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Showing posts from September, 2025

स्थानांगसूत्र में पाँच निर्ग्रन्थों का स्वरूप..एक तुलनात्मक विवेचन.

स्थानांगसूत्र में पाँच निर्ग्रन्थों का स्वरूप..एक तुलनात्मक विवेचन.                      प्रो० फूलचन्द जैन, प्रेमी- वाराणसी                 आचारांगादि द्वादशांगों में स्थानांगसूत्र ऐसा तृतीय अंग आगम है, जिसमें प्रथमानुयोग आदि चारों अनुयोगों का अक्षय ज्ञान भण्डार समाहित है। दस स्थानों (अध्ययनों) में विभक्त इस आगम में क्रमश: एक से लेकर बढ़ते हुए क्रम से दस संख्या तक का विविध विषयों का सूत्रात्मक शैली में तात्त्विक विवेचन अद्‌भुत विधि से किया गया है। इसके अध्ययन से जहाँ हमें चरम तीर्थंकर महावीर के वचनामृत का पान करने का गौरव प्राप्त होता है, वहीं हमें इसकी वाचना में सम्मिलित उन महान आचार्यों की अद्‌भुत उच्च मेधा के भी दर्शन हो जाते हैं। इसे यदि हम भारतीय ज्ञान परम्परा का विश्वकोश कहें तो अत्युक्ति नहीं होगी।     यहाँ प्रस्तुत है स्थानांग सूत्र के पंचम स्थान में वर्णित निर्ग्र्ंथों का तुलनात्मक स्वरूप विवेचन-              इसमें ( सूत्र संख्या 184 से...

जैन का शानदार इतिहास

🔥 *जैन  का शानदार इतिहास* 🔥 ♦️ जैन संस्कृति विश्व की महान एवं प्राचीन संस्कृतियों में से एक है।  👉  हड़प्पा एवं मोहनजोदड़ो की खुदाई में प्राप्त मुद्रा एवं उस पर अंकित ऋषभदेव का सूचक बैल तथा सील नं.449 पर स्पष्ठ रूप से जिनेश्वर शब्द का अंकन होना तथा 👉 वेदों की 141 ऋचाओं में भगवान ऋषभदेव का आदर पूर्वक उल्लेख इस संस्कृति को वेद प्राचीन संस्कृति सिद्ध करती हैं। ♦️ हमारे देश भारत वर्ष का नाम ऋषभदेव के पुत्र चक्रवर्ती भरत के नाम से विख्यात है जो कि जग जाहिर प्रमाण है। 👉 विष्णु पुराण में भी इसका ऊल्लेख मिलता है। हमारे देश के प्रधान मंत्री स्व. जवाहर लाल नेहरु ने उड़ीसा के खंडगिरी स्थित खारवेल के शिला लेख पर "भरतस्य भारत" रूप प्रशस्ति को देख कर ही इस देश का संवैधानिक नामकरण भारत किया था। ♦️ राजा श्रेणिक, सम्राट चंद्रगुप्त मौर्य , कलिंग नरेश खारवेल एव सेनापति चामुंडराय जैन इतिहास के महान शासक हुए है। ♦️ जैन पुराणों के अनुसार सती चंदन बाला, मैना सुंदरी एवं रानी रेवती आदि अनेक महान सम्यकदृष्टि जैन नारीयां हुई है। 👉 नारी स्वतंत्रता के प्रतीक भगवान महावीर के चतुर्विधि संघ में कु...

संस्कृत की प्रसिद्ध सूक्तियां

संस्कृत की प्रसिद्ध सूक्तियां  ------------------- 1. संघे शक्ति: कलौ युगे। – एकता में बल है। 2. अविवेक: परमापदां पद्म। – अज्ञानता विपत्ति का घर है। 3. कालस्य कुटिला गति:। – विपत्ति अकेले नहीं आती। 4. अल्पविद्या भयंकरी। – नीम हकीम खतरे जान। 5. बह्वारम्भे लघुक्रिया। – खोदा पहाड़ निकली चुहिया। 6. वरमद्य कपोत: श्वो मयूरात। – नौ नगद न तेरह उधार। 7. वीरभोग्य वसुन्धरा। – जिकसी लाठी उसकी भैंस। 8. शठे शाठ्यं समाचरेत् – जैसे को तैसा। 9. दूरस्था: पर्वता: रम्या:। – दूर के ढोल सुहावने लगते हैं। 10. बली बलं वेत्ति न तु निर्बल : जौहर की गति जौहर जाने। 11. अतिपर्दे हता लङ्का। – घमंडी का सिर नीचा। 12. अर्धो घटो घोषमुपैति नूनम्। – थोथा चना बाजे घना। 13. कष्ट खलु पराश्रय:। – पराधीन सपनेहुँ सुख नाहीं। 14. क्षते क्षारप्रक्षेप:। – जले पर नमक छिड़कना। 15. विषकुम्भं पयोमुखम। – तन के उजले मन के काले। 16. जलबिन्दुनिपातेन क्रमश: पूर्यते घट:। – बूँद-बूँद घड़ा भरता है। 17. गत: कालो न आयाति। – गया वक्त हाथ नहीं आता। 18. पय: पानं भुजङ्गानां केवलं विषवर्धनम्। – साँपों को दूध पिलाना उनके विष को बढ़ाना है। 19. सर्...