Skip to main content

संवेदना कहाँ गई ? शाकाहार कहाँ गया ?

कितना दुःख होता है न...जब कोई हमारा नजदीकी दोस्त,रिश्तेदार, संबंधी परेशानी में हो,दूर हो जाये या मर जाये।माता,पिता,भाई, बहन,बच्चे के अचानक मर जाने पर तो कभी कभी ऐसा लगता है कि हम चलती फिरती लाश हो गए।😔
आप तो बच्चा होने की खुशी में पहले ही बेबी शावर,फ़ोटो शूट करवाते हैं,अगर उसके होते ही कोई उसको आपके पास से सिर्फ इसलिए ले जाये कि उसकी चमड़ी अच्छी है,या उसके मांस का स्वाद अच्छा होगा तो भी आप उसे किसी कीमत पर जाने नहीं देंगें।

ऐसा होता है न???👆🏻
क्यों न हो..जिसमें जान है,जीवन है,उसमें संवेदनाएं हैं।वो खुशी,दर्द महसूस कर सकता है।
कभी आपने सोचा..🤔
यदि प्लेट में मांसाहार है,आपके पर्स, जूते में चमड़ा है तो ठहरिए और सोचिए..
जो जीव आपकी प्लेट में नए नए नामों की डिश के रूप में परोसा गया है,जिसके चमड़े के आकर्षण में आपने उसके चमड़े का बना समान लिया है..
जब एक माँ को उसके बच्चे के पास से खींच कर लाया गया होगा तो उसकी उस बच्चे को अपनी माँ से दूर हो जाने का,बिछड़ जाने का कितना दुख हुआ होगा।
जिस माँ ने अपने पेट में बच्चे को रखा उसे होते ही कोई सिर्फ इसलिए ले जाये कि उसका चमड़ा या मांस उपयोग हो सकता है।यह उस माँ के लिए कितना दुखद है जिसने अपने पेट में उसे जीवन के लिए रखा था।उसके प्रेम में उसके पेट भरने के लिए ही उसका दूध आने लगा।वो कुछ समय अपने बच्चे के साथ रहना चाहती है।
और ये सच मानिये....
आप उनके जंगलों पर कब्जा कर लेंगें पर वो आपके घरों पर,प्रॉपर्टी पर कब्जा नहीं करेंगें।❌कभी नहीं करेंगें।

वो छोटे छोटे से चूजे जो अपनी माँ के इर्द-गिर्द घूमते रहते हैं,उनके नया कोमल शरीर वातावरण में भी धीरे धीरे ढल रहा है।इतने में उसे माँ से दूर कर कोई गर्म तेल में डाल देता है।वो भी सिर्फ स्वाद के लिए???
ये मानव की विशेष शक्तियाँ हैं????🤔😒

मुझे पता है आपको पर्यावरण की चिंता है।
इसलिए पेड़ लगाएं,पानी बचायें,पॉलीथिन का उपयोग       न करें।🌳💧
बाकी जब मनुष्यों का घटना,बढ़ना प्रकृति सम्हाल रही है तो पशुओं का घटना बढ़ना भी प्रकृति पर छोड़ दीजिए।🙏
आप तो आपसी प्रेम,सहयोग,दया,करुणा,मैत्री,क्षमा आदि विशेष गुणों सहित मानव ही बने रहिए।
✍️ लेखक-
   *ज्ञाता सिंघई*
      (सिवनी)

