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Showing posts from December, 2024

प्राकृत जैन आगम एक झलक

देश के विकास में जैनों का योगदान

१)स्वतंत्रता की लड़ाई में सबसे पहले फाँसी पर चड़ने वाले  लाला हुकम चंद जैन  २)राम मंदिर की लड़ाई में सबसे पहले सीने पर गोली खाने वाले कोठारी जैन बंधु (दो भाई) ३)राम मंदिर की अदालती लड़ाई लड़कर जीत दिलाने  वाले वकील श्री हरिशंकर जैन एवं विष्णु शंकर जैन (पिता -पुत्र) ४)स्वतंत्र भारत में राम जी पर फेमस भजन बनाने वाले एवं गाने वाले गायक द लीजेंड स्व॰ श्री रविंद्र जैन  ५)भारतीय अंतरिक्ष कार्यक्रम के जनक डॉ विक्रम ए साराभाई जैन  ६)भारत में पहली कार फ़ैक्ट्री खोलने वाले जिन्हें “फादर ऑफ़ ट्रांसपोर्टेशन इन इंडिया ” कहा जाता है  *श्री वालचंद हीराचंद जैन* ७)भारत में पहली विमान फ़ैक्ट्री  खोलने वाले महान व्यापारी  श्री वालचंद हीरा चंद जैन  ८)भारत में पहला मॉर्डन शिपयार्ड बनाने वाले महान देशभक्त व्यापारी श्री वालचंद हीराचंद जैन  (पहले भारतीय जहाज एसएस लॉयल्टी ने 5 अप्रैल 1919 को मुंबई से लंदन तक अपनी पहली अंतरराष्ट्रीय यात्रा की। वालचंद हीराचंद व्यक्तिगत रूप से जहाज पर मौजूद थे। भारत के स्वतंत्र होने के बाद, उस यात्रा के सम्मान में 5 अप्रैल को राष्ट...

कहौम का जैन-स्तम्भ (अभिलिखित), गुप्त काल....

कहौम का जैन-स्तम्भ (अभिलिखित), गुप्त काल.... उत्तरप्रदेश में देवरिया जिले में सलेमपुर रेलवे स्टेशन से 5 किमी की दूरी पर एक छोटा सा गांव कहौम (ककुभग्राम, कहाउँ, कहावम, कहाव) स्थिति है। बलुए प्रस्तर में निर्मित 27 फिट ऊँचा एक स्वतंत्र स्तम्भ स्थापित है। यह स्तम्भ नीचे से चौपहल, मध्य में अष्टपहल और ऊपर सोलह पहल वाला है। इस स्तम्भ पर ब्राह्मी लिपि में 12 पंक्तियों वाला गुप्त शासक स्कन्दगुप्त के काल का तिथियुक्त लेख है। स्तम्भ के शीर्ष भाग में कुषाण कालीन जिन चौमुखी की परम्परा में तीर्थंकरों (निर्वस्त्र, अर्थात दिगम्बर परम्परा से सम्बंधित) की चार कायोत्सर्ग आकृतियां निरूपित हैं। स्तम्भ के निचले भाग में 23वे तीर्थंकर पार्श्वनाथ की सात सर्पफणो से युक्त कायोत्सर्ग मूर्ति भी द्रष्टव्य है। इस स्तम्भ का जैन धर्म से सम्बन्ध और गुप्त काल मे कहौम में जैन धर्म का प्रभाव तथा गुप्त शासक स्कन्दगुप्त के शान्ति वर्ष (गुप्त सम्वत 141 यानि 460 ई) में मद्र नाम के व्यक्ति के द्वारा इस स्तम्भ का निर्माण तत्कालीन सांस्कृतिक एवं धार्मिक परिस्थितियों को उजागर करता है। प्रो शांत...

