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जैन धर्म: बहुसंख्यक से अल्पसंख्यक

जैन धर्म: बहुसंख्यक से अल्पसंख्यक
मयूर मल्लिनाथ वग्याणी, सांगली, महाराष्ट्र
+ 91 9422707721

जैन धर्म सबसे पुराना धर्म है. प्राचीन भारत में जम्बूद्वीप-भरत क्षेत्र की स्थापना आदिनाथ के पुत्र चक्रवर्ती भरत ने की थी और उन्हीं से हमारे देश का नाम भारत पड़ा. उस समय जैन धर्म पूरे भारत में फैला हुआ था।
जैन धर्म के उत्थान और पतन में राजाश्रय ही मुख्य कारण था.  तो सवाल उठता है कि इतना बड़ा जैन समाज अचानक कहां चला गया? जैन धर्म के पतन का कारण क्या है
मूलतः जैन समाज का पतन आठवीं-नौवीं शताब्दी में प्रारम्भ हुआ. इसे भक्ति आंदोलन के नाम से शंकराचार्य (7वीं शताब्दी) ने शुरू किया था. हाजारों जैनियों और बौद्धों का नरसंहार किया गया.  बाद के समय में कुमारिल भट्ट (8वीं शताब्दी), रामानुजाचार्य (11वीं शताब्दी), महादेवाचार्य (13वीं शताब्दी) ने आक्रामक रूप से अपने वैदिक धर्म का विस्तार करना शुरू कर दिया. बाद में राजाओंको धर्म परिवर्तन करने के लिए मजबूर किया गया .  जैसे ही राजा ने अपना धर्म बदला, प्रजा भी डर के मारे अपना मूल जैन धर्म छोड़कर वैदिक धर्म में प्रवेश कर गयी. हजारों जैन मंदिरों को शैव और वैष्णव मंदिरों में परिवर्तित कर दिया गया। जैसे तिरूपति, केदारनाथ, कोणार्क, मीनाक्षी मंदिर (मदुराई), कांचीपुरम, अंबाबाई (कोल्हापूर), पंढरपुर (विठ्ठल मंदिर).
जैन अन्य धर्म मे परिवर्तीत हो चुके थे. वैदिक धर्म के विकास का मुख्य कारण राजनीतिक एवं सामाजिक स्थितियाँ थीं. जैन धर्म का सिद्धांत बहुत कठोर था। वैदिक धर्मों की आचार संहिता जैन धर्म के समान थी, लेकिन सरल और व्यावहारिक थी. इससे समाज का अधिकांश भाग उनकी ओर आकर्षित होने लगा। उन्होंने अहिंसा की परिभाषा बदल दी और उसे थोड़ा शिथिल कर दिया.  वैदिक वेदों में विभिन्न यज्ञों का उल्लेख है जिनमें घोडे, मनुष्यों और अन्य जीवित जानवरों की बलि दी जाती थी. और सबसे लोकप्रिय प्रसिद्ध अश्वमेध यज्ञ था जिसमें अच्छे घोड़ों की बलि दी जाती थी. लेकिन बाद में जैन और बौद्ध धर्म के प्रभाव और शिक्षाओं के कारण वैदिकों ने अहिंसा तत्व को भी अपने धर्म में शामिल कर लिया।
लोकमान्य तिलक कहते हैं कि,
In ancient times innumerable animals were butchered in sacrifice. Evidence in support of this is found in various poetic compositions such as Kalidasa's Meghaduta. But the credit for the disappearance of this terrible massacre from the Brahminical religion goes to the share of Jainism." (Bombay Samachar, 10-12-1904)
‘’अनुवाद’’
. प्राचीन काल में बलिदानों में कई जानवरों को मार दिया जाता था। इसका समर्थन करने के साक्ष्य कालिदास के मेघदूत जैसे विभिन्न काव्य कार्यों में पाए जा सकते हैं। लेकिन इस भीषण नरसंहार को ब्राह्मणवाद से गायब करने का श्रेय जैन धर्म को दिया जाता है।
’अ निव टेक्स्ट बुक ऑफ हिस्टरी ऑफ इंडिया‘’ ये किताब में कहा जाता है कि , the ancient Vedic religion laid emphasis on the performance of different types of sacrifices in which animals were also sacrificed. The rise of Buddhism and Jainism was mostly reaction to these mostly complicated sacrifices. Now in order to make their religion popular once again the Hindus gave up the old age practices of sacrifices and adopted the principles of Ahimsa’’. (A new text book of history of India, English edition part one, page – 230).
