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साहित्य में भवितव्यता

*संस्कृत-साहित्य में भवितव्यता* 

 

यथा यथास्य प्राप्तव्यं प्राप्नोत्येव तथा तथा।
भवितव्यं यथा यच्च भवत्येव तथा तथा॥
पुरुष को जो वस्तु जिस प्रकार मिलने वाली होती है, वह उस प्रकार मिल ही जाती है। जिस वस्तु की जैसी होनहार होती है वह वैसी होती ही है। - वेदव्यास (महाभारत, शांतिपर्व, २२६।१०)

 
न हि सिद्धवाक्यान्युत्क्रम्य गच्छति विधिः सुपरीक्षितानि।
भवितव्यता, सिद्धों के सुपरीक्षित वचनों का उल्लंघन नहीं करती । - भास (स्वप्नवासवदत्ता, १1११)

 
भवितव्यतानुविधायीनि बुद्धीन्द्रियाणि।
जैसी होनी होती है, वैसी ही बुद्धि व इन्द्रियां भी हो जाती हैं। - कालिदास (विक्रमोर्वशीय, तृतीय अंक)

 
भवितव्यानां द्वाराणि भवन्ति सर्वत्र।
अवश्यंभावी घटनाओं के लिए सर्वत्र ही द्वार (मार्ग) हो जाते हैं। - कालिदास (अभिज्ञानशाकुंतल, १।१६)
 

भवितव्यता खलु बलवती।
होनहार प्रबल होती है। - कालिदास (अभिज्ञानशाकुंतल, ६।६ से पूर्व)

 
प्रायः शुभं च विदधात्यशुभं च जन्तोः सर्वकशा भगवती भवितव्यतैव ।
सबको पीड़ित करने वाली भगवती भवितव्यता ही प्रायः प्राणी के शुभ और अशुभ का विधान करती है। - भवभूति (मालतीमाधव, ११२४)

 
पलायनेनापि याति निश्चला भवितव्यता।
मनुष्य की अचल भवितव्यता भाग जाने से दूर नहीं होती है। - कल्हण (राजतरंगिणी, ८।२२१)
 

शक्तो न कोऽपि भवितव्यविलंघनायाम्।
भवितव्यता का कोई उल्लंघन नहीं कर सकता। - कल्हण (राजतरंगिणी, ८।२२८०)
*होनहार के सामने सब नतमस्तक*
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*Nothing is impossible in the world*
संसार में कुछ भी अप्राप्य नहीं है -ऐसा कहने वाले चक्रवर्ती,राजा , महाराजाओं ने भी जिनके आतंक से पृथ्वी कांपती रही,कभी हार नहीं मानना स्वीकार नहीं करते थे , उन्होंने भी होनहार के सामने सिर झुका लिया ।
देखिए कविवर भूधरदास जी एक छंद -
*कैसे कैसे बली भूप,भू पर विख्यात भये।*
*वैरी कुल कांपै,नैकु भौंहों के विकार सौं।*
*देव सौं न हारे पुनि दान सौ न हारे और,*
*काहू सौं न हारे, एक हारे होनहार सौं।।*
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*होनहार बहुत बलवान है। पांच समवाय में होनहार भी एक महत्वपूर्ण समवाय है।*
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डॉ अशोक जैन गोयल दिल्ली

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