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Showing posts from October, 2021

मांसाहार के चौकाने वाले तथ्य

मांस भक्षण पर वैज्ञानिकों की चौकानें वाली  शोध    प्राकृतिक आपदाओं पर हुई नई खोजों के नतीजें मानें तो इन दिनों बढ़ती मांसाहार की प्रवृत्ति भूकंप और बाढ़ के लिए जिम्मेदार है। आइंस्टीन पेन वेव्ज के मुताबिक मनुष्य की स्वाद की चाहत- खासतौर पर मांसाहार की आदत के कारण प्रतिदिन मारे जाने वाले पशुओं की संख्या दिनोंदिन बढ़ रही है। सूजडल (रूस) में पिछले दिनों हुए भूस्खलन और प्राकृतिक आपदा पर हुए एक सम्मेलन में भारत से गए भौतिकी के तीन वैज्ञानिकों ने एक शोधपत्र पढ़ा। डा. मदन मोहन बजाज, डा. इब्राहीम और डा. विजयराजसिंह के अलावा दुनियाँ भर के 23 से अधिक वैज्ञानिकों द्वारा  तैयार किए शोधपत्र के आधार पर कहा गया कि भारत, जापान, नेपाल, अमेरिका, जार्डन, अफगानिस्तान, अफ्रीका में पिछले दिनों आए तीस बड़े भूकंपों में आइंस्टीन पैन वेव्ज (इपीडबल्यू) या नोरीप्शन वेव्ज बड़ा कारण रही है। इन तरंगों की व्याख्या यह की गई है कि कत्लखानों में जब पशु काटे जाते हैं तो उनकी अव्यक्त कराह, फरफराहट, तड़प वातावरण में तब तक रहती है जब तक उस जीव का  माँस, खून, चमड़ी पूरी तरह नष्ट नही होती. उस जीव की कराह...

कहाँ ले जाना है इतना इकट्ठा करके

कहाँ ले जाना है इतना इकट्ठा करके ? *(जिंदगी का कड़वा सच)* 🙏🙏🙏🙏🙏      *दुनियां* की बहुत ही *मशहूर* फैशन डिजाइनर और *लेखिका करीसदा रोड्रिगेज* कैंसर से अपनी *मौत से पहले लिखती* हैं.- 1. मेरे कार गैराज में दुनिया की महंगी से कीमती कारें खड़ी हैं पर मैं आज अस्पताल की व्हीलचेयर पर सफर करने को मजबूर हूं। 2. घर में मेरी अलमारी में एक से एक महंगे कपड़े हैं। हीरे, जवाहरात, गहने  *बेशुमार महंगे जूते* पड़े हैं पर मैं अस्पताल की दी हुई एक सफेद चादर में नंगे पैर लिपटी हुई हूं। 3. मेरे *बैंक में बेशुमार पैसे* हैं पर अब वे मेरे किसी काम के नहीं हैं। 4. मेरा *घर* एक *महल* की तरह है पर मैं *अस्पताल में डबल साइज बेड* पर पड़ी हुई हूं। 5. मैं एक *फाइव स्टार होटल* से दूसरे फाइव स्टार होटल में रूम बदल-बदल कर रहती थी, पर अब *एक लैबोरेट्री* से *दूसरी लैबोरेटरी* के बीच घूम रही हूं। 6. मैंने *करोड़ों* चाहने वालों को अपने *ऑटोग्राफ* दिए हैं, किंतु आज मैंने *डॉक्टर* के आखिरी नोट पर दस्तखत कर दिए हैं। 7.  मेरे पास बालों को संवारने वाले 7 *महंगे ज्वेलरी सेट* हैं लेकिन अब मेरे सिर पर बाल ह...

