*प्रायश्चित्त के दश या नौ भेद* – डॉ. स्वर्णलता जैन, नागपुर मूलाचार में प्रायश्चित्त के भेदों को बताने वाली गाथा निम्न प्रकार है - *आलोयणपडिकमणं, उभयविवेगो तहा विउस्सग्गो।* *तव छेदो मूलं वि य, परिहारो चेव सद्दहणा।।* मूलाचार, 5/165 एवं 11/16 अर्थात् 1- आलोचना, 2- प्रतिक्रमण, 3- तदुभय, 4- विवेक, 5- व्युत्सर्ग, 6- तप, 7- छेद, 8- मूल, 9- परिहार और 10- श्रद्धान - ये प्रायश्चित्त के दश भेद हैं। और देखें, अनगार धर्मामृत, संस्कृत पंजिका, पृष्ठ 513 एवं मूलाचार प्रदीप 1835-37 आचारसार में भी दश भेदों का कथन किया गया है। मात्र वहाँ श्रद्धान के स्थान पर दर्शन शब्द का प्रयोग किया गया है। आचारसार, 6/23-24 मूलाचार की आचारवृत्ति टीका में कहा है कि उक्त दश प्रकार के प्रायश्चित्तों को दोषों के अनुसार देना चाहिए। कुछ दोष आलोचना मात्र से निराकृत हो जाते हैं, कुछ दोष प्रतिक्रमण से दूर किये जाते हैं तो कुछ दोष आलोचना और प्रतिक्रमण - इन दोनों अर्थात् तदुभय प्रायश्चित्त के द्वारा नष्ट किये जाते हैं; कोई दोष विवेक प्रायश्चित...