- श्री मल्लप्पाजी का जन्म वीर निर्वाण संवत् २४४२, विक्रम संवत् १९७३, ईस्वी सन् १२ जून, १९१६ में ग्राम सदलगा, तालुका चिक्कोडी, जिला बेलगाम (वर्तमान नाम-बेलगावी), कर्नाटक प्रांत में हुआ था।
आपके तीन पीढी पूर्व वंशज #आष्टा गाँव में निवास करते थे। वहाँ से शिवराया भरमगौड़ा चौगुले, प्रांत कर्नाटक, जिला बेलगाम, (बेलगावी) तालुका-चिक्कोड़ी, ग्राम सदलगा आए थे। इसलिए आपका गोत्र ‘#अष्टगे’ कहा जाने लगा।
दक्षिण भारत में चतुर्थ, पंचम, बोगार, कासार, सेतवाल आदि दिगंबर जैन प्रसिद्ध जातियाँ होती हैं। गाँव के जमीदारों की चतुर्थ जाति होती है। मल्लप्पाजी गाँव के ज़मीदार होने से चतुर्थ जाति के थे। सदलगावासी उन्हें मल्लिनाथजी के नाम से पुकारते थे।
उनके पिता सदलगा ग्राम के कलबसदि (पाषाण निर्मित) मंदिर के मुखिया श्री पारिसप्पाजी (पार्श्वनाथ) अष्टगे एवं माता श्रीमती काशीबाईजी थीं।
पारिसप्पाजी के दो विवाह हुए थे। पहली पत्नी कम उम्र में स्वर्गवासी हो गई थीं। तब काशीबाई से उनका दूसरा विवाह हुआ था। दोनों पत्नियों से उनकी दस संतानें थीं। इनमें से चार दिन में तीन संतानों की मृत्यु प्लेग रूपी महामारी फैलने से हो गई, एवं कुछ समय पश्चात् दो संतानों का वियोग और हो गया। इस प्रकार पारिसप्पाजी की पाँच संतानों की आकस्मिक मृत्यु हो गई एवं पाँच संतान जीवित रहीं। पहली पत्नी से उत्पन्न हुआ पुत्र अप्पण्णा एवं दूसरी पत्नी काशीबाई से दो पुत्र और दो पुत्रियाँ हुईं। इनमें मल्लप्पाजी अपने माता-पिता के द्वितीय एवं लाड़ली संतान थे। मल्लप्पाजी के जन्म की खुशी में उनकी माता ने गरीबों को पाँच बोरी शक्कर बँटवाई थी। उनके दो भाई, बड़े अप्पण्णा एवं छोटे आदप्पा थे। बड़ी बहन चंद्राबाई एवं लक्ष्मीबाई (अक्काबाई) छोटी बहन थीं।
इनकी शिक्षा कक्षा पाँचवीं तक मराठी भाषा में एवं कक्षा छठवीं-सातवीं की कन्नड़ भाषा में हुई थी। ये कन्नड़, मराठी, हिन्दी, उर्दू एवं संस्कृत भाषा के जानकार थे। इनका विवाह १७ वर्ष की उम्र में अक्कोळ ग्राम, तालुका चिक्कोडी, जिला बेलगाम, कर्नाटक के समृद्ध श्रेष्ठी श्रीमान् भाऊसाहब कमठे एवं श्रीमती बहिनाबाई की पुत्री श्रीमंती के साथ वीर निर्वाण संवत् २४६०, विक्रम संवत् १९९०, ईस्वी सन् १९३३ में संपन्न हुआ था।
मल्लप्पाजी की दस संतानें हुईं। सन् १९३९ में प्रथम पुत्र श्रीकांत (चंद्रकांत) हुआ, जो छ: माह जीवित रहा। सन् १९४१ में दूसरी संतान पुत्री सुमन (सुमति) हुई, जो छः वर्ष तक जीवित रही। सन् १९४३ में तीसरी संतान के रूप में पुत्र महावीर का जन्म हुआ। सन् १९४६ में चौथी संतान के रूप में ‘विद्याधर' धरती पर आए। सन् १९४९ में पाँचवें क्रम में पुत्री शांताबाई और सन् १९५२ में छटवें क्रम में पुत्री सुवर्णाबाई का जन्म हुआ। सातवें क्रम में पुत्र धनपाल (धन्यकुमार) का जन्म हुआ, जो मात्र पंद्रह दिन तक जीवित रहा। सन् १९५६ में आठवीं संतान के रूप में पुत्र अनंतनाथ का जन्म हुआ। सन् १९५८ में नौवीं संतान के रूप में पुत्र शांतिनाथ का जन्म हुआ। अंतिम दसवीं संतान माँ के गर्भ तक ही जीवित रही।
संकलन :- #सम्यक्त्व
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