Skip to main content

भारत लॉक डाउन पर जैन समाज का अनुकरणीय सहयोग

*भारत लॉक डाउन पर जैन समाज का अनुकरणीय सहयोग*

*प्रो. अनेकांत कुमार जैन*, अध्यक्ष -  जैन दर्शन विभाग ,श्री लाल बहादुर शास्त्री राष्ट्रीय संस्कृत विश्वविद्यालय ,
नई दिल्ली -१६

इतिहास गवाह है कि जैन धर्म तथा समाज राष्ट्र में मुसीबत के समय हमेशा कदम से कदम मिलाकर साथ देता है । 

राष्ट्र व्यापी लॉक डाउन के समर्थन में अपने जैन मंदिरों पर ताले लगा देना ,जैन समाज की समकालीनता और आध्यात्मिकता का सूचक है ।

जैन परम्परा में प्रतिदिन देव दर्शन तथा जिनालय में जिनबिम्ब का अभिषेक तथा पूजन एक अनिवार्य शर्त है जिसका कड़ाई से पालन होता है किन्तु करोना वायरस के प्रकोप के चलते राष्ट्रीय लॉक डाउन की घोषणा के तहत  ये नियमित अनिवार्य अनुष्ठान भी टाल कर जैन समाज ने यह सिद्ध कर दिया है कि राष्ट्र हित से बढ़कर कुछ भी नहीं है । जब ऐसे समय में कई संप्रदाय अंध श्रद्धा के वशीभूत होकर अपनी कट्टर सोच और क्रिया में जरा सा भी परिवर्तन नहीं करते हैं वहीं जैन धर्म हमेशा से समकालीन युग चेतना को बहुत ही विवेक से संचालित करता है । यह प्रेरणा उन्हें तीर्थंकरों की अनेकांतवादी शिक्षा से प्राप्त होती है । 

दरअसल जैन दर्शन  में निश्चय और व्यवहार इन दो धर्मों का उपदेश दिया गया है जिसमें निश्चय धर्म आध्यात्मिक है और व्यवहार धर्म क्रिया प्रधान और हमेशा ही इन दोनों धर्मों में संतुलन रखने की शिक्षा दी गई है ।

इसमें भी व्यवहार धर्म की अपनी सीमाएं निर्धारित की गईं हैं जो अनिवार्य और आवश्यक होते हुए भी देश काल परिस्थिति के अनुसार परिवर्तनीय माना गया है ।

व्यवहार धर्म उपचार से ग्राह्य है तथा इसके सभी रूप तभी तक वैध है जब तक वे निश्चय धर्म के अनुगामी होते हैं ।निश्चय धर्म वास्तविक होता है और वह आत्मा के आश्रित होने से आध्यात्मिक कहलाता है । निश्चय धर्म के अभाव में व्यवहार धर्म अप्रभावी होता है ।

ऐसे संकट के समय में जब व्यवहार धर्म लॉक डाउन है तब उदारवादी जैन धर्म व्यवहार की नई परिभाषा , नई क्रिया स्थापित करके अपने निश्चय धर्म की सुरक्षा में लगा है क्यों कि वह ही वास्तविक धर्म है ।

बिना किसी संकोच के वृहत्तर भारत वर्ष की सम्पूर्ण जैन समाज ने चैत्र कृष्ण आदिनाथ नवमी से लेकर चैत्र शुक्ला महावीर त्रियोदशी तक आदिनाथ जयंती तथा महावीर जयंती के अपने सभी छोटे बड़े कार्यक्रम बहुत ही सहजता से रद्द कर दिए ।आगे तक के अनेक पंचकल्याणक प्रतिष्ठा महोत्सव ,शिविर ,संगोष्ठी आदि ऐतियात के तौर पर रद्द कर दिए हैं अथवा टाल दिए हैं |इसमें किसी ने भी सांप्रदायिक कट्टरवाद नहीं दिखाया । 

जैन समाज में बिना जिन दर्शन और पूजन के लाखों लोग जल तक ग्रहण नहीं करते हैं और ऐसा उनका आजीवन का व्रत है किन्तु उन्होंने भी इस लड़ाई में इसके विकल्प तलाश कर सावधानी रखी है ।

करोना को लेकर जितनी भी हिदायतें सरकार द्वारा दी जा रही हैं ,उससे भी ज्यादा क्वारनटाईन  और आइसोलेशन का अभ्यास जैन परिवारों में *सोला* के रूप में जैन आचार मीमांसा के तहत पहले से अभ्यास होने से उन्हें इसमें ज्यादा दिक्कत नहीं आ रही है । 

जैन मंदिरों , स्थानकों आदि में सामूहिक स्वाध्याय तथा सामायिक ,प्रवचन आदि का नियमित विधान है तथा साधु और श्रावक लोग इसका नियमित पालन करते हैं किन्तु बड़ी ही सहजता से उन्हें अब यह संदेश दिया जा रहा है कि यह कार्य चूंकि एकांत में कठिन हो गया था अतः सामूहिक करते थे किन्तु अब लॉक डाउन वास्तव में हमें वास्तविक एकांत उपासना का अवसर दे रहा है ।

