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दीपावली और इतिहास


  कार्तिक कृष्ण त्रयोदशी के दिन मौन होकर महावीर ध्यान में लीन हुए,यह उनके जीवन का सबसे महत्वपूर्ण क्षण था महावीर के जीव की पर्याय धन्य हुई इसलिए यह दिवस धन्य तेरस कहलाया।

   कार्तिक कृष्णा चतुर्दशी की रात्रि में आज से 2548 साल पहले अंतिम तीर्थंकर वर्द्धमान महावीर का निर्वाण हुआ।

    अमावस्या को प्रातः देवो और मनुष्यों ने वर्द्धमान की निर्वाण कल्याणक की पूजा की,इस समय पावानगरी में 9 मल्ल,9 लिच्छिवि 18 काशी-कौशल गणों के राजा,प्रजा उपस्थित थे,सभी ने उपवास पूर्वक तीर्थंकर की पूजा की।

    पुनः कार्तिक कृष्णा अमावस्या की रात्रि को तीर्थंकर के शिष्य इन्द्रभूति गौतम गणधर कैवल्य को उपलब्ध हुए,उस कैवल्य को जैन दर्शन में आत्मा की निधि/लक्ष्मी की उपमा दी गई है,संसारी जीवों ने अलौकिक और लौकिक दोनों लक्ष्मी की प्राप्ति के उद्देश्य से प्रतीक रुप देवी लक्ष्मी की पूजा आरंभ की।

अगले दिन कार्तिक शुक्ला प्रतिपदा के दिन देवों और मनुष्यों ने केवली इंद्रभूति गौतम की पूजा की व महावीर निर्वाण की स्मृति में वीर निर्वाण संवत् प्रारंभ हुआ।

दीपावली

 दीपावली शब्द का सबसे पुराना साहित्यिक उल्लेख राष्ट्रकूट(राठौड़) सम्राट अमोघवर्ष के गुरु आचार्य जिनसेन(नौंवी शताब्दी) लिखित हरिवंश पुराण में मिलता हैं

ततस्तुः लोकः प्रतिवर्षमादरत् प्रसिद्धदीपलिकयात्र भारते।
समुद्यतः पूजयितुं जिनेश्वरं जिनेन्द्र-निर्वाण विभूति भक्तिभाक्।।

भारत के लोग जिनेन्द्र (तीर्थंकर वर्द्धमान) के निर्वाण पर उनकी पूजा करने के लिए प्रतिवर्ष आदर सहित प्रसिद्ध त्योहार दीपलिक मनाते हैं।

 गजलक्ष्मी की सबसे पुरानी मूर्ति

 दीपावली के दिन भारतवर्ष में लक्ष्मी की पूजा घर-घर में की जाती है,इस लक्ष्मी का सबसे पुराना अंकन सम्राट खारवेल द्वारा खंडगिरि-उदयगिरि की जैन गुफाओं में हुआ है,खंडगिरि की क्रमांक 3 गुफा अनंत गुफा के प्रवेश द्वार पर अब तक की ज्ञात भारत की सबसे पुरानी गजलक्ष्मी का अंकन है,जैन शास्त्रों में गजलक्ष्मी को मंगल स्वरुपा कहा है,जैन आगमों के अनुसार तीर्थंकर की माता जो 16स्वप्न देखती है उसमें गजलक्ष्मी भी एक है।

भारत का सबसे प्राचीन संवत्

  भारत का सबसे प्राचीन संवत् वीर निर्वाण संवत् है,यह महावीर के निर्वाण के अगले दिन से प्रारम्भ हुआ, राजस्थान में अजमेर के पास स्थित बड़ली गांव से मौर्यकाल से पूर्व का एक शिलालेख इतिहासकार गौरीशंकर हीराचंद ओझा को प्राप्त हुआ,जिसपर वीर निर्वाण संवत् 84 उत्कीर्ण था,यह शिलालेख राजस्थान प्रांत में महावीर के निर्वाण के 84 वर्ष बाद जैन-धर्म के प्रसार की सूचना देता है।

गौरव जैन की फेसबुक वॉल से साभार......

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