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Showing posts from April, 2020

द्रव्यसंग्रह’ का प्राचीन पद्यानुवाद

*‘द्रव्यसंग्रह’ का प्राचीन पद्यानुवाद*                                                                                                                              -प्रो. वीरसागर जैन             आचार्य नेमिचंद्र सिद्धान्तचक्रवर्ती की अनुपम  कृति  ‘द्रव्यसंग्रह’  के आज तो अनेक हिंदी-पद्यानुवाद  हो चुके हैं, किन्तु हममें से अधिकांश लोग यह नहीं जानते हैं कि इसका प्रथम हिंदी-पद्यानुवाद आज से लगभग साढ़े तीन सौ वर्ष पूर्व विक्रम संवत् १७३१ में  भैया भगवतीदासजी  ने किया था | भैया भगवतीदासजी अपने समय में  ‘द्रव्यसंग्रह’ को पढ़ाने में विशेष कुशल माने जाते थे और इसीलिए  ‘द्रव्यसंग्रह’ के प्रचार-प्रसार में उनका बड़ा भ...

क्या हनुमान आदि वानर बन्दर थे?

क्या हनुमान आदि वानर बन्दर थे? डॉ विवेक आर्य  हनुमान जयंती की हार्दिक शुभकामनायें  इन प्रश्नों का उत्तर वाल्मीकि रामायण से ही प्राप्त करते है।  1.  प्रथम “वानर” शब्द पर विचार करते है। सामान्य रूप से हम “वानर” शब्द से यह अभिप्रेत कर लेते है कि वानर का अर्थ होता है "बन्दर"  परन्तु अगर इस शब्द का विश्लेषण करे तो वानर शब्द का अर्थ होता है वन में उत्पन्न होने वाले अन्न को ग्रहण करने वाला। जैसे पर्वत अर्थात गिरि में रहने वाले और वहाँ का अन्न ग्रहण करने वाले को गिरिजन कहते है।  उसी प्रकार वन में रहने वाले को वानर कहते है। वानर शब्द से किसी योनि विशेष, जाति , प्रजाति अथवा उपजाति का बोध नहीं होता। 2. सुग्रीव, बालि आदि का जो चित्र हम देखते है उसमें उनकी पूंछ लगी हुई दिखाई देती हैं।  परन्तु उनकी स्त्रियों के कोई पूंछ नहीं होती? नर-मादा का ऐसा भेद संसार में किसी भी वर्ग में देखने को नहीं मिलता। इसलिए यह स्पष्ट होता हैं की हनुमान आदि के पूंछ होना केवल एक चित्रकार की कल्पना मात्र है। 3. किष्किन्धा कांड (3/28-32) में जब श्री रामचंद्र जी महाराज की पहली बार ऋष्यमूक पर्...

॥ भक्तामरस्तोत्र ॥

॥ भक्तामरस्तोत्र ॥ ॥ भक्तामरस्तोत्र ॥ भक्तामर-प्रणत-मौलिमणि-प्रभाणा - मुद्योतकं दलित-पाप-तमोवितानम् । सम्यक् प्रणम्य जिन पादयुगं युगादा- वालंबनं भवजले पततां जनानाम्॥ १॥ यः संस्तुतः सकल-वाङ्मय- तत्व-बोधा- द्-उद्भूत- बुद्धिपटुभिः सुरलोकनाथैः। स्तोत्रैर्जगत्त्रितय चित्त-हरैरुदरैः स्तोष्ये किलाहमपि तं प्रथमं जिनेन्द्रम्॥ २॥ बुद्ध्या विनाऽपि विबुधार्चित पादपीठ स्तोतुं समुद्यत मतिर्विगतत्रपोऽहम् । बालं विहाय जलसंस्थितमिन्दु बिम्ब - मन्यः क इच्छति जनः सहसा ग्रहीतुम् ॥ ३॥ वक्तुं गुणान् गुणसमुद्र शशाङ्क्कान्तान् कस्ते क्षमः सुरगुरुप्रतिमोऽपि बुद्ध्या । कल्पान्त - काल् - पवनोद्धत - नक्रचक्रं को वा तरीतुमलमम्बुनिधिं भुजाभ्याम् ॥ ४॥ सोऽहं तथापि तव भक्ति वशान्मुनीश कर्तुं स्तवं विगतशक्तिरपि प्रवृत्तः । प्रीत्यऽऽत्मवीर्यमविचार्य मृगो मृगेन्द्रं नाभ्येति किं निजशिशोः परिपालनार्थम् ॥ ५॥ अल्पश्रुतं श्रुतवतां परिहासधाम् त्वद्भक्तिरेव मुखरीकुरुते बलान्माम् । यत्कोकिलः किल मधौ मधुरं विरौति तच्चारुचूत - कलिकानिकरैकहेतु ॥ ६॥ त्वत्संस्तवेन भवसंतति - सन्निबद्धं पापं क्षणात् क्षयमुपैति शरीर भाजाम्। आक्र...

