*ऋषभदेव वेदपूर्व परम्परा के प्रतिनिधि हैं*
‘‘वेद और पुराण चाहे जो भी कहें, किन्तु ऋषभदेव की कृच्छ्र साधना का मेल ऋग्वेद की प्रवृत्तिमार्गी धारा से नहीं बैठता | वेदोल्लिखित होने पर भी ऋषभदेव वेदपूर्व परम्परा के प्रतिनिधि हैं |’’
–रामधारीसिंह दिनकर,
संस्कृति के चार अध्याय, पृष्ठ 147
जैन धर्म की प्राचीनता
‘‘श्रमण संस्कृति का प्रवर्तक जैन धर्म प्रागैतिहासिक धर्म है |.... मोहनजोदड़ो से उपलब्ध ध्यानस्थ योगियों की मूर्तियों की प्राप्ति से जैन धर्म की प्राचीनता निर्विवाद सिद्ध होती है | वैदिक युग में व्रात्यों और श्रमण ज्ञानियों की परम्परा का प्रतिनिधित्व भी जैन धर्म ने ही किया | धर्म, दर्शन, संस्कृति और कला की दृष्टि से भारतीय इतिहास में जैन धर्म का विशेष योगदान रहा है |’’
–वाचस्पति गैरोला, भारतीय दर्शन, पृष्ठ 93
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