क्या बुंदेलखंड में बिछुड़े जैन श्रावकों की घरवापसी संभव है ❓
#जैन_धर्म_विस्तार
जैन धर्म एक समय पूरे भारत का बहुसंख्यक धर्म था,सभी समुदायो,कुलो,जातियो में यह प्रचलित रहा,पर समय ने ऐसी करवट ली कि कई कारणों से यह सिमटता चला गया।
बुंदेलखंड भारत का हृदय क्षेत्र है,यहां हमारे लाखों वर्ष प्राचीन सिद्ध क्षेत्र है, निसंदेह प्राचीन काल में यहां जैन बहुसंख्यक रहे होंगे। पर आज स्थितियां अलग है,आज यहां जैन-धर्म 3-4 जातियों परवार,गोलापूरब,गोलालारे,गोलसिंघारे में ही शेष बचा है।
क्या हमें ज्ञात है कि आज के कुछ दशको पहले बुंदेलखंड में स्थित नेमा,असाटी,गहोई,ताम्रकार, धाकड़,अग्रवाल,कलार जैसी जातियो में जैन धर्म को मानने वाले लोग अच्छी-खासी संख्या में थे,और इसके साक्ष्य इनके द्वारा निर्मित करवाई गई प्रतिमाओ की प्रशस्तियो में मिलते हैं।
सन् 1912 में दिगंबर जैन समाज ने अपने स्तर पर जनगणना करवाई थी उसकी डायरेक्टरी देखने पर चौंकाने वाले आंकड़े सामने आए, उसमें बुंदेलखंड क्षेत्र में जैन-धर्म मानने वालों में नेमा,असाटी,गहोई जैसी जातियों के लोग अच्छी-खासी संख्या में थे। फिर क्या कारण रहे कि यह जैन-धर्म से अलग हो गए।
शायद जैन समाज के प्रमुखों की धर्मवृद्धि, धर्मप्रसार के प्रति अरुचि और जातिप्रथा ने छोटे,कमजोर व अल्पसंख्यक जाति वाले लोगों को जैनधर्म से दूर हो जाने हेतु प्रेरित किया हो। खैर जो भी हो पर अब हमें उनकी पुनः घरवापसी के लिए पूज्य साधू-संतो से मिलकर योजना बनानी होगी, जिससे बुंदेलखंड में जैन-धर्म का प्रभाव मजबूत हो और अहिंसा धर्म की वृद्धि हो। हम कुछ ऐसी जातियो पर संक्षिप्त में यहां चर्चा करेंगे।
*1. नेमा समाज*
यह वैश्य वर्ग का समाज है,सन् 1912 की हुई जैन जनगणना के अनुसार बुंदेलखंड में इस जाति के सैकड़ों परिवार जैन थे,विदर्भ में आज भी इस समाज में जैन-धर्म प्रचलित है,यह जाति मूल में जैन ही थी,जो क्षत्रिय कुल से थी,इसमें आज भी संयम-नियम का महत्व है,नियमो में अटल होने के कारण ही यह नेमा कहलाए। दिगंबर जैन समाज की 84 जातियों की सूची में भी इसका नाम है,इसके अतिरिक्त इस जाति का उल्लेख कई जैन मूर्तिलेखो पर भी हुआ है।
*2 असाटी*
असाटी बुंदेलखंड की छोटी वैश्य जाति है, प्रसिद्ध जैन संत गणेश प्रसाद वर्णी इसी समाज से थे, सन् 1912 की जनगणना में इस जाति के भी सैकड़ों परिवार जैन थे,यह जाति मूलतः अयोध्या क्षेत्र से निकली है,इनको पहले जैन अयोध्यावासी समाज कहते थे, अयोध्या के पास असाटी गांव से यह बुंदेलखंड में व्यापार करने आए और असाटी नाम से ही प्रचलित हो गए। जैन समाज की 84 जातियों की सूची में इसका भी नाम है।
*3 गहोई*
यह भी वैश्य वर्ग की ही जाति है,प्राचीन काल में इसे ग्रहपति कहते थे,मध्यप्रदेश में कई जगह मूर्तिलेखो में ग्रहपति(गहोई) श्रेष्ठियो के उल्लेख है,गहोई समाज के बुजुर्ग आज भी बताते हैं कि उनके दादा-परदादाओं में जैन-धर्म विद्यमान था,इनका भी जैन समाज की 84 जाति की सूची में नामोल्लेख है।
*4 ताम्रकार*
इस जाति के लोग बर्तन आदि बनाने,बेचने का कार्य करते हैं,यह भगवान बाहुबली के पुत्र सोमयश के वंशज है,जैन सम्राट सहस्त्रार्जुन जैसे महापुरुष इस जाति में हो चुके हैं,प्रख्यात सम्राट खारवेल भी सोमवंशी थे,यह हैह्यवंश की शाखा के क्षत्रिय हैं। महाराष्ट्र में ताम्रकार समाज को कासार कहा जाता है वहां 5 लाख की संख्या में कासार जैन-धर्म का पालन करते हैं,इनकी संख्या महाराष्ट्र के सभी इलाकों में अच्छी-खासी है।
