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Showing posts from January, 2022

जैन धर्म समाज और संस्कृति की विशेषताएं

जैन समुदाय एक अल्पसंख्यक समुदाय है तथापि इस की उपलब्धियां किसी से कम नहीं है। आप अपने अतीत के शानदार इतिहास पर गर्व महसूस  सकें एवं भविष्य के लिए सुखद कार्य योजना का निर्माण कर सकें, इस हेतु प्रस्तुत है कुछ तथ्य- 1. जैन संस्कृति विश्व की महान एवं प्राचीन संस्कृतियों में से एक है। हड़प्पा एवं मोहनजोदड़ो की खुदाई में प्राप्त मुद्रा एवं उस पर अंकित ऋषभदेव का सूचक बैल तथा सील नं.49 पर स्पष्ठ रूप से जिनेश्वर शब्द का अंकन होना तथा वेदों की 141 ऋचाओं में भगवान ऋषभदेव का आदर पूर्वक उल्लेख इस संस्कृति को वेद प्राचीन संस्कृति सिद्ध करती हैं। 2.   हमारे देश भारत वर्ष का नाम ऋषभदेव के पुत्र चक्रवर्ती भरत के नाम से विख्यात है जो कि जग जाहिर प्रमाण है। विष्णु पुराण में भी इसका ऊल्लेख मिलता है। हमारे देश के प्रधान मंत्री स्व. जवाहर लाल नेहरु ने उड़ीसा के खंडगिरी स्थित खारवेल के शिला लेख पर "भरतस्य भारत" रूप प्रशस्ति को देख कर ही इस देश का संवैधानिक नामकरण भारत किया था। 3.    राजा श्रेणिक, सम्राट चंद्रगुप्त मौर्य , कलिंग नरेश खारवेल एव सेनापति चामुंडराय जैन इतिहास के महान शासक हुए है। 4.   

मकरसंक्रांति और जैन संस्कृति

 *मकर संक्रांति पर्व के विषय में फैलाए जा रहे भ्रम का खण्डन*  *मकर संक्रांति के दिन चक्रवर्ती द्वारा सूर्य विमान में स्थित अकृत्रिम जिनमन्दिर के दर्शन कथन आगम सम्मत नहीं* 🌴🌴🌴🌴🌴🌴🌴🌴🌴🌴 भरत चक्रवर्ती जम्बूद्वीप के भरत क्षेत्र के आर्य खंड के अयोध्या नगरी मे अपने महल की छत से खडे होकर उगते हुए सूर्य मे स्थित जिनबिम्ब के दर्शन करता है तथा नमस्कार करता हैै, यह क्षेत्र ४७२६३-७/२० योजन है जो कि चक्षु इन्द्रि का अधिकतम क्षेत्र है। भरत जी के दर्शन भी साल भर में एक ही बार होते है। *ये जिनबिम्ब के दर्शन गर्मीयो मे होते है ना कि मकर सक्रान्ति के दिन* जम्बूद्वीप एक लाख योजन व्यास वाला है, इसमे दो सूर्य है, एक सूर्य को परिक्रमा मे साठ मुहूर्त अर्थात दो दिन लगते है,  सूर्य जम्बूद्वीप की परिधि से एक सौ अस्सी (१८०) योजन अन्दर से परिक्रमा करता है तो परिक्रमा का क्षेत्र बचा (१८०+१८०) ३६० योजन कम अर्थात ९९६४० योजन तथा इसकी *परिधि हुई ३१५०८९ योजन*  जब दिन अठारह (१८) मुहूर्त का तथा रात बारह (१२) मुहूर्त की होती है तो उस दिन भरत जी दर्शन करते है,  अठारह (१८) मुहूर्त के दिन मे नौ मुहूर्त बीत जाने पर सू

