खलः सर्षपमात्राणि परच्छिद्राणि पश्यति।
आत्मनो बिल्वमात्राणि पश्यन्नपि न पश्यति।।
प्रश्न- खल कौन है?
उत्तर- जो व्यक्ति दूसरों के अतिलघु (सरसों के दाने के समान)दोषों को तो देखता है,परन्तु अपने (बिल्वफल के समान) अतिस्थूल दोषों को देखते हुए भी नहीं देखता।
विमर्ष-
दूरवीन सदृश तीक्ष्ण कुटिल बुद्धि से परदोष देखना , उनका मनोयोग पूर्वक मनन करना ,तथा मिश्रण करके उसका यत्र तत्र बखान करना ।इतना परिश्रम करने पर भी प्राप्त क्या हुआ।
स्वपुण्य की हानि तथा पर पापों की संप्राप्ति।
पर निंदा सम अघ न ..।
शिक्षा-
कौन क्या करता है उससे मुझे क्या?
मैं अपनी आंखों से किसी के भी दुर्गुण नहीं देखुंगा।
अपने कानों से परदोष नहीं सुनुंगा। अपनी जिह्वा से परदोषों का वर्णन नहीं करुंगा।
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