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Showing posts from 2022

प्रकरण : श्री सम्मेद शिखर जी

प्रकरण : श्री सम्मेद शिखर जी *अतिवादी होने से भी बचें जैन* प्रो अनेकान्त कुमार जैन ,नई दिल्ली एक बात है जो किस तरह कही जाय समझ नहीं आ रहा । क्यों कि हम लोग उभय अतिवाद के शिकार हैं ।  वर्तमान में  श्री सम्मेद शिखर जी प्रकरण में आधे से अधिक जैन वहाँ की इस स्थिति का जिम्मेदार स्वयं जैनों को ठहराने में पूरी  ताकत लगा कर महौल को हल्का करने की भी कोशिश कर रहे हैं ।  इसमें भी अधिकांश वे लोग भी हैं जिन्हें स्वयं सारी सुविधाएं चाहिए और दूसरों को त्याग तपस्या के उपदेश दे रहे हैं ।  ये वैसे समाधान बतला कर स्वयं को धन्य समझ रहे हैं जो अशक्य अनुष्ठान होता है ।  जैसे -  1.यदि देश के सभी नागरिक अपराध छोड़ दें तो पुलिस की आवश्यकता ही न पड़े । 2. यदि सभी लोग बहुत साफ सफाई से रहें तो मच्छर पैदा ही न हों । 3.यदि सभी लोग ब्रह्मचर्य का पालन करें तो जनसंख्या बढ़े ही नहीं । यदि ऐसा हो तो वैसा हो .... आदि आदि काल्पनिक ख्याली पुलाव पका कर आप अपना पेट भर लेते हैं और निश्चिंत हो जाते हैं । इस तरह के आलसी लोग जिन्हें सिर्फ बातें बनाना और अति आदर्श की वे बातें करना आता है जो वास्तव में यथार्थ में संभव ही नहीं है । वे

तत्त्वार्थसूत्रम्

  तत्त्वार्थसूत्रम् प्रथमअध्याय सम्यग्दर्शनज्ञानचारित्राणिमोक्षमार्गः॥१॥तत्त्वार्थश्रद्धानंसम्यग्दर्शनम्॥२॥तन्निसर्गादधिगमाद्वा॥३॥जीवाजीवास्रवबन्धसंवरनिर्जरामोक्षस्तत्त्वम्॥४॥नामस्थापनाद्रव्यभावतस्तन्न्यासः॥५॥प्रमाणनयैरधिगमः॥६॥निर्देशस्वामित्वसाधनाधिकरणस्थितिविधानतः॥७॥सत्संख्याक्षेत्रस्पर्शनकालान्तरभावाल्पबहुत्वैश्च॥८॥मतिश्रुतावधिमनःपर्ययकेवलानिज्ञानम्॥९॥तत्प्रमाणे॥१०॥आद्येपरिक्षम्॥११॥प्रत्यक्षमन्यत्॥१२॥मतिःस्मृतिःसंज्ञाचिन्ताऽभिनिबोधइत्यनर्थान्तरम्॥१३॥तदिन्द्रियानिन्द्रियनिमित्तम्॥१४॥अवग्रहेहावायधारणाः॥१५॥बहुबहुविधक्षिप्रानिःसृतानुक्तध्रुवाणांसेतराणाम्॥१६॥अर्थस्य॥१७॥व्यञ्जनस्यावग्रहः॥१८॥नचक्षुरनिन्द्रियाभ्याम्॥१९॥श्रुतंमतिपूर्वंद्व्यनेकद्वादशभेदम्॥२०॥भवप्रत्ययोऽवधिर्देवनारकाणाम्॥२१॥क्षयोपशमनिमित्तःषड्विकल्पःशेषाणाम्॥२२॥ऋजुविपुलमतीमनःपर्ययः॥२३॥विशुद्ध्यप्रतिपाताभ्यांतद्विशेषः॥२४॥विशुद्धिक्षेत्रस्वामिविषयेभ्योऽवधिमनःपर्ययोः॥२५॥मतिश्रुतयोर्निबन्धोद्रव्येष्वसर्वपर्यायेषु॥२६॥रूपिष्ववधेः॥२७॥तदनन्तभागेमनःपर्ययस्य॥२८॥सर्वद्रव्यपर्यायेषुकेवलस्य॥२९॥एकादीनिभाज्यानियुगपदेकस्मिन्नाचतुर्भ्यः॥३०