यदि जैन एक हो जाएं तो

*यदि जैन एक हो जाए, तो पिछले एक हजार वर्ष में जो खोया है, वह अगले 100 वर्षों में वापस पाया जा सकता है!* *बसवन्ना जैन धर्म में जन्मे थे।* कर्नाटक के कन्नड़ साहित्य का लेखन जैनों ने ही किया है। *कर्नाटक के इतिहास के सभी बड़े राजा जैन धर्म के अनुयायी थे। पूरे भारतवर्ष के जैन राजाओं की सूची तो बहुत ही बड़ी है!* *कर्नाटक में गंगा साम्राज्य (सारी शाखाएँ), कदंब साम्राज्य (सारी शाखाएँ), राष्ट्रकूट साम्राज्य, चालुक्य राजवंश (सारी शाखाएँ), अल्लूपा (सारी शाखाएँ), कलचुरी (सारी शाखाएँ), सेउना यादव, शिलाहार (सारी शाखाएँ), होयसला साम्राज्य, पुन्नाट्ट, सैंद्रक, नोलंबा, सिंदा राजवंश (सारी शाखाएँ) जैसे ताकतवर और प्रभावशाली जैन साम्राज्य कर्नाटक के इतिहास में हुए है।* कर्नाटक की पावन भूमि जैनों के इतिहास, योगदान और वैश्विक प्रभुत्व से भरी हुई है। *भारतवर्ष के इतिहास में चंद्रगुप्त मौर्य ही थे जिन्होंने सबसे बड़े भूभाग पर शासन किया था। उनके पश्चात राष्ट्रकूट राजा अमोघवर्षा ने अखंड भारत पर राज्य किया। ये दोनों साम्राट जैन थे।* वैसे तों देश के सभी बड़े साम्राज्यों के राजा *जैन* थे। पूरे विश्व में एक समय पर *४० ...

जैन और अग्रवाल के संबंध का इतिहास

जैन और अग्रवाल के संबंध का इतिहास  प्राचीन काल से ही जैन धर्म का पालन सभी समुदाय और जाति के लोग करते आ रहे हैं । मुख्य रूप से क्षत्रिय ,वैश्य और किसी हद तक ब्राह्मण इस धर्म का पालन आपने जीवन में करते आये हैं ।  सभी तीर्थंकर यदि क्षत्रिय कुल के थे तो कई जैनाचार्य मूल रूप से ब्राह्मण कुल के रहे हैं ,श्रावक अधिकांश वैश्य कुल के थे । इन सबके बाद भी तीर्थंकरों की वाणी में सभी जीवों के उत्थान के लिए धर्म का उपदेश हुआ । निम्न कुल के लोग भी अपने कल्याण के लिए जैन धर्म का पालन करते आये हैं । अग्रवाल जाति के लोग भी पूर्व में मूल रूप से जैन धर्मानुयायी थे ।  इन्होंने जैन धर्म और जैन संस्कृति को बहुत सींचा है। कोलकाता के जितने भी पुराने मंदिर हैं चाहे बड़ा मंदिर हो, चाहे नया मंदिर हो, चाहे पुराने बाडी मन्दिर होता उत्तर पाड़ी मंदिर हो । वहां के प्रसिद्ध बेलगछिया जैन मंदिर के निर्माता अग्रवाल श्रेष्ठी थे ऐसे कई विशाल मंदिरो का निर्माण अग्रवाल जैन बंधूओ ने करवाया था । बनारस में अग्रवाल जैनों का एक बड़ा समुदाय रहता है । यहां के दिगम्बर जैन मंदिर अधिकांश अग्रवाल जैन समाज से ही आत...

दिलबड़ा के जैन मंदिर

व्हाट्सअप पर प्राप्त दिलवाड़ा जैन मंदिर   900 साल पुराना ये जैन मंदिर अपने सौंदर्य के चलते बना अजूबा।        इस दुनिया के अजूबों के बारे में तो आप सभी जानते हैं जो अपनी बेजोड़ संरचना और सुंदरता के लिए जाने जाते हैं। लेकिन आज इस कड़ी में हम आपको एक ऐसे मंदिर के बारे में बताने जा रहे हैं जो अपनी सुंदरता और संरचना में किसी अजूबे से कम नहीं हैं। शिल्प सौंदर्य का बेजोड़ खजाना यह मंदिर 900 साल से भी ज्यादा पुराना बताया जाता है। हम बात कर रहे हैं दिलवाड़ा जैन मंदिर के बारे में। असल में यह पांच मंदिरों का एक समूह है, जो राजस्थान के सिरोही जिले के माउंट आबू नगर में स्थित है। इन मंदिरों का निर्माण 11वीं शताब्दी से लेकर 16वीं शताब्दी के बीच हुआ था। सभी मंदिर जैन धर्म के तीर्थंकरों को समर्पित हैं।        दिलवाड़ा के मंदिरों में सबसे प्राचीन 'विमल वासाही मंदिर' है, जिसे 1031 ईस्वी में बनाया गया था। यह मंदिर जैन धर्म के पहले तीर्थंकर भगवान आदिनाथ को समर्पित है। सफेद संगमरमर से तराश कर बनाए गए इस मंदिर का निर्माण गुजरात के चालुक्य राजवंश के राजा भीम प्रथम के ...

