*जैन दर्शन को जन-जन दर्शन बनाने का सुझाव।।*
संपूर्ण विश्व को शांति और अहिंसा के साथ नई दशा और दिशा देने वाले जैन समाज ने संपूर्ण विश्व में अपनी अलग पहचान स्थापित की है। अब समय आ गया है कि मानव कल्याण और सर्व समुदाय को लाभान्वित करने के लिए हमें फिर से जैन धर्म को जन-जन का दर्शन बनाने के लिए सार्थक प्रयास करना होंगा। जैन दर्शन को जन-जन का दर्शन बनाने हेतु कुछ सुझाव मैं आप सभी के समक्ष प्रस्तुत कर रहा हुं।
1. प्रत्येक जैन मन्दिर, जैन स्थानक, जैन भवन में सब वर्ण, जाति एवं,धर्म के लिए खोले जाए। साथ ही नियमो की तख्ती बाहर लगाई जाए।
2. जैन मंदिरो एवं अन्य धार्मिक स्थलों में नित्य प्रति ध्यान कराया जाए।
3. तीर्थ स्थलो मे विद्यालय, शिक्षण संस्थान खोले जाए। जैन संस्कारों को शिक्षा में नैतिक शिक्षा के माध्यम से दी जाए। प्रवेश के लिए नियम बनाए जाए और उन्हें सख्ती से लागू किया जाए।
4. जैन शिक्षण संस्थानों में आर्थिक दृष्टि से कमजोर "कर्म से जैन एवं जन्म से जैन" बच्चों को नि: शुल्क अथवा रियायती शुल्क से दाखिला दिया जाए।
5. किसी भी जैन बच्चें को जैन शिक्षण संस्थान में दाखिले के लिए मना न किया जाए।
6. जैन शिक्षण संस्थान समाज के लिए स्थापित किये गये है, ये कोई व्यवसायिक संस्थान नहीं है। इन संस्थानों में सेवा लक्ष्य होना चाहिए ना कि मुनाफा। पदाधिकारियों को समय निकालकर शिक्षण संस्थान में अभिभावकों से मिलना चाहिए एवं उनकी समस्यों को सुनना चहिए।
7. जैन धार्मिक स्थानो में, हफ्ते में एक दिन स्थानीय जनता के लिए स्थानीय भाषा में व्याख्यान होना चाहिए।
8. चार्तुमास काल में साधु भगवन्तों एवं जैन दर्शन के विषय में छोटी सी पुस्तिका स्थानीय भाषा में छपवाकर स्थानीय लोगों में वितरीत करनी चाहिए।
9. जैन स्थानक, जैन मन्दिर, जैन भवन आदि में वाचनालय स्थापित करे एवं उनमें जैन दर्शन सम्बन्धित साहित्य अंग्रेजी, हिन्दी एवं स्थानीय भाषा में उपलब्ध कराना चाहिए। स्थानीय भाषा में ई-पत्रिका का भी हो सके जहाँ तक प्रकाशन करावाना चहिए।
10. स्थानक, जैन मन्दिर, जैन भवन, शिक्षण ,अन्य एवम् स्वास्थ्य संस्थानों के कर्मचारियों के लिए हफ्ते में एक दिन जैन दर्शन पर आधारित कक्षा लगवायें। ड्रेस कोड बनाए। लिविंग कोड बनाये। जैसे कार्यरत कर्मचारी को मध-मांस के सेवन के लिए बाधा दिलायें। वैयावच्छ का प्रशिक्षण दिलावे।
11. सधार्मिक सेवा का कार्य करें। अपने कमजोर भाई कि सहायता करे।
12. समाजिक बन्धनों को कलमबद्ध, कर सबकी सहमति लेकर उन्हें लागू करने का प्रयास करें।
13.अपनी दान राशि में से 20 प्रतिशत स्वबन्धु के लिए खर्च करे ।
14. जैन समाज आपदा कोष की स्थापना करनी चाहिए।
15. जैनत्त्व का विकास करने के लिए चिंतन कर उनका क्रियान्वयन करना चाहिए।
16.अनेकान्तवाद में विश्वास रखते हुए आपसी झगड़ों को सुलझाना चाहिए।
17. किसी भी जैन भाई का शोषण हो रहा है तो उसकी सहायता के लिए तत्पर रहना चाहिए।
18.जैनों को संगठीत होकर रहना चाहिए। संगठित नहीं हुए तो इतिहास के पन्नो में जाना पड़ेगा।
19. भगवान महावीर के सिद्धान्तों को अपने जीवन में उतारने का लक्ष्य बनायें।
20.उनके मूल सिद्धान्त जियो और जीने दो, विवेक, जागृकत्ता, अनेकान्तवाद, देश-काल-भाव अनुसार आदि पर चल कर, जीवन में खुशहाली, समृद्धि,शान्ती का विकास लाए।
21. जैन इतिहास को जन-जन को उपल्ब्ध कराना चाहिए।
22. नवतत्व पर अनुसन्धान कर संसार के समक्ष रखना चाहिए।
*एन. सुगालचंद जैन,चेन्नई*
*दिनांक : 21-10-2023*
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