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जैन और अग्रवाल के संबंध का इतिहास

जैन और अग्रवाल के संबंध का इतिहास 

प्राचीन काल से ही जैन धर्म का पालन सभी समुदाय और जाति के लोग करते आ रहे हैं । मुख्य रूप से क्षत्रिय ,वैश्य और किसी हद तक ब्राह्मण इस धर्म का पालन आपने जीवन में करते आये हैं । 

सभी तीर्थंकर यदि क्षत्रिय कुल के थे तो कई जैनाचार्य मूल रूप से ब्राह्मण कुल के रहे हैं ,श्रावक अधिकांश वैश्य कुल के थे । इन सबके बाद भी तीर्थंकरों की वाणी में सभी जीवों के उत्थान के लिए धर्म का उपदेश हुआ । निम्न कुल के लोग भी अपने कल्याण के लिए जैन धर्म का पालन करते आये हैं ।

अग्रवाल जाति के लोग भी पूर्व में मूल रूप से जैन धर्मानुयायी थे ।  इन्होंने जैन धर्म और जैन संस्कृति को बहुत सींचा है। कोलकाता के जितने भी पुराने मंदिर हैं चाहे बड़ा मंदिर हो, चाहे नया मंदिर हो, चाहे पुराने बाडी मन्दिर होता उत्तर पाड़ी मंदिर हो । वहां के प्रसिद्ध बेलगछिया जैन मंदिर के निर्माता अग्रवाल श्रेष्ठी थे ऐसे कई विशाल मंदिरो का निर्माण अग्रवाल जैन बंधूओ ने करवाया था ।

बनारस में अग्रवाल जैनों का एक बड़ा समुदाय रहता है । यहां के दिगम्बर जैन मंदिर अधिकांश अग्रवाल जैन समाज से ही आते हैं ।

अग्रवाल उत्तर भारत की सम्पन्न व शिक्षित जाति है । इसने भारत देश के उत्थान में अपना अविस्मरणीय योगदान दिया है, इस जाति के अनुयायी आमतौर पर हिंदू व जैन दोनो धर्मो के पालक रहे है, अग्रवाल जाति का इतिहास राजा अग्रसेन से शुरु होता है, और उनका राज्य महाभारत काल में हरियाणा प्रदेश के हिसार-रोहतक क्षेत्र में विस्तृत था । दिल्ली के मंदिरों की लाइब्रेरियों में रखे हुए मुग़ल काल के रिकॉर्ड से पता चलता है की अग्रवालों में जैन धर्म की शुरुआत लोहाचार्य और काष्ठ संघ ने की थी। जैन गुरु लोहाचार्य पहली सदी में अग्रोहा आये थे। स्थानीय लोगों ने उनको आहार करवाया था। लोहाचार्य ने एक लकड़ी की मूर्ति की स्थापना करके काष्ठ संघ की शुरुवात की थी।

हिंदी आधुनिक साहित्य के जनक कहे जाने वाले भारतेंदु हरिश्चन्द्र ने अपनी पुस्तक अग्रवालों की उत्पत्ति में लिखा है की अग्रोहा का तत्कालीन  राजा दिवाकर लोहाचार्य जी के संपर्क में आने से जैन हो गए थे। राजा दिवाकर एक धर्मनिष्ठ जैन थे। आज अग्रवालों की 14% जनसंख्या जैन है बाकी वैष्णव धर्मी।

अग्रवालों में जैन धर्म की तरह ही मांसाहार वर्जित है। महाराज अग्रसेन ने स्वयं ही पशुबलि आदि का विरोध किया था और अपने राज्य में पूर्ण शाकाहार का नियम बनाया था। अग्रवालों के18 गोत्रों में से 3 गोत्र आज भी परवार जैनो में व अग्रवालो में समान है( गोयल,कांसल,बांसल) इससे भी इनकी जैन धर्म से साम्यता ज्ञात होती है। 

राजपूत शासन में अग्रवाल जैन -

काफी अग्रवाल शेखावटी चले गए। शेखावटी की ज्यादातर व्यापारी जनसंख्या अग्रवालों की है। अग्रवाल सेठ सेठ चतुर्भुज पोद्दार ने शेखावटी में ही व्यापारियों का राज्य रामगढ़ सेठान को बसाया था।

