Skip to main content

कहाँ ले जाना है इतना इकट्ठा करके

कहाँ ले जाना है इतना इकट्ठा करके ?

*(जिंदगी का कड़वा सच)*
🙏🙏🙏🙏🙏      *दुनियां* की बहुत ही *मशहूर* फैशन डिजाइनर और *लेखिका करीसदा रोड्रिगेज* कैंसर से अपनी *मौत से पहले लिखती* हैं.-
1. मेरे कार गैराज में दुनिया की महंगी से कीमती कारें खड़ी हैं पर मैं आज अस्पताल की व्हीलचेयर पर सफर करने को मजबूर हूं।
2. घर में मेरी अलमारी में एक से एक महंगे कपड़े हैं। हीरे, जवाहरात, गहने  *बेशुमार महंगे जूते* पड़े हैं पर मैं अस्पताल की दी हुई एक सफेद चादर में नंगे पैर लिपटी हुई हूं।
3. मेरे *बैंक में बेशुमार पैसे* हैं पर अब वे मेरे किसी काम के नहीं हैं।
4. मेरा *घर* एक *महल* की तरह है पर मैं *अस्पताल में डबल साइज बेड* पर पड़ी हुई हूं।
5. मैं एक *फाइव स्टार होटल* से दूसरे फाइव स्टार होटल में रूम बदल-बदल कर रहती थी, पर अब *एक लैबोरेट्री* से *दूसरी लैबोरेटरी* के बीच घूम रही हूं।
6. मैंने *करोड़ों* चाहने वालों को अपने *ऑटोग्राफ* दिए हैं, किंतु आज मैंने *डॉक्टर* के आखिरी नोट पर दस्तखत कर दिए हैं।
7.  मेरे पास बालों को संवारने वाले 7 *महंगे ज्वेलरी सेट* हैं लेकिन अब मेरे सिर पर बाल ही नहीं हैं।
8. अपने *निजी जहाज* से मैं कहीं पर भी एक स्थान से दूसरे स्थान पर जा सकती थी परंतु आज मुझे *व्हील चेयर* पर बिठाने के लिए भी दो आदमियों की जरूरत पड़ती है।
9. दुनिया में बहुत तरह के खाने हैं। सब मेरे लिए सुलभ थे। पर आज मेरा खाना सवेरे ढेरों गोलियां और शाम को थोड़ा सा दूध ही है।

मेरा *घर,* मेरा पैसा, मेरी *कारें,* मेरी *महंगी ज्वेलरी,*  मेरी *शौहरत*  किसी काम नहीं आ रही जिसके पीछे मैंने सारी उम्र जद्दोजहद की।

 *जिंदगी* बहुत छोटी है। *मौत* सबसे बड़ा सच है, 🙏

पर हम इस *सच* को भुलाए बैठे हैं। कोशिश करिए हर एक की *मदद* करने की। किसी का *हक* ना मारिए।

 *अहंकारी* मत *बनिए। 

हर इंसान* का सत्कार करिए। हर एक को गले लगाइए।

 *अपने भाई-बहनों* से बातचीत करते रहिए।

 *मस्त रहिए, व्यस्त रहिए और तंदुरुस्त रहिए।* 
🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏

व्हाट्सएप्प से ...

Comments

Popular posts from this blog

जैन ग्रंथों का अनुयोग विभाग

जैन धर्म में शास्त्रो की कथन पद्धति को अनुयोग कहते हैं।  जैनागम चार भागों में विभक्त है, जिन्हें चार अनुयोग कहते हैं - प्रथमानुयोग, करणानुयोग, चरणानुयोग और द्रव्यानुयोग।  इन चारों में क्रम से कथाएँ व पुराण, कर्म सिद्धान्त व लोक विभाग, जीव का आचार-विचार और चेतनाचेतन द्रव्यों का स्वरूप व तत्त्वों का निर्देश है।  इसके अतिरिक्त वस्तु का कथन करने में जिन अधिकारों की आवश्यकता होती है उन्हें अनुयोगद्वार कहते हैं। प्रथमानुयोग : इसमें संयोगाधीन कथन की मुख्यता होती है। इसमें ६३ शलाका पुरूषों का चरित्र, उनकी जीवनी तथा महापुरुषों की कथाएं होती हैं इसको पढ़ने से समता आती है |  इस अनुयोग के अंतर्गत पद्म पुराण,आदिपुराण आदि कथा ग्रंथ आते हैं ।पद्मपुराण में वीतरागी भगवान राम की कथा के माध्यम से धर्म की प्रेरणा दी गयी है । आदि पुराण में तीर्थंकर आदिनाथ के चरित्र के माध्यम से धर्म सिखलाया गया है । करणानुयोग: इसमें गणितीय तथा सूक्ष्म कथन की मुख्यता होती है। इसकी विषय वस्तु ३ लोक तथा कर्म व्यवस्था है। इसको पढ़ने से संवेग और वैराग्य  प्रकट होता है। आचार्य यति वृषभ द्वारा रचित तिलोयपन...

