Skip to main content

Posts

Showing posts from February, 2023

21वी शताब्दी का धर्म होगा : जैन धर्म - श्री मुजफ्फर हुसैन, मुंबई

चित्र : छाला गॉंव के जैन मंदिर में विराजमान स्फटिक मणि की तीर्थंकर ऋषभदेव की प्राचीन प्रतिमा (चैतन्यधाम ,अहमदाबाद के पास) २१ वी शताब्दी का धर्म होगा : जैन धर्म !*_ _*लेखक : श्री मुजफ्फर हुसैन, मुंबई !*_ _*हम यहां कर्मकांड के रूप में नहीं, बल्कि दर्शन के आधार पर यह कहना चाहेंगे कि २१ वीं शताब्दी का धर्म जैन धर्म होगा ! इसकी कल्पना किसी सामान्य आदमी ने नहीं की है बल्कि ज्योर्ज़ बर्नार्ड शा ने कहा है कि यदि मेरा दूसरा जन्म हो तो मैं जैन धर्म में पैदा होना चाहता हूॅं ।*_  _*रेवरेंड तो यहाॅं तक कहता हैं कि दुनिया का पहला मजहब जैन था । और अंतिम मजहब भी जैन होगा । बार्ल्ट यू एस एस के दार्शनिक मोराइस का तो यहां तक कहना है कि यदि जैन धर्म को दुनिया ने अपनाया होता तो यह दुनिया और भी बड़ी खूबसूरत होती ।*_ _*जैन धर्म.... धर्म नहीं जीने का दर्शन है । सरल भाषा में मैं कहूॅं तो यह खुला विश्वविद्यालय है । आपको जीवन का जो पहलू चाहिए वह यहाॅं मिल जाएगा । दर्शन ही नहीं बल्कि संस्कृति, कला, संगीत एवं भाषा का यह अद्भूत संगम है। जैन तीर्थंकरोंने संस्कृत को अपनाकर पाली और प्राकृत, अर्ध-मागधी, को

क्या आप मांसाहारी हैं ?

यदि आप मांस का भोजन करते हैं, तो यह मनुष्यता से बाहर है. क्योंकि आप जिस भी प्राणी का मांस खायेंगे, वह प्राणी भी किसी न किसी की तो संतान होगा ही. क्या हम अपनी संतान को मार कर खा सकते हैं ? यदि नहीं, तो हमें दूसरे की संतान को मार कर खाने का क्या अधिकार है ? क्या मानव अधिकार आयोग सिर्फ मानवों के अधिकार की ही रक्षा के लिए बना है ? क्या पशु पक्षियों के अधिकारों की रक्षा की चिंता उसको नहीं करनी चाहिए. क्या पशु पक्षियों के अधिकारों की रक्षा के लिए कोई आयोग बनाने की हिम्मत करेगा ? सम्पूर्ण मानवता की ओर से  स्वागत है उन महापुरुषों का, जो पशु पक्षियों के अधिकारों की रक्षा के लिए आयोग बनायेंगे.

प्राकृत भाषा के ऋद्धि मंत्र

    णमो   जिणाणं  -  ऐसे   ऋधिधारी   मुनिराज   जिन्होने   क्रोध   मान   माया   और   लोभ   को   जीत   लिया   है ,  उन्हें   मेरा   प्रमाण   होवे   ।         णमो     ओहि   जिणाणं    -  ऐसे   ऋधिधारी   मुनिराज   जिन्हे   अवधि   ज्ञान   प्राप्त   है ,  उन्हें   मेरा   प्रमाण   होवे   ।        णमो     परमोहि    जिणाणं   -   ऐसे   ऋधिधारी   मुनिराज   जिन्हे    परमावधि   ज्ञान   प्राप्त   है ,  उन्हें   मेरा   प्रमाण   होवे   ।         णमो     सव्वोहि    जिणाणं   -   ऐसे   ऋधिधारी   मुनिराज   जिन्हे   सर्वावधि   ज्ञान   प्राप्त   है ,  उन्हें   मेरा   प्रमाण   होवे   ।            णमो     अणंतोहि   जिणाणं  -   ऐसे   ऋधिधारी   मुनिराज   जिनकी   मर्यादा   अनन्त   है ,  उन्हें   मेरा   प्रमाण   होवे   ।              णमो   विउल   मदीणं   -  ऐसे   ऋधिधारी   मुनिराज   जिन्हें   विपुलमती   मनःपर्यय   ज्ञान   है ,  उन्हें   मेरा   प्रमाण   होवे   ।           णमो   विज्जाहराणं  -  -  ऐसे   ऋधिधारी   मुनिराज   जिन्हैं   अनेक   विद्याएँ   प्राप्त   हों  ,  उन्हें   मेरा   प्रमाण   होवे   ।  

शिक्षक का अदभुत ज्ञान : शाकाहारी - मांसाहारी ?

