Skip to main content

Posts

Showing posts from November, 2021

चौंसठ ऋद्धियां

*१. केवलज्ञान बुद्धि ऋद्धि -* सभी द्रव्यों के समस्त गुण एवं पर्यायें एक साथ देखने व जान सकने की शक्ति । *२. मन:पर्ययज्ञान बुद्धि ऋद्धि -*  अढ़ार्इ द्वीपों के सब जीवों के मन की बात जान सकने की शक्ति । *३. अवधिज्ञान बुद्धि ऋद्धि -*  द्रव्य, क्षेत्र, काल की अवधि (सीमाओं) में विद्यमान पदार्थो को जान सकने की शक्ति । *४. कोष्ठ बुद्धि ऋद्धि -* जिसप्रकार भंडार में हीरा, पन्ना, पुखराज, चाँदी, सोना आदि पदार्थ जहाँ जैसे रख दिए जावें, बहुत समय बीत जाने पर भी वे जैसे के तैसे, न कम न अधिक, भिन्न-भिन्न उसी स्थान पर रखे मिलते हैं; उसीप्रकार सिद्धान्त, न्याय, व्याकरणादि के सूत्र, गद्य, पद्य, ग्रन्थ जिस प्रकार पढ़े थे, सुने थे, पढ़ाये अथवा मनन किए थे, बहुत समय बीत जाने पर भी यदि पूछा जाए, तो न एक भी अक्षर घटकर, न बढ़कर, न पलटकर, भिन्न-भिन्न ग्रन्थों को उसीप्रकार सुना सकें ऐसी शक्ति । *५. एक-बीज बुद्धि ऋद्धि -* ग्रन्थों के एक बीज (अक्षर, शब्द, पद) को सुनकर पूरे ग्रंथ के अनेक प्रकार के अर्थो को बता सकने की शक्ति । *६. संभिन्न संश्रोतृत्व बुद्धि ऋद्धि -* बारह योजन लम्बे नौ योजन चौड़े क्षेत्र में ठहरनेवाली

अन्तर की मांग - क्षु.जिनेंद्र वर्णी

धर्म कर्म की जीवन में आवश्यकता ही क्या है ? जीवन के लिए यह कुछ उपयोगी तो भासता नहीं , यदि बिना किसी धार्मिक प्रवृत्ति के ही जीवन बिताया जाए तो क्या हर्ज है ? फिलोस्फर बनने के लिए कहा गया है ना मुझे , प्रश्न बहुत सुंदर है, और करना भी चाहिए था , अंतर में उत्पन्न हुए प्रश्न को कहते हुए शर्माना नहीं चाहिए । नहीं तो यह विषय स्पष्ट ना होने पाएगा । प्रश्न बेधड़क कर दिया करो डरना नहीं ।  वास्तव में ही धर्म की कोई आवश्यकता नहीं होती यदि मेरे अंदर की सभी अभिलाषाओं की पूर्ति साधारणतः हो जाती । कोई भी पुरुषार्थ किसी प्रयोजनवश ही करने में आता है किसी अभिलाषा विशेष की पूर्ति के लिए ही कोई कार्य किया जाता है । ऐसा कोई कार्य नहीं जो बिना किसी अभिलाषा के किया जा रहा हो । अतः उपरोक्त बात का उत्तर पाने के लिए मुझे विश्लेषण करना होगा अपनी अभिलाषाओं का । ऐसा कहने से अस्पष्टता कुछ ध्वनि अंतरंग में आती प्रतीत होगी इस रूप में कि 'मुझे सुख चाहिए ,मुझे निराकुलता चाहिए'-  यह ध्वनि छोटे बड़े सभी प्राणियों की चिर परिचित है ,क्योंकि कोई भी ऐसा नहीं है जो इस ध्वनि को बराबर उठते ना सुन रहा हो और य

