*🍁जैनदर्शन में काल द्रव्य का स्वरूप 🍁* *काल द्रव्य अस्तिकाय न होकर भी अर्थ/पदार्थ के रूप में उसका अस्तित्व है। *इस जगत में जीवों और पुद्गलों में प्रतिक्षण उत्पाद -व्यय-ध्रौव्य की एकवृत्तिरूप परिणाम वर्तता है।वह परिणाम वास्तव में काल द्रव्य रूप सहकारी कारण के सद्भाव में ही दिखाई देता है। *वह काल द्रव्य जीव व पुद्गल के परिणाम की अन्यथा अनुपपत्ति हेतु के द्वारा सिद्ध होता है। * काल द्रव्य परिणमन कराता नहीं और काल के बिना परिणमन होता है।* *वस्तु नई से पुरानी होती है,इससे कालद्रव्य है -यह सिद्ध होता है। *जिस प्रकार पुद्गल परमाणु इकट्ठे होकर स्कंध होता है वैसे कालाणु इकट्ठे नहीं होते,क्योंकि कालाणु में स्निध-रूक्षता का गुण नहीं है।कालाणु रत्नों की राशि के समान सम्पूर्ण लोक में हैं और वे असंख्य है तथा प्रत्येक कालाणु एक स्वतंत्र द्रव्य है।कालद्रव्य के निमित्त बिना किसी द्रव्य का परिणमन नहीं होता ।नई और पुरानी पर्यायों से कालद्रव्य का माप निकलता है। *कालद्रव्य वर्ण,रस,गंध और स्पर्श से रहित है तथा अगुरूलघु,अमूर्त और वर्तना लक्षणवाला है।लोकाकाश के प्रत्येक प्रदेश में एक एक कालाणु स्थित है...