
〰️〰️〰️ _त्र्येक-योग-काययोगा-योगानाम्।_ 
 *(41)एकाश्रयेसवितर्कवीचारेपूर्वे।* 
〰️〰️〰️ _एका-श्रये-स-वितर्-क-वीचारे-पूर्-वे।_ 

 *(42)अवीचारं द्वितीयम्* 
〰️〰️〰️
 _अवी-चारन्-द्विती-यम्।_ 

 *(43)वितर्क:श्रुतम्।* 
〰️〰️〰️
 _वितर्-क:-श्रुतम्।_ 
 *(44)वीचारोऽर्थव्यञ्जनयोगसंक्रान्ति।* 
〰️〰️〰️ _वीचारोर्-ऽथव्-व्यञ्जन-योग-सङ्-क्रान्-ति।_ 
 *(45)सम्यग्दृष्टिश्रावकविरतानन्तवियोजक* 
 *दर्शनमोहक्षपकोपशमकोपशान्तमोहक्षपकक्षीणमोहजिना:क्रमशोऽसंख्येयगुणनिर्जरा:।* 
〰️〰️〰️ _सम्-म्यग्-दृष्-टिश्-श्रावक-_ _विरता-नन्-त-वियोजक-दर्-_ _शन-मोहक्-क्षप-कोपशम-_ 
 _कोपशान्त-मोहक्-क्षपकक्-_ _क्षीणमोह-जिना:-_ 
 _क्रमशो-ऽसङ्-ख्येय-गुण-निर्-जरा:।_ 
 *(46)पुलाकवकुशकुशीलनिर्ग्रन्थस्नातका निर्ग्रन्था:।* 
〰️〰️〰️ _पुलाक-वकुश-कुशील-निर्-ग्रन्-थस्-नातका-निर्-ग्रन्-था:।_ 
 *(47)संयमश्रुतप्रतिसेवनातीर्थलिङ्गलेश्योपपादस्थानविकल्पत:साध्या:।* 
〰️〰️〰️ _सञ्यमश्-श्रुतप्-प्रति-सेवना-तीर्-थ-लिङ्-ग_ 
 _ले-श्योप-पादस्-थान-विकल्-पत:-सा-ध्या:।_ 

 *इति तत्त्वार्थसूत्रे मोक्षशास्त्रे नवमोऽध्याय:*

Comments

Popular posts from this blog

जैन ग्रंथों का अनुयोग विभाग

जैन धर्म में शास्त्रो की कथन पद्धति को अनुयोग कहते हैं।  जैनागम चार भागों में विभक्त है, जिन्हें चार अनुयोग कहते हैं - प्रथमानुयोग, करणानुयोग, चरणानुयोग और द्रव्यानुयोग।  इन चारों में क्रम से कथाएँ व पुराण, कर्म सिद्धान्त व लोक विभाग, जीव का आचार-विचार और चेतनाचेतन द्रव्यों का स्वरूप व तत्त्वों का निर्देश है।  इसके अतिरिक्त वस्तु का कथन करने में जिन अधिकारों की आवश्यकता होती है उन्हें अनुयोगद्वार कहते हैं। प्रथमानुयोग : इसमें संयोगाधीन कथन की मुख्यता होती है। इसमें ६३ शलाका पुरूषों का चरित्र, उनकी जीवनी तथा महापुरुषों की कथाएं होती हैं इसको पढ़ने से समता आती है |  इस अनुयोग के अंतर्गत पद्म पुराण,आदिपुराण आदि कथा ग्रंथ आते हैं ।पद्मपुराण में वीतरागी भगवान राम की कथा के माध्यम से धर्म की प्रेरणा दी गयी है । आदि पुराण में तीर्थंकर आदिनाथ के चरित्र के माध्यम से धर्म सिखलाया गया है । करणानुयोग: इसमें गणितीय तथा सूक्ष्म कथन की मुख्यता होती है। इसकी विषय वस्तु ३ लोक तथा कर्म व्यवस्था है। इसको पढ़ने से संवेग और वैराग्य  प्रकट होता है। आचार्य यति वृषभ द्वारा रचित तिलोयपन्नत्ति में तीन लोक तथा उ