णमोकार महामंत्र के 9 रोचक तथ्य

9 अप्रैल 2025 विश्व नवकार सामूहिक मंत्रोच्चार पर विशेष – *णमोकार महामंत्र के 9 रोचक तथ्य* डॉ.रूचि अनेकांत जैन प्राकृत विद्या भवन ,नई दिल्ली १.   यह अनादि और अनिधन शाश्वत महामन्त्र है  ।यह सनातन है तथा श्रुति परंपरा में यह हमेशा से रहा है । २.    यह महामंत्र प्राकृत भाषा में रचित है। इसमें कुल पांच पद,पैतीस अक्षर,अन्ठावन मात्राएँ,तीस व्यंजन और चौतीस स्वर हैं । ३.   लिखित रूप में इसका सर्वप्रथम उल्लेख सम्राट खारवेल के भुवनेश्वर (उड़ीसा)स्थित सबसे बड़े शिलालेख में मिलता है ।   ४.   लिखित आगम रूप से सर्वप्रथम इसका उल्लेख  षटखंडागम,भगवती,कल्पसूत्र एवं प्रतिक्रमण पाठ में मिलता है ५.   यह निष्काम मन्त्र है  ।  इसमें किसी चीज की कामना या याचना नहीं है  । अन्य सभी मन्त्रों का यह जनक मन्त्र है  । इसका जाप  9 बार ,108 बार या बिना गिने अनगिनत बार किया जा सकता है । ६.   इस मन्त्र में व्यक्ति पूजा नहीं है  । इसमें गुणों और उसके आधार पर उस पद पर आसीन शुद्धात्माओं को नमन किया गया है...

सम्यक ज्ञान का स्वरूप

*सम्यक ज्ञान का स्वरूप*  मोक्ष मार्ग में सम्यक ज्ञान का बहुत महत्व है । अज्ञान एक बहुत बड़ा दोष है तथा कर्म बंधन का कारण है । अतः अज्ञान को दूर करके सम्यक ज्ञान प्राप्त करने का पूर्ण प्रयास करना चाहिए । परिभाषा -  जो पदार्थ जैसा है, उसे वैसे को वैसा ही जानना, न कम जानना,न अधिक जानना और न विपरीत जानना - जो ऍसा बोध कराता है,वह सम्यक ज्ञान है । ज्ञान जीव का एक विशेष गुण है जो स्‍व व पर दोनों को जानने में समर्थ है। वह पा̐च प्रकार का है–मति, श्रुत, अवधि, मन:पर्यय व केवलज्ञान। अनादि काल से मोहमिश्रित होने के कारण यह स्‍व व पर में भेद नहीं देख पाता। शरीर आदि पर पदार्थों को ही निजस्‍वरूप मानता है, इसी से मिथ्‍याज्ञान या अज्ञान नाम पाता है। जब सम्‍यक्‍त्व के प्रभाव से परपदार्थों से भिन्न निज स्‍वरूप को जानने लगता है तब भेदज्ञान नाम पाता है। वही सम्‍यग्‍ज्ञान है। ज्ञान वास्‍तव में सम्‍यक् मिथ्‍या नहीं होता, परन्‍तु सम्‍यक्‍त्‍व या मिथ्‍यात्‍व के सहकारीपने से सम्‍यक् मिथ्‍या नाम पाता है। सम्‍यग्‍ज्ञान ही श्रेयोमार्ग की सिद्धि करने में समर्थ होने के कारण जीव को इष्ट है। जीव का अपना प्रतिभ...