शिक्षक का अदभुत ज्ञान शाकाहारी - मांसाहारी एक बार एक चिंतनशील शिक्षक ने अपने 7th - 8th स्टेंडर्ड के बच्चों से पूछा कि  आप लोग कहीं जा रहे हैं और  सामने से कोई कीड़ा मकोड़ा या कोई साँप, छिपकली या कोई गाय-भैंस या अन्य कोई ऐसा विचित्र जीव दिख गया, जो आपने जीवन में पहले कभी नहीं देखा हो, तो प्रश्न यह है कि  आप कैसे पहचानेंगे कि  वह जीव *अंडे* देता है *या बच्चे* ?   क्या पहचान है उसकी ? अधिकांश बच्चे मौन रहे  जबकि कुछ बच्चों में बस आंतरिक खुसर-फुसर चलती रही...। मिनट दो मिनट बाद  फिर उस चिंतनशील शिक्षक ने स्वयं ही बताया कि  बहुत आसान है,,  जिनके भी *कान बाहर* दिखाई देते हैं *वे सब बच्चे देते हैं*  और जिन जीवों के *कान बाहर नहीं* दिखाई देते हैं  *वे अंडे* देते हैं.... ।। फिर दूसरा प्रश्न पूछा कि–  ये बताइए आप लोगों के सामने एकदम कोई प्राणी आ गया... तो आप कैसे पहचानेंगे की यह *शाकाहारी है या मांसाहारी ?*   क्योंकि आपने तो उसे पहले भोजन करते देखा ही नहीं,  बच्चों में फिर वही कौतूहल और खुसर फ़ुसर की आवाजें.....  शिक्षक ने कहा–  देखो भाई बहुत आसान है,,  जिन जीवों की *आँखों की बाहर की यान

श्रमण संस्कृति का वैशिष्ट्य और इसके इतिहास के पुनर्लेखन की आवश्यता

श्रमण संस्कृति का वैशिष्ट्य                  और इसके  इतिहास के पुनर्लेखन की आवश्यता      - प्रो० फूलचन्द जैन प्रेमी,   पूर्व प्रोफेसर एवं अध्यक्ष,जैनदर्शन विभाग, सम्पूर्णानन्द संस्कृत विश्वविद्यालय,वाराणसी।                                        पृष्ठभूमि– श्रमण संस्कृति की प्राचीनता और व्यापकता :     भारतीय संस्कृति की प्रमुख दो धारायें श्रमण और वैदिक परम्परायें प्राचीन काल से ही सुविख्यात हैं। इनमें भारतीय संस्कृति के विकास में श्रमण संस्कृति का बहुमूल्य योगदान है। अत्यन्त प्राचीनकाल से प्रवहमान श्रमण संस्कृति भारत की मूल संस्कृतियों में प्रमुख है। जिन विशेषताओं के कारण यह संस्कृति सदैव से गरिमा मण्डित रही है, उनमें श्रम, संयम, त्याग जैसे आध्यात्मिक और नैतिक मूल्यों का महत्त्वपूर्ण स्थान है। ।अहिंसा मूलक संस्कृति का यह सर्वोत्तम आदर्श है। यह संस्कृति सुदूर अतीत में जैनधर्म के आद्य (प्रथम) तीर्थंकर आदिनाथ ऋषभदेव द्वारा प्रवर्तित हुई। विभिन्न कालखण्डों और क्षेत्र विशेषों में यह श्रमण संस्कृति आर्हत्, व्रात्य, श्रमण, निर्ग्रन्थ, जिन और जैन इत्यादि नामों से सदा विद्यमान रही

स्याद्वाद मेरे लिए अमृत है

*प्राक्कथन*  स्याद्वाद मेरे लिए अमृत है, संजीवनी है, इसने मुझे मरने से बचाया है | इसे पढ़कर मेरा जीवन बदल गया है | मैं एकदम सुलझ गया हूँ | मैं प्रकृति से दार्शनिक स्वभाव का हूँ और अपने छात्र-जीवन से ही दुनिया के सभी दर्शनों को अनाग्रह भाव से पढ़ने-समझने का प्रयास करता रहा हूँ | किन्तु इस स्थिति में एक समय ऐसा आया था जब मैं बहुत परेशान हो गया था, मुझे लगने लगा था कि मैं जीवन में कभी भी दर्शन-जगत की इन गुत्थियों को नहीं सुलझा सकूँगा, सत्य क्या है -यह नहीं जान सकूँगा, मेरा पूरा जीवन ऐसे ही चला जाएगा | मुझे लगने लगा था कि सत्य शायद किसी को भी पता ही नहीं है, सब कोरा मानसिक व्यायाम कर रहे हैं |           इस प्रकार सत्य की खोज में विविध दर्शनों और दार्शनिकों को पढ़ते हुए भी मैं अपने अन्दर में अत्यधिक परेशान रहने लगा था, बेचैन रहने लगा था, आकुल-व्याकुल रहने लगा था; किन्तु जब से मैंने स्याद्वाद को पढ़ा-समझा है, मेरी दुनिया बदल गई है, मेरी सारी व्याकुलता मिट गई है, मैं बहुत शान्त और प्रसन्न हो गया हूँ, ऐसा लगता है मानों मुझे अमृत मिल गया है | यद्यपि मैंने जब स्याद्वाद को पढ़ना-समझना प्रा

The meaning of being 'Rāma'

The meaning of being 'Rāma' from the spiritual point of view - An independent reflection ✍️ (short note) “Rāma Nāma Satya Hai” . This is the eternal truth undoubtedly, But today we have changed the meaning of this sentence because it is traditionally uttered in the funeral procession; whereas Rāma is not the name of mortality, Rāma is the name of immortality. Kabirdas ji has said - Soul and Rāma are one. On this basis, if we look at Rāma from the point of view of the literal meaning of the word, instead of taking it as a person, then we can also call Rāma a synonym for the soul.  It is said in the Brahmavaivarta Purana – “Rāma Śabdo Vishwavachano, mashwāpishwar vāchakah”...That means the word ‘Ra’ signifies ‘paripurnata’ (completeness) and ‘Ma’ signifies ‘parameshwara’ (a super being or the deity). On consideration, the essence of that - the one who is full of infinite attributes cannot be anything other than the ‘Soul’, and that soul only have an ability to become