वेज+नॉनवेज रेस्टोरेंट की वास्तविकता

*यह लेख आँखें खोल देने वाला है उनके लिए जो पूर्णतः शाकाहारी है और अज्ञानतावश ऐसे रेस्टोरेन्ट में खाना खाते हैं जहाँ शाकाहारी-मांसाहारी दोनों तरह का भोजन परोसा जाता है।* रेस्टोरेन्ट का अन्तःसच *लेखक : नितिन सोनी (१०२, पार्क रेजीडेंसी, २/४, रेसकोर्स रोड, इन्दौर (म. प्र.)* _______________________ *मैंने पिछले एक साल एक ऐसे रेस्टोरेन्ट में प्रबन्धन का कार्य सम्भाला, जहाँ पर शाकाहारी और माँसाहारी दोनों तरह का खाना बनता है। अपनी आँखों के सामने ऐसा प्रदूषित वातावरण देखना एक ऐसा पीड़ाजनक अनुभव है जिसे शब्दों में बयान करना बहुत ही कठिन है*। मैं स्वयं अपने को दोषी मानता हूँ, ऐसे नारकीय वातावरण में कार्य करने के लिये। परन्तु कभी-कभी पारिवारिक जिम्मेदारियाँ ऐसे काम करने को विवश कर देती है। मुझे इस अनुभव को आप तक पहुँचाना इसलिए जरुरी लगा क्योंकि वे लोग जो ऐसे रेस्टोरेन्ट में खाना खाते हैं और सोचते हैं कि वो पूर्णतः शाकाहारी भोजन ही ग्रहण कर रहे हैं तो वे पूर्णतः गलत है। आइये, आज आपको एक ऐसे ही शाकाहारी-माँसाहारी रेस्टोरेन्ट की रसोईघर यानि किचन की झलक दिखलाते हैं। सर्वप्रथम तो परिचित करवाते हैं किचन

मांसाहार की हानियाँ

मांसाहार के हानिकारक प्रभाव- मांसाहार में मात्र एक बडे पंचेन्द्रिय जीव की ही हत्या नहीं होती,बल्कि मांस कच्चा हो या पक्का उसमें असंख्य सुक्ष्म दो इंन्द्रिय वाले जीव जिन्हें हम बैक्टीरिया कहते हैं प्रतिपल उत्पन्न होते रहते हैं,मांसभक्षण से उन असंख्य जीवों की भी हत्या होती है। -WHO report के अनुसार नोनवेज के कारण 159 अलग-अलग प्रकार की बीमारियों का खतरा रहता है। जिनमें heart disease,B.P.,kidney, strock,आदि मुख्य हैं। -   covid,sarc जैसे कई वायरस nonveg से ही पैदा हुए हैं,E.coli & BSE वायरस बीफ याने कि गाय के मांस से, trichinosis पोर्क याने कि सुअर के मांस से, salmonella चिकन से,scrapie मटन याने कि बकरे के मांस से ऐसे कई जानलेवा वायरस की उत्पत्ति का कारण मात्र nonveg ही है। -मनुष्य की सरंचना भी शाकाहारी जीवो की श्रेणी में ही आती है,जिसके कई कारण हैं।जैसे- मांसाहारी जीवों की आंखें गोल होती है जो रात के अंधेरे में भी देख सकती है। लेकिन मनुष्य सहित सभी शाकाहारी जीवों की आंखें बादाम के आकार की होती है जो अंधेरे में नहीं देख सकती है। मांसाहारी जीव जीभ से पानी पीते हैं और उन्हें पसीना भी नही