अहिंसा अणुव्रत - वर्णी जी

*अहिंसकता का विकास*      आर्ष ग्रंथों में चार प्रकार की हिंसायें बताकर यह दिखाया हैकि गृहस्थ संकल्पी हिंसा का तो पूर्ण त्यागी होती ही है । यदि वह विवेकी है, ज्ञानी है तो वह अपने इरादे से किसी भी जीव का अकल्याण नहीं चाहता । लेकिन आरंभ के प्रसंगों में, उद्यमों के प्रसंगों में अथवा किसी शत्रु द्वारा आक्रमण हुआ हो ती वहाँ पर जो हिंसायें हो जाती हैं उन हिंसाओं का त्यागी यह अविरत गृहस्थ नहीं है । फिर संयमासंयम के बीच में जैसे-जैसे उसकी प्रतिमा बढ़ती रहती है, प्रतिज्ञा बढ़ती रहती है, आशय विरक्ति की ओर जाता है तैसे-तैसे उन तीन प्रकार की हिंसावों में भी उसका त्याग बढ़ता जाता है और संयत हो जाने पर तो सर्वप्रकार की हिंसावों का सर्वथा त्याग हो जाता है । अब रह गया यह कि वे साधु श्वास तो लेते हैं ओर श्वास लेने पर भी जीव मरते हैं तो जो इस तन, मन, वचन के अनुकूल किया ही न जा सकता हो ऐसी स्थिति अशक्यानुष्ठान में कहलाती है और आशय रंच भी किसी के घात को न होने से वहाँ वह अहिंसक ही कहलाता है। *हिंसा का दोष*        तो जैसे पदवियों के अनुसार कर्तव्य का विभिन्न-विभिन्न वर्णन है, पर विभिन्न वर्णन होते हुए भी सम्यग

महावीराष्टक स्तोत्र

*श्री महावीराष्टक स्त्रोत* यदीये चैतन्ये मुकुर इव भावाश्चिदचित:, समं भान्ति ध्रौव्य-व्यय-जनि-लसन्तोऽन्तरहिता:। जगत्साक्षी मार्ग-प्रकटन-परो भानुरिव यो, महावीरस्वामी नयनपथगामी भवतु मे ॥ 1॥   अताम्रं यच्चक्षु: कमलयुगलं स्पन्द-रहितं, जनान् कोपापायं प्रकटयति वाभ्यन्तरमपि। स्फुटं मूर्तिर्यस्य प्रशमितमयी वातिविमला, महावीरस्वामी नयनपथगामी भवतु मे॥ 2॥   नमन्नाकेन्द्राली-मुकुटमणि-भा-जाल-जटिलं, लसत्पादाम्भोज-द्वयमिह यदीयं तनुभृताम्। भवज्ज्वाला-शान्त्यै प्रभवति जलं वा स्मृतमपि, महावीरस्वामी नयनपथगामी भवतु मे॥ 3॥   यदर्चा - भावेन प्रमुदित - मना दर्दुर इह, क्षणादासीत्स्वर्गी गुणगण-समृद्ध: सुख-निधि:। लभन्ते सद्भक्ता: शिवसुखसमाजं किमु तदा, महावीरस्वामी नयनपथगामी भवतु मे॥ 4॥   कनत्स्वर्णाभासोऽप्यपगत-तनुज्र्ञान-निवहो , विचित्रात्माप्येको नृपतिवरसिद्धार्थतनय:। अजन्मापि श्रीमान् विगतभवरागोऽद्भुतगतिर्- महावीरस्वामी नयनपथगामी भवतु मे॥ 5॥   यदीया वाग्गङ्गा विविधनयकल्लोलविमला, बृहज्ज्ञानाम्भोभिर्जगति जनतां या स्नपयति। इदानीमप्येषा बुधजनमरालै: परिचिता, महावीरस्वामी नयनपथगामी भवतु मे॥ 6॥   अनिर्वारोद्रेकस् - त्