आचार्य भद्रबाहु को ही आचार्य कुन्दकुन्द का गुरु मानना अधिक उपयुक्त

*आचार्य भद्रबाहु को ही आचार्य कुन्दकुन्द का गुरु मानना अधिक उपयुक्त* :  प्रो .डॉ. फूलचन्द्र जैन प्रेमी, वाराणसी *आचार्य कुन्दकुन्द और उनका दिव्य अवदान* तीर्थंकर महावीर और गौतम गणधर के बाद की उत्तरवर्ती जैन आचार्य परम्परा में अनेक महान् आचार्यों का नाम श्रद्धापूर्वक लिया जाता है; जिनके अनुपम व्यक्तित्व और कर्तृत्व से भारतीय चिन्तन, अनुप्राणित हो कर चतुर्दिक प्रकाश की किरणें फैलाता रहा है, किन्तु इन सब में अब से दो हजार (अथवा लगभग 2400) वर्ष पूर्व युगप्रधान आचार्य कुन्दकुन्द ऐसे प्रखर प्रभात के समान महान् आचार्य हुए, जिनके महान आध्यात्मिक चिन्तन से सम्पूर्ण भारतीय मनीषा प्रभावित हुई और उसने एक अद्भुत मोड़ लिया।  यही कारण है कि इनके परवर्ती भी आचार्यों ने अपने को उनकी परम्परा का आचार्य मानकर उनकी सम्पूर्ण विरासत से जुड़ने में अपना गौरव माना तथा उनकी मूल-परम्परा तथा ज्ञान-गरिमा को एक स्वर से श्रेष्ठ मान्य करते हुए कहा - *मंगलं भगवदो वीर, मंगलं गोदमो गणी।*  *मंगलं कोण्डकुंदाइं, जेण्ह धम्मोत्थु मंगलं॥*  [ मंगलं भगवान् वीरो, मंगलं गौतमो गणी। मंगलं कुन्दकुन्दाद्यो, जैनधर्मो$स्तु मंगलम्॥ ] अर्थ

खाद्य पदार्थों के नाम संस्कृत में | Food Names in Sanskrit

खाद्य पदार्थों के नाम संस्कृत में | Food Names in Sanskrit सुबह का नाश्ता (Breakfast) – प्रातराशः दोपहर का भोजन (Lunch) – अहराशः रात का खाना (Dinner) – नक्ताशःरोटी (Bread) – मृदुरोटिका अन्न (Grain) – अन्नम् आटा (Flour) – चूर्णम् पुरी (Puri) – पूरिका बाजरा (Millet) – प्रियंगुः गेहूँ (Wheat) – गोधूमः धान (Grain) – धान्यम् जौ (Barley) – यवः मूँगफली (Peanuts) – मुद्गफली मूँग (Coral) – मुद्गः उड़द (Urad) – माषः गेहूं की रोटी (Wheet Roti) – गोधूमरोटिका तली हुई रोटी (Fried Roti) – अङ्गाररोटिका तेल वाली रोटी (Oiled Roti) – तैलरोटिका ज्वार की रोटी (Jowari Roti) – जूर्णरोटिका रागी रोटी (Ragi Roti) – कोद्रवरोटिका गेहूं उपमा (Wheet Upama) – गोधूमपिष्टिका परौंठा (Protha) परौंट: चितरना (Chitranna) – चित्रान्नम् तिल – तिलः मसूर (Lentil) – मसूरः दाल (Dal) – सूपः, द्धिदलम् करी (Curry) – व्यञ्जनम् दाल करी (Dal Curry) – शाकसूपः अचार (Pickle) – उपदंशः चटनी (Chutuney) – उपसेचनम् सब्जी (Sabji) व्यंजनम् सब्जी का सूप (Vegetable Soup) – शाकतरला तली हुई सब्जी (Fried Curry) – भर्जितशाकम् भरवां करी (Stuffed Curry)

जिन फाउंडेशन की सहसचिव डॉ. इन्दु जैन राष्ट्र गौरव : एक परिचय

जिन फाउंडेशन की सह-सचिव  डॉ. इन्दु जैन राष्ट्र गौरव : एक परिचय सामाजिक, मीडिया एवं अकादमिक गतिविधियों से जुड़ीं डॉ. इन्दु जैन एक ऐसी शख्सियत हैं  जिन्होंने कला,साहित्य और लेखन के क्षेत्र में बहुत कम उम्र में ही वो मुक़ाम हासिल कर लिया है कि उन्हें जैन रत्न, जैन युवा सम्मान, राष्ट्र गौरव ,विदुषी रत्न, Faith Leader जैसी उपाधियों तथा "महावीर पुरस्कार" जैसे अकादमिक पुरस्कारों से नवाजा गया है ।  आप वर्तमान में समाज में गिरते नैतिक और चारित्रिक मूल्यों की त्रासदी के मध्य अपनी ओजस्वी वाणी, प्रेरक वक्तव्य, मधुर कंठ और मनमोहक संचालन द्वारा  समाज को मूल्यों के संरक्षण के लिए निरंतर प्रेरित कर रहीं हैं और प्राचीन भाषा प्राकृत, अपभ्रंश, संस्कृत की शास्त्रीय प्रस्तुति के माध्यम से प्राचीन भारतीय संस्कृति को पुनर्जीवित करने का भगीरथ यत्न कर रहीं हैं ।   आज के युवा पीढ़ी के लिए रोल मॉडल बन चुकीं डॉ इंदु जैन समाज में मूल्यों की स्थापना के लिए अहर्निश समर्पित रहती हैं।  *संक्षिप्त परिचय* पिता - प्रो. फूलचन्द जैन 'प्रेमी', वाराणसी ( राष्ट्रपति पुरस्कार प्राप्त)  माता - डॉ. मुन्नी पुष्पा ज

जैन धर्म की प्राचीनता

जैन धर्म की प्राचीनता ‘‘श्रमण संस्कृति का प्रवर्तक जैन धर्म प्रागैतिहासिक धर्म है |.... मोहनजोदड़ो से उपलब्ध ध्यानस्थ योगियों की मूर्तियों की प्राप्ति से जैन धर्म की प्राचीनता निर्विवाद सिद्ध होती है | वैदिक युग में व्रात्यों और श्रमण ज्ञानियों की परम्परा का प्रतिनिधित्व भी जैन धर्म ने ही किया | धर्म, दर्शन, संस्कृति और कला की दृष्टि से भारतीय इतिहास में जैन धर्म का विशेष योगदान रहा है |’’                       –वाचस्पति गैरोला, भारतीय दर्शन, पृष्ठ 93

ऋषभदेव वेदपूर्व परम्परा के प्रतिनिधि हैं

*ऋषभदेव वेदपूर्व परम्परा के प्रतिनिधि हैं*  ‘‘वेद और पुराण चाहे जो भी कहें, किन्तु ऋषभदेव की कृच्छ्र साधना का मेल ऋग्वेद की प्रवृत्तिमार्गी धारा से नहीं बैठता | वेदोल्लिखित होने पर भी ऋषभदेव वेदपूर्व परम्परा के प्रतिनिधि हैं |’’                       –रामधारीसिंह दिनकर,  संस्कृति के चार अध्याय, पृष्ठ 147 जैन धर्म की प्राचीनता ‘‘श्रमण संस्कृति का प्रवर्तक जैन धर्म प्रागैतिहासिक धर्म है |.... मोहनजोदड़ो से उपलब्ध ध्यानस्थ योगियों की मूर्तियों की प्राप्ति से जैन धर्म की प्राचीनता निर्विवाद सिद्ध होती है | वैदिक युग में व्रात्यों और श्रमण ज्ञानियों की परम्परा का प्रतिनिधित्व भी जैन धर्म ने ही किया | धर्म, दर्शन, संस्कृति और कला की दृष्टि से भारतीय इतिहास में जैन धर्म का विशेष योगदान रहा है |’’                       –वाचस्पति गैरोला, भारतीय दर्शन, पृष्ठ 93

आत्मजयी महावीर -आचार्य हजारीप्रसाद द्विवेदी,

*आत्मजयी महावीर*  -आचार्य हजारीप्रसाद द्विवेदी,  “जिन तपःपुनीत महात्माओं पर भारतवर्ष उचित गर्व कर सकता है, जिनके महान् उपदेश हजारों वर्ष की कालावधि को चीरकर आज भी जीवन्त प्रेरणा का स्रोत बने हुये हैं, उनमें महावीर अग्रगण्य हैं । उनके पुण्य स्मरण से हम निश्चित रूप से गौरवान्वित होते हैं।...भगवान महावीर जैसा चरित्रसम्पन्न, जितेन्द्रिय, आत्मवशी महात्मा मिलना मुश्किल है। सारा जीवन उन्होंने आत्मसंयम और तपस्या में बिताया। उनके समान दृढ़ संकल्प के आत्मजयी महात्मा बहुत थोड़े हुये हैं। उनका मन, वचन और कर्म एक दूसरे के साथ पूर्ण सामंजस्य में थे। इस देश का नेता उन्हीं जैसा तपोमय महात्मा ही हो सकता था।"     -'आत्मजयी महावीर’ शीर्षक निबन्ध में