नेहरू और जैन धर्म

जवाहर लाल नेहरू और जैन दर्शन से उनके अपूर्व लगाव पर विशेष जानकरियाँ……………………………! ^^^^^प०जवाहर लाल नेहरू अदभुत विशारद विद्वान व विश्व महान लेखकों में सुमार थे,उन्होंने अनेक महान ग्रंथ लिखे उनमे“The Discovery of India” विश्व के महानतम ग्रंथों में सुमार हैं,जिसमें उन्होंने तीन बात साहस के साथ बड़ी निडरता से वो बातें लिखी ज़ो शायद कोई भारत का प्रधान मंत्री नही लिख पाएगा,कि भारत का सबसे प्राचीन धर्म जैन धर्म हैं और भारत का मूल धर्म जैन धर्म ही था,ऋषभ सारी संस्कृतियों के आद्य प्रवर्तक थे और भारत का नाम ऋषभपुत्र भरत से ही पड़ा था,उन्हें जैन धर्म से बहुत ज़्यादा लगाव था और वे हमेशा जैन आचार्यों के दर्शन के लिए जाते रहते थे.भारतीय संविधान के लेखन के समय उसके कलेवर,आत्मा तथा मूल व मौलिक नीति निर्देशक पर महावीर वांगमय को अधिक महत्व देने का सबसे अधिक दबाव नेहरूजी का ही था.संविधान की मूलप्रति में दाँड़ी यात्रा को दर्शाने के लिए जिस चित्र का नेहरूजी के विशेष आग्रह पर संविधान के लिए बड़ी चाहत से चयन किया जो संविधान के पृष्ठ 151 पर अंकित हैं इसमें गाँधीजी को तिलक लगाती जिस महिला क़ो दर्शाया गया हैं वो

वैज्ञानिक बन

वैज्ञानिक बन  क्षुल्लक जिनेन्द्रवर्णी  धर्म का स्वरूप सांप्रदायिक नहीं वैज्ञानिक है । अंतर केवल इतना है कि लोक में प्रचलित विज्ञान भौतिक विज्ञान है और यह आध्यात्मिक विज्ञान । धर्म की खोज तुझे एक  वैज्ञानिक बनकर करनी होगी, सांप्रदायिक बनकर नहीं । स्वानुभव के आधार पर करनी होगी, गुरुओं के आश्रय पर नहीं । अपने ही अंदर से तत्व संबंधी क्या और क्यों उत्पन्न करके तथा अपने ही अंदर से उसका उत्तर लेकर करनी होगी किसी से पूछ कर नहीं । गुरु जो संकेत दे रहे हैं उनको जीवन पर लागू करके करनी होगी केवल शब्दों में नहीं । तुझे एक फ्लोसफर बनकर चलना होगा कूप मंडूक बनकर नहीं । स्वतंत्र वातावरण में जाकर विचरना होगा सांप्रदायिक बंधनों में नहीं । देख एक वैज्ञानिक का ढंग और सीख कुछ उससे । अपने पूर्व के अनेकों वैज्ञानिकों व फिलोसफरों द्वारा स्वीकार किए गए सर्व ही सिद्धांतों को स्वीकार करके उसका प्रयोग करता है  वह अपनी प्रयोगशाला में, और एक अविष्कार निकाल देता है । कुछ अपने अनुभव भी सिद्धांत के रूप में लिख जाता है, पीछे आने वाले वैज्ञानिकों के लिए । और वह पीछे वाले भी इसी प्रकार करते हैं , सिद्धांत में बराबर वृद्धि

जैन तीर्थंकरों की प्राचीनता

*1. शिवपुराण में लिखा है -* *अष्टषष्ठिसु तीर्थषु यात्रायां यत्फलं भवेत्।* *श्री आदिनाथ देवस्य स्मरणेनापि तदभवेत्॥* *अर्थ - अड़सठ (68) तीर्थों की यात्रा करने का जो फल होता है, उतना फल मात्र तीर्थंकर आदिनाथ के स्मरण करने से होता है।* *2. महाभारत में कहा है -* *युगे युगे महापुण्यं द्श्यते द्वारिका पुरी,* *अवतीर्णो हरिर्यत्र प्रभासशशि भूषणः ।* *रेवताद्री जिनो नेमिर्युगादि विंमलाचले,* *ऋषीणामा श्रमादेव मुक्ति मार्गस्य कारणम् ॥* *अर्थ - युग-युग में द्वारिकापुरी महाक्षेत्र है, जिसमें हरिका अवतार हुआ है। जो प्रभास क्षेत्र में चन्द्रमा की तरह शोभित है और गिरनार पर्वत पर नेमिनाथ और कैलास (अष्टापद) पर्वत पर आदिनाथ हुए हैं। यह क्षेत्र ऋषियों का आश्रय होने से मुक्तिमार्ग का कारण है।* *3. महाभारत में कहा है -* *आरोहस्व रथं पार्थ गांढीवं करे कुरु।* *निर्जिता मेदिनी मन्ये निर्ग्र्था यदि सन्मुखे ||* *अर्थ - हे अर्जुन! रथ पर सवार हो और गांडीव धनुष हाथ में ले, मैं जानता हूँ कि जिसके सन्मुख दिगम्बर मुनि आ रहे हैं उसकी जीत निश्चित है।* *4. ऋग्वेद में कहा है -* *ॐ त्रैलोक्य प्रतिष्ठितानां चतुर्विशति तीर्थंक