‘’अनुवाद’’
(प्राचीन वैदिक धर्म में विभिन्न प्रकार के यज्ञों पर जोर दिया गया था जिनमें पशु बलि भी शामिल थी। जैन और बौद्ध धर्म का विकास मुख्यतः इसी यज्ञ के विरुद्ध प्रतिक्रिया थी। अपने धर्म को एक बार फिर से लोकप्रिय बनाने के लिए, हिंदुओं ने बलि की पुरानी प्रथा को त्याग दिया और अहिंसा के सिद्धांतों को अपनाया)
Shankaracharya, like kumarila bhatt he fought and preached against buddhisim and Jainism with such a great vigour that the followers of this both sect hold him in great awe’’. (A New text book of history of India, English edition part one, page – 231).
’अनुवाद’’
शंकराचार्य उनके बारे में लिखते हैं, ("कुमारिल भट्ट की तरह, उन्होंने बौद्ध धर्म और जैन धर्म के खिलाफ इतनी ताकत से लड़ाई की और प्रचार किया कि इन दोनों संप्रदायों के अनुयायी उनसे बहुत विस्मय में थे.
About Ramanujacharya
, by his preaching he not only converted the common people to Hinduism but also won over many Indian kings to the Hindu fold.  It was because of his effort that the Jain ruler of Mysore adopted the Hindu faith (A new text book of history of India, English edition part one, page – 232).
’अनुवाद’
रामानुजाचार्य के बारे में वे लिखते हैं,
("उन्होंने अपने उपदेश से न केवल आम लोगों को हिंदू धर्म में परिवर्तित किया, बल्कि कई भारतीय राजाओं को भी हिंदू धर्म में परिवर्तित करने में सफल रहे, यह उनके प्रयासों का ही परिणाम था कि मैसूर के जैन शासक हिंदू धर्म में परिवर्तित हो गए")
।हम अपने तीर्थंकरोसे  के सामने कुछ भी नहीं मांग सकते क्योंकि उन्होंने स्वयं राज्य, सुख, ऐश्वर्य, मोह-माया की दुनिया की सभी चीजों को त्याग दिया था और तप का मार्ग अपनाया था. जैन धर्म और वैदिक धर्म के सिद्धांतों में बहुम् अंतर है। जैन वेदों में विश्वास नहीं करते, न ही वे उनके किसी ग्रंथ को प्रामाणिक मानते हैं। जैन लोग ईश्वर को सुष्टीकरता नहीं मानते  जैसा वैदिक लोग मानते हैं। जबकि वैदिक दुनिया का निर्माण और विनाश मानते हैं,  जैनियों का मानना है कि सृष्टि शाश्वत है।  वैदिक मान्यता के अनुसार ईश्वर की भक्ति से मनुष्य को उसकी कृपा अर्थात् लाभ होता है. जैनियों का मानना है कि आत्मा अपने अच्छे या बुरे कर्मों के अनुसार स्वयं सुखी या दुखी होती है।




मेजर जनरल फरलॉंग कहते हैं कि,
।।
।जैन धर्म भी एक समय मे  सत्ता का केंद्र था..लेकिन बाद में अधिकांश राजाओने युद्ध की हिंसा को देख  उन्होंने महावीर द्वारा प्रचारित अहिंसा का मार्ग अपनाया और लढाई का मार्ग छोड दिया.
चंद्रगुप्त मौर्य, बिम्बिसार, सम्राट खारवेल, चालुक्य, कदंब, राष्ट्रकूट, शिलाहार, सोलंकी, पल्लव, गंगा, पंड्या होयसला  और लिच्छवि राजवंश, वैशाली के राजा चेतक, अजातशत्रु कुणिक ये सब  राज परिवार जैन थे।
भारत में पाए गए हजारों शिलालेखों ने इतिहासकारों को यह स्वीकार करने के लिए मजबूर कर दिया है कि श्रमण संस्कृति एक समय पूरे भारत में फैली हुई थी.
यह भारत का दुर्भाग्य है कि भारत में जन्मा अहिंसक जैन धर्म आज अल्पसंख्यक हो गया है.
मयूर मल्लिनाथ वग्याणी
9422707721

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