*5 धाकड़*
यह किसान जाति है,उप्र,मप्र, राजस्थान, महाराष्ट्र आदि प्रांतों में इस जाति के लोग निवास करते है,यह कुछ शताब्दियों पहले तक पूरी जैन कृषक जाति थी,ग्वालियर के आसपास धाकड़(धर्कट) जैन श्रावक बड़ी संख्या में निवास करते थे,ऐसा मूर्तिलेखो से भी ज्ञात होता है, महाराष्ट्र के विदर्भ क्षेत्र में हजारों धाकड़ जैन है,जो गांवों-कस्बों में फैले हुए हैं, मप्र के रायसेन जिले में भी कुछ जगह धाकड़ जैन है।आज भी इस जाति में जैन संस्कार मौजूद हैं,और जैन समाज की 84 जातियों की सूची में इसका नामोल्लेख है।
*6 अग्रवाल*
यह वैश्य वर्ग की ताकतवर जाति है, प्राचीनकाल से इसमें जैन-धर्म रहा है,आज भी उप्र, दिल्ली, पंजाब, हरियाणा, राजस्थान में तकरीबन 10 लाख जैन अग्रवाल है,राजा अग्रसेन स्वयं अहिंसा प्रेमी जैन राजा थे। मप्र में जैन अग्रवाल ग्वालियर-चंबल के इलाके में मिलते हैं। बुंदेलखंड में अग्रवाल ग्वालियर क्षेत्र से ही व्यापार के लिए आए थे,पर कुछ कारणों से जैन धर्म से अलग हो गए।गोपाचल,ग्वालियर की जैन धरोहर इसी समाज के पूर्वजों ने बनवाई थी,जैन समाज की 84 जाति की सूची में भी इसका नाम है,और पूरे भारत में हजारों जैन मूर्तिलेख,शिलालेखो, पट्टावलियो में इसकी गौरव गाथा अंकित है।
*7 कलार*
यह भी हैह्यवंशी शाखा की जाति है,भगवान बाहुबली के पुत्र सोमयश से इसका आरंभ हुआ,प्रख्यात जैन कल्चुरी राजाओं के वंशज कलार ही है, बुंदेलखंड, महाकौशल में मिलने वाली 10 वीं शताब्दी से पहले की मूर्तियां कल्चुरी-कलारो द्वारा ही स्थापित है।यह एक काल में कट्टर जैन रहे थे,विदर्भ और महाकौशल में आज भी इसकी एक शाखा जैन कलार कहलाती है,जैन समाज की 84 जातियों की सूची में भी यह वर्णित है।
*8 कुशवाहा*
प्रख्यात जैन सम्राट चन्द्रगुप्त मौर्य के यह वंशज हैं,यह जाति तीर्थंकर महावीर के समय राजवंश थी,इस वंश में प्रतापी जैन राजा हुए, जिन्होंने श्रावक और मुनि दोनों धर्मों का पालन किया,यह प्राचीन काल में कट्टर जैन धर्मोपासक रहे हैं।
यह 8 जातियां हमारे अब-तक के अध्ययन अनुसार जैन-धर्म से जुड़ी पाई गई है,इनके अतिरिक्त और भी ऐसी कई जातियां हैं जो जैन थी,हमें इन जातियो में जैन-धर्म के प्रचार-प्रसार के लिए मुनिराजो-साध्वियो आदि को जाग्रत करना होगा,आगम में एक सूत्र आता है "न धर्मो धार्मिकैर्विना"। धार्मिक लोगों के बिना धर्म का अस्तित्व नहीं है, जैन-धर्म के भविष्य को देखते हुए यह कार्य अत्यन्त आवश्यक है,हमारे पास धर्मप्रचारको की अच्छी संख्या व मजबूत शक्ति है बस उसका सही दिशा में उपयोग हो यह आवश्यक है। श्रावक समाज भी इन उक्त 8 जातियों के बंधूओ से मिलनसारिता रखें, एवं अगर किसी के पारिवारिक संबंध हो तो मंदिर आदि में लाकर अभिषेक-पूजन हेतु प्रोत्साहित करें,साधू संस्था को जाग्रत करें,इन समाजों में जैन-धर्म के प्रचार के लिए हम क्या कार्य कर सकते हैं,इसके लिए मार्ग दर्शन दे,हो सके तो इस लेख की प्रति निकालकर अपने निकट विराजमान साधू-संतों को भेंट करे।
कृपया अपनी राय अवश्य प्रकट करे
gouravj132@gmail.com
(Whatsapp पर प्राप्त....)
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