दिलवाड़ा के जैन मंदिर: पाषाण शिल्प और आध्यात्म का अप्रतिम केन्द्र

  दिलवाड़ा के जैन मंदिर: पाषाण शिल्प और आध्यात्म का अप्रतिम केन्द्र शिल्प-सौंदर्य का बेजोड़ खजाना समुद्र तल से लगभग साढ़े पांच हजार फुट ऊंचाई पर स्थित राजस्थान की मरूधरा के एक मात्र हिल स्टेशन माउंट आबू पर जाने वाले पर्यटकों, विशेषकर स्थापत्य शिल्पकला में रुचि रखने वाले सैलानियों के लिए इस पर्वतीय पर्यटन स्थल पर सर्वाधिक आकर्षण का केंद्र वहां मौजूद देलवाड़ा के प्राचीन जैन मंदिर है।1 1वीं से 13वीं सदी के बीच बने संगमरमर के ये नक्काशीदार जैन मंदिर स्थापत्य कला के उत्कृष्ट नमूने है। पांच मंदिरों के इस समूह में विमल वासाही टेंपल सबसे पुराना है। इन मंदिरों की अद्भुत कारीगरी देखने योग्य है। अपने ऐतिहासिक महत्व और संगमरमर पत्थर पर बारीक नक्काशी की जादूगरी के लिए पहचाने जाने वाले राज्य के सिरोही जिले के इन विश्वविख्यात मंदिरों में शिल्प-सौंदर्य का ऐसा बेजोड़ खजाना है, जिसे दुनिया में अन्यत्र और कहीं नहीं देखा जा सकता। दिल्ली-अहमदाबाद बड़ी लाइन पर आबू रेलवे स्टेशन से लगभग 20 मील दूर स्थित देलवाड़ा के इन मंदिरों की भव्यता और उनके वास्तुकारों के भवन-निर्माण में निपुणता, उनकी सूक्ष्म पैठ और छे...

समणसुत्तं ग्रंथ - एक परिचय

  समणसुत्तं ग्रंथ” `समणसुत्तं' नामक इस ग्रन्थ की संरचना या संकलना आचार्य विनोबाजी की प्रेरणा से हुई है। उसी प्रेरणा के फलस्वरूप संगीति या वाचना हुई और उसमें इसके प्रारूप को स्वीकृति प्रदान की गयी। यह एक विशिष्ट ऐतिहासिक घटना है। विश्व के समस्त धर्मों का मूल आधार है--आत्मा और परमात्मा। इन्हीं दो तत्त्वरूप स्तम्भों पर धर्म का भव्य भवन खड़ा हुआ है। विश्व की कुछ धर्म-परम्पराएँ आत्मवादी होने के साथ-साथ ईश्वरवादी हैं और कुछ अनीश्वरवादी। ईश्वरवादी परम्परा वह है जिसमें सृष्टि का कर्ता-धर्ता या नियामक एक सर्वशक्तिमान् ईश्वर या परमात्मा माना जाता है। सृष्टि का सब-कुछ उसी पर निर्भर है। उसे ब्रह्मा, विधाता, परमपिता आदि कहा जाता है। इस परम्परा की मान्यता के अनुसार भूमण्डल पर जब-जब अधर्म बढ़ता है, धर्म का ह्रास होता है, तब-तब भगवान् अवतार लेते हैं और दुष्टों का दमन करके सृष्टि की रक्षा करते हैं, उसमें सदाचार का बीज-वपन करते हैं। ग्रन्थ-परिचय `समणसुत्तं' ग्रन्थ में जैन धर्म-दर्शन की सारभूत बातों का, संक्षेप में, क्रमपूर्वक संकलन किया गया है। ग्रन्थ में चार खण्ड हैं और ४४ प्रकरण हैं। कुल मिलाकर ...

प्राकृत जैन आगमों के कुछ जर्मन अध्येता

  जैन धर्म के कुछ जर्मन अध्येता यूरोप में जैन विद्या के अध्येताओं में सर्वप्रथम हरमन याकोबी (१८५०—१९३७) का नाम लिया जायेगा। वे अलब्रेख्त बेबर के शिष्य थे, जिन्होंने सर्वप्रथम मूल रूप में जैन आगमों का अध्ययन किया था। याकोबी ने बराहमिहिर के लघु जातक पर शोध प्रबन्ध लिखकर पी.एच.डी. प्राप्त की। केवल २३ वर्ष की अवस्था में जैन हस्तलिखित प्रतियों की खोज में वे भारत आये और वापिस लौट कर उन्होंने ‘सेव्रेड बुक्स ऑफ दी ईस्ट’ सीरीज में आचारांग और कल्पसूत्र तथा सूत्र कृतांग और उत्तराध्ययन आगमों का अंग्रेजी अनुवाद प्रकाशित किया। नि:सन्देह इन ग्रंथों के अनुवाद से देश—विदेश में जैन विद्या के प्रचार में अपूर्व सफलता मिली। यूरोप के विद्वानों में जैन धर्म और बौद्ध धर्म को लेकर अनेक भ्रांतियों और वाद विवाद चल रहे थे। उस समय याकोबी ने जैन धर्म और बौद्ध धर्म ग्रंथों के तुलनात्मक अध्ययन द्वारा बौद्ध धर्म के पूर्व जैन धर्म का अस्तित्व सिद्ध करके इन भ्रांतियों और विवादों को निर्मूल करार दिया। १९१४ में याकोबी ने दूसरी बार भारत की यात्रा की। अबकी बार हस्तलिखित जैन ग्रंथों की खोज में वे गुजरात और काठियावाड़ की ...

