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Showing posts from July, 2023

शास्त्री परिषद के जैन विद्वान्

*अखिल भारतवर्षीय दिगम्बर जैन शास्त्रि-परिषद के सदस्य विद्वानों के पता परिवर्तन/संसोधन के लिए प्राप्त नाम सूची* (*नोट* : इस सूची में आप सभी अपने नाम पते जोड़ते चलें, जिनका जुड़ा है वह न जोड़ें, जिनका कुछ संसोधन है वह करते जांय) डॉ. बाहुबली जैन, 234, एम आर-1, महालक्ष्मी नगर, इंदौर 452010 (मध्यप्रदेश) मोबाइल - 9413972694 चन्द्रेश शास्त्री 127 वर्धमान ग्रीन सिटी ,नरेला जोड़ अयोध्या बायपास रोड भोपाल 462041     9584892408 ckjain07@gmail.com प्रतिष्ठाचार्य पं. उदय जैन शास्त्री कोटा पता बैंक कोलोनी मकान नंबर 50 वालेता रोड कुन्हाड़ी कोटा राजस्थान पिन कोड 324008 मोबाईल नंबर 7976648608, 9829719686 डॉ निर्मल शास्त्री  24 मैत्री भवन जैन कालोनी, सुधासागर रोड़, मऊचुंगी नाका,  टीकमगढ़ म. प्र. 472001  8871533185  nirmaljainhata@gmail.com निर्मल कुमार जैन 31,  गाड़ी अड्डा मार्ग,  विदिशा(म.प्र.)  पिन 464001 मो.8959030715 सोमचन्द्र जैन शास्त्री, शिक्षक         मैनवार पोस्ट सोजना जिला ललितपुर उत्तर प्रदेश पिन नम्बर 28 44 04  मोबाइल नम्बर 96 2166 9650 अरुण जैन शास्त्री पिता श्री राजेंद्र कुमार जैन सदस्य संख्या

माँसभक्षियों के कुछ और कुतर्क और उनका समाधान

माँसभक्षियों के कुछ और कुतर्क और उनका समाधान : 1. माँसाहार का सम्बंध भौगोलिकता से है। ठंडे प्रदेशों, समुद्री प्रदेशों, बाढ़ग्रस्त क्षेत्रों में साग-सब्ज़ी नहीं उगतीं, इसलिए माँस खाया जाता है । समाधान : अगर ठंडे, समुद्री और बाढ़ग्रस्त क्षेत्रों में साग-सब्ज़ी नहीं उगती, तो जिन क्षेत्रों में भरपूर उगती है, वहाँ के लोग पूर्ण शाकाहारी बन जावें। उसमें क्या बाधा है? पाप तो जितना कम हो, उतना बेहतर। हिंसा जितनी घटे, उतना अच्छा। लेकिन मज़े की बात ये है कि अगर पूरी दुनिया में माँसभक्षण के पैटर्न का अवलोकन करें तो पाएँगे कि गर्म क्षेत्रों, मैदानी इलाक़ों, बाढ़ से प्राय: मुक्त रहने वाले प्रांतों के लोग भी जमकर माँस खा रहे हैं। उन्हें कौन-सी भौगोलिक बाधा है? पहाड़ पर माँस खाने वालों का हवाला देकर मैदानी इलाक़ों में माँसभक्षण को न्यायोचित ठहराना ठीक वैसा ही है, जैसे युद्ध में हो रही हिंसा का हवाला देकर नागरिक-क्षेत्रों में भी हिंसा करना। कि युद्ध के मैदान में गोलियाँ बरसती हैं तो मेट्रो स्टेशनों पर भी बरसाई जाएँ! इसमें क्या तुक है? 2. माँसाहार का सम्बंध व्यक्ति की क्रयशक्ति से है। अतीत में ग़रीब

जैन समाज का योगदान

भले ही जैन समुदाय एक अल्पसंख्यक समुदाय है तथापि इस की उपलब्धियां किसी से कम नहीं है। आप अपने अतीत के शानदार इतिहास पर गर्व महसूस कर सकें एवं भविष्य के लिए सुखद कार्य योजना का निर्माण कर सकें, इस हेतु प्रस्तुत है कुछ तथ्य- ०१. जैन संस्कृति विश्व की महान एवं प्राचीन संस्कृतियों में से एक है। हड़प्पा एवं मोहनजोदड़ो की खुदाई में प्राप्त मुद्रा एवं उस पर अंकित ऋषभदेव का सूचक बैल तथा सील नं.४९ पर स्पष्ठ रूप से जिनेश्वर शब्द का अंकन होना तथा वेदों की१४१ ऋचाओं में भगवान ऋषभदेव का आदर पूर्वक उल्लेख इस संस्कृति को वेद प्राचीन संस्कृति सिद्ध करती हैं। ०२. हमारे देश भारत वर्ष का नाम ऋषभदेव के पुत्र चक्रवर्ती भारत के नाम से विख्यात है जो कि जग जाहिर प्रमाण है। विष्णु पुराण में भी इसका ऊल्लेख मिलता है। हमारे देश के प्रधान मंत्री स्व. जवाहर लाल नेहरु ने उड़ीसा के खंडगिरी स्थित खारवेल के शिला लेख पर “भरतस्य भारत” रूप प्रशस्ति को देख कर ही इस देश का संवैधानिक नामकरण भारत किया था। ०३. राजा श्रेणिक, सम्राट चंद्रगुप्त मौर्य , कलिंग नरेश खारवेल एव सेनापति चामुंडराय जैन इतिहास के महान शासक हुए ह

