*संस्कृत-साहित्य में भवितव्यता* यथा यथास्य प्राप्तव्यं प्राप्नोत्येव तथा तथा। भवितव्यं यथा यच्च भवत्येव तथा तथा॥ पुरुष को जो वस्तु जिस प्रकार मिलने वाली होती है, वह उस प्रकार मिल ही जाती है। जिस वस्तु की जैसी होनहार होती है वह वैसी होती ही है। - वेदव्यास (महाभारत, शांतिपर्व, २२६।१०) न हि सिद्धवाक्यान्युत्क्रम्य गच्छति विधिः सुपरीक्षितानि। भवितव्यता, सिद्धों के सुपरीक्षित वचनों का उल्लंघन नहीं करती । - भास (स्वप्नवासवदत्ता, १1११) भवितव्यतानुविधायीनि बुद्धीन्द्रियाणि। जैसी होनी होती है, वैसी ही बुद्धि व इन्द्रियां भी हो जाती हैं। - कालिदास (विक्रमोर्वशीय, तृतीय अंक) भवितव्यानां द्वाराणि भवन्ति सर्वत्र। अवश्यंभावी घटनाओं के लिए सर्वत्र ही द्वार (मार्ग) हो जाते हैं। - कालिदास (अभिज्ञानशाकुंतल, १।१६) भवितव्यता खलु बलवती। होनहार प्रबल होती है। - कालिदास (अभिज्ञानशाकुंतल, ६।६ से पूर्व) प्रायः शुभं च विदधात्यशुभं च जन्तोः सर्वकशा भगवती भवितव्यतैव । सबको पीड़ित करने वाली भगवती भवितव्यता ही प्रायः प्राणी के शुभ और अशुभ का विधान करती है। - भवभूति (मा...