नामकरण
भारतीय समाज के एक बहुत बड़े वर्ग को न जाने हो क्या गया है? समाज पथभ्रष्ट एवं दिग्भ्रमित हो गया है.
एक सज्जन ने अपने बच्चों से परिचय कराया, बताया पोती का नाम *#अवीरा* है, बड़ा ही #यूनिक_नाम रखा है।
पूछने पर कि इसका *अर्थ क्या है*,
बोले कि बहादुर,ब्रेव,कॉन्फिडेंशफुल।
सुनते ही दिमाग चकरा गया। फिर बोले कृपा करके बताएं आपको कैसा लगा?
मैंने कहा बन्धु अवीरा तो बहुत ही *अशोभनीय नाम है*। नहीं रखना चाहिए.
उनको बताया कि
जिस स्त्री के पुत्र और पति न हों. पुत्र और पतिरहित स्वतंत्र (स्त्री) उसका नाम होता है अवीरा.
नास्ति वीरः पुत्त्रादिर्यस्याः सा अवीरा
उन्होंने बच्ची के नाम का अर्थ सुना तो बेचारे मायूस हो गए, बोले महोदय क्या करें अब तो स्कूल में भी यही नाम हैं बर्थ सर्टिफिकेट में भी यही नाम है। क्या करें?
*आजकल लोग नया करने की ट्रेंड में* कुछ भी अनर्गल करने लग गए हैं जैसे कि
*लड़की हो* तो मियारा, शियारा, कियारा, नयारा, मायरा तो अल्मायरा ...
*लड़का हो* तो वियान, कियान, गियान, केयांश ...
और तो और इन शब्दों के अर्थ पूछो तो दे गूगल ... दे याहू ...
और उत्तर आएगा "इट मीन्स रे ऑफ लाइट" "इट मीन्स गॉड्स फेवरेट" "इट मीन्स ब्ला ब्ला"
*नाम को यूनीक रखने के फैशन* के दौर में एक सज्जन ने अपनी गुड़िया का नाम रखा *"श्लेष्मा"*.
स्वभाविक था कि नाम सुनकर मैं सदमे जैसी अवस्था में था.
सदमे से बाहर आने के लिए मन में विचार किया कि हो सकता है इन्होंने कुछ और बोला हो या इनको इस शब्द का अर्थ पता नहीं होगा तो मैं पूछ बैठा "अच्छा? श्लेष्मा! इसका *अर्थ क्या होता है*?
तो महानुभाव नें बड़े ही कॉन्फिडेंस के साथ उत्तर दिया "श्लेष्मा" का अर्थ होता है "जिस पर मां की कृपा हो" मैं सर पकड़ कर 10 मिनट मौन बैठा रहा !
मेरे भाव देख कर उनको यह लग चुका था कि कुछ तो गड़बड़ कह दिया है तो पूछ बैठे.
क्या हुआ मैंने कुछ ग़लत तो नहीं कह दिया?
मैंने कहा बन्धु तुंरत प्रभाव से बच्ची का नाम बदलो क्योंकि *श्लेष्मा का अर्थ होता है "नाक का कचरा" गुज्जी* उसके बाद जो होना था सो हुआ.
यही हालात है समाज के एक बहुत बड़े वर्ग का।
*फैशन के दौर में* फैंसी कपड़े पहनते पहनते अर्थहीन, अनर्थकारी, बेढंगे शब्द समुच्चयों का प्रयोग समाज अपने कुलदीपकों के नामकरण हेतु करने लगा है
*अशास्त्रीय नाम* न केवल सुनने में विचित्र लगता है, बालकों के व्यक्तित्व पर भी अपना विचित्र प्रभाव डालकर व्यक्तित्व को लुंज पुंज करता है - जो इसके तात्कालिक कुप्रभाव हैं.
*आचरण की संकीर्णता* इसका दूरस्थ कुप्रभाव है.