*(कृपया मेसेज को बिना कांटे छांटे,बिना नाम हटाये ऐसे ही आगे प्रेषित करें।)*

Comments

Popular posts from this blog

जैन ग्रंथों का अनुयोग विभाग

जैन धर्म में शास्त्रो की कथन पद्धति को अनुयोग कहते हैं।  जैनागम चार भागों में विभक्त है, जिन्हें चार अनुयोग कहते हैं - प्रथमानुयोग, करणानुयोग, चरणानुयोग और द्रव्यानुयोग।  इन चारों में क्रम से कथाएँ व पुराण, कर्म सिद्धान्त व लोक विभाग, जीव का आचार-विचार और चेतनाचेतन द्रव्यों का स्वरूप व तत्त्वों का निर्देश है।  इसके अतिरिक्त वस्तु का कथन करने में जिन अधिकारों की आवश्यकता होती है उन्हें अनुयोगद्वार कहते हैं। प्रथमानुयोग : इसमें संयोगाधीन कथन की मुख्यता होती है। इसमें ६३ शलाका पुरूषों का चरित्र, उनकी जीवनी तथा महापुरुषों की कथाएं होती हैं इसको पढ़ने से समता आती है |  इस अनुयोग के अंतर्गत पद्म पुराण,आदिपुराण आदि कथा ग्रंथ आते हैं ।पद्मपुराण में वीतरागी भगवान राम की कथा के माध्यम से धर्म की प्रेरणा दी गयी है । आदि पुराण में तीर्थंकर आदिनाथ के चरित्र के माध्यम से धर्म सिखलाया गया है । करणानुयोग: इसमें गणितीय तथा सूक्ष्म कथन की मुख्यता होती है। इसकी विषय वस्तु ३ लोक तथा कर्म व्यवस्था है। इसको पढ़ने से संवेग और वैराग्य  प्रकट होता है। आचार्य यति वृषभ द्वारा रचित तिलोयपन...

णमोकार महामंत्र के 9 रोचक तथ्य

9 अप्रैल 2025 विश्व नवकार सामूहिक मंत्रोच्चार पर विशेष – *णमोकार महामंत्र के 9 रोचक तथ्य* डॉ.रूचि अनेकांत जैन प्राकृत विद्या भवन ,नई दिल्ली १.   यह अनादि और अनिधन शाश्वत महामन्त्र है  ।यह सनातन है तथा श्रुति परंपरा में यह हमेशा से रहा है । २.    यह महामंत्र प्राकृत भाषा में रचित है। इसमें कुल पांच पद,पैतीस अक्षर,अन्ठावन मात्राएँ,तीस व्यंजन और चौतीस स्वर हैं । ३.   लिखित रूप में इसका सर्वप्रथम उल्लेख सम्राट खारवेल के भुवनेश्वर (उड़ीसा)स्थित सबसे बड़े शिलालेख में मिलता है ।   ४.   लिखित आगम रूप से सर्वप्रथम इसका उल्लेख  षटखंडागम,भगवती,कल्पसूत्र एवं प्रतिक्रमण पाठ में मिलता है ५.   यह निष्काम मन्त्र है  ।  इसमें किसी चीज की कामना या याचना नहीं है  । अन्य सभी मन्त्रों का यह जनक मन्त्र है  । इसका जाप  9 बार ,108 बार या बिना गिने अनगिनत बार किया जा सकता है । ६.   इस मन्त्र में व्यक्ति पूजा नहीं है  । इसमें गुणों और उसके आधार पर उस पद पर आसीन शुद्धात्माओं को नमन किया गया है...

सम्यक ज्ञान का स्वरूप

*सम्यक ज्ञान का स्वरूप*  मोक्ष मार्ग में सम्यक ज्ञान का बहुत महत्व है । अज्ञान एक बहुत बड़ा दोष है तथा कर्म बंधन का कारण है । अतः अज्ञान को दूर करके सम्यक ज्ञान प्राप्त करने का पूर्ण प्रयास करना चाहिए । परिभाषा -  जो पदार्थ जैसा है, उसे वैसे को वैसा ही जानना, न कम जानना,न अधिक जानना और न विपरीत जानना - जो ऍसा बोध कराता है,वह सम्यक ज्ञान है । ज्ञान जीव का एक विशेष गुण है जो स्‍व व पर दोनों को जानने में समर्थ है। वह पा̐च प्रकार का है–मति, श्रुत, अवधि, मन:पर्यय व केवलज्ञान। अनादि काल से मोहमिश्रित होने के कारण यह स्‍व व पर में भेद नहीं देख पाता। शरीर आदि पर पदार्थों को ही निजस्‍वरूप मानता है, इसी से मिथ्‍याज्ञान या अज्ञान नाम पाता है। जब सम्‍यक्‍त्व के प्रभाव से परपदार्थों से भिन्न निज स्‍वरूप को जानने लगता है तब भेदज्ञान नाम पाता है। वही सम्‍यग्‍ज्ञान है। ज्ञान वास्‍तव में सम्‍यक् मिथ्‍या नहीं होता, परन्‍तु सम्‍यक्‍त्‍व या मिथ्‍यात्‍व के सहकारीपने से सम्‍यक् मिथ्‍या नाम पाता है। सम्‍यग्‍ज्ञान ही श्रेयोमार्ग की सिद्धि करने में समर्थ होने के कारण जीव को इष्ट है। जीव का अपना प्रतिभ...