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मकरसंक्रांति और जैन संस्कृति

 *मकर संक्रांति पर्व के विषय में फैलाए जा रहे भ्रम का खण्डन*

 *मकर संक्रांति के दिन चक्रवर्ती द्वारा सूर्य विमान में स्थित अकृत्रिम जिनमन्दिर के दर्शन कथन आगम सम्मत नहीं*

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भरत चक्रवर्ती जम्बूद्वीप के भरत क्षेत्र के आर्य खंड के अयोध्या नगरी मे अपने महल की छत से खडे होकर उगते हुए सूर्य मे स्थित जिनबिम्ब के दर्शन करता है तथा नमस्कार करता हैै, यह क्षेत्र ४७२६३-७/२० योजन है जो कि चक्षु इन्द्रि का अधिकतम क्षेत्र है। भरत जी के दर्शन भी साल भर में एक ही बार होते है।
*ये जिनबिम्ब के दर्शन गर्मीयो मे होते है ना कि मकर सक्रान्ति के दिन*

जम्बूद्वीप एक लाख योजन व्यास वाला है, इसमे दो सूर्य है, एक सूर्य को परिक्रमा मे साठ मुहूर्त अर्थात दो दिन लगते है, 
सूर्य जम्बूद्वीप की परिधि से एक सौ अस्सी (१८०) योजन अन्दर से परिक्रमा करता है तो परिक्रमा का क्षेत्र बचा (१८०+१८०) ३६० योजन कम अर्थात ९९६४० योजन तथा इसकी *परिधि हुई ३१५०८९ योजन* 
जब दिन अठारह (१८) मुहूर्त का तथा रात बारह (१२) मुहूर्त की होती है तो उस दिन भरत जी दर्शन करते है, 
अठारह (१८) मुहूर्त के दिन मे नौ मुहूर्त बीत जाने पर सूर्य अयोध्या के ऊपर आ जाता है तथा निषध पर्वत जहॉ से सूर्य उदयाचल होता है वहा से अयोध्या की दूरी ४७२६३–७/२० योजन है, तथा यही भरत जी के चक्षु इन्द्रिय का अधिकतम क्षेत्र है
*कैसे है*
सूर्य ६० मुहूर्त में परिक्रमा करता है ३१५०८९ योजन तो नौ मुहूर्त मे परिक्रमा करेगा ४७२६३–७/२० योजन
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*आचार्य न्नेमिचन्द्र सिद्धांत चक्रवर्ती विरचित त्रिलोकसार गाथा संख्या ३८९ से ३९१ तक* 

*प्रथम परिधि में भ्रमण करता हुआ सूर्य जब निषध पर्वत के ऊपर आता है तब अयोध्या नगरी के मध्य में स्थित चक्रवर्ती के द्वारा देखा जाता है*

जब सूर्य निषध पर्वत के ऊपर अपनी *प्रथम वीथी (गली) में होता है* तब वह भरत क्षेत्र से ४७२६३ ७/२० योजन दूर होता है और यही *चक्षुस्पर्श क्षेत्र का उत्कृष्ट प्रमाण है*। चक्रवर्ती के चक्षुओं में इतनी उत्कृष्ट क्षमता होती है और उसी वजह से वो सूर्य में स्थित जिन बिम्बों के दर्शन कर लेते हैं।
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*श्री यतिवृषभाचार्य विरचित तिलोयपण्णत्ती*
*अध्याय ०७ की गाथा संख्या ४३० से ४३३ तक* के विशेष अर्थ में यह स्पष्ट उल्लेख आया है कि
*श्रावण मास में सूर्य की कर्क संक्रांति होती है* और सूर्य अपनी अभ्यन्तर वीथी (प्रथम गली) में स्थित होता है तब अयोध्या नगरी के मध्य में अपने महल के ऊपर स्थित भरत चक्रवर्ती आदि महापुरुष *निषध पर्वत के ऊपर उदित होते हुए सूर्य बिम्ब को देखते हैं और सूर्यविमान में स्थित जिन बिम्बों के दर्शन करते हैं* 

