प्रो. श्रीयांशकुमार सिंघई
(21 अगस्त 1958)
जन्म- खुरई (सागर), मध्यप्रदेश
केन्द्रीय संस्कृत विश्वविद्यालय नई दिल्ली के जयपुर परिसर में कार्यरत आचार्य (जैनदर्शन विभाग) एवं संकाय प्रमुख प्रो. सिंघई जैनधर्म दर्शन के मर्मज्ञ विद्वान् एवं प्रखर प्रवचनकार हैं। प्राकृत- संस्कृत एवं हिन्दी में उनके अनेक शोध लेख एवं कई पुस्तकें प्रकाशित हैं।
प्रो. सिंघई 1977 में जैनदर्शन को समझने के लिए जयपुर आये थे।
एतदर्थं उन्होंने उपाध्याय (1978), शास्त्री (1981), आचार्य (1983) परीक्षाओं को स्वर्ण पदक एवं रजत पदक प्राप्त करते हुए उत्तीर्ण किया।
1991 में राजस्थान विश्वविद्यालय जयपुर से इन्होंने संस्कृत भाषा में प्रस्तुत अपने शोध प्रबंध 'जैनकर्मसिद्धान्ते- बन्धमुक्तिप्रक्रिया' पर विद्यावारिधि (पीएच.डी. ) की उपाधि प्राप्त की।
वे 1984 से सतत जैन विद्या के अध्यापन अनुसंधान कार्य में संलग्न हैं। उनकी अभिरुचि आध्यात्मिक चिन्तन-मनन के साथ प्राचीन पाण्डुलिपियों के सम्पादन प्रकाशन के क्षेत्र में है, वे अपने शेष जीवन का उपयोग प्राकृत एवं संस्कृत वाङ्मय की अपूर्व निधि जैन विद्या विषयक पाण्डुलिपियों को प्रकाश में लाने हेतु करना चाहते हैं।
उनकी प्रकाशित प्रमुख रचनायें हैं
(1) जैनदर्शने मुक्तिमार्ग: (1985),
(2) सम्मेदशिखर माहात्म्यम् (अनुवादित),
(3) बुन्देलखण्ड गौरव पं. गोरेलालशास्त्री स्मृति ग्रन्थ (सम्पादित, 1999 ),
(4) भक्तामरशतद्वयीकाव्यम् (2003, सम्पादित- अनुवादित),
(5) प्रवचनसार भाषा कवित्त (सम्पादित अनुवादित पाण्डुलिपि 2006),
(6) जैनकर्मसिद्धान्ते बन्ध मुक्ति विमर्श: (2006)।
समणसुतं समख्याति संस्कृत टीका ग्रन्थ के प्रकाशन के बाद श्रावकधर्मसोपानम् (संस्कृत पद्य रचना), सागर के अनमोल रतन (पं. पन्नालाल साहित्याचार्य के व्यक्तित्व कृतित्व पर आधारित हिन्दी खण्डकाव्य) तथा धम्मपुरिसत्थसारो (प्राकृतगाथाबद्ध ग्रन्थ) रचनायें शीघ्र प्रकाशित होने की कतार में हैं।
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