खल कौन ?

खलः सर्षपमात्राणि परच्छिद्राणि पश्यति। आत्मनो बिल्वमात्राणि पश्यन्नपि न पश्यति।। प्रश्न-  खल कौन है? उत्तर- जो व्यक्ति दूसरों के अतिलघु (सरसों के दाने के समान)दोषों को तो देखता है,परन्तु अपने (बिल्वफल के समान) अतिस्थूल दोषों को देखते हुए भी नहीं देखता। विमर्ष- दूरवीन सदृश तीक्ष्ण कुटिल बुद्धि से परदोष देखना , उनका मनोयोग पूर्वक मनन करना ,तथा मिश्रण करके उसका यत्र तत्र बखान करना ।इतना परिश्रम करने पर भी प्राप्त क्या हुआ। स्वपुण्य की हानि तथा पर पापों की संप्राप्ति। पर निंदा सम अघ न ..। शिक्षा- कौन क्या करता है उससे मुझे क्या? मैं अपनी आंखों से किसी के भी दुर्गुण नहीं देखुंगा। अपने कानों से परदोष नहीं सुनुंगा। अपनी जिह्वा से परदोषों का वर्णन नहीं करुंगा।

अहिंसा

🌹 *अहिंसा परमोधर्म:*                               ✍️ डॉ रंजना जैन दिल्ली         *'अत्ता चेव अहिंसा' का मूलमंत्र भारतीय संस्कृति का प्राणतत्त्व रहा है। इस सूत्र के अनुसार प्राणीमात्र का स्वभाव अहिंसक है। भले ही सिंह आदि प्राणी संस्कारवश/परिस्थितिवश भोजनादि के लिए हिंसा करते भी हैं, परन्तु वे भी पूर्णतः हिंसक नहीं है। अपने बच्चों पर ममता, दया एवं रक्षा की भावना उनमें अहिंसा के अस्तित्व को प्रमाणित करती है।*          *अहिंसा वीरों का आभूषण है। क्रोध, बैर, झूठ, चोरी, दुराचार, अनावश्यक-संग्रह, छल-प्रपंच आदि की दुष्प्रवृत्तियाँ अहिंसक-मानस में कभी नहीं पनपती हैं।* इसीलिए 'महर्षि पतंजलि' ने लिखा है कि --      *"अहिंसा-प्रतिष्ठायां तत्सन्निधौ वैरत्याग:।"*                          --(योगसूत्र, 2/35)          अर्थात् *जब जीवन में अहिंसा की भावना प्रतिष्ठित हो जाती है, तो व...

भगवान् महावीर की दृष्टि में लॉक डाउन

*भगवान् महावीर की दृष्टि में लॉक डाउन* *प्रो अनेकांत कुमार जैन*,नई दिल्ली भगवान महावीर की वाणी के रूप में प्राकृत तथा संस्कृत भाषा में रचित हजारों वर्ष प्राचीन  शास्त्रों में गृहस्थ व्यक्ति को बारह व्रतों की शिक्षा दी गई है जिसमें चार शिक्षा व्रत ग्रहण की बात कही है ,जिसमें एक व्रत है  *देश व्रत* । गृहस्थ के जीवन जीने के नियमों को बताने वाले सबसे बड़े संविधान वाला पहला संस्कृत का  ग्रंथ *रत्नकरंड श्रावकाचार* में इसका प्रमाणिक उल्लेख है जिसकी रचना ईसा की द्वितीय शताब्दी में जैन आचार्य समंतभद्र ने की थी ।अन्य ग्रंथों में भी इसका भरपूर वर्णन प्राप्त है ।  कोरोना वायरस के कारण वर्तमान में जो जनता कर्फ्यू और लॉक डाउन आवश्यक प्रतीत हो रहा है उसकी तुलना हजारों वर्ष प्राचीन भारतीय संस्कृत के शास्त्रों में प्रतिपादित देश व्रत से की जा सकती है । *देशावकाशिकं स्यात्कालपरिच्छेदनेन देशस्य ।* *प्रत्यहमणुव्रतानां प्रतिसंहारो विशालस्य* ॥ ९२ ॥ *गृहहारिग्रामाणां क्षेत्रनदीदावयोजनानां च ।* *देशावकाशिकस्य स्मरन्ति सीम्नां तपोवृद्धाः* ॥ ९३ ॥ *संवत्सरमृमयनं मासचतुर्मासपक्षमृक्षं च ।* *देश...