 जैन धर्म की यही अनेकांत वादी सोच उसे flexible बनाती है । जैन संदेश सदा से  कट्टरता में नहीं , बल्कि उदारता में धर्म कहता आया है । 

जब आंधी तूफान आते हैं तब अकड़ कर खड़े बड़े बड़े पेड़ भी उखड़ जाते हैं किन्तु  थोड़ा झुकने वाले पौधे और घास बने रहते हैं और संकट टल जाने पर पुनः लह लहाने लगते हैं । 

आज जैन समाज के सभी आचार्य संत अपने श्रावकों को ऐसी ही प्रेरणा दे रहे हैं उन्होंने अपने सामूहिक प्रवचन भी रद्द कर दिए हैं । जैन मुनि अपने सभी श्रावक अनुयायियों को लगातार राष्ट्र और सरकार का सहयोग करने की प्रेरणा देने वाले सन्देश प्रसारित कर रहे हैं |

आज सोशल मीडिया के सभी जैन ग्रुप प्रवचनों , भजनों , स्वाध्याय ज्ञान विज्ञान की प्रतियोगिताओं से भरे पड़े हैं ताकि श्रावक इस विषम परिस्थिति में भी अपनी साधना घर पर रहकर कर सकें ।श्रावक घरों में रह कर सिर्फ उपासना ही नहीं कर रहे हैं बल्कि राष्ट्र में सुख और शांति की कामना भी कर रहे हैं | अनेक प्राचीन मन्त्र और स्तोत्र ऐसे हैं जिनको पढने से प्राचीन काल में अनेक प्रकोपों पर मुक्ति प्राप्ति के शास्त्र प्रमाण हैं अतः जैन साधू सभी जीवों के कल्याण के लिए निरंतर उनकी साधना कर रहे हैं | उन मन्त्रों और स्तोत्रों का पाठ गृहस्थ श्रावक अपने घरों में सभी जीवों के कल्याण की भावना से कर रहे हैं | अनेक जैन विद्वान विदुषी शास्त्रों को ऑनलाइन पढ़ाकर लोगों का ज्ञान और विपरीत परिस्थिति में मनोबल मजबूत कर रहे हैं |

प्रधानमंत्री राहत कोष में अनेक सामर्थ्यवान जैन श्रावक  करोड़ों का दान दे रहे हैं । अन्य श्रावक यथा शक्ति दान दे रहे हैं । आसपास गरीबों को भोजन आदि भी वितरित करवा रहे हैं ।पशुओं की रक्षा के उपाय कर रहे हैं | आज वे राष्ट्र को हर तरह का सहयोग कर रहे हैं ।पिछली जनगणना के अनुसार भारत में जैन समाज महज ४५ लाख की आबादी वाली सर्वाधिक अल्पसंख्यक समाज है जो भारत की सम्पूर्ण जनसँख्या के एक प्रतिशत का भी बहुत छोटा सा हिस्सा है |लेकिन इसके बावजूद भी वे अपने अहिंसक संस्कारों से,समर्पण से राष्ट्र निर्माण में तन मन धन से जो योगदान दे रहे हैं वह वास्तव में अनुकरणीय है |

सांप्रदायिक विद्वेष की मानसिकता से ऊपर उठकर यदि कोई भी जैन धर्म दर्शन ,संस्कृति और परंपरा को देखेगा,उसका बारीकी से अध्ययन करेगा, तो उसे उसमें विश्व की सभी समस्याओं का समाधान और शांति का सच्चा मार्ग मिलेगा - ऐसा मेरा दृढ़ विश्वास है ।

बस आंख खोलने की जरूरत है , बाकी करोना ने जैन धर्म के सिद्धांत मानने पर विवश तो कर ही दिया है ।

तीर्थंकर महावीर का  *जिओ और जीने दो* संदेश बहुत प्रसिद्ध हुआ अब वर्तमान में लॉक डाउन की परिस्थिति में उनका यह संदेश प्रसिद्ध होना चाहिए जिसमें उन्होंने कहा था निज घर में *रहो और रहने दो* ।
 drakjain2016@gmail.com