महाविघ्न पक्षपात - क्षुल्लक जिनेन्द्र वर्णी

*महाविघ्न पक्षपात*  धर्म के प्रयोजन व महिमा को जानने या सीखने संबंधी बात चलती है अर्थात धर्म संबंधी शिक्षण की बात है, वास्तव में यह जो चलता है इसे प्रवचन ना कहकर शिक्षण क्रम नाम देना अधिक उपयुक्त है । किसी भी बात को सीखने या पढ़ने में क्या-क्या बाधक कारण होते हैं ? उनकी बात है । पांच कारण बताए गए थे ,उनमें से चार की व्याख्या हो चुकी है, जिस पर से यह निर्णय कराया गया कि यदि धर्म का स्वरूप जानना है और उससे कुछ काम लेना है तो  1. उसके प्रति बहुमान व उत्साह उत्पन्न कर  2. निर्णय करके यथार्थ वक्ता से उसे सुन  3. अक्रम से न सुनकर 'क' से 'ह' तक क्रम पूर्वक सुन 4. धैर्य धारकर बिना चूक प्रतिदिन महीनों तक सुन ।  अब पांचवें बाधक कारण की बात चलती है वह है वक्ता व श्रोता का पक्षपात ।  वास्तव में यह पक्षपात बहुत घातक है इस मार्ग में ।   यह उत्पन्न हुए बिना नहीं रहता कारण पहले बताया जा चुका है । पूरा वक्तव्य क्रम पूर्वक ना सुनना ही उस पक्षपात का मुख्य कारण है । 'थोड़ा जानकर मैं बहुत कुछ जान गया हूं'- ऐसा अभिमान अल्पज्ञ जीवो में अक्सर उत्पन्न हो जाता है जो आगे जाने की उसे आज्ञा

दीपावली और इतिहास

  कार्तिक कृष्ण त्रयोदशी के दिन मौन होकर महावीर ध्यान में लीन हुए,यह उनके जीवन का सबसे महत्वपूर्ण क्षण था महावीर के जीव की पर्याय धन्य हुई इसलिए यह दिवस धन्य तेरस कहलाया।    कार्तिक कृष्णा चतुर्दशी की रात्रि में आज से 2548 साल पहले अंतिम तीर्थंकर वर्द्धमान महावीर का निर्वाण हुआ।     अमावस्या को प्रातः देवो और मनुष्यों ने वर्द्धमान की निर्वाण कल्याणक की पूजा की,इस समय पावानगरी में 9 मल्ल,9 लिच्छिवि 18 काशी-कौशल गणों के राजा,प्रजा उपस्थित थे,सभी ने उपवास पूर्वक तीर्थंकर की पूजा की।     पुनः कार्तिक कृष्णा अमावस्या की रात्रि को तीर्थंकर के शिष्य इन्द्रभूति गौतम गणधर कैवल्य को उपलब्ध हुए,उस कैवल्य को जैन दर्शन में आत्मा की निधि/लक्ष्मी की उपमा दी गई है,संसारी जीवों ने अलौकिक और लौकिक दोनों लक्ष्मी की प्राप्ति के उद्देश्य से प्रतीक रुप देवी लक्ष्मी की पूजा आरंभ की। अगले दिन कार्तिक शुक्ला प्रतिपदा के दिन देवों और मनुष्यों ने केवली इंद्रभूति गौतम की पूजा की व महावीर निर्वाण की स्मृति में वीर निर्वाण संवत् प्रारंभ हुआ। दीपावली  दीपावली शब्द का सबसे पुराना साहित्यिक उल्लेख राष्ट्रकूट(राठौड़) स