9 अप्रैल 2025 विश्व नवकार सामूहिक मंत्रोच्चार पर विशेष –
*णमोकार महामंत्र के 9 रोचक तथ्य*
डॉ.रूचि अनेकांत जैन
प्राकृत विद्या भवन ,नई दिल्ली
१. यह अनादि और अनिधन शाश्वत महामन्त्र है ।यह सनातन है तथा श्रुति परंपरा में यह हमेशा से रहा है ।
२. यह महामंत्र प्राकृत भाषा में रचित है। इसमें कुल पांच पद,पैतीस अक्षर,अन्ठावन मात्राएँ,तीस व्यंजन और चौतीस स्वर हैं ।
३. लिखित रूप में इसका सर्वप्रथम उल्लेख सम्राट खारवेल के भुवनेश्वर (उड़ीसा)स्थित सबसे बड़े शिलालेख में मिलता है ।
४. लिखित आगम रूप से सर्वप्रथम इसका उल्लेख षटखंडागम,भगवती,कल्पसूत्र एवं प्रतिक्रमण पाठ में मिलता है
५. यह निष्काम मन्त्र है । इसमें किसी चीज की कामना या याचना नहीं है । अन्य सभी मन्त्रों का यह जनक मन्त्र है । इसका जाप 9 बार ,108 बार या बिना गिने अनगिनत बार किया जा सकता है ।
६. इस मन्त्र में व्यक्ति पूजा नहीं है । इसमें गुणों और उसके आधार पर उस पद पर आसीन शुद्धात्माओं को नमन किया गया है ।
७. ‘ॐ’ प्रणवमंत्र में अरहंत, सिद्ध, आचार्य, उपाध्याय और सर्वसाधु ये पांचों परमेष्ठी समाविष्ट हैं। अरिहंत का प्रथम अक्षर ‘अ, अशरीर (सिद्ध) का ‘अ’, आचार्य का ‘आ’, उपाध्याय का ‘उ’, और मुनि (साधु) का ‘म्’ इस प्रकार पंचपरमेष्ठियों के प्रथम अक्षर (अ + अ + आ + उ + म्) को लेकर‘ ॐ’ शब्द बना है।
८. जैन धर्म के सभी सम्प्रदायों में यह समान रूप से मान्य परम आध्यात्मिक मन्त्र है । इसका पाठ सभी जीव कर सकते हैं ।
९. यह महामंत्र सभी पापों का नाशक तथा सभी मंगलों में प्रथम मंगल है।
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