नाम रखने का अधिकार दादा-दादी, बुआ, तथा गुरुओं का होता है. यह उनके लिए ही छोड़ देना हितकर है.
आप जब दादा दादी बनेंगे तब यह कर्तव्य ठीक प्रकार से निभा पाएँ उसके लिए आप अपनी मातृभाषा पर कितनी पकड़ रखते हैं अथवा उसपर पकड़ बनाने के लिए क्या कर रहे हैं, विचार करें.
अन्यथा आने वाली पीढ़ियों में आपके परिवार में भी कोई "श्लेष्मा" हो सकती है, कोई भी अवीरा हो सकती है।
*शास्त्रों में लिखा है* व्यक्ति का जैसा नाम है समाज में उसी प्रकार उसका सम्मान और उसका यश कीर्ति बढ़ती है.
नामाखिलस्य व्यवहारहेतु: शुभावहं कर्मसु भाग्यहेतु:।
नाम्नैव कीर्तिं लभते मनुष्य-स्तत: प्रशस्तं खलु नामकर्म।
{वीरमित्रोदय-संस्कार प्रकाश}
*स्मृति संग्रह* में बताया गया है कि व्यवहार की सिद्धि आयु एवं ओज की वृद्धि के लिए श्रेष्ठ नाम होना चाहिए.
आयुर्वर्चोsभिवृद्धिश्च सिद्धिर्व्यवहृतेस्तथा ।
नामकर्मफलं त्वेतत् समुद्दिष्टं मनीषिभि:।।
*नाम कैसा हो*
नाम की संरचना कैसी हो इस विषय में ग्रह्यसूत्रों एवं स्मृतियों में विस्तार से प्रकाश डाला गया है! हिन्दुओं में नामकरण एक संस्कार है..जन्म के समय ग्रह नक्षत्रों की स्थिति के अनुसार विवेचन के उपरांत नाम का प्रथम अक्षर सुनिश्चित कर के सुन्दर अर्थों वाला नाम रखा जाता है! शास्त्रों में चार प्रकार के नाम बताए गए हैं -
१ देवनाम
२ मासनाम
३ नक्षत्रनाम
४ व्यावहारिक नाम
*नोट* - कुंडली के नाम को व्यवहार में नहीं रखना चाहिए क्योंकि जो नक्षत्र नाम होता है उसको गुप्त रखना चाहिए. यदि कोई हमारे ऊपर अभिचार कर्म मारण, मोहन, वशीकरण इत्यादि कार्य करना चाहता है तो उसके लिए नक्षत्र नाम की आवश्यकता होती है,
व्यवहार नाम पर तंत्र का असर नहीं होता इसीलिए कुंडली का नाम गुप्त होना चाहिए।
*शास्त्रीय नाम* की हमारे धर्म में बहुत उपयोगिता है मनुष्य का जैसा नाम होता है वैसे ही गुण उसमें विद्यमान होते हैं.
*बालकों का नाम लेकर पुकारने से* उनके मन पर उस नाम का बहुत असर पड़ता है और प्रायः उसी के अनुरूप चलने का प्रयास भी होने लगता है
इसीलिए *नाम में यदि उदात्त भावना होती है* तो बालकों में यश एवं भाग्य का अवश्य ही उदय संभव है।
हमारे धर्म में अधिकांश लोग अपने पुत्र पुत्रियों का नाम *भगवान के नाम पर* रखना शुभ समझते हैं ताकि इसी बहाने प्रभु नाम का उच्चारण भगवान के नाम का उच्चारण हो जाए।
*विडंबना यह है की* आज पाश्चात्य सभ्यता के अंधानुकरण में नाम रखने का संस्कार मूल रूप से प्रायः समाप्त होता जा रहा है.
इससे बचें शास्त्रोक्त नाम रखें इसी में भलाई है, इसी में कल्याण है। इस पर जरूर जोर से विचार करें इन मंगल भावनाओं के साथ।
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