Skip to main content

Posts

Showing posts from June, 2024

क्या सिंधु सभ्यता जैन श्रमण सभ्यता है ?

*क्या सिंधु सभ्यता जैन श्रमण सभ्यता है ? इतिहासकार अर्नाल्ड जे टायनबी ने कहा था कि, विश्व के इतिहास में अगर किसी देश के इतिहास के साथ सर्वाधिक छेड़ छाड़ की गयी है, तो वह भारत का इतिहास ही है। भारतीय इतिहास का प्रारम्भ तथाकथित रूप से सिन्धु घाटी की सभ्यता से होता है, इसे हड़प्पा कालीन सभ्यता या सारस्वत सभ्यता भी कहा जाता है। बताया जाता है, कि वर्तमान सिन्धु नदी के तटों पर 3500 BC (ईसा पूर्व) में एक विशाल नगरीय सभ्यता विद्यमान थी। मोहनजोदारो, हड़प्पा, कालीबंगा, लोथल आदि इस सभ्यता के नगर थे। पहले इस सभ्यता का विस्तार सिंध, पंजाब, राजस्थान और गुजरात आदि बताया जाता था, किन्तु अब इसका विस्तार समूचा भारत, तमिलनाडु से वैशाली बिहार तक, आज का पूरा पाकिस्तान एवं अफगानिस्तान तथा (पारस) ईरान का हिस्सा तक पाया जाता है। अब इसका समय 7000 BC  से भी प्राचीन पाया गया है। इस प्राचीन सभ्यता की सीलों, टेबलेट्स और बर्तनों पर जो लिखावट पाई जाती है उसे सिन्धु घाटी की लिपि कहा जाता है। इतिहासकारों का दावा है, कि यह लिपि अभी तक अज्ञात है, और पढ़ी नहीं जा सकी। जबकि सिन्धु घाटी की लिपि से समकक्ष और तथा

एक शिक्षक के जीवन की अंतिम शाम

यह एक शिक्षक के जीवन की अंतिम शाम थी"...                *दिनकर सर .....अपने  विद्यार्थियों के बीच  काफी लोकप्रिय  एक सेवा निवृत शिक्षक।   3 दिन पूर्व ही  शहर के एक अस्पताल में इलाज के चलते उनका  देहावसान हो गया था।* *उनको श्रद्धांजलि देने हेतु  आज प्रार्थना सभा आयोजित की गई थी। समय हो चला था इसलिए लोगे एकत्रित हो रहे थे।*  *ठीक समय पर सभा शुरू हुई। एक-एक कर  उनके विद्यार्थियों ने और कुछ  लोगों ने उनके व्यक्तित्व और कृतित्व पर प्रकाश डाला।* *अभी सभा चल ही रही थी कि एक अनजान व्यक्ति ने प्रवेश किया और यह कहते हुए सबको चौंका दिया कि अस्पताल में दिनकर सर के  बेड पर तकिये के नीचे यह लिफाफा मिला , जिस पर लिखा है कि इसे  मेरी प्रार्थना सभा में ही खोला जाए।* *दिनकर सर की इच्छा के अनुरूप एक व्यक्ति ने लिफाफा खोला। लिफाफे एक पत्र प्राप्त हुआ। माइक से उस पत्र का वाचन शुरू किया-* *"प्रिय आत्मीय बंधुओ,* *जब यह पत्र पढ़ा जा रहा होगा  तब तक मैं संसार से विदा ले चुका होंगा मेरा यह पत्र मुख्यतः शिक्षकों से अपने  जीवन के अनुभव बांटने के लिए है।अगर वह इससे कुछ प्रेरणा ले सके तो मैं अपने जीवन को

षटखंडागम महाग्रंथ और कषाय पाहुड

*षटखंडागम महाग्रंथ*           और     *कषाय पाहुड*            की *धवला, जयधवला और महाधवला* 🌹 *टीकाओं के संदर्भ में विशेष विमर्श* 🍁 *जीवस्थान खंड,खुद्दाबंध खंड ,बंधस्वामित्व विचय खंड, वेदना खंड,वर्गणा खंड और महाबंध खंड - ये षटखंड हैं, इनसे रचित ग्रंथ को षटखंडागम कहते हैं।* *यह ग्रंथ आचार्य पुष्पदंत और आचार्य भूतबली की रचना है।इसकी टीकाओं को धवला,महाधवला कहा जाता है।* 🍁 *षटखंडागम महाग्रंथ पर 12000 श्लोक प्रमाण टीका -परिकर्म*  *नाम से आचार्य कुंदकुंद के द्वारा सर्वप्रथम लिखी गई थी, जो अनुपलब्ध है।* 🍁 *32 अक्षरों का एक श्लोक माना जाता है।* 🍁 *8वीं शती में आचार्य वीरसेन स्वामी ने इस पर पांच खंडों पर 72 हजार श्लोक प्रमाण धवला नामक टीका लिखी गई।* *जो सोलह पुस्तकें हैं।* 🍁 *कषायपाहुड अपरनाम पेज्जदोसपाहुड आचार्य गुणधर रचित है। 16000 पद प्रमाण कसायपाहुड के विषय को संक्षेप में 180 गाथासूत्रों में लिपिबद्ध किया गया।* *पेज्ज शब्द का अर्थ राग है और दोस का अर्थ द्वेष है। यह ग्रंथ राग और द्वेष का निरूपण करता है।क्रोधादि कषायों की परिणति और उनकी प्रकृति,स्थिति,अनुभाग एवं प्रदेशबंध संबधि विशेषताओं