भक्तामर स्त्रोत

*श्री भक्तामर स्त्रोत* भक्तामर-प्रणत-मौलि-मणि-प्रभाणा- मुद्योतकं दलित-पाप-तमो-वितानम्। सम्यक्-प्रणम्य जिन-पाद-युगं युगादा- वालम्बनं भव-जले पततां जनानाम्।। 1॥   य: संस्तुत: सकल-वाङ् मय-तत्त्व-बोधा- दुद्भूत-बुद्धि-पटुभि: सुर-लोक-नाथै:। स्तोत्रैर्जगत्- त्रितय-चित्त-हरैरुदारै:, स्तोष्ये किलाहमपि तं प्रथमं जिनेन्द्रम्॥ 2॥   बुद्ध्या विनापि विबुधार्चित-पाद-पीठ! स्तोतुं समुद्यत-मतिर्विगत-त्रपोऽहम्। बालं विहाय जल-संस्थित-मिन्दु-बिम्ब- मन्य: क इच्छति जन: सहसा ग्रहीतुम् ॥ 3॥   वक्तुं गुणान्गुण -समुद्र ! शशाङ्क-कान्तान्, कस्ते क्षम: सुर-गुरु-प्रतिमोऽपि बुद्ध्या । कल्पान्त -काल-पवनोद्धत- नक्र- चक्रं , को वा तरीतुमलमम्बुनिधिं भुजाभ्याम्॥ 4॥   सोऽहं तथापि तव भक्ति-वशान्मुनीश! कर्तुं स्तवं विगत-शक्ति-रपि प्रवृत्त:। प्रीत्यात्म-वीर्य-मविचार्य मृगी मृगेन्द्रम् नाभ्येति किं निज-शिशो: परिपालनार्थम्॥ 5॥   अल्प- श्रुतं श्रुतवतां परिहास-धाम, त्वद्-भक्तिरेव मुखरी-कुरुते बलान्माम् । यत्कोकिल: किल मधौ मधुरं विरौति, तच्चाम्र -चारु -कलिका-निकरैक -हेतु:॥ 6॥   त्वत्संस्तवेन भव-सन्तति-सन्निबद्धं, पापं क्षणात्क्षयमु

२००० वर्ष पूर्व से लेकर १०० वर्ष पूर्व तक के १७५ 📖प्रमुख जैन ग्रंथ और उनके रचयिता📖

२००० वर्ष पूर्व से लेकर १०० वर्ष पूर्व तक के १७५ 📖प्रमुख जैन ग्रंथ और उनके रचयिता📖 1-कषाय पाहुड - आ.धरसेन स्वामी १]षट्खंडागम~आचार्य पुष्पदंत, आचार्य भूतबलि २]समयसार~आचार्य कुंदकुंद ३]नियमसार~आचार्य कुंदकुंद ४]प्रवचनसार~आचार्य कुंदकुंद ५]अष्टपाहुड़~आचार्य कुंदकुंद ६]पंचास्तिकाय~आचार्य कुंदकुंद ७]रयणसार~आचार्य कुंदकुंद ८]दशभक्ति~आचार्य कुंदकुंद ९]वारसाणुवेक्खा~आचार्य कुंदकुंद १०]तत्त्वार्थसूत्र~आचार्य उमास्वामी ११]आप्तमीमांसा~आचार्य समन्तभद्र १२]स्वयंभू स्तोत्र~आचार्य समन्तभद्र १३]रत्नकरण्ड श्रावकाचार ~आचार्य समन्तभद्र १४]स्तुति विद्या~आचार्य समन्तभद्र १५]युक्त्यनुशासन~आचार्य समन्तभद्र १६]तत्त्वसार~आचार्य देवसेन १७]आराधना सार~आचार्य देवसेन १८]आलाप पद्धति~आचार्य देवसेन १९]दर्शनसार~आचार्य देवसेन २०]भावसंग्रह~आचार्य देवसेन २१]लघु नयचक्र~आचार्य देवसेन २२]इष्टोपदेश~आचार्य पूज्यपाद २३]समाधितंत्र~आचार्य पूज्यपाद २४]सर्वार्थसिद्धि~आचार्य पूज्यपाद २५]वैद्यक शास्त्र~आचार्य पूज्यपाद २६]सिद्धिप्रिय स्तोत्र~आचार्य पूज्यपाद २७]जैनेन्द्र व्याकरण~आचार्य पूज्यपाद २८]परमात्म प्रकाश~आचार्य योगीन्दु देव २९