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Showing posts from April, 2023

साहित्य में भवितव्यता

*संस्कृत-साहित्य में भवितव्यता*    यथा यथास्य प्राप्तव्यं प्राप्नोत्येव तथा तथा। भवितव्यं यथा यच्च भवत्येव तथा तथा॥ पुरुष को जो वस्तु जिस प्रकार मिलने वाली होती है, वह उस प्रकार मिल ही जाती है। जिस वस्तु की जैसी होनहार होती है वह वैसी होती ही है। - वेदव्यास (महाभारत, शांतिपर्व, २२६।१०)   न हि सिद्धवाक्यान्युत्क्रम्य गच्छति विधिः सुपरीक्षितानि। भवितव्यता, सिद्धों के सुपरीक्षित वचनों का उल्लंघन नहीं करती । - भास (स्वप्नवासवदत्ता, १1११)   भवितव्यतानुविधायीनि बुद्धीन्द्रियाणि। जैसी होनी होती है, वैसी ही बुद्धि व इन्द्रियां भी हो जाती हैं। - कालिदास (विक्रमोर्वशीय, तृतीय अंक)   भवितव्यानां द्वाराणि भवन्ति सर्वत्र। अवश्यंभावी घटनाओं के लिए सर्वत्र ही द्वार (मार्ग) हो जाते हैं। - कालिदास (अभिज्ञानशाकुंतल, १।१६)   भवितव्यता खलु बलवती। होनहार प्रबल होती है। - कालिदास (अभिज्ञानशाकुंतल, ६।६ से पूर्व)   प्रायः शुभं च विदधात्यशुभं च जन्तोः सर्वकशा भगवती भवितव्यतैव । सबको पीड़ित करने वाली भगवती भवितव्यता ही प्रायः प्राणी के शुभ और अशुभ का विधान करती है। - भवभूति (मा...

जैन मनीषी पं. फूलचन्द्र सिद्धान्तशास्त्री जी

*पं. फूलचन्द्र सिद्धान्तशास्त्री*    पं. श्री कैलाशचन्द्रजी का यह कथन कि 'हम तो उन्हीं के अनुवादों को पढ़कर सिद्धान्तग्रन्थों के ज्ञाता बने हैं" तथा पं. जगन्मोहनलालजी के ये शब्द 'उम्र में तो वे हमसे चार माह बड़े हैं परन्तु ज्ञान में तो सैकड़ों वर्ष बड़े हैं' से हमें पं. फूलचन्द्र सिद्धान्तशास्त्री के जैन सिद्धान्त के मर्मज्ञ व श्रेष्ठ विद्वान् होने का बोध हो जाता है। पं. फूलचन्द्र सिद्धान्तशास्त्री, पं. जगन्मोहनलाल शास्त्री और पं. कैलाशचन्द्र सिद्धान्ताचार्य -ये तीनों रत्नत्रयी के नाम से विख्यात रहे हैं, इन तीनों में ये प्रधान रत्न थे। ११ अप्रैल सन् १९०१ को उत्तरप्रदेश के सिलावन (झांसी) में एक सामान्य परिवार में आपका जन्म हुआ। श्री दरयावलाल जी सिंघई आपके पिता एवं श्रीमती जानकीबाई माता का नाम था । आप परवार जाति में उद्भूत हुए थे।  *शिक्षा -*  आरम्भिक शिक्षा जन्मभूमि के समीपस्थ खजुरिया ग्राम में प्राप्त की। मौसेरे भाई से तत्त्वार्थसूत्र और बहिन से जिनसहस्रनाम तथा भक्तामर वाचन का अभ्यास किया। आगे की शिक्षा के लिये सर सेठ हुकमचन्द दिगम्बर जैन संस्...