सम्यक ज्ञान का स्वरूप

*सम्यक ज्ञान का स्वरूप*  मोक्ष मार्ग में सम्यक ज्ञान का बहुत महत्व है । अज्ञान एक बहुत बड़ा दोष है तथा कर्म बंधन का कारण है । अतः अज्ञान को दूर करके सम्यक ज्ञान प्राप्त करने का पूर्ण प्रयास करना चाहिए । परिभाषा -  जो पदार्थ जैसा है, उसे वैसे को वैसा ही जानना, न कम जानना,न अधिक जानना और न विपरीत जानना - जो ऍसा बोध कराता है,वह सम्यक ज्ञान है । ज्ञान जीव का एक विशेष गुण है जो स्‍व व पर दोनों को जानने में समर्थ है। वह पा̐च प्रकार का है–मति, श्रुत, अवधि, मन:पर्यय व केवलज्ञान। अनादि काल से मोहमिश्रित होने के कारण यह स्‍व व पर में भेद नहीं देख पाता। शरीर आदि पर पदार्थों को ही निजस्‍वरूप मानता है, इसी से मिथ्‍याज्ञान या अज्ञान नाम पाता है। जब सम्‍यक्‍त्व के प्रभाव से परपदार्थों से भिन्न निज स्‍वरूप को जानने लगता है तब भेदज्ञान नाम पाता है। वही सम्‍यग्‍ज्ञान है। ज्ञान वास्‍तव में सम्‍यक् मिथ्‍या नहीं होता, परन्‍तु सम्‍यक्‍त्‍व या मिथ्‍यात्‍व के सहकारीपने से सम्‍यक् मिथ्‍या नाम पाता है। सम्‍यग्‍ज्ञान ही श्रेयोमार्ग की सिद्धि करने में समर्थ होने के कारण जीव को इष्ट है। जीव का अपना प्रतिभास तो निश

जैन चित्रकला

जैन चित्र कला की विशेषता  कला जीवन का अभिन्न अंग है। कला मानव में अथाह और अनन्त मन की सौन्दर्यात्मक अभिव्यक्ति है। कला का उद्भव एवं विकास मानव जीवन के उद्भव व विकास के साथ ही हुआ है। जिसके प्रमाण हमें चित्रकला की प्राचीन परम्परा में प्रागैतिहासिक काल से ही प्राप्त होते हैं। जिनका विकास निरन्तर जारी रहा है। चित्र, अभिव्यक्ति की ऐसी भाषा है जिसे आसानी से समझा जा सकता है। प्राचीन काल से अब तक चित्रकला की अनेक शैलियां विकसित हुईं जिनमें से जैन शैली चित्र इतिहास में अपना विशिष्ट स्थान रखती है। जैन चित्रकला के सबसे प्राचीन चित्रित प्रत्यक्ष उदाहरण मध्यप्रदेश के सरगुजा राज्य में जोगीमारा गुफा में मिलते है। जिसका समय दूसरी शताब्दी ईसापूर्व है।१ ग्यारहवीं शताब्दी तक जैन भित्ति चित्र कला का पर्याप्त विकास हुआ जिनके उदाहरण सित्तनवासल एलोरा आदि गुफाओं में मिलते है। इसके बाद जैन चित्रों की परम्परा पोथी चित्रों में प्रारंभ होती है और ताड़पत्रों, कागजों, एवं वस्त्रों पर इस कला शैली का क्रमिक विकास होता चला गया। जिसका समय ११वीं से १५वी शताब्दी के मध्य माना गया। २ जैन धर्म अति प्राचीन एवं अहिंसा प्रधान