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संस्कृत के ध्येय वाक्य

विभिन्न संस्थाओं के संस्कृत ध्येय वाक्य :--
भारत सरकार --
       " सत्यमेव जयते "
लोक सभा --
       " धर्मचक्र प्रवर्तनाय "
उच्चतम न्यायालय --
       " यतो धर्मस्ततो जयः "
आल इंडिया रेडियो --   
       " सर्वजन हिताय सर्वजनसुखाय "
दूरदर्शन --
       " सत्यं शिवम् सुन्दरम "
गोवा राज्य --
       " सर्वे भद्राणि पश्यन्तु मा कश्चिद् दुःखभाग्भवेत्। "
भारतीय जीवन बीमा निगम --
       " योगक्षेमं वहाम्यहम् "
डाक तार विभाग --
       " अहर्निशं सेवामहे "
श्रम मंत्रालय --
       " श्रम एव जयते "
भारतीय सांख्यिकी संस्थान --
       " भिन्नेष्वेकस्य दर्शनम् "
थल सेना --
       " सेवा अस्माकं धर्मः "
वायु सेना --
       " नभःस्पृशं दीप्तम् "
जल सेना --
       " शं नो वरुणः "
मुंबई पुलिस --
       " सद्रक्षणाय खलनिग्रहणाय "
हिंदी अकादमी --
       " अहम् राष्ट्री संगमनी वसूनाम "
भारतीय राष्ट्रीय विज्ञानं अकादमी --
       " हव्याभिर्भगः सवितुर्वरेण्यं "
भारतीय प्रशासनिक सेवा अकादमी --
       " योगः कर्मसु कौशलं "
विश्वविद्यालय अनुदान आयोग --
        " ज्ञान-विज्ञानं विमुक्तये "
नेशनल कौंसिल फॉर टीचर एजुकेशन --
        " गुरुः गुरुतामो धामः "
गुरुकुल काङ्गडी विश्वविद्यालय --
        " ब्रह्मचर्येण तपसा देवा मृत्युमपाघ्नत "
इन्द्रप्रस्थ विश्वविद्यालय --
        " ज्योतिर्व्रणीततमसो विजानन "
काशी हिन्दू विश्वविद्यालय --
        " विद्ययाऽमृतमश्नुते "
आन्ध्र विश्वविद्यालय --
       " तेजस्विनावधीतमस्तु "
बंगाल अभियांत्रिकी एवं विज्ञान विश्वविद्यालय,
शिवपुर --
       " उत्तिष्ठत जाग्रत प्राप्य वरान् निबोधत "
गुजरात राष्ट्रीय विधि विश्वविद्यालय --
       " आनो भद्राः क्रतवो यन्तु विश्वतः "
संपूणानंद संस्कृत विश्वविद्यालय --
       " श्रुतं मे गोपय "
श्री वैंकटेश्वर विश्वविद्यालय -- 
       " ज्ञानं सम्यग् वेक्षणम् "
कालीकट विश्वविद्यालय --
       " निर्मय कर्मणा श्री "
दिल्ली विश्वविद्यालय --
       " निष्ठा धृति: सत्यम् "
केरल विश्वविद्यालय --
       " कर्मणि व्यज्यते प्रज्ञा "
राजस्थान विश्वविद्यालय --
       " धर्मो विश्वस्यजगतः प्रतिष्ठा "
पश्चिम बंगाल राष्ट्रीय न्यायिक विज्ञान विश्वविद्यालय --
       " युक्तिहीने विचारे तु धर्महानि: प्रजायते "
वनस्थली विद्यापीठ --
       " सा विद्या या विमुक्तये। "
राष्ट्रीय शैक्षिक अनुसंधान और प्रशिक्षण परिषद् --
       " विद्याsमृतमश्नुते। "
केन्द्रीय विद्यालय --
       " तत् त्वं पूषन् अपावृणु "
केन्द्रीय माध्यमिक शिक्षा बोर्ड --
        " असतो मा सद् गमय "
प्रौद्योगिकी महाविद्यालय, त्रिवेन्द्रम --
        " कर्मज्यायो हि अकर्मण: "
देवी अहिल्या विश्वविद्यालय, इन्दौर --
        " धियो यो नः प्रचोदयात् "
गोविंद बल्लभ पंत अभियांत्रिकी महाविद्यालय, पौड़ी --
        " तमसो मा ज्योतिर्गमय "
मदनमोहन मालवीय अभियांत्रिकी महाविद्यालय गोरखपुर --
       " योगः कर्मसु कौशलम् "
भारतीय प्रशासनिक कर्मचारी महाविद्यालय, हैदराबाद --
       " संगच्छध्वं संवदध्वम् "
इंडिया विश्वविद्यालय का राष्ट्रीय विधि विद्यालय --
       " धर्मो रक्षति रक्षितः "
संत स्टीफन महाविद्यालय, दिल्ली --
       " सत्यमेव विजयते नानृतम् "
अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान --     
         " शरीरमाद्यं खलुधर्मसाधनम् "
विश्वेश्वरैया राष्ट्रीय प्रौद्योगिकी संस्थान, नागपुर --
          " योग: कर्मसु कौशलम् "
मोतीलाल नेहरू राष्ट्रीय प्रौद्योगिकी संस्थान,इलाहाबाद --      
          " सिद्धिर्भवति कर्मजा "
बिरला प्रौद्योगिकी एवं विज्ञान संस्थान, पिलानी --
         " ज्ञानं परमं बलम् "
भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान खड़गपुर --
         " योगः कर्मसुकौशलम् "
भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान मुंबई --
          " ज्ञानं परमं ध्येयम् "
भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान कानपुर --
           " तमसो मा ज्योतिर्गमय "
भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान चेन्नई --     
           " सिद्धिर्भवति कर्मजा "
भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान रुड़की --
             " श्रमं विना नकिमपि साध्यम् "
भारतीय प्रबंधन संस्थान अहमदाबाद --
              " विद्या विनियोगाद्विकास: "
भारतीय प्रबंधन संस्थान बंगलौर --
               " तेजस्वि नावधीतमस्तु "
भारतीय प्रबंधन संस्थान कोझीकोड --
                " योगः कर्मसु कौशलम् "
सेना ई एम ई कोर --
                " कर्मह हि धर्मह "
सेना राजपूताना राजफल --
            " वीर भोग्या वसुन्धरा "
सेना मेडिकल कोर --
               " सर्वे संतु निरामया .. "
सेना शिक्षा कोर --
               " विदैव बलम "
सेना एयर डिफेन्स -- 
            " आकाशेय शत्रुन जहि "
सेना ग्रेनेडियर रेजिमेन्ट. --
              " सर्वदा शक्तिशालिं "
सेना राजपूत बटालियन --
               " सर्वत्र विजये "
सेना डोगरा रेजिमेन्ट -- 
              " कर्तव्यम अन्वात्मा "
सेना गढवाल रायफल --
              " युद्धया कृत निश्चया "
सेना कुमायू रेजिमेन्ट --
             " पराक्रमो विजयते "
सेना महार रेजिमेन्ट --
               " यश सिद्धि "
सेना जम्मू काश्मीर रायफल --
                " प्रस्थ रणवीरता "
सेना कश्मीर लाइट इंफैन्ट्री --
               " बलिदानं वीर लक्षयं "
सेना इंजीनियर रेजिमेन्ट --
                " सर्वत्र
भारतीय तट रक्षक-वयम् रक्षामः "
सैन्य विद्यालय --
              " युद्धं प्राप्यय "
सैन्य अनुसंधान केंद्र --
               " बालस्य मूलं विज्ञानम "
विदेश में भी हमारे देखो :--
नेपाल सरकार --
                " जननी जन्मभूमिश्च स्वर्गादपि गरीयसी "
इंडोनेशिया-जलसेना --
               " जलेष्वेव जयामहेअसेह "
राज्य (इंडोनेशिया) --
              " पञ्चचित "
कोलंबो विश्वविद्यालय (श्रीलंका ) --
              " बुद्धि: सर्वत्र भ्राजते "
मोराटुवा विश्वविद्यालय (श्रीलंका) --
               " विद्यैव सर्वधनम् "
पेरादेनिया विश्वविद्यालय --
              " सर्वtस्य लोचनशास्त्रम्f "