 नट्टल साहू सबसे पहले ज्ञात अग्रवाल मंत्री हैं जिनका अग्रवाल इतिहास में उल्लेख मिलता है। दिल्ली के जैन वणिकों में अग्रणी थे। इनका व्यापार पूरे भारत वर्ष में फैला था. ये सम्राट अनंगपाल तोमर के दरबार में मंत्री भी थे। इन्होंने भगवान आदिनाथ का एक भव्य मंदिर का निर्माण करवाया था ,जिसे तोड़कर मुगलों ने कुतुबमीनार के आसपास की मस्जिदों का निर्माण करवाया था । इन्हीं के निवेदन पर अग्रवाल जैन कवि विबुद्ध श्रीधर ने सन् 1132 में अपभ्रंश भाषा पासणाह चरिउ ( पार्श्वनाथ चरित)लिखा था जिसमें योगिनिपुर(दिल्ली) का ऐतिहासिक वर्णन है।

15वीं शताब्दी में ग्वालियर के तोमर राजाओं के समय अग्रवालों ने खूब तरक्की की। इतिहासकार के. सी. जैन लिखतें हैं - "ग्वालियर में दिगंबर जैन चर्च का स्वर्णिम काल तोमर राजाओं के समय का था। वे काष्ठ भट्टारक और उनके अग्रवाल जैन भक्तों से प्रेरित थे। अग्रवाल जैन ग्वालियर के तोमर राजाओं के दरबार में मंत्रियों और खजांची पद पर शुशोभित थे। हिसार से निकले हुए अग्रवाल जैन भट्टारकों ने ग्वालियर राज्य को दिगंबर जैन केंद्र बना दिया था जो की बड़े बड़े अरबपति अग्रवालों द्वारा पोषित था "

15वीं शताब्दी में काफी अग्रवाल आमेर राज्य जयपुर चले गए थे।  इस पलायन में अग्रवाल अपने साथ अपनी धार्मिक पुस्तकें भी ले गए थे। संवत 1535 में अग्रवाल नेनासी ने सांगानेर में पंचकल्याणक प्रतिष्ठा समारोह मनाया।

दिल्ली के अग्रवाल जैन -

सम्राट अकबर के काल में साहू टोडर अग्रवाल ने मथुरा में 500 से अधिक जैन स्तूप बनवाए थे। साहू टोडर आगरा के शाही खजाने का सुपरवाइजर था। अग्रवाल समाज से आने वाले राजा हरसुख राय ने सन् 1810 में जैन धर्म के प्रचार प्रसार के लिए भव्य दिल्ली रथ यात्रा निकाली थी। राजा हरसुख राय ने मुगल काल में सोने के छत्र वाले जैन मंदिर का निर्माण करवाया था। इन्होंने और इनके बेटे शगुन चंद ने भारत वर्ष में 51 जैन मंदिरों का निर्माण करवाया था। अब तक चंपापुर(बिहार),ग्वालियर,तिजारा(राजस्थान) आदि कई स्थानो से खुदाई में अग्रवाल,अग्रोतक आदि प्रशस्ति लिखी जैन मूर्तियाँ प्राप्त हुई है।

अकबर के ही समय शाह रणवीर सिंह शाही खजांची था। उसने सहारनपुर शहर स्थापित किया था। उसने और उसके परिवार ने दिल्ली में कई भव्य जैन मंदिरों का निर्माण करवाया था।

राजा शगुनचंद के बेटे सेठ गिरधारी लाल ने हिसार पानीपत में अग्रवाल जैन पंचायत की स्थापना की। इसे आजकल प्राचीन अग्रवाल दिगंबर जैन पंचायत के नाम से जाना जाता है। यह सबसे प्राचीन जैन संघठन है। यह संघठन ही प्राचीन जैन मंदिर नया मंदिर और लाल मंदिर का संचालन करता है।  जैन समाज में एकता को बढ़ावा देने वाली ये पंचायत आज भी सक्रिय है।

1857 के क्रांतिकारी लाला हुकुमचंद जैन और फकीरचंद जैन हिसार के अग्रवाल जैन परिवार से थे । अग्रवाल नवरत्न लाला लाजपत राय जी का परिवार भी दिगंबर जैन मतावलंबी था जो बाद में आर्य समाजी हो गए थे। देश के बड़े मीडिया समूह टाइम्स ऑफ इंडिया की मालिक इंदु जैन अग्रवाल जैन परिवार से हैं ।   जैन समाज की कई साधु और साध्वियां भी अग्रवाल समाज से आते हैं।

आज विवाह संबंधों में भी कई जैन घरों में अग्रवाल परिवार की बहुएं हैं तथा कई अग्रवाल परिवारों में जैन कुल की बहुएं हैं । 

डॉ रुचि जैन ,प्राकृत विद्या भवन
नई दिल्ली

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