मूर्खों वाली टोपी

*कहानी बड़ी सुहानी*      *ज्ञानचंद की लाल टोपी*        ज्ञानचंद नामक एक जिज्ञासु भक्त था।वह सदैव प्रभुभक्ति में लीन रहता था।रोज सुबह उठकर पूजा- पाठ,ध्यान-भजन करने का उसका नियम था।उसके बाद वह दुकान में काम करने  जाता।   दोपहर के भोजन के समय वह दुकान बंद कर देता और फिर दुकान नहीं खोलता था,बाकी के समय में वह साधु-संतों को भोजन करवाता, गरीबों की सेवा करता, साधु-संग एवं दान-पुण्य करता।व्यापार में जो भी मिलता उसी में संतोष रखकर प्रभुप्रीति के लिए जीवन बिताता था।       उसके ऐसे व्यवहार से लोगों को आश्चर्य होता और लोग उसे पागल समझते। लोग कहतेः "यह तो महामूर्ख है। कमाये हुए सभी पैसों को दान में लुटा देता है। फिर दुकान भी थोड़ी देर के लिए ही खोलता है। सुबह का कमाई करने का समय भी पूजा-पाठ में गँवा देता है। यह पागल ही तो है।"          एक बार गाँव के नगरसेठ ने उसे अपने पास बुलाया। उसने एक लाल टोपी बनायी थी। नगरसेठ ने वह टोपी ज्ञानचंद को देते हुए कहा"यह टोपी मूर्खों के लिए है।तेरे जैसा महान् मूर्ख मैंने अभी तक नह...

उल्लू के हक में फैसला

*आज की हकीकत ----------   हंस और उल्लू* *एक बार एक हंस और हंसिनी हरिद्वार के सुरम्य वातावरण से भटकते हुए, उजड़े वीरान और रेगिस्तान के इलाके में आ गये!* *हंसिनी ने हंस को कहा कि ये किस उजड़े इलाके में आ गये हैं ??*  *यहाँ न तो जल है, न जंगल और न ही ठंडी हवाएं हैं यहाँ तो हमारा जीना मुश्किल हो जायेगा !* *भटकते-भटकते शाम हो गयी तो हंस ने हंसिनी से कहा कि किसी तरह आज की रात बीता लो, सुबह हम लोग हरिद्वार लौट चलेंगे !* *रात हुई तो जिस पेड़ के नीचे हंस और हंसिनी रुके थे, उस पर एक उल्लू बैठा था।* *वह जोर से चिल्लाने लगा।* *हंसिनी ने हंस से कहा- अरे यहाँ तो रात में सो भी नहीं सकते।* *ये उल्लू चिल्ला रहा है।*  *हंस ने फिर हंसिनी को समझाया कि किसी तरह रात काट लो, मुझे अब समझ में आ गया है कि ये इलाका वीरान क्यूँ है ??* *ऐसे उल्लू जिस इलाके में रहेंगे वो तो वीरान और उजड़ा रहेगा ही।* *पेड़ पर बैठा उल्लू दोनों की बातें सुन रहा था।* *सुबह हुई, उल्लू नीचे आया और उसने कहा कि हंस भाई, मेरी वजह से आपको रात में तकलीफ हुई, मुझे माफ़ करदो।* *हंस ने कहा- कोई बात नही भैया, आपका धन्यवाद!*...

मुगल बादशाह और जैनाचार्य

मुगल बादशाह और जैनाचार्य  भारत में श्रमण परंपरा दीर्घकाल से चलती आ रही है , तथा बहुत प्रचलित है । श्रमण भगवान महावीर के अनुयाई - आचार्यों के त्याग ,अहिंसा और आत्मिक प्रेरणा ने सामान्य जनता के साथ ,मुगल बादशाहों पर भी प्रभाव डाला था । मोहम्मद तुगलक ने एक बार धाराधार विद्वान से पूछा कि इस समय कौन बड़ा ज्ञानी है । तब उसने जैन आचार्य श्री जीनप्रभासूरी जी का नाम बताया। यह घटना सन 1328 की है । बादशाह ने उन्हें दरबार में बुलाया । दरबार में आचार्य श्री ने बादशाह को एक सुंदर संस्कृत श्लोक के द्वारा आशीर्वाद दिया। तथा अर्ध रात्रि तक उन्होंने विविध धर्मों की चर्चा में प्रभावी ढंग से भाग लिया । उनके ज्ञान और प्रस्तुति की सुंदर शालीनता से बादशाह अत्यंत प्रभावित हुए । अतः उन्होंने राज्य में फरमान निकाला कि जैन धर्मावलंबियों को सताया न जाए। उस समय दूसरे धर्म वाले जैन साधु साध्वी यों को सताते थे । मोहम्मद तुगलक में जयदेवसूरीजी को भी दरबार में बुलाया था । और उनके ज्ञान और त्याग से प्रसन्न होकर जैन मोहल्ला बसाया था । जहां मंदिर , उपासना और जैन बस्ती के मकान थे।         अकबर ...

