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Showing posts from 2025

Contribution of Jain Society in India

*Jains have India's highest literacy rate at 94.1%* . 70% of Jains live in the top wealth quintile (Source: NFHS-4, 2018) Jains, less than 0.5 % of India’s population, contribute ~20% of income tax, the highest per capita income tax. Let's discover what makes this community home to the most Indian billionaires.  1. Did you know that Seth P Roychand, who started India's first stock exchange *(Bombay Stock Exchange* ), was a Jain? 2. India's largest space organisation, *ISRO* (Indian Space Research Organisation), was founded by Jain, Dr. Vikram Sarabhai. 3. India's first ship manufacturing company, the *Hindustan Shipyard and HAL* , was founded by Jain-Seth Walchand Hirachand Doshi. 4. The largest airline company in India, *Indigo Airlines,* was founded by Rakesh Gangwal. 5. The largest bullion company in India, *RSBL* , was founded by Jain Prithviraj Kothari (Riddhi Siddhi Bullions) 6. The largest diamond company in India, *Rosy blue* founded by Jain-Russell Mehta 7....

णमोकार महामंत्र के 9 रोचक तथ्य

9 अप्रैल 2025 विश्व नवकार सामूहिक मंत्रोच्चार पर विशेष – *णमोकार महामंत्र के 9 रोचक तथ्य* डॉ.रूचि अनेकांत जैन प्राकृत विद्या भवन ,नई दिल्ली १.   यह अनादि और अनिधन शाश्वत महामन्त्र है  ।यह सनातन है तथा श्रुति परंपरा में यह हमेशा से रहा है । २.    यह महामंत्र प्राकृत भाषा में रचित है। इसमें कुल पांच पद,पैतीस अक्षर,अन्ठावन मात्राएँ,तीस व्यंजन और चौतीस स्वर हैं । ३.   लिखित रूप में इसका सर्वप्रथम उल्लेख सम्राट खारवेल के भुवनेश्वर (उड़ीसा)स्थित सबसे बड़े शिलालेख में मिलता है ।   ४.   लिखित आगम रूप से सर्वप्रथम इसका उल्लेख  षटखंडागम,भगवती,कल्पसूत्र एवं प्रतिक्रमण पाठ में मिलता है ५.   यह निष्काम मन्त्र है  ।  इसमें किसी चीज की कामना या याचना नहीं है  । अन्य सभी मन्त्रों का यह जनक मन्त्र है  । इसका जाप  9 बार ,108 बार या बिना गिने अनगिनत बार किया जा सकता है । ६.   इस मन्त्र में व्यक्ति पूजा नहीं है  । इसमें गुणों और उसके आधार पर उस पद पर आसीन शुद्धात्माओं को नमन किया गया है...

भर्तृहरिविरचितम् नीतिशतकम्

भर्तृहरिविरचितम् नीतिशतकम् मंगलाचरणम्  दिक्‍कालाद्यनवच्छिन्‍नानन्‍तचिन्‍मात्रमूर्तये । स्‍वानुभूत्‍येकमानाय नम: शान्‍ताय तेजसे ।। १ ।। अर्थ: दशों दिशाओं और तीनो कालों से परिपूर्ण, अनंत और चैतन्य-स्वरुप अपने ही अनुभव से प्रत्यक्ष होने योग्य, शान्त और तेजरूप परब्रह्म को नमस्कार है । यां चिन्तयामि सततं मयि सा विरक्ता,  साप्यन्यमिच्छति जनं स जनोऽन्यसक्तः। अस्मत्कृते च परितुष्यति काचिदन्या,  धिक् तां च तं च मदनं च इमां च मां च ।। २ ।।  अर्थ: मैं जिसके प्रेम में रात दिन डूबा रहता हूँ - किसी क्षण भी जिसे नहीं भूलता, वह मुझे नहीं चाहती, किन्तु किसी और ही पुरुष को चाहती है । वह पुरुष किसी और ही स्त्री को चाहता है । इसी तरह वह स्त्री मुझे प्यार करती है । इसलिए उस स्त्री को, मेरी प्यारी के यार को, प्यारी को, मुझको और कामदेव को, जिसकी प्रेरणा से ऐसे ऐसे काम होते हैं, अनेक धिक्कार हैं ।  अज्ञः सुखमाराध्यः सुखतरमाराध्य्ते विशेषज्ञ: । ज्ञानलवदुर्विदग्धं ब्रह्मापि नरं न रञ्जयति  ।। ३ ।।  अर्थ: हिताहितज्ञानशून्य नासमझ को समझाना बहुत आसान है, उचित और अनुच...