*2⃣ गाथा संख्या २१८* 
सूर्य १८० योजन जम्बूद्वीप में और ३३० योजन लवण समुद्र में गमन करता है (अर्थात सूर्य प्रथम गली से अंतिम १८४ गली तक कुल ५१० योजन गमन करता है)
*3⃣ गाथा संख्या २२१* 
सूर्य के प्रथम पथ और सुदर्शन मेरु के बीच का अंतराल ४४८२० योजनों प्रमाण है
*4⃣ गाथा संख्या २३२* 
सूर्य के बाह्य आखरी पथ और सुदर्शन मेरु के बीच ४५३३० योजनों प्रमाण अंतर है
5⃣ प्रति वर्ष माघ महीने में सूर्य अपनी अंतिम १८४ गली में पहुँच जाता है और लवण समुद्र के ऊपर होता है जिसके बाद सूर्य का दक्षिणायन से उत्तरायण गमन होता है (ये मकर संक्रांति के आसपास ही होता है)
6⃣ प्रति वर्ष श्रावण महीने में सूर्य अपनी प्रथम गली में पहुँच जाता है और निषध पर्वत के ऊपर होता है जिसके बाद सूर्य का उत्तरायण से दक्षिणायन गमन होता है (ये कर्क संक्रांति के आसपास ही होता है)
7⃣ सूर्य जब उपरोक्त प्रथम वीथी में होता है तभी निषध पर्वत के ऊपर उदय काल में भरत क्षेत्र से उसका अंतर ४७२६३ ७/२० योजन होता है जो चक्षु इन्द्रिय का उत्कृष्ट क्षेत्र है। इसके आगे की प्रत्येक वीथी (गली) में सूर्य का गमन होने के बाद उसका अंतर उदय क्षेत्र की अपेक्षा भरत क्षेत्र से बढ़ता जाता है और वो मनुष्य के चक्षु इन्द्रिय के उत्कृष्ट क्षेत्र ४७२६३ ७/२० योजन से और दूर जाने से उदय काल के समय नेत्रों से नहीं दिखता है 
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*अब माघ माह में मकर संक्रांति के दिन सूर्य विमान दक्षिणायण के चरम पर होता है और अपनी अंतिम वीथी (गली) में लवण समुद्र के ऊपर होता है और उस समय सूर्य उदय काल में मनुष्य के चक्षु इन्द्रिय के उत्कृष्ट क्षेत्र ४७२६३ ७/२० यजनों से अधिक दूरी पर होता है इसलिए भरत क्षेत्र के चक्रवर्ती उस वक़्त सूर्य को उदय काल में देख ही नहीं सकते*
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*इसको पढने से कुछ व्यक्तियो की मिथ्या मान्यता का खंडन हो जाता है जो कि ये मानते है कि मकर सक्रान्ति के दिन भरत जी ने सूर्य मे स्थित जिनबिम्बो के दर्शन किये थे*
*क्योकि दर्शन भरत जी ने किये थे उस समय दिन बड़ा था रात छोटी थी अर्थात गर्मी के दिन थे*
*मकर संक्रांति एक लोक पर्व है लेकिन जैन धर्म में इस पर्व का कोई विशेष महत्त्व नहीं है*
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नोट -
📌 *यह मेरी लिखी पोस्ट नहीं है, जैसा पाया, वैसा ही फारवर्ड किया*

एक अन्य लेख 

📋 *मकर संक्रान्ति समीक्षा - लघु लेख* 📋

*णामंपि तस्स असुहं, जेण णिद्दिट्ठाइ मिच्छपव्वाई।*
*जेसिं अणुसंगाओ, धम्मीण वि होइ पावमई।।27।।*

अर्थ:- जिन्होंने हिंसा के कारणरूप ऐसे होली, दशहरा, संक्रान्ति आदि पर्वों की स्थापना की, तथा कंदमूल आदि का भक्षण और रात्रि भोजन के पोषक ऐसे एकादशी आदि मिथ्यापर्वों की स्थापना की, उनका तो नाम भी लेना पाप बंध का कारण है; क्योंकि उन मिथ्यापर्वों के अनुसंग से धर्मात्माओं की भी पापबुद्धि हो जाती है अर्थात धर्मात्मा भी देखादेखी से चंचलबुद्धि हो जाते हैं।

श्री नेमिचन्द भंडारी द्वारा विरचित श्री उपदेश सिद्धान्त रत्नमाला का उपरोक्त 27 वां छंद और उसकी पं. भागचंद जी छाजेड़ द्वारा लिखी टीका विचारणीय है।

मकर संक्रांति सूर्य से संबंधित खगोलीय घटना को बताने वाला मात्र लोक पर्व है लेकिन जैन धर्म में इस पर्व का कोई स्थान नहीं है। अपितु इसके निमित्त से वैदिक समाज की मान्यतानुसार धर्म बुद्धि से दान, स्नान, अर्घ्य आदि की समस्त प्रवृत्ति साक्षात गृहीत मिथ्यात्व है।

सुनी-सुनाई बातों को मानकर बिना परीक्षा किये कुछ जैनों की यह मान्यता बन गई है की मकर संक्रांति के दिन भरत क्षेत्र के चक्रवर्ती सूर्य में स्थित जिनबिम्बों के दर्शन करते हैं और तिल के मिष्ठान्न बँटवाते हैं इसलिए कुछ लोग मकर संक्रांति को जैन धर्म से जोड़ देते हैं लेकिन यह भी एक मिथ्या धारणा है।