प्राकृत 45 आगमों का संक्षिप्त परिचय

    प्राकृत 45   आगमों का संक्षिप्त परिचय   इन आगमों को छह भागों में बांटा गया है - (1) 11 अंग ( 2) 12 उपांग ( 3) 6 छेद सूत्र ( 4) चार मूल ( 5) 10 पयन्ना ( 6) दो चूलिका l ग्यारह अंग 1) आचारांग सूत्र : इस आगम में साधु के आचार मार्ग का विस्तार से वर्णन किया गया है l साधु के आहार-विहार-निहार-भाषा-शय्या-वस्त्र , सुखदुःख आदि का वर्णन है l इसके साथ ही भगवान महावीर की घोरातिघोर साधना का वर्णन है l प्राचीन समय में इस आगम में 18,000 पद थे l वर्तमान समय में आचारांग सूत्र में 25 अध्ययन 2554 श्लोक प्रमाण हैं l इस सूत्र पर 12,000 श्लोक प्रमाण शीलांकाचार्य की टीका भी है। 2) सूत्र कृतांग : इस आगम में 180 क्रियावादी , 84 अक्रियावादी , 67 अज्ञानवादी , 32 विनयवादी इत्यादि कुल 363 पाखंडियों का वर्णन है। प्राचीन सूत्रकृतांग में 36000 पद थे l वर्तमान में 2100 श्लोक प्रमाण है l इस आगम पर 12850 श्लोक प्रमाण शीलांकाचार्य विरचित टीका है l 3) स्थानांग सूत्र : इस आगम में 1 से 10 तक की संख्यावाले पदार्थों का वर्णन है l इस आगम के 10 अध्ययन हैं l प्राचीन समय में इस आगम में 72000 पद थे...

राजकीय जैन संग्रहालय, मथुरा

  जैन संग्रहालय, मथुरा यहाँ जाएँ: नेविगेशन ,  खोजें जैन संग्रहालय, मथुरा विवरण प्रारम्भ में यह संग्रहालय स्थानीय तहसील के पास एक छोटे भवन में रखा गया था। कुछ परिवर्तनों के बाद सन् 1881 में उसे जनता के लिए खोल दिया गया। राज्य उत्तर प्रदेश नगर मथुरा स्थापना 1861 ई. भौगोलिक स्थिति 27°28'18" उत्तर और 77°41'39" पूर्व बाहरी कड़ियाँ Jain Museum (Mathura) जैन संग्रहालय मथुरा   उत्तर प्रदेश  के  मथुरा  नगर में स्थित है। प्रारम्भ में यह संग्रहालय स्थानीय तहसील के पास एक छोटे भवन में रखा गया था। कुछ परिवर्तनों के बाद सन् 1881 में उसे जनता के लिए खोल दिया गया। सन्  1900  में संग्रहालय का प्रबन्ध नगरपालिका के हाथ में दिया गया। इसके पांच वर्ष बाद तत्कालीन  पुरातत्त्व  अधिकारी डॉ. जे. पी. एच. फोगल के द्वारा इस संग्रहालय की मूर्तियों का वर्गीकरण किया गया और सन्  1910  में एक विस्तृत सूची प्रकाशित की गई। इस कार्य से संग्रहालय का महत्त्व शासन की दृष्टि में बढ़ गया और सन्  1912  में इसका सारा प्रबन्ध राज्य सरकार ने अपने हाथ में ले लिया।...