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Showing posts from November, 2025

जैन साहित्य और संस्कृति की समृद्ध परम्परा : इसका इतिहास संजोने की आवश्यकता

जैन साहित्य और संस्कृति की समृद्ध परम्परा : इसका इतिहास संजोने की आवश्यकता                          प्रो. फूलचन्द जैन प्रेमी,  पूर्व प्रोफेसर एवं अध्यक्ष, जैनदर्शन विभाग, सम्पूर्णानन्द संस्कृतविश्वविद्यालय,वाराणसी।                  भारतीय इतिहास का अध्ययन जब शैशव अवस्था में था, तब कुछ तथाकथित इतिहासकारों की यह भ्रान्त धारणा थी कि जैनधर्म कोई बहुत प्राचीन धर्म नहीं है अथवा यह हिन्दू या बौद्ध धर्म की एक शाखा मात्र है। किन्तु जैसे-जैसे प्राचीन साहित्य, कला, भाषावैज्ञानिक अध्ययन तथा पुरातत्व आदि से सम्बन्धित नये-नये विपुल तथ्य सामने आते गये तथा इनके तुलनात्मक अध्ययन-अनुसन्धान का कार्य आगे बढ़ता जा रहा है वैसे वैसे जैनधर्म-दर्शन, साहित्य एवं संस्कृति की प्राचीनता तथा उसकी गौरवपूर्ण परम्परा को सभी स्वीकार करते जा रहे हैं ।      अब तो कुछ इतिहासकार विविध प्रमाणों के आधार पर यह भी स्वीकृत करने लगे हैं कि आर्यों के कथित आगमन के पूर्व भारत में जो संस्कृति थी वह श्रमण य...