आचार्य यतिवृषभ कृत करणानुयोग के सुप्रसिद्ध ग्रंथ श्री तिलोयपण्णत्ती अध्याय 7 की गाथा संख्या 430 से 433 तक के अर्थ में यह स्पष्ट उल्लेख आया है कि जब श्रावण मास में सूर्य की कर्क 🦀 संक्रांति होती है और सूर्य अपनी अभ्यन्तर वीथी में स्थित होता है तब अयोध्या नगरी के मध्य में अपने महल के ऊपर स्थित भरत आदि चक्रवर्ती निषध पर्वत के ऊपर उदित होते हुए सूर्य बिम्ब को देखते हैं और सूर्य विमान में स्थित जिन बिम्बों के दर्शन करते हैं।

जब सूर्य निषध पर्वत के ऊपर अपनी प्रथम वीथी में होता है तब वह भरत क्षेत्र से 47263  7/20 योजन दूर होता है और यही चक्षु इन्द्रिय क्षेत्र का उत्कृष्ट प्रमाण है। चक्रवर्ती के चक्षुओं में इतनी उत्कृष्ट क्षमता होती है और उसी वजह से वह सूर्य में स्थित प्रतिमाओं के दर्शन कर लेते हैं।

इस प्रमाण से ये बात सिद्ध होती है कि चक्रवर्ती से जुडी यह घटना श्रावण माह में कर्क संक्रांति के दिन होती है। प्रतिवर्ष यह कर्क संक्रांति अंग्रेजी कैलेण्डर के अनुसार जुलाई माह में होती है। इसलिए इस घटना को मकर संक्रांति से जोड़ना मिथ्या है।

मकर संक्रांति की जैन धर्म से जुड़ी कोई अन्य विशेषता ग्रंथों में उल्लेखित नहीं है इसलिए मकर संक्रांति जैन पर्व नहीं है, अपितु जैनेतर मिथ्या पर्व है।

कुछ साधर्मी मकर संक्रांति को जैन पर्व मानकर, अन्य सामाजिक मित्रों की देखादेखी अथवा व्यसन/विषय-कषाय के पोषण हेतु इस दिन पतंग उड़ाते हैं।

इन पतंगों के साथ प्रयुक्त मांझा काँच के पाउडर, अंडे आदि के मिश्रण से तैयार किया जाता है अथवा उससे भी घातक अब चाइनीज मांझे बाजार में बिकने लगे हैं। इनकी डोर से प्रति वर्ष लाखों पक्षी घायल हो जाते हैं और मर भी जाते हैं। यहाँ तक की कभी-कभी तो इनमें अटक कर इंसानों की भी दुर्घटनाएँ हो जाती हैं।

इसी कारण मिथ्या पर्व पर पतंग उड़ाने जैसे कृत्यों से प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से मिथ्यात्व व हिंसा करने वाले लोग महापाप के भागी बनते हैं तथा कृत-कारित-अनुमोदना करके अपना चतुर्गति भ्रमण बढ़ाते हैं। 

कम से कम अहिंसा प्रधान जिनधर्म के अनुयायी यह संकल्प करें कि मूढ़ता में फँसकर हम पतंग नहीं उड़ाएंगे और चरणानुयोग की मर्यादानुसार ही अपना श्रेष्ठ आचरण रखेंगे।

*त्रसहतिपरिणामध्वांतविध्वंसहेतुः*
*सकलभुवनजीवग्रामसौख्यप्रदो यः।*
*स जयति जिनधर्मः स्थावरकेन्द्रियाणाम*
*विविधवधविदूरश्चारूशर्माब्धिपूरः।।*

अर्थ :- त्रसघात के परिणामरूप अंधकार के नाश का जो हेतु है, सकल लोक के जीवसमूह को जो सुखप्रद है, स्थावर एकेन्द्रिय जीवों के विविध वध से जो बहुत दूर है और सुन्दर सुखसागर का जो पूर है, वह जिनधर्म जयवन्त वर्तता है।

(श्री पद्मप्रभमलधारिदेव मुनिराज कृत श्री नियमसार कलश 76)

हमें जिनागम की यह आज्ञा पालन करने के लिए किसी से भी वाद-विवाद करने की, जबरदस्ती थोपने की आवश्यकता नहीं है, जो स्वयं समझना चाहे उसे संकेत करना, नही तो मध्यस्थ रहना।

थोडा कहा बहुत समझना...

🕉️ दिव्यध्वनि प्रसारण
अतुल जैन



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