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जैन धर्म में शास्त्रो की कथन पद्धति को अनुयोग कहते हैं।  जैनागम चार भागों में विभक्त है, जिन्हें चार अनुयोग कहते हैं - प्रथमानुयोग, करणानुयोग, चरणानुयोग और द्रव्यानुयोग।  इन चारों में क्रम से कथाएँ व पुराण, कर्म सिद्धान्त व लोक विभाग, जीव का आचार-विचार और चेतनाचेतन द्रव्यों का स्वरूप व तत्त्वों का निर्देश है।  इसके अतिरिक्त वस्तु का कथन करने में जिन अधिकारों की आवश्यकता होती है उन्हें अनुयोगद्वार कहते हैं। प्रथमानुयोग : इसमें संयोगाधीन कथन की मुख्यता होती है। इसमें ६३ शलाका पुरूषों का चरित्र, उनकी जीवनी तथा महापुरुषों की कथाएं होती हैं इसको पढ़ने से समता आती है |  इस अनुयोग के अंतर्गत पद्म पुराण,आदिपुराण आदि कथा ग्रंथ आते हैं ।पद्मपुराण में वीतरागी भगवान राम की कथा के माध्यम से धर्म की प्रेरणा दी गयी है । आदि पुराण में तीर्थंकर आदिनाथ के चरित्र के माध्यम से धर्म सिखलाया गया है । करणानुयोग: इसमें गणितीय तथा सूक्ष्म कथन की मुख्यता होती है। इसकी विषय वस्तु ३ लोक तथा कर्म व्यवस्था है। इसको पढ़ने से संवेग और वैराग्य  प्रकट होता है। आचार्य यति वृषभ द्वारा रचित तिलोयपन...

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