9711397716

Comments

Popular posts from this blog

जैन ग्रंथों का अनुयोग विभाग

जैन धर्म में शास्त्रो की कथन पद्धति को अनुयोग कहते हैं।  जैनागम चार भागों में विभक्त है, जिन्हें चार अनुयोग कहते हैं - प्रथमानुयोग, करणानुयोग, चरणानुयोग और द्रव्यानुयोग।  इन चारों में क्रम से कथाएँ व पुराण, कर्म सिद्धान्त व लोक विभाग, जीव का आचार-विचार और चेतनाचेतन द्रव्यों का स्वरूप व तत्त्वों का निर्देश है।  इसके अतिरिक्त वस्तु का कथन करने में जिन अधिकारों की आवश्यकता होती है उन्हें अनुयोगद्वार कहते हैं। प्रथमानुयोग : इसमें संयोगाधीन कथन की मुख्यता होती है। इसमें ६३ शलाका पुरूषों का चरित्र, उनकी जीवनी तथा महापुरुषों की कथाएं होती हैं इसको पढ़ने से समता आती है |  इस अनुयोग के अंतर्गत पद्म पुराण,आदिपुराण आदि कथा ग्रंथ आते हैं ।पद्मपुराण में वीतरागी भगवान राम की कथा के माध्यम से धर्म की प्रेरणा दी गयी है । आदि पुराण में तीर्थंकर आदिनाथ के चरित्र के माध्यम से धर्म सिखलाया गया है । करणानुयोग: इसमें गणितीय तथा सूक्ष्म कथन की मुख्यता होती है। इसकी विषय वस्तु ३ लोक तथा कर्म व्यवस्था है। इसको पढ़ने से संवेग और वैराग्य  प्रकट होता है। आचार्य यति वृषभ द्वारा रचित तिलोयपन...

सम्यक ज्ञान का स्वरूप

*सम्यक ज्ञान का स्वरूप*  मोक्ष मार्ग में सम्यक ज्ञान का बहुत महत्व है । अज्ञान एक बहुत बड़ा दोष है तथा कर्म बंधन का कारण है । अतः अज्ञान को दूर करके सम्यक ज्ञान प्राप्त करने का पूर्ण प्रयास करना चाहिए । परिभाषा -  जो पदार्थ जैसा है, उसे वैसे को वैसा ही जानना, न कम जानना,न अधिक जानना और न विपरीत जानना - जो ऍसा बोध कराता है,वह सम्यक ज्ञान है । ज्ञान जीव का एक विशेष गुण है जो स्‍व व पर दोनों को जानने में समर्थ है। वह पा̐च प्रकार का है–मति, श्रुत, अवधि, मन:पर्यय व केवलज्ञान। अनादि काल से मोहमिश्रित होने के कारण यह स्‍व व पर में भेद नहीं देख पाता। शरीर आदि पर पदार्थों को ही निजस्‍वरूप मानता है, इसी से मिथ्‍याज्ञान या अज्ञान नाम पाता है। जब सम्‍यक्‍त्व के प्रभाव से परपदार्थों से भिन्न निज स्‍वरूप को जानने लगता है तब भेदज्ञान नाम पाता है। वही सम्‍यग्‍ज्ञान है। ज्ञान वास्‍तव में सम्‍यक् मिथ्‍या नहीं होता, परन्‍तु सम्‍यक्‍त्‍व या मिथ्‍यात्‍व के सहकारीपने से सम्‍यक् मिथ्‍या नाम पाता है। सम्‍यग्‍ज्ञान ही श्रेयोमार्ग की सिद्धि करने में समर्थ होने के कारण जीव को इष्ट है। जीव का अपना प्रतिभ...

जैन चित्रकला

जैन चित्र कला की विशेषता  कला जीवन का अभिन्न अंग है। कला मानव में अथाह और अनन्त मन की सौन्दर्यात्मक अभिव्यक्ति है। कला का उद्भव एवं विकास मानव जीवन के उद्भव व विकास के साथ ही हुआ है। जिसके प्रमाण हमें चित्रकला की प्राचीन परम्परा में प्रागैतिहासिक काल से ही प्राप्त होते हैं। जिनका विकास निरन्तर जारी रहा है। चित्र, अभिव्यक्ति की ऐसी भाषा है जिसे आसानी से समझा जा सकता है। प्राचीन काल से अब तक चित्रकला की अनेक शैलियां विकसित हुईं जिनमें से जैन शैली चित्र इतिहास में अपना विशिष्ट स्थान रखती है। जैन चित्रकला के सबसे प्राचीन चित्रित प्रत्यक्ष उदाहरण मध्यप्रदेश के सरगुजा राज्य में जोगीमारा गुफा में मिलते है। जिसका समय दूसरी शताब्दी ईसापूर्व है।१ ग्यारहवीं शताब्दी तक जैन भित्ति चित्र कला का पर्याप्त विकास हुआ जिनके उदाहरण सित्तनवासल एलोरा आदि गुफाओं में मिलते है। इसके बाद जैन चित्रों की परम्परा पोथी चित्रों में प्रारंभ होती है और ताड़पत्रों, कागजों, एवं वस्त्रों पर इस कला शैली का क्रमिक विकास होता चला गया। जिसका समय ११वीं से १५वी शताब्दी के मध्य माना गया। २ जैन धर्म अति प्राचीन एवं अहिंसा प्र...