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Showing posts from August, 2025

अनेकांत और स्याद्वाद के संबंध में कुछ आधुनिक मनीषियों के उद्गार

  अनेकांत और स्याद्वाद के संबंध में कुछ आधुनिक मनीषियों के उद्गार जिन आधुनिक मनीषियों ने अनेकांत और स्याद्वाद प्रणाली पर मनन कर उनके संबंध में निष्पक्ष भाव से उनकी यथार्थता, उपयोगिता तथा महत्व पर जो अपने उद्गार समय—समय पर प्रकट किये है उनमें से कुछ का संकलन उन्हीं के शब्दों में निम्नलिखित है— गवर्नमेंट संस्कृत कॉलेज बनारस के भूतपूर्व प्रिंसिपल श्री मंगलदेवजी शास्त्री ने लिखा है कि— ‘भारतीय दर्शन के इतिहास में जैन दर्शन की एक अनोखी देन (अनेकान्त) है। यह स्पष्ट है कि किसी तत्व के विषय में कोई भी तात्विक दृष्टि एकान्तिक नहीं हो सकती, प्रत्येक तत्व में अनेकरूपता स्वाभाविक होनी चाहिये और कोई भी दृष्टि उन सबका एक साथ तात्विक प्रतिपादन नहीं कर सकती। इसी सिद्धांत को जैन दर्शन की परिभाषा में अनेकांत दर्शन कहा गया है। जैनदर्शन का तो यह आधार स्तम्भ है ही, वास्तव में इसे प्रत्येक दार्शनिक विचारधारा के लिये भी आवश्यक मानना चाहिये। बौद्धिक स्तर पर इस सिद्धांत के मान लेने पर मनुष्य के नैतिक और बौद्धिक व्यवहार में भी एक महत्वपूर्ण परिवर्तन आ जाता है। चरित्र ही मानव जीवन का सार है। चरित्र के लिये ...