शिकंजी का स्वाद

शिकंजी का स्वाद *एक प्रोफ़ेसर क्लास ले रहे थे,क्लास के सभी छात्र बड़ी ही रूचि से उनके लेक्चर को सुन रहे थे,उनके पूछे गये सवालों के जवाब दे रहे थे,लेकिन उन छात्रों के बीच कक्षा में एक छात्र ऐसा भी था, जो चुपचाप और गुमसुम बैठा हुआ था प्रोफ़ेसर ने पहले ही दिन उस छात्र को *नोटिस कर लिया, लेकिन कुछ नहीं बोले,लेकिन जब 4-5 दिन तक ऐसा ही चला, तो उन्होंने उस छात्र को क्लास के बाद अपने केबिन में बुलवाया और पूछा,“तुम हर समय उदास रहते हो. क्लास में अकेले और चुपचाप बैठे रहते हो, लेक्चर पर भी ध्यान नहीं देते. क्या बात है? कुछ परेशानी है क्या?”* *“सर, वो…..” छात्र कुछ हिचकिचाते हुए बोला, “….मेरे अतीत में कुछ ऐसा हुआ है, जिसकी वजह से मैं परेशान रहता हूँ, समझ नहीं आता क्या करूं?”*  *प्रोफ़ेसर भले व्यक्ति थे,उन्होंने उस छात्र को शाम को अपने घर पर बुलाया,शाम को जब छात्र प्रोफ़ेसर के घर पहुँचा, तो प्रोफ़ेसर ने उसे अंदर बुलाकर बैठाया. फिर स्वयं किचन में चले गये और शिकंजी बनाने लगे,उन्होंने जानबूझकर शिकंजी में ज्यादा नमक डाल दिया,फिर किचन से बाहर आकर शिकंजी का गिलास छात्र को देकर कहा, “ये लो, शिकंजी पियो.”* *...

मांसाहार और शाकाहार : विज्ञान की दृष्टि

*मांसाहार पर वैज्ञानिकों की शोध* प्राकृतिक आपदाओं पर हुई नई खोजों के नतीजें मानें तो इन दिनों बढ़ती मांसाहार की प्रवृत्ति भूकंप और बाढ़ के लिए जिम्मेदार है। आइंस्टीन पेन वेव्ज के मुताबिक  *मनुष्य की स्वाद की चाहत* खासतौर पर मांसाहार की आदत के कारण प्रतिदिन मारे जाने वाले पशुओं की संख्या दिनोंदिन बढ़ रही है। सूजडल (रूस) में पिछले दिनों हुए भूस्खलन और प्राकृतिक आपदा पर हुए एक सम्मेलन में भारत से गए भौतिकी के तीन वैज्ञानिकों ने एक शोधपत्र पढ़ा। डा. मदन मोहन बजाज, डा. इब्राहीम और डा. विजयराजसिंह के अलावा दुनियाँ भर के 23 से अधिक वैज्ञानिकों द्वारा  तैयार किए शोधपत्र के आधार पर कहा गया कि भारत, जापान, नेपाल, अमेरिका, जार्डन, अफगानिस्तान, अफ्रीका में पिछले दिनों आए तीस बड़े भूकंपों में आइंस्टीन पैन वेव्ज (इपीडबल्यू) या नोरीप्शन वेव्ज बड़ा कारण रही है। इन तरंगों की व्याख्या यह की गई है कि कत्लखानों में जब पशु काटे जाते हैं तो उनकी अव्यक्त कराह, फरफराहट, तड़प वातावरण में तब तक रहती है जब तक उस जीव का  माँस, खून, चमड़ी पूरी तरह नष्ट नही होती. उस जीव की कराह खाने वालों से लेकर पूरे...