गुण ग्रहण करो

*गुण ग्रहण करो*    -प्रो. वीरसागर जैन                                                  व्यालाश्रयापि विफलापि सकंटकापि, वक्रापि पंकिलभवापि दुरासदापि | एकेन जन्तु रस केतकी सर्वभावं, एको गुण: खलु निहन्ति समस्तदोषम् || नीति का यह श्लोक बहुत ही महत्त्वपूर्ण है | इसका हिन्दी अर्थ यह है कि केतकी में अनेक कमियां होती हैं, उस पर सर्प लिपटे रहते हैं, वह फलरहित भी होती है, उसमें कांटे भी होते हैं, वह कीचड़ में भी होती है, वह दुरासद (दुष्प्राप्य) भी होती है, इत्यादि, किन्तु एक गन्ध गुण के कारण सबको प्रिय होती है | ठीक ही है, एक गुण सर्व दोषों को नष्ट कर देता है | उक्त श्लोक भारतीय संस्कृति के इस महान संदेश की सुन्दरतम प्रस्तुति है कि हमें कभी भी किसी के दोष नहीं देखना चाहिए, मात्र उसके गुण ग्रहण करना चाहिए | यदि किसी में हजार दोष हों और मात्र कोई एक ही गुण हो तो भी हमें उसके उन हजार दोषों पर ध्यान न देकर मात्र उस एक गुण पर ध्यान देना चाहिए और उसके उस एक गुण को ग्रहण कर लेना चाहिए | काश, यह बात हम सबकी समझ में आ जाए | न केवल समझ में आ जाए, जीवन में ही उतर जाए तो हमारा जीवन निहाल हो जाए |

100 Benefits of Meditation

100 Benefits of Meditation Physiological benefits: 1. It lowers oxygen consumption. 2. It decreases respiratory rate. 3. It increases blood flow and slows the heart rate. 4. Increases exercise tolerance. 5. Leads to a deeper level of physical relaxation. 6. Good for people with high blood pressure. 7. Reduces anxiety attacks by lowering the levels of blood lactate. 8. Decreases muscle tension 9. Helps in chronic diseases like allergies, arthritis etc. 10. Reduces Pre-menstrual Syndrome symptoms. 11. Helps in post-operative healing. 12. Enhances the immune system. 13. Reduces activity of viruses and emotional distress 14. Enhances energy, strength and vigor. 15. Helps with weight loss 16. Reduction of free radicals, less tissue damage 17. Higher skin resistance 18. Drop in cholesterol levels, lowers risk of cardiovascular disease. 19. Improved flow of air to the lungs resulting in easier breathing. 20. Decreases the aging process. 21. Higher levels of DHEAS (Dehydroepiandros

आठ प्रकार के शाकाहारी

विश्व में सिर्फ भारत इकलौता ऐसा देश है जहाँ 8 प्रकार के शाकाहारी लोग पाए जाते हैं:- 1- शुद्ध शाकाहारी  2- अंडा खाते हैं पर चिकन नहीं खाते। AA 3-अंडे वाला केक खा लेते हैं पर आमलेट नहीं खाते।  4- तरी खा लेते हैं पर पीस नहीं खाते  5- बाहर खा लेते हैं पर घर पर नहीं बनाते...।  6- जब पीते हैं तब खा लेते हैं नहीं पीते तो नहीं खाते.. 7- जब जबरदस्ती किया जाये तो खा लेते हैं!  सबसे बड़े शाकाहारी ये वाले हैं.......👇👇😁 8- बुध, शुक्र, रवि को चलता है लेकिन मंगल, गुरु, शनि को तो हाथ भी नहीं लगाते.....

आध्यात्मिक क्रांति का जनक श्रमण जैन चातुर्मास

*आध्यात्मिक क्रांति का जनक श्रमण जैन चातुर्मास* - प्रो. फूलचन्द जैन प्रेमी, वाराणसी      अपने भारत देश में वैदिक एवं श्रमण – ये दोनों संस्कृतियाँ प्राचीन काल से ही समृद्ध रही हैं, और इन दोनों में ही चातुर्मास का अत्यधिक महत्त्व है । श्रमण जैन परंपरा में तो चातुर्मास को चार मास के लंबे महापर्व के रूप में आयोजित किए जाने का विधान हैं ।  वर्षाकाल के आरंभ से ही चार माह के लिए एक ही स्थान पर लंबे प्रवास में साधु-साध्वियों के ज्ञान, ध्यान और संयम साधना का लाभ समाज को प्राप्त होता है । चौबीसवें एवं अंतिम तीर्थंकर भगवान महावीर के अनेक चातुर्मास का विवरण हमें प्राकृत जैनागमों से प्राप्त होता है । इस चातुर्मास काल में  आष्टान्हिक पर्व, रक्षाबंधन, पर्युषण-दशलक्षण सांवत्सरिक महापर्व, क्षमावाणी तथा तीर्थंकरों के पञ्च कल्याणकों जैसे अनेक पर्व भी मनाए जाते हैं ।      वस्तुतः यत्र-तत्र गमनागमन रूप विहारचर्या श्रमण जीवन की एक अनिवार्य एवं महत्त्वपूर्ण चर्या है । इसीलिए श्रमण को अनियत विहारी कहा जाता है । क्योंकि उत्तराध्ययन सूत्र (४/६) में कहा है कि “भारण्ड-पक्खीव चारेsप्पमत्तो” – अर्थात् श