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मांसाहार की हानियाँ

मांसाहार के हानिकारक प्रभाव-

मांसाहार में मात्र एक बडे पंचेन्द्रिय जीव की ही हत्या नहीं होती,बल्कि मांस कच्चा हो या पक्का उसमें असंख्य सुक्ष्म दो इंन्द्रिय वाले जीव जिन्हें हम बैक्टीरिया कहते हैं प्रतिपल उत्पन्न होते रहते हैं,मांसभक्षण से उन असंख्य जीवों की भी हत्या होती है।

-WHO report के अनुसार नोनवेज के कारण 159 अलग-अलग प्रकार की बीमारियों का खतरा रहता है। जिनमें heart disease,B.P.,kidney, strock,आदि मुख्य हैं।

-   covid,sarc जैसे कई वायरस nonveg से ही पैदा हुए हैं,E.coli & BSE वायरस बीफ याने कि गाय के मांस से, trichinosis पोर्क याने कि सुअर के मांस से, salmonella चिकन से,scrapie मटन याने कि बकरे के मांस से ऐसे कई जानलेवा वायरस की उत्पत्ति का कारण मात्र nonveg ही है।

-मनुष्य की सरंचना भी शाकाहारी जीवो की श्रेणी में ही आती है,जिसके कई कारण हैं।जैसे-
मांसाहारी जीवों की आंखें गोल होती है जो रात के अंधेरे में भी देख सकती है। लेकिन मनुष्य सहित सभी शाकाहारी जीवों की आंखें बादाम के आकार की होती है जो अंधेरे में नहीं देख सकती है।

मांसाहारी जीव जीभ से पानी पीते हैं और उन्हें पसीना भी नहीं आता है लेकिन मनुष्य सहित सभी शाकाहारी जीव मुंह में घूंट कर पानी पीते हैं और उन्हें पसीना भी आता है।

 मांसाहारी जीवो की आंतें उनके शरीर से मात्र 3 गुना लंबी होती है।लेकिन मनुष्य सहित सभी शाकाहारी जीवो की आंतें उनके शरीर से 12 से 36 गुना तक अधिक लंबी होती है।

मांसाहारी जीवो के दातों का आकार भी शाकाहारी जीवो के आकार से भिन्न होता है।

इस प्रकार के कई मेडिकल टर्म है जो यह सिद्ध करते हैं कि मनुष्य एक शाकाहारी प्राणी ही है।

लेकिन फिर भी जो लोग यह कहकर मांसाहार का सेवन करते हैं कि मांसाहार उनके स्वास्थ्य के लिए लाभदायक है,इसे भी मेडिकल साइंस गलत सिद्ध करता है।

मांसाहार स्वास्थ्य के लिए हानिकारक है हमने दसवीं कक्षा में पाठ्य पुस्तकों में पढ़ा है कि फूड चैन में जैसे-जैसे लेवल बढ़ता है वैसे वैसे केमिकल टॉक्सिस यानी कि जहर की मात्रा बढ़ती जाती है।

पहला लेवल-जैसे पौधों को खाने वाले जीव कीड़े- ग्रासहोपर,कबुतर,गाय,बकरी आदि जीव पहले उपभोक्ता हुए।

 दूसरा लेवल- कीड़े-ग्रासहोपर आदि को खाने वाले मेंढक,चुहे,कौए,मछली आदि जीव दूसरे उपभोक्ता कहलाते हैं।

तीसरा लेवल- मेंढक,चूहे ,मछली आदि को खाने वाले जीव जैसे बिल्ली,सांप  तीसरे उपभोक्ता कहलाते हैं।

चोथा लेवल- बिल्ली और सांप जैसे जीवों को खाने वाले जीव कुत्ते,मोर आदि चोथे उपभोक्ता कहलाते हैं। 

पांचवा लेवल- कुत्ते,मोर आदि को खाने वाले जीव जैसे लोमड़ी,शेर,चीत्ता, मगरमच्छ आदि पाचवे उपभोक्ता कहलाते हैं।

जैसे-जैसे लेवल बढ़ता है वैसे वैसे टॉक्सिक यानी कि जहर की मात्रा बढ़ती जाती है।यह केमिकल टोक्सीक नष्ट नही हो पाता है। यानी कि ये केमिकल  जंहर एक बार शरीर में आ जाते हैं तो शरीर का हिस्सा हो जाते हैं, फिर शरीर से बाहर नहीं निकल पाते और मनुष्य भी इसी प्रकार यदि जानवरों को खाता है तो यह केमिकल जहर उसके भी शरीर में आ जाते हैं और वह भी दो पैरों वाला जानवर बन जाता है।मांसाहारी जानवरों की तरह उसकी भी विवेक बुद्धि शून्य होकर उसका आचरण भी पशुतुल्य स्वार्थी,कपटी,क्रोधी,विकारी और हिंसक हो जाता है।
इसलिए मांसाहारी कौवै को कपटी और मात्र अन्न का दाना खाने वाले कबुतर को शांति का दूत माना जाता है।

और रही बात ताकत की,तो हाथी घोड़े,बैल,ऊंट आदि कई जीव शाकाहारी होने के बावजूद ताकतवर भी है और इनका मूल स्वभाव शांत,सरल और परोपकारी भी है।
इस प्रकार जैन धर्म और हिंदू धर्म में लाखों साल पहले ही मांसाहार भोजन के हानिकारक प्रभाव के कारण मांसाहार से समाज को बचने के लिए कहा है।

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