"जगन्नाथ मंदिर की अनहद गूंज "
जगन्नाथ मंदिर का इतिहास बहुत प्राचीन है और यह मूल रूप से जैन मंदिर है । वर्तमान में हिंदू धर्म के चार धाम से एक धाम माना जाता है । और 51शक्ति पीठों में से एक विमला देवी शक्ति पीठ के नाम से भी विख्यात है । लेकिन एक जैन मंदिर को कब और कैसे परिवर्तित कर दिया गया ?
जब हमारे राष्ट्र की विरासतों को कोई लूट ले या क्षत विक्षत कर दे तो मन विक्षोभ से भर जाता है । अभी कुछ महीने पहले माननीय प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी जी के सफल प्रयासों से लूटी गई भारतीय विरासतों को पुनः विदेशों से वापिस ला गया है । जिनमें एक माता अन्नपूर्णा जी की प्रतिमा का उत्सव पूरे भारत वर्ष में मनाया गया । नगरों का भ्रमण कराते हुए उन्हें पुनः विश्वनाथ जी के मंदिर में विराजमान किया गया । हम सभी भारतवासियों के मन में मानो एक नया विश्वास जाग गया हो । सभी के मन में माता अन्नपूर्णा जी के प्रति जो भाव उमड़ा वह बहुत ही उत्साहित था ।
क्या आप जानते हैं उड़ीसा प्रदेश (कलिंग देश) में भव्य जगन्नाथ मंदिर में भी इसी तरह का इतिहास दोहराया गया था ?
- आज से ठीक 8-9BCE (3000 वर्ष पूर्व ) जैन श्रमण संस्कृति के 23वें तीर्थंकर श्री पार्श्वनाथ जी का यहां विहार हुआ था । फिर 5-6BCE( 2700वर्ष पूर्व) में अंतिम 24 वें तीर्थकर महावीर स्वामी जी का भी यहां विहार हुआ था । पार्श्वनाथ जी और महावीर स्वामी जी के बीच के कालखंड में कलिंग में जैन सम्राट करकण्डू का शासन था । ये पार्श्वनाथ जी के अनन्य भक्त थे । इन्हीं करकण्डू जी को बौद्ध साहित्य में 'प्रत्येकबुद्ध' के नाम से जाना जाता है । साहित्यिक और पुरातात्विक प्रमाणों से पता चलता है कि कलिंग देश का राष्ट्रीय धर्म जैन धर्म हुआ करता था ।
तीर्थंकर महावीर स्वामी जी के निर्वाण के कुछ वर्षों बाद 4BCE में मगध देश के जैन सम्राट महापद्म नंदी नाम के राजा हुए । महापद्म नंदी ने कलिंग देश में आक्रमण कर दिया और वहां अपनी सत्ता कायम कर ली , फिर कलिंग वासियों की नजरों से छुपाकर कलिंग जिन की प्रतिमा को मगध में लाकर विराजमान कर दिया गया । कलिंग जिन (तीर्थंकर जी की प्रतिमा) कलिंग देश के राष्ट्रीय गौरव के रूप में मान्य थी ।
जब कलिंग वासियों को पता चला कि हमारे अराध्य की प्रतिमा मगध नरेश उठाकर ले गए तब पूरे कलिंग देश में मानो मातम छा गया हो । आखिर कलिंग जिन की प्रतिमा राष्ट्रीय गौरव थी । कलिंग का स्वाभिमान था । कलिंग वासियों में यह विक्षोभ कई वर्षों तक रहा । पीढ़ियां गुजरती गई , लेकिन कलिंग वासियों ने कलिंग जिन के प्रति प्रेम कम न हो पाया ।
2-1BCE में कलिंग देश को एक महान जैन सम्राट खारवेल का नेतृत्व मिला । सम्राट खारवेल ने मगध देश पर चढ़ाई कर मगध को जीत लिया । और कलिंग जिन प्रतिमा पुनः प्राप्त कर , जगन्नाथ मंदिर का निर्माण कराया और फिर कलिंग जिन प्रतिमा को विराजमान किया । सम्राट खारवेल के द्वारा पूरे कलिंग देश में कलिंग जिन की पुनर्स्थापना का महान उत्सव मनाया गया था । कलिंग वासियों का राष्ट्रीय गौरव कई वर्षों बाद उन्हें प्राप्त हुआ था । इसके पश्चात कलिंग वासी शतकों तक कलिंग जिन के रूप में पूजा करते रहे ।
बताया जाता है कि 7-8शताब्दी में यहां शंकराचार्य द्वारा गोवर्धन मठ की स्थापना की और जैन मंदिर को वैष्णव मंदिर में परिवर्तित कर दिया गया । यहां शाक्त संप्रदाय द्वारा 51शक्तिपीठ में एक विमला देवी मंदिर की भी स्थापना की गई थी । मांस व मछली का भोग भी लगाया जाता है । और यहां शैव संप्रदाय द्वारा भी पूजा गया है ।
हम भारत के प्राचीन मंदिरों का इतिहास देखते हैं तो हमें यह ज्ञात होता है कि किस तरह जैन मंदिरों को विभिन्न समुदायों शैव, वैष्णव,शाक्त , लिंगायतों , मुस्लिम द्वारा जैन मंदिर को अलग अलग मान्यताओं में परिवर्तित कर दिया गया था । इन मंदिरों की मूल पहचान मिटा दी गई और नई नई मान्यताएं बना दी गई । जगन्नाथ मंदिर भी जैन मंदिर ही था । मान्यताओं से हटकर हम पुरातत्व इतिहास का विश्लेषण करते हैं । प्रत्येक फोटो के डिस्क्रिप्शन बाक्स में पुरातत्व साक्ष्यों का विश्लेषण दिया गया है । और कुछ अधिक विस्तृत जानकारी के लिए विभिन्न शोधकर्ताओं और इतिहासकारों के आर्टिकल्स की लिंक्स क्लिक कर, देख सकते हैं ।
https://www.storiesbyarpit.com/2020/07/the-forgotten-jain-heritage-of-odisha.html?m=1
https://medium.com/@ashishsarangi/jagannatha-the-jain-connection-2cc1d447d588
Jainism revival 👇
https://www.facebook.com/156185555094843/posts/685393422174051/?mibextid=IE4fqK
यह बुद्ध धर्म से संबंधित लेख है । कुछ तथ्य अच्छे से समझने के लिए । हालांकि यह बौद्ध मंदिर नहीं माना गया। 👇
https://jagannathtells.wordpress.com/
जगन्नाथ मंदिर की वेबसाइट । 👇
https://www.shreejagannatha.in/history-and-architecture/
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