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जैनधर्म में भगवान हनुमान Hanuman

*जैनधर्म में भगवान हनुमान का महत्वपूर्ण स्थान* 
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*जैन धर्म में 20 वें तीर्थंकर भगवान मुनिसुव्रतनाथ के शासन काल में वीर, बलशाली, पराक्रमी  तेजस्वी, ओजस्वी, तपस्वी,मनस्वी  हनुमान का जन्म  पराक्रमी पवन की धर्म -पत्नी अंजना सती के गर्भ से हुआ।* 
*पति -पत्नी का आपस में 22 वर्ष का वियोग भी रहा। हनुमान की पवनपुत्र के रूप में  पहचान रही।* *जनमानस उन्हें वीर, महाबलशाली महावीर के रूप में याद करते हैं।*
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*वह भारतभूमि में कामदेव के रूप में उत्पन्न हुए।सर्वांग सुंदर, दिव्यता और भव्यता से भरपूर मनमोहक उनका अलौकिक शक्तिशाली रूप था। वे वानरवंशी थे। वानर/बंदर नहीं थे। उसके मुकुट में वानर का चिन्ह अंकित था वानरवंशी होने से। उनकी मनोज्ञ मानवाकृति थी।*
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*जैन धर्म में भगवान जन्मते नहीं ,बनते हैं। जन्म से कोई भगवान नहीं होते। सभी महापुरुषों ने मानव देह धारण कर मानवीय मूल्यों को आत्मसात करते हुए अपने आत्मपुरूषार्थ जागृत कर, मोक्षमार्गी बनकर , निजस्वभाव की साधना साधकर ,कर्मकालिमा से मुक्त होकर निर्वाण को प्राप्त करते हैं।*
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*कामदेव हनुमान ने रामचंद्र जी के सहयोगी और सच्चे साथी बनें , कदम- कदम पर उनका साथ दिया और अंत में रामचन्द्र जी की तरह मोक्षगामी बनें। अभी सिद्ध क्षेत्र सिद्धालय में लोक के अंतिम भाग में सिद्ध परमेष्ठि के रूप मे विराजमान हैं।*
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*वंदित्तु सव्व सिद्धे ध्रुव-मचलमणोवमं गदिं पत्ते.*
*सभी सिद्ध भगवंतों को बारंबार नमन और वंदन।*
🙏
*मेरी भी दशा मोक्षगामी महापुरुषों जैसी हो।*
🙏
*प्रस्तुतकर्ता* 
*डॉ अशोक जैन गोयल दिल्ली*

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