स्थानांगसूत्र में पाँच निर्ग्रन्थों का स्वरूप..एक तुलनात्मक विवेचन. प्रो० फूलचन्द जैन, प्रेमी- वाराणसी आचारांगादि द्वादशांगों में स्थानांगसूत्र ऐसा तृतीय अंग आगम है, जिसमें प्रथमानुयोग आदि चारों अनुयोगों का अक्षय ज्ञान भण्डार समाहित है। दस स्थानों (अध्ययनों) में विभक्त इस आगम में क्रमश: एक से लेकर बढ़ते हुए क्रम से दस संख्या तक का विविध विषयों का सूत्रात्मक शैली में तात्त्विक विवेचन अद्भुत विधि से किया गया है। इसके अध्ययन से जहाँ हमें चरम तीर्थंकर महावीर के वचनामृत का पान करने का गौरव प्राप्त होता है, वहीं हमें इसकी वाचना में सम्मिलित उन महान आचार्यों की अद्भुत उच्च मेधा के भी दर्शन हो जाते हैं। इसे यदि हम भारतीय ज्ञान परम्परा का विश्वकोश कहें तो अत्युक्ति नहीं होगी। यहाँ प्रस्तुत है स्थानांग सूत्र के पंचम स्थान में वर्णित निर्ग्र्ंथों का तुलनात्मक स्वरूप विवेचन- इसमें ( सूत्र संख्या 184 से...