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जैन परंपरा में व्रत उपवास का मतलब

● चोविहार - किसी भी तपस्या में सूर्य छिपने के बाद से सूर्य निकलने तक कुछ भी न खाना होता न पीना होता,जिसे चौविहार कहते है !

● तिविहार - में केवल पानी छोडकर बाकी सब चीजों का त्याग होता है !

● उपवास -  तपस्या वाले दिन से पहले दिन भी रात्री से त्याग (चौविहार) होना चाहिए तथा अधिकतर समय धर्मध्यान शास्त्र-श्रवण, स्वाध्याय आदि - आदि में बिताना चाहिए !

1. नवकारसी - सूर्य निकलने के बाद दो घड़ी यानी 48 मिनट तक मुहं में कुछ भी नही डालना !

2. पोरिसी(प्रहर) -  सूर्य निकलने के बाद लगभग तीन घंटे तक मुहं में कुछ नही डालना!

3. एकासना - सिर्फ दिन में केवल एक बार ही, एक जगह ही बैठकर (बैठने के बाद उठना नही) खाना,पीना! पहले या बाद में उबला हुआ जल कितनी ही बार ले सकते है! वह भी सिर्फ दिन में।

4. बियासना - इसमें सिर्फ दिन में दो बार खा सकते है एक जगह बैठ कर बाकी एकासने की तरह! वह भी दिन में।

5. एकलठाणा - इसमें पानी भी केवल एक बार भोजन के समय ही लेना होता है, बाकी एकासन की तरह!

6. आयम्बिल - दिन में एक ही बार एक जगह बैठकर उबला जल के साथ एक ही रूखे सूखे अचित धान्य का सेवन करना यानी न नमक, न मिर्च, न घी, न मीठा! जैसे रुखी रोटी उबले हुए या भुने हुए चने, चावल, मुरमुरे आदि उबला जल पहले या बाद में कभी भी ले सकते है !

7. नीवी - ये भी आयम्बिल की तरह है फर्क इतना ही है की इसमें रुखा धान्य पानी की जगह छाछ(मक्खन रहित लस्सी) के साथ लिया जाता है 

8. उपवास (व्रत) 
 तिविहार उपवास- दिन भर में केवल उबला जल ही लेना।
चौविहार उपवास-जल भी न लेना।
( इस तरह कसे 1, 3, 5, 8, 9, 11, 15, 21, 31, 41, 51 या यथा शक्ती आगे भी उपवास  करते है)

9. पौषध - ये भी उपवास की तरह है, अंतर-इसमें दिन रात सामयिक (जैन साधु वेष) के वेष में धर्मस्थान मे ही रहा जाता है! संसार परिवार, व्यापार आदि से कोई सम्बन्ध नही रखा जाता! बिजली,पंखे,गादी आदि का प्रयोग नही करना होता ! अट्ठारह पापों का त्याग करके धर्म-ध्यान, प्रवचन-श्रवण आत्मचिंतन आत्म-संशोधन में समय लगाया जाता है !

10. दिवस चरम पचक्खाण- सूर्यास्त से कम से कम आधा घंटा पहले अगले दिन सूर्योदय तक के लिए भोजन व जल आदि का त्याग कर देना!

11. अभिग्रह मन में कोई संकल्प कर लेना यदि वो पूरा हो जाए तो भोजन ग्रहण करना वरना पूरे दिन रात निराहार रहना ! जेसे भोजन में चावल बने होगे तो भोजन करूंगा आदि ! अभिग्रह गुप्त रखा जाता है!

● सम्वत्सरी पर्व(पर्युषण महापर्व का अंतिम आठवा दिन) पर  जादातर जैन भाई-बहन उपवास,पौषध करते ही है !

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