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Showing posts from October, 2023

जैन दर्शन को जन-जन का दर्शन बनाने का सुझाव

*जैन दर्शन को जन-जन  दर्शन बनाने का सुझाव।।* संपूर्ण विश्व को शांति और अहिंसा के साथ नई दशा और दिशा देने वाले जैन समाज ने संपूर्ण विश्व में अपनी अलग पहचान स्थापित की है। अब समय आ गया है कि मानव कल्याण और सर्व समुदाय को लाभान्वित करने के लिए हमें फिर से जैन धर्म को जन-जन का दर्शन बनाने के लिए सार्थक प्रयास करना होंगा। जैन दर्शन को जन-जन का दर्शन बनाने हेतु कुछ सुझाव मैं आप सभी के समक्ष प्रस्तुत कर रहा हुं। 1. प्रत्येक जैन मन्दिर, जैन स्थानक, जैन भवन में सब वर्ण, जाति एवं,धर्म के लिए खोले जाए। साथ ही नियमो की तख्ती बाहर लगाई जाए। 2. जैन मंदिरो एवं अन्य धार्मिक स्थलों में नित्य प्रति ध्यान कराया जाए। 3. तीर्थ स्थलो मे विद्यालय, शिक्षण संस्थान खोले जाए। जैन संस्कारों को शिक्षा में नैतिक शिक्षा के माध्यम से दी जाए। प्रवेश के लिए नियम बनाए जाए और उन्हें सख्ती से लागू किया जाए। 4. जैन शिक्षण संस्थानों में आर्थिक दृष्टि से कमजोर "कर्म से जैन एवं जन्म से जैन" बच्चों को नि: शुल्क अथवा रियायती शुल्क से दाखिला दिया जाए। 5. किसी भी जैन बच्चें को जैन शिक्षण संस्थान में दाखिले के लिए मना न

संवेदना कहाँ गई ? शाकाहार कहाँ गया ?

कितना दुःख होता है न...जब कोई हमारा नजदीकी दोस्त,रिश्तेदार, संबंधी परेशानी में हो,दूर हो जाये या मर जाये।माता,पिता,भाई, बहन,बच्चे के अचानक मर जाने पर तो कभी कभी ऐसा लगता है कि हम चलती फिरती लाश हो गए।😔 आप तो बच्चा होने की खुशी में पहले ही बेबी शावर,फ़ोटो शूट करवाते हैं,अगर उसके होते ही कोई उसको आपके पास से सिर्फ इसलिए ले जाये कि उसकी चमड़ी अच्छी है,या उसके मांस का स्वाद अच्छा होगा तो भी आप उसे किसी कीमत पर जाने नहीं देंगें। ऐसा होता है न???👆🏻 क्यों न हो..जिसमें जान है,जीवन है,उसमें संवेदनाएं हैं।वो खुशी,दर्द महसूस कर सकता है। कभी आपने सोचा..🤔 यदि प्लेट में मांसाहार है,आपके पर्स, जूते में चमड़ा है तो ठहरिए और सोचिए.. जो जीव आपकी प्लेट में नए नए नामों की डिश के रूप में परोसा गया है,जिसके चमड़े के आकर्षण में आपने उसके चमड़े का बना समान लिया है.. जब एक माँ को उसके बच्चे के पास से खींच कर लाया गया होगा तो उसकी उस बच्चे को अपनी माँ से दूर हो जाने का,बिछड़ जाने का कितना दुख हुआ होगा। जिस माँ ने अपने पेट में बच्चे को रखा उसे होते ही कोई सिर्फ इसलिए ले जाये कि उसका चमड़ा या मांस उपयोग हो सकता है।य

प्राकृत वीर निर्वाण पंचक

*पाइय-वीर-णिव्वाण-पंचगं* (प्राकृत वीर निर्वाण पंचक) जआ अवचउकालस्स सेसतिणिवस्ससद्धअट्ठमासा ।   तआ होहि अंतिमा य महावीरस्स खलु देसणा ।।1।। जब अवसर्पिणी के चतुर्थ काल के तीन वर्ष साढ़े आठ मास शेष थे तब भगवान् महावीर की अंतिम देशना हुई थी । कत्तियकिण्हतेरसे जोगणिरोहेण ते ठिदो झाणे ।    वीरो अत्थि य झाणे अओ पसिद्धझाणतेरसो ।।2।। कार्तिक कृष्णा त्रियोदशी को योग निरोध करके वे (भगवान् महावीर)ध्यान में स्थित हो गए ।और (आज) ‘वीर प्रभु ध्यान में हैं’ अतः यह दिन ध्यान तेरस के नाम से प्रसिद्ध है ।  चउदसरत्तिसादीए पच्चूसकाले पावाणयरीए ।         ते  गमिय परिणिव्वुओ देविहिं  अच्चीअ मावसे ।।3।। चतुर्दशी की रात्रि में स्वाति नक्षत्र रहते प्रत्यूषकाल में वे (भगवान् महावीर) परिनिर्वाण को प्राप्त हुए और अमावस्या को देवों के द्वारा पूजा हुई । गोयमगणहरलद्धं अमावसरत्तिए य केवलणाणं ।   णाणलक्खीपूया य दीवोसवपव्वं जणवएण ।।4।। इसी अमावस्या की रात्रि को गौतम गणधर ने केवल ज्ञान प्राप्त किया ।लोगों ने केवल ज्ञान रुपी लक्ष्मी की पूजा की और दीपोत्सवपर्व  मनाया ।      कत्तिसुल्लपडिवदाए देविहिं गोयमस्स कया पूया । णूयणवरस

अन्तिम केवली श्री जम्बूस्वामी

अन्तिम केवली श्री जम्बूस्वामी निर्वाण पाये, उसी दिन किसी को केवलज्ञान नहीं हुआ था, अर्थात् उनके पश्चात् कोई अनुबद्ध केवली नहीं हुए। उनके निर्वाण के बाद कितने ही समय पश्चात् अन्तिम केवली श्रीधरभगवन्त हुए, वे कुण्डलगिरि से सिद्धपद को प्राप्त हुए। चारण ऋषिवरों ने अन्तिम ऋषिवर श्रुत, विनय और सुशीलश्री सम्पन्न ‘श्री’ नामक ऋषि हुए। मुकुटबद्ध राजाओं में चन्द्रगुप्त नामक राजा ने जिनदीक्षा अंगीकार की, तत्पश्चात् मुकुटबद्ध राजाओं में से किसी ने भी जिनदीक्षा अंगीकार नहीं की। जम्बूस्वामी के पश्चात् विष्णुनंदि, नंदिमित्र, अपराजित, गोवर्धन और भद्रबाहुस्वामी ये पाँचों ही आचार्य बारह अंग के धारक श्रुतकेवली हुए। इनका कुल सामूहिक समय सौ वर्ष का है। इनके पश्चात् कोई श्रुतकेवली नहीं हुए। अब हम इन पाँचों श्रुतकेवली भगवन्तों का संक्षिप्त परिचय देखते हैं- 1) प्रथम श्रुतकेवली श्री विष्णुनंदि : (अपरनाम विष्णु, नंदि अथवा नंदिमुनि) समय :  वीर निर्वाण संवत् 62 से 76, ईस्वी सन पूर्व 465 से 451 (14 वर्ष) जम्बूस्वामी के निर्वाण के बाद सकल सिद्धान्त के ज्ञाता श्री विष्णुनंदि आचार्य थे, जो बारह अंग के धारक प्रथम श्रुत

गौतम गणधर आदि-केवली-श्रुतकेवली परम्परा एवं मूलसंघ परम्परा

गौतम गणधर आदि-केवली-श्रुतकेवली परम्परा एवं मूलसंघ परम्परा पंचमकाल में गौतम स्वामी आदि ‘‘जिस दिन भगवान महावीर सिद्ध हुए उसी दिन गौतम गणधर केवलज्ञान को प्राप्त हुए। ये बारह वर्षों तक केवलीपद में रहकर सिद्धपद को प्राप्त हुए उसी दिन सुधर्मास्वामी केवली हुए, ये भी बारह वर्षों तक केवली रहकर मुक्त हुए तब जम्बूस्वामी केवली हुए, ये अड़तीस वर्षों तक केवली रहे, अनंतर मुक्त हो गये। पुन: कोई अनुबद्ध केवली नहीं हुए। यह १२+१२+३८=६२ वर्ष का काल अनुबद्ध केवलियों के धर्मप्रवर्तन का माना गया है। केवलियों में अंतिम केवली ‘श्रीधर’ कुण्डलगिरी से सिद्ध हुए हैं और चारण ऋषियों में अंतिम ऋषि सुपार्श्व नामक हुए हैं। प्रज्ञाश्रमणों में अंतिम वङ्कायश नामक प्रज्ञाश्रमण मुनि और अवधिज्ञानियों में अंतिम श्री नामक ऋषि हुए हैं। मुकुटधरों में अंतिम चंद्रगुप्त ने जिनदीक्षा धारण की। इससे पश्चात् मुकुटधारी राजाओं ने जैनेश्वरी दीक्षा नहीं ली है।’ अनुबद्ध केवली के अनंतर नंदी, नंदिमित्र, अपराजित, गोवर्द्धन और भद्रबाहु ये पाँच श्रुतकेवली हुए हैं। इनका काल ‘सौ वर्ष’ प्रमाण है, पुन: विशाख, प्रोष्ठिल, क्षत्रिय, जय, नाग, सिद्धार्थ,

भगवान महावीर शासन की आचार्य परम्परा

भगवान महावीर शासन की आचार्य परम्परा -उमेश जैन, फिरोजाबाद भगवान महावीर का निर्वाण ५२६ ईसा पूर्व में हुआ। उनको मोक्ष गए अब २५३० वर्ष हो रहे हैं। जैन दर्शन में यह काल भगवान महावीर का शासन काल माना जाता है। महावीर का यह शासन काल आगत चौबीसी के प्रथम तीर्थंकर के केवलज्ञान प्राप्त होने तक चलता रहेगा। संसार के इस भेद-विज्ञान को जिन्होंने जाना और समझा तथा समझकर उसे अपने जीवन में उतार कर परिभाषित किया, जन-जन को उसे जानने समझने की प्रेरणा दी वह तीर्थंकर कहलाए। वह स्वयं इस भवसागर को पार कर गए तथा उनके बताए मार्ग पर चलकर अनन्त जीव सिद्धपद को प्राप्त हुए और होते रहेंगे। यहाँ विचारणीय है कि कोई दर्शन, चिंतन सभी अक्षुण्ण रह पाता है जब उसको निष्ठापूर्वक और समर्पण भाव से पालन करने वाले जन होते हैं। भगवान महावीर वर्तमान चौबीसी के अंतिम तीर्थंकर थे। उनके निर्वाण के बाद उनके दर्शन, सिद्धान्तों को अब तक जिन्होंने अक्षुण्ण रखा वह उनके श्रमण शिष्य उनकी आचार्य परम्परा कहलाई। इन २५३० वर्षों में भगवान महावीर की आचार्य परम्परा में अनेकानेक प्रभावशाली और इतिहास प्रसिद्ध आचार्य व श्रमण जन हुए